- सितंबर 2020 में मुख्यमंत्री सौर स्वरोज़गार योजना की शुरुआत हुई। इस योजना के तहत मार्च-2022 तक 10 हज़ार लोगों को 25 किलोवाट तक के छोटे सोलर प्लांट आवंटित करने का लक्ष्य तय किया गया है। इससे उत्तराखंड के कुल सौर ऊर्जा उत्पादन में 250 मेगावाट और जुड़ जाएगा।
- 31 मई 2021 तक मात्र 1,010 आवेदन मिले हैं। इनमें से सिर्फ 372 को अलॉटमेंट लेटर मिला है। 208 लोगों का यूपीसीएल के साथ पावर-परचेज अग्रीमेंट हुआ है। जबकि 140 आवेदन बैंकों को लोन के लिए भेजे गए हैं।
- 25 किलोवाट के प्लांट के लिए कम से कम 63 केवीए का ट्रांसफॉर्मर होना चाहिए। पहाड़ के गांवों में 25-30 केवीए क्षमता के ट्रांसफार्मर लगे हैं। इसे देखते हुए हाल ही में योजना में बदलाव कर 25 की जगह 20 किलोवाट कर दिया गया।
पर्वतीय ज़िले पौड़ी के कोट ब्लॉक के कोट गांव के सागर रावत की दिल्ली की आईटी कंपनी की नौकरी छूट गई थी। वह बताते हैं, “लॉकडाउन की वजह से मेरे पास कोई काम नहीं था। गांव में मेरे पास अपनी ज़मीन थी। तो मैंने सौर स्वरोजगार योजना के लिए सितंबर-2020 में आवेदन किया। मेरा आवेदन तो मंजूर हो गया। दिसंबर-2020 में मुझे सोलर प्लांट के लिए अलॉटमेंट लेटर भी मिल गया। फरवरी में उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) के साथ पावर-परचेज़ एग्रीमेंट भी हो गया है। पर बैंक मुझे लोन नहीं दे रहे। मुझे नहीं पता कि अगला कदम क्या होगा। उत्तराखंड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (उरेडा) से स्पष्ट जवाब नहीं मिल रहा है। वे बताते हैं कि मेरी फाइल उद्योग विभाग में अटकी हुई है।”
कुछ ऐसी ही कहानी कोट गांव के आशीष रावत की भी है। इन्होंने भी कोरोना की वजह से नौकरी गंवाई है। अक्टूबर -2020 में उन्होंने भी सौर स्वरोज़गार योजना में आवेदन किया था। दिसंबर तक उनका आवेदन मंजूर हो गया था। लेकिन प्लांट अब तक स्वीकृत नहीं हुआ है। वह कहते हैं, “25 किलोवाट के सोलर प्लांट से हर महीने 14-15 हज़ार रुपये तक आमदनी होगी। उसमें 7,000 रुपये से अधिक रकम बैंक की किस्त देने में चली जाएगी। 7,000 से 8,000 रुपये में परिवार का खर्च नहीं चल सकता। बैंक से लोन की अनिवार्य शर्त भी जरूरी नहीं थी।” इनका कहना है कि इस योजना में इतनी छूट होनी चाहिए थी कि जिसको जरूरत हो वही लोन ले।
ये लोग सितंबर 2020 में उत्तराखंड सरकार सौर स्वरोज़गार योजना की बात कर रहे हैं। वर्ष 2020 में कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन की वजह से देशभर से प्रवासी अपने घरों को लौटे। रोज़गार की तलाश में दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में नौकरी कर रहे उत्तराखंड के लाखों युवा भी अपने गांव वापस लौट आए। यह योजना गांवों में ही प्रवासियों को रोज़गार देने के मक़सद से लाई गई थी।
क्या है सौर स्वरोज़गार योजना
इस योजना में मार्च 2022 तक 10 हज़ार लोगों को 25-25 किलोवाट के सोलर प्लांट देने का लक्ष्य तय किया गया। अगर यह योजना सही से लागू होती है तो उत्तराखंड के कुल सौर ऊर्जा उत्पादन में 250 मेगावाट और जुड़ जाएगा।
केंद्र सरकार के लक्ष्य के मुताबिक अक्षय ऊर्जा स्रोतों के ज़रिये बिजली उत्पादन में 40% तक बढ़ोतरी करनी है। 2022 के अंत तक देश में 100 गीगावाट सोलर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें से 40 गीगावाट बिजली उत्पादन रूफ टॉप सोलर पैनल के ज़रिये हासिल करना है।
