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[वीडियो] पश्चिम बंगाल: सफेद क्ले का काला संसार

खनन के बाद बाजार में भेजने के तैयार क्ले। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले से इसे देश के कई हिस्सो में भेजा जाता है। इस खनिज का इस्तेमाल सीमेंट, सिरेमिक, प्लास्टिक, पेंट और कई अन्य उत्पाद बनाने में किया जाता है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन

खनन के बाद बाजार में भेजने के तैयार क्ले। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले से इसे देश के कई हिस्सो में भेजा जाता है। इस खनिज का इस्तेमाल सीमेंट, सिरेमिक, प्लास्टिक, पेंट और कई अन्य उत्पाद बनाने में किया जाता है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन

  • कॉओलिन मिट्टी या चीनी मिट्टी के नाम से जाना जाने वाला क्ले पश्चिम बंगाल में अच्छी मात्रा में उपलब्ध है। इसके खनन से स्थानीय लोगों को रोजगार तो मिल रहा है पर स्वास्थ्य, मजदूरों के अधिकार हनन और पर्यावरण की चिंताएं भी उजागर होने लगी हैं।
  • पश्चिम बंगाल के बीरभूम जैसे कई जिलों में क्ले का खनन दशकों से होता आ रहा है और यह खनन पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधित मानकों को नजरंदाज करते हुए किया जा रहा है।
  • स्थानीय समुदाय के लोग स्वास्थ्य, पानी और खेती की जमीन पर खनन के कुप्रभाव की शिकायत करते हैं। खनन से कई लोगों को रोजगार मिलता है इसलिए वे खराब स्थिति में जीने को मजबूर हैं।

पांच लोगों के परिवार में अकेले कमाने वाले 30 वर्षीय रबी बागडी पश्चिम बंगाल के काबिलपुर गांव के रहने वाले हैं। हर रोज काम के लिए वे घर से तीन किलोमीटर दूर खोरिया जाते हैं जहां इसकी पिसाई होती है। काम पर जाते वक्त रबी एकदम अलग दिखते हैं। जाते समय उनका कपड़ा साफ-सुथरा होता है। लेकिन लौटते समय कपड़ों की हालत देखने लायक होती है। ऐसा लगता है कि उनका पूरा शरीर सफेद मिट्टी से पेंट कर दिया गया है। कपड़े, चेहरा, बाल और पूरा शरीर- सब सफेद मिट्टी से सराबोर।

जब उनसे काम के माहौल, मेहनताना और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर से बाबत प्रश्न पूछा गया तो वे थोड़े परेशान हो गए। पास के ही एक मशीन से सफेद धूल उड़ रही थी।

बागडी को जानने वाले लोग बताते हैं कि वह एक दिहाड़ी मजदूर हैं और उन्हें एक दिन का 180 रुपया मिलता है। यह तब है जब राज्य सरकार ने निर्माण क्षेत्र के एक अकुशल मजदूर को भी 8 घंटे का मेहनताना 296 रुपया तय कर रखा है। हालांकि, बागडी किसी भी बात पर टिप्पणी करने से इनकार करते हैं। यहां तक कि जिस खदान में वे काम करते हैं वहां कोई मजदूर संगठन भी नहीं है। वे दिहाड़ी मजदूर हैं और उन्हें कोई और सुरक्षा नहीं मिलती। स्वास्थ्य सुरक्षा, कर्मचारी भविष्य निधि या अन्य।

पीसने वाली यह मशीन पटेल नगर मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड का है जो कि देश की सबसे पुरानी क्ले खनन और प्रसंस्करण इकाई है। इसे 1955 में शुरू किया गया था। राज्य का यह अकेला खनन यूनिट है जो कि साल 2012-13 में देश के शीर्ष दस कॉओलिन मिट्टी उत्पादकों में शामिल रहा।

चाइना क्ले प्रोसेसिंग यूनिट में एक कर्मचारी। कुछ क्षेत्रों में खनन क्षेत्र में श्रमिक संघों की अनुपस्थिति के कारण मजदूर बेहतर मजदूरी और अन्य लाभ के लिए अपनी आवाज नहीं उठा पाते हैं। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन
चाइना क्ले प्रोसेसिंग यूनिट में एक कर्मचारी। खनन क्षेत्र में श्रमिक संघों की अनुपस्थिति के कारण मजदूर बेहतर मजदूरी और अन्य लाभ के लिए अपनी आवाज नहीं उठा पाते हैं। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन

चीनी मिट्टी के प्रसंस्करण इकाई में काम करते मजदूर। तस्वीर- सुभ्रजीत सेनचीनी मिट्टी पीसने वाली मशीन के सामने काम करता एक मजदूर। तस्वीर- सुभ्रजीत सेनगोदाम में पड़ा तैयार चीनी मिट्टी। तस्वीर- सुभ्रजीत सेनभारी वाहनों से चीनी मिट्टी लोड करते मजदूर। तस्वीर- सुभ्रजीत सेनबीरभूम में पटेल नगर मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड भारत की सबसे पुरानी चालू चीन मिट्टी खनन और प्रसंस्करण इकाइयों में से एक है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन।

