- मध्य प्रदेश वन विभाग के पास 50 से अधिक पालतू हाथी हैं जिसमें से तकरीबन 35 ही गश्ती और अन्य कामों के लिए उपयोग में लिए जा सकते हैं। बचे हुए या तो बच्चे हैं या बुजुर्ग।
- प्रदेश में वन क्षेत्र और टाइगर रिजर्व में बढ़ते बाघों की संख्या को देखते हुए कम से कम 50 हाथियों की जरूरत है।
- मध्य प्रदेश का वन विभाग इस कमी को पूरा करने के लिए कर्नाटक, राजस्थान, अंडमान सहित कई स्थानों से हाथी लाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, एक दशक से चल रही कोशिशों में अब तक नाकामी ही हाथ लगी है।
- पालतू हाथी का बाघ संरक्षण में काफी योगदान है। हालांकि, पालतू हाथियों की खराब स्थिति को लेकर देश में बहस चली हुई है, जिसकी वजह से जानकार हाथी का विकल्प खोजने पर जोर देते हैं।
इस साल जनवरी में एक बाघ मध्य प्रदेश के हरदा जिले स्थित केलझिरी वन के एक गांव में घुस आया। तीन दिन में ही बाघ ने इंसानों पर तीन बार हमले किए जिसमें एक की मौत हो गई। ग्रामीण भी बाघ के खून के प्यासे हो गए। वन विभाग का रेस्क्यू दल गांव और जंगल की खाक छानता रहा। ड्रोन की भी मदद ली गई। पर बाघ पकड़ में नहीं आया।
वन विभाग के अमले को एक अदद हाथी की जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही थी। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए। पर कोई हाथी मौजूद नहीं था। आनन-फानन में वन विभाग को करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से हाथी मंगाना पड़ा। हाथी को ट्रक में लादकर, पूरे दिन थका देने वाली यात्रा के बाद, हरदा लाया गया। तब जाकर बाघ रेस्क्यू हुआ।
ऐसा ही एक मामला 2019 में सामने आया जब भोपाल के वन क्षेत्र में हाथी की सख्त जरूरत महसूस हुई। एक घायल बाघ को बचाने के लिए वन विभाग के अमले को भोपाल के कठिन जंगलों के बीच जाना था। यह काम हाथी के बिना नहीं हो सकता था, सो 130 किलोमीटर दूर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से हाथी मंगाए गए।
इन घटनाओं से बाघ संरक्षण में हाथियों की अहम भूमिका का अनुमान लगाया जा सकता है। मध्य प्रदेश में आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं जिसमें हाथियों की कमी खलती है। प्रदेश को 2018 में हुए बाघ गणना के आधार पर टाइगर स्टेट का दर्जा प्राप्त है। इस गणना में यहां 526 बाघ पाए गए थे।
मध्य प्रदेश में जरूरत के मुताबिक पालतू हाथी या बंधक बनाए गए हाथी नहीं हैं। इससे बाघ संरक्षण के काम में दिक्कत आती है। वन विभाग के मुताबिक प्रदेश में 52 पालतू हाथी वन विभाग के पास हैं जिसमें से महज 35 ही काम करने लायक हैं। बाकी या तो बुजुर्ग हैं या बच्चे जिनसे काम नहीं लिया जा सकता।
“भोपाल के आसपास इस वक्त 18 बाघ घूम रहे हैं, जिसमें से छह बाघ तो सीमा के भीतर घुस आए हैं। समय समय पर वन विभाग, गश्त के जरिए, बाघों को आबादी से दूर रखने की कोशिश करता रहता है। ऐसे समय में हाथी की जरूरत महसूस होती है। बाघ का रेस्क्यू हाथी के बिना संभव ही नहीं लगता,” भोपाल के पूर्व मुख्य वन संरक्षण एसपी तिवारी कहते हैं।
“हाथी बाहर से मंगाना एक महंगा सौदा है। इसमें न सिर्फ पैसे अधिक खर्च होते हैं, बल्कि हाथी को अधिक थकान भी होती है। ऊपर से महावत भोपाल के जंगल से परिचित नहीं होते जिससे काफी दिक्कतें आती हैं,” वह कहते हैं। बाघों की गतिविधियों को देखते हुए, इनके अनुसार भोपाल में कम से कम दो हाथी होने चाहिए।
बाघ संरक्षण में हाथियों की जरूरत क्यों
पन्ना टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर उमेश कुमार शर्मा बताते हैं कि गश्ती के लिए हाथी बहुत जरूरी है, विशेषकर मानसून में। “मैंने जो अनुभव किया है उसके आधार पर कहूं तो जंगल के कुछ हिस्सों में वाहन से जाना संभव नहीं है। गश्ती के अलावा बाघों के इलाज, रेडियो कॉलर लगाने हेतु बाघ को बेहोश करने के लिए हाथी की जरूरत होती है।”
“पन्ना टाइगर रिजर्व में 14 पालतू हाथी हैं, जिसमें से छः हाथियों का इस्तेमाल गश्ती के लिए किया जाता है। 65 की उम्र पार करने की वजह से एक हाथी को हमने रिटायर कर दिया और एक हथिनी गर्भवती है और काम से बाहर है,” वह कहते हैं।
यह पूछने पर कि यह काम गाड़ियों से क्यों नहीं किया जा सकता, शर्मा कहते हैं, “रेस्क्यू के वक्त वाहन से आवाज आती है जिससे बाघ सचेत होकर वहां से भाग जाता है। बाघ ऐसे समय में वाहन सवार पर हमला भी कर सकता है। हाथी पर सवार होने से ऐसा कोई खतरा नहीं रहता। घायल बाघ के पास भी पैदल नहीं जा सकते।”