इस लक्ष्य को हासिल करने में उत्तराखंड की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है। 30 अप्रैल 2021 तक उत्तराखंड में जलविद्युत ऊर्जा 1,975.89 मेगावाट (54 प्रतिशत), अक्षय ऊर्जा 712.95 मेगावाट (18 प्रतिशत से अधिक), कोयला समेत सभी थर्मल पावर 1,011.26 मेगावाट, परमाणु ऊर्जा 31.24 मेगावाट मिलाकर कुल 3731.34 मेगावाट बिजली उत्पादन हो रहा है। जलविद्युत और थर्मल के बाद सौर ऊर्जा तीसरा बड़ा स्रोत है।
सौर स्वरोजगार योजना में 25 किलोवाट के सोलर प्लांट के लिए 40,000 प्रति किलोवाट की दर से कुल 10,00,000 रुपये का खर्च आना है। नियम के अनुसार इस योजना का लाभ लेने के इच्छुक लोगों को 3,00,000 रुपये जमा करने होंगे। इस योजना में 7,00,000 रुपये बैंक से ऋण लेना जरूरी है और लाभार्थी को 8% के ब्याज़ दर से किस्त चुकानी होगी। प्लांट से उर्जा उत्पादन शुरू होने पर राज्य सरकार की तरफ से 2,00,000 रुपये की सब्सिडी मिलेगी।
इस योजना को राज्य से हो रहे पलायन रोकने के लिए लाया गया था। उत्तराखंड के लिए पलायन एक बड़ी समस्या है। रोज़गार के लिए पलायन के चलते उत्तराखंड में गांव के गांव खाली हो रहे हैं और ज़मीन बंजर। लॉकडाउन के बाद जब लोग वापस लौटे एक उम्मीद जगी कि ये लोग शायद वापस ना लौटें। उत्तराखंड ग्राम्य विकास और पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 में लॉकडाउन के बाद सितंबर 2020 तक करीब 3.57 लाख प्रवासी अपने घरों को वापस लौटे। इनमें से करीब 30% प्रवासियों ने राज्य में ही रहकर कुछ करने की इच्छा जतायी थी।
इन तथ्यों को समझते हुए राज्य सरकार ने एक नई योजना बनाई जिससे बंजर ज़मीन सौर ऊर्जा उत्पादन हो और लोगों को रोजगार भी मिले।
सौर स्वरोज़गार योजना की ज़मीनी मुश्किलें
वैसे तो इस योजना को शुरू हुए अभी ज्यादा समय नहीं बीता है। लेकिन अब तक के आंकड़ों से अच्छा संकेत नहीं मिल रहा है। मार्च 2022 तक 10 हज़ार सोलर प्लांट आवंटन का लक्ष्य है। जबकि मई 2021 तक राज्य के सभी 13 ज़िलों से मात्र 1,010 आवेदन मिले थे। 31 अगस्त 2021 तक कुल 1,242 आवेदन।
उरेडा में चीफ़ प्रोजेक्ट ऑफिसर नीरज गर्ग बताते हैं कि इनमें से 558 को अलॉटमेंट लेटर जारी कर दिए गए हैं। यूपीसीएल की ओर से दी गई टेक्निकल फिजिबिलिटी रिपोर्ट के आधार पर उद्योग विभाग ने 348 आवेदन बैंकों को ऋण स्वीकृति के लिए भेज दिया है।
सौर स्व-रोज़गार योजना के तहत पौड़ी के उफाल्डा गांव की प्रिया बलूड़ी का आवेदन भी स्वीकार हुआ। वह परियोजना की प्रक्रिया पूरी होने का इंतज़ार कर रही हैं। देहरादून के डीएवी कॉलेज से मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई कर रही प्रिया कहती हैं, “मैंने सोचा था देहरादून या दिल्ली में नौकरी करूंगी। जब सौर स्वरोजगार योजना के बारे में पता चला तो गांव में रहकर काम करने की सोचा।”
प्रिया के पिता रतन सिंह बलूड़ी पौड़ी में शिक्षक हैं। वह बताते हैं “मेरी बेटी पढ़ी-लिखी है। इसके बावजूद हमें इसका ऑनलाइन फॉर्म भरने में 10-15 दिन लग गए। गांव के बहुत से युवा ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। ऑनलाइन फॉर्म भर पाना उनके लिए बहुत मुश्किल है। अगर हार्डकॉपी में भी आवेदन करना होता तो शायद सबके लिए आसान होता।”
इस योजना के तहत आवेदन के लिए 3,00,000 रुपये जमा करने होते हैं। रतन सिंह कहते हैं “हमने गांव के स्वयं सहायता समूहों और अन्य लोगों को भी सोलर प्लांट लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। लेकिन जब 3,00,000 रुपये एक मुश्त देने की बात आई तो लोग घबरा गए।”
तीसरी मुश्किल जागरुकता की है। पौड़ी में बहुत से ग्रामीणों ने मोंगाबे-हिंदी को बताया कि उन्हें सौर स्वरोजगार योजना की जानकारी नहीं है।