 

 

 

 

 

 

कॉओलिन मिट्टी को सफेद क्ले के नाम से भी जाना जाता है। इसका इस्तेमाल सीमेंट, रबर, कागज, सिरेमिक, कांच, पेंट और प्लास्टिक बनाने में होता है। पश्चिम बंगाल में क्ले बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। देश का छठवां हिस्सा क्ले इस राज्य में मौजूद होने के बावजूद भी 2010-11, 2011-12 और 2012-13 में भारत के कुल कॉओलिन उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी मात्र 2.92 प्रतिशत रही।

1990 के दशक में स्थिति अलग थी। 1990-91 से लेकर 1998-99 तक, यानी आठ सालों में राज्य में कुल 9.8 लाख टन कॉओलिन का उत्पादन हुआ था। यह देश में हुए कुल 66 लाख टन कॉओलिन के उत्पादन का 14.72 प्रतिशत था। बाद में गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और केरल ने गति पकड़ी और वे पश्चिम बंगाल से आगे निकल गए।

पश्चिम बंगाल में चीनी मिट्टी का कारोबार बीरभूम जिले के मोहम्मद बाजार ब्लॉक तक ही सीमित रह गया है। खनन का काम खोरिया गांव में होता है जिसका नाम खोरी से बना है। इस चीनी मिट्टी को स्थानीय लोग खोरी कहते हैं।

मोहम्मद बाजार में चीनी मिट्टी पीसने की 17 मशीने चलती हैं, जिसमें अधिकतर मजदूर खोरिया और कोमारपुर गांव के होते हैं। इन गांवों में बड़े खदान हैं। पटेल नगर मिनरल्स एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेज के पास इलाके में चार खदान हैं। ये चारों खदान 228 एकड़ में फैली हुई हैं।

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जबकि इसकी संबद्ध इकाइयां, एन.पी. मिनरल्स और पटेल नगर रेफ्रेक्ट्रीज प्रा. लिमिटेड के पास और अधिक खदान और प्रसंस्करण यूनिट हैं। इसमें 2017 में शुरू होने वाली एक कैल्सीनेशन इकाई भी शामिल है। इस समूह का स्वामित्व घोष परिवार के पास है, जिससे दो विधायक भी चुने जा चुके हैं। निताई पाड़ा घोष 1972-77 में कांग्रेस पार्टी से और उनका बेटा स्वपन कांति घोष, 2011-16 में तृणमूल कांग्रेस पार्टी से।

यहां काम करने वाले मजदूर में अधिकांश 18 से 45 वर्ष के हैं। यहां इन दो गांवों के अलावा मालदिहा, गणेशपुर, मोहम्मद बाजार, काबिलपुर और अंगरगरिया गांव के मजदूर भी काम के लिए आते हैं। बड़ी संख्या में मजदूर अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों से वास्ता रखते हैं।

प्रसंस्करण इकाई से निकला क्ले का धूल। स्थानीय निवासी और मजदूर यहां सांस लेने में दिक्कत की शिकायत करते हैं और स्थानीय जलस्रोत भी इस धूल से प्रदूषित हो रहे हैं। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन
प्रसंस्करण इकाई से निकला क्ले का धूल। स्थानीय निवासी और मजदूर यहां सांस लेने में दिक्कत की शिकायत करते हैं और स्थानीय जलस्रोत भी इस धूल से प्रदूषित हो रहे हैं। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन
बीरभूम के एक खुली खदान में कॉओलिन का खनन। देश के कुल कॉओलिन भंडार का 14 प्रतिशत पश्चिम बंगाल में है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन
बीरभूम के एक खुली खदान में कॉओलिन का खनन। देश के कुल कॉओलिन भंडार का 14 प्रतिशत पश्चिम बंगाल में मौजूद है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन

मानसून में जब खनन का काम बंद रहता है तब यहां पीसने वाली मशीने दिन-रात चलती हैं। तीन पाली में काम होता है और हर मशीन पर हर पाली में 12 से 15 मजदूर लगते हैं।

एनपी मिनरल्स ने खोरिया गांव में 17.84 एकड़ जमीन पर खनन के प्रस्ताव में कहा था कि धूल को कम करने के लिए यहां तंत्र लगाया जाएगा जिससे प्रदूषण कम होगा। साथ ही, पानी के प्रदूषण को रोकने के लिए खदान से जीरो डिस्चार्ज होगा।

नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि सभी खनन कंपनियों को इस तरह के इंतजाम करने चाहिए। हालांकि, मोंगाबे-हिन्दी ने जब जमीन के हालात देखें तो पाया कि रास्ते और खेत धूल से पटे पड़े हैं। यहां तक कि लोगों के घरों के भीतर भी धूल भरा होता है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि धूल से स्थानीय जल स्रोत भी प्रदूषित हो रहे हैं।

“हमें घर के भीतर धूल की सतह को रोजाना साफ करना पड़ता है। सांस लेने में भी दिक्कत आती है,” खरिया के एक बुजुर्ग दुलाल चंद्र मंडल कहते हैं।