हाथी की जरूरत पर भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के पूर्व फील्ड डायरेक्टर विंसेंट रहीम कहते हैं, “हमें जंगल में चढ़ाई और ढलान सहित कई तरह के नाले और दुरूह परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। यह काम वाहन से नहीं हो सकता। भविष्य में अगर कोई ऑल टैरेन वेहिकल मिला तो शायद हाथी के बिना काम चल जाए।”
हाथी के लिए मध्यप्रदेश का लंबा इंतजार
मध्यप्रदेश का पालतू हाथी पाने का इंतजार लगभग एक दशक लंबा है। वर्ष 2012 से राज्य कर्नाटक से हाथी मंगाने के प्रयास में है, लेकिन मामला कागजी कार्रवाई में अटका हुआ है। राज्य सरकार राजस्थान और अंडमान से भी हाथी मंगाने के लिए संपर्क में है।
“मध्य प्रदेश में पालतू हाथियों की संख्या अगर एक दर्जन बढ़ जाए तो गश्ती और इंसान-जानवर संघर्ष रोकने में काफी आसानी होगी। हम कई वर्षों से इसके लिए प्रयासरत हैं। कर्नाटक से बात नहीं बनी तो दूसरे हाथी बाहुल्य राज्य जैसे असम, राजस्थान और अंडमान से पत्राचार कर रहे हैं, ” मध्य प्रदेश वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) आलोक कुमार ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में बताया।
वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़ से मध्य प्रदेश की सीमा में रहवासी इलाके में घुस आए पांच हाथियों को रेस्क्यू किया गया था, जिसमें से चार जीवित बचे।
“मुझे नहीं पता कि हाथियों की संख्या बढ़ जाने से क्या होगा, क्योंकि सिर्फ इससे काम नहीं चलने वाला। हमें हाथियों के साथ महावत भी चाहिए जो आसानी से नहीं मिलते हैं,” शर्मा कहते हैं।
शर्मा ने हाथी से संबंधित इस चुनौती की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहा, “महावत के लिए कोई ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट नहीं है। पुराने महावत नए लोगों को प्रशिक्षित करते हैं। पहले चारा कटर या हेल्पर के तौर पर उनकी भर्ती होती है, फिर हाथी के साथ रहते वे सहायक महावत के रूप में भर्ती कर लिए जाते हैं। महावत के रिश्तेदार ही अक्सर इस काम में आते हैं। इस काम में काफी खतरा भी होता है,” शर्मा ने कहा।
“पन्ना में पालतू हाथियों का कुनबा बढ़ रहा है। एक हथिनी गर्भ से है और बाकी नए बच्चों की ट्रेनिंग चल रही है, जिससे हाथियों की संख्या बढ़ेगी,” वह कहते हैं।
क्या नजरअंजाज हो रहा हाथियों का संरक्षण
हाल ही में बंधन में रहने वाले हाथियों की दुर्दशा पर देश में काफी चर्चा हुई है। वर्ष 2020 में जर्नल ऑफ एशियन एलिफेंट स्पेशलिस्ट ग्रुप ‘गजह’ में प्रकाशित तमाम शोधपत्रों में पालतू हाथियों की दुर्दशा के कई रूप देखने को मिले। एक शोध के मुताबिक उन्हें बंधन में खाने-पीने की दिक्कत भी आती है। मंदिर, चिड़ियाघर और निजी लोगों के पास मौजूद हाथी कुछ ज्यादा ही दिक्कतों का सामना करते हैं।
एक महीने पहले 5 अगस्त को मद्रास हाइकोर्ट ने कहा कि घायल होने की वजह से रेस्क्यू के मामले को छोड़कर दूसरे कामों के लिए हाथियों को पालतू बनाने पर रोक लगाने का समय आ गया है। वन विभाग के अधिकारियों की निगरानी में जंगल के भीतर विशेष व्यवस्था के साथ ही हाथी रहेंगे।
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वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में देश में पालतू हाथियों पर सर्वे करने को कहा। सर्वे में सामने आया कि देशभर में 2,454 पालतू हाथी हैं, जिसमें से 58 प्रतिशत केवल असम (905) और केरल (518) में हैं।
“हाथियों को बंधन में रखने का भारत का काफी पुराना इतिहास है। मौर्य काल या उससे भी पहले का इतिहास। पहले लड़ाई, लकड़ी ढुलाई आदि में इस जीव का इस्तेमाल होता था, पर इस काम में इनकी जरूरत नहीं रही,” विवेक मेनन ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। मेनन वाइल्डलाइफ ट्र्स्ट ऑफ इंडिया के संस्थापक हैं और आईसीयूएन एसएससी के एशियन एलिफेंट स्पेशल ग्रुप के अध्यक्ष हैं।
“अब पालतू हाथियों का इस्तेमाल पर्यटन, धार्मिक संबंधी कार्य और वन के कार्यों में किया जाता है। हाल ही में हाथियों की दुर्दशा की सूचनाएं आई हैं। मैं ज्यादा से ज्यादा हाथियों को बंधन में रखने के पक्ष में नहीं हूं। हालांकि, जो बंधक हाथी वन विभाग के पास हैं उनका संरक्षण के काम में इस्तेमाल ठीक है,” मेनन ने कहा।
बैनर तस्वीरः बाघ की तलाश में हाथी के साथ महावत। बाघ वाले जंगल में गश्त के लिए हाथी बेहद जरूरी है। तस्वीर– कल्याण वर्मा/विकिमीडिया कॉमन्स