इस पूरी प्रक्रिया को काफी जटिल बताया जा रहा है। पौड़ी में उरेडा के ज़िला परियोजना अधिकारी शिव सिंह मेहरा कहते हैं “सोलर प्लांट के लिए आया आवेदन यूपीसीएल को भेजा जाता है। प्लांट लगने की जगह से 300 मीटर के दायरे में ट्रांसफॉर्मर जरूरी होता है। ये तकनीकी योग्यता पूरी होने पर यूपीसीएल रिपोर्ट देता है जो ज़िले की समिति को भेजी जाती है। इस समिति में ज़िलाधिकारी या उनके द्वारा नामित मुख्य विकास अधिकारी, उद्योग विभाग के महाप्रबंधक, यूपीसीएल के अधिकारी, बैंक का अधिकारी और उरेडा के परियोजना अधिकारी शामिल होते हैं। एप्लीकेशन स्वीकार होने पर अलॉटमेंट लेटर मिलता है। फिर यूपीसीएल से पावर परचेजिंग एग्रीमेंट होता है। फ़ाइल सब्सिडी के लिए उद्योग विभाग में जाती है। इसके बाद लोन के लिए बैंक से बात और फिर पैनल लाने के लिए सोलर कंपनी से बात होगी।”
तो उरेडा, यूपीसीएल, ज़िला समिति, उद्योग विभाग, बैंक और सोलर कंपनी तक आवेदनकर्ता को एक लंबी प्रक्रिया से गुज़रना होता है।
इसके अतिरिक्त सौर स्वरोज़गार योजना को पूरा करने में कुछ तकनीकी खामियां भी सामने आईं हैं। शिव सिंह मेहरा बताते हैं, “25 किलोवाट के प्लांट के लिए कम से कम 63 केवीए (किलो वोल्टेज एम्पियर) का ट्रांसफॉर्मर होना चाहिए। पहाड़ के कई गांवों में 25-30 केवीए क्षमता के ट्रांसफार्मर लगे हैं। योजना लॉन्च करने के बाद इस मुश्किल पर शासन स्तर की बैठकें हुई। फिर इसमें बदलाव कर 25 की जगह 20 किलोवाट कर दिया गया।”
इस योजना में सोलर प्लांट की क्षमता तो घटा दी गई। लेकिन तकनीकी तौर पर एक गांव का एक ही व्यक्ति प्लांट लगा सकता है।
उरेडा के मुख्य परियोजना अधिकारी एके त्यागी कहते हैं “पर्वतीय क्षेत्रों में सोलर प्लांट से बिजली ले जाने के लिए यूपीसीएल को इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए। जिस पर बहुत ज्यादा खर्च आता है। मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना के तहत 25 किलोवाट के सोलर प्लांट की कीमत 10 लाख रुपये की है और बिजली ले जाने की लागत 25 लाख रुपये की है। यूपीसीएल के लिए ये बेहद खर्चीला होता है। इसलिए हमने इस योजना के तहत ये नियम बनाया है कि प्लांट वही लगेगा जिसके 300 मीटर के दायरे में ट्रांसफॉर्मर भी हो।”
पुराने अनुभव भी हैं कड़वे
पहाड़ के किसानों को सौर ऊर्जा से रोज़गार देने के लिए वर्ष 2016 में 5 किलोवाट की सूर्योदय स्वरोज़गार योजना लाई गई थी। पौड़ी के पोखड़ा ब्लॉक के डबरा गांव के किसान सुधीर सुंद्रियाल बताते हैं “उस समय 3,20,000 रुपये में 5 किलोवाट का रूफ़ टॉप सोलर पैनल लगाने की योजना थी। जब पैनल लगाने का समय आया तो ये 5 की जगह 4 किलोवाट का हो गया। तब उरेडा को ये पता नहीं था कि गांव के घरों में सिंगल फेज़ बिजली कनेक्शन है या डबल फेज़। सिंगल फेज़ के चलते सोलर पैनल की क्षमता 1 किलोवाट कम करनी पड़ी। लेकिन लागत वही रही।”
सुधीर कहते हैं “इसे स्वरोज़गार योजना नहीं कहा जा सकता। पैनल लगने के बाद से अब तक तकरीबन 5 वर्षों में मुझे मुश्किल से 10-12 हज़ार रुपये ही मिले। हां, हमें बिजली का बिल नहीं देना पड़ता।”
इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में बिजली कटने जैसी गंभीर समस्याएं भी सोलर उद्यमियों को प्रभावित करने वाली हैं। बिजली कटौती होने पर सोलर पैनल से बन रही बिजली ऊर्जा विभाग को नहीं जा पाती और उद्यमी इसका ख़ामियाजा उठाते हैं।
(यह स्टोरी इन्टरन्यूज के अर्थ जर्नलिज़म नेटवर्क के सहयोग से की गयी है।)
बैनर तस्वीरः उत्तराखंड की वादियों में लगे सोलर पैनल्स। राज्य सरकार ने कोविड-19 की वजह से बेरोजगार हुए लोगों को पलायन से रोकने के लिए सौर स्वरोज़गार योजना की शुरुआत की थी। तस्वीर- वर्षा सिंह