यह पूछने पर कि इस संबंध में कहीं शिकायत दर्ज करायी है, मंडल कहते हैं, “किसे शिकायत की जाए? हमारी कौन सुनेगा? बल्कि होगा यह कि जो लोग इससे मुनाफा कमा रहे हैं वो नाराज हो जाएंगे।”

राज्य पर्यावरण विभाग और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व मुख्य कानून अधिकारी बिस्वजीत मुखर्जी के अनुसार, कॉओलिन खनन क्षेत्र में लंबे वक्त से चला आ रहा है। “किसी को भी पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव और श्रमिकों के अधिकारों की परवाह नहीं है। शोषण हो रहा है। पर्यावरण संरक्षण और श्रमिकों के अधिकारों से संबंधित शायद ही किसी कानून का यहां पालन होता है,” उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

चीनी मिट्टी का खनन कैसे शुरू हुआ?

1950 के आखिरी में पटेल नगर में खनन की शुरुआत हुई थी। इसमें तीन गांव राज्यवर्धनपुर, खोरिया और कोमारपुर को सामुदायिक विकास योजना के तहत शामिल किया गया।

1961 की जिला जनगणना पुस्तिका में कई तालाब, पुरानी इमारतों और मस्जिदों की उपस्थिति से पता चलता है कि यह क्षेत्र पहले समृद्ध था। 2011 की जनगणना में इन गांवों की कुल आबादी 7,000 से अधिक थी।

एक तरफ तो इस उद्योग ने अन्य आय के अवसर भी खोले। जैसे महिलाओं ने मिट्टी से पाउडर और केक बनाना सीखा। पेंटिंग करने वाले लोगों में इसकी मांग रहती है। कुछ युवा मोटर मैकेनिक बन गए, कुछ मिट्टी के पाउडर और केक के आपूर्तिकर्ता बन गए।

लेकिन बीरभूम में विश्व भारती विश्वविद्यालय में चित्रकला के एक असिस्टेंट प्रोफेसर संचयन घोष के अनुसार इस इलाके में वादे के मुताबिक शहरीकरण नहीं हुआ। शोध के लिए इस इलाके में इनका आना-जाना बना रहता है। 

खनन शुरू होने के साथ ही एक सिनेमा घर की शुरुआत भी हुई। रजनी सिनेमा। लेकिन अब इसे बंद हुए कई दशक हो गए। उजाड़ हुआ सिनेमाघर इस बात की गवाही देता है कि यहां कभी चहलपहल थी।

“उत्सर्जित धूल को अवशोषित करने या संग्रहित करने के लिए कई तकनीक उपलब्ध हैं। इनकी मदद से इस धूल को हवा में फैलने से रोका जा सकता है। हालांकि, यहां ऐसा कुछ भी नहीं दिखता। वैसे, स्थानीय लोग भी खनन को लेकर मिला जुला रवैया रखते हैं। क्योंकि कई लोगों की आजीविका का स्रोत इस उद्योग पर निर्भर है,” घोष ने मोंगाबे-हिन्दी से बात करते हुए कहा। चीनी मिट्टी खदान से निकले मलबे के बीच से गुजरती एक महिला। इन रास्तों से अक्सर बड़ी गाड़ियां खनिज लेकर गुजरती हैं। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन

चीनी मिट्टी खदान से निकले मलबे के बीच से गुजरती एक महिला। इन रास्तों से अक्सर बड़ी गाड़ियां खनिज लेकर गुजरती हैं। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन

सफेद मिट्टी ढोने वाले भारी वाहनों की लगातार आवाजाही से खरिया में सड़कों की स्थिति खराब हो गई है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन
सफेद मिट्टी ढोने वाले भारी वाहनों की लगातार आवाजाही से खरिया में सड़कों की स्थिति खराब हो गई है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन

उदाहरण के लिए, कोमारपुर निवासी शांतो दास खनन उद्योग के लाभार्थी हैं। वह ग्राइंडर प्लांट (पीसने वाली मशीन) से चाइना क्ले पाउडर 2,000 से 2,200 रुपए प्रति टन के हिसाब से खरीदते हैं और स्थानीय महिलाओं को उपलब्ध कराते हैं। ये महिलाएं इससे पाउडर केक बनाती हैं। तैयार माल को वह कोलकाता और आसपास के अन्य कस्बों में बेचते हैं जिससे उनका चार सदस्य का परिवार चलता है।

“चीन मिट्टी खनन ने हमें आय के अवसर दिए लेकिन पर्यावरण और सड़कों को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया। धूल सभी घरों में घुसती है और यहां तक ​​कि खाने को भी दूषित करती है, ”उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

स्थानीय लोग पांच सामान्य समस्याओं की शिकायत करते हैं – सांस लेने में कठिनाई, गड्ढों से सटे खेत में भूजल स्तर का गिरना, धूल से दूषित जल, धूल की सतह जमने से खेत की उर्वरता पर असर और भारी वाहनों की वजह से खतरनाक होती सड़कें।

71 वर्षीय हारा कुमार गुप्ता के बड़े बेटे, पार्थ, कैल्सीनेशन प्लांट में एक दिहाड़ी कर्मचारी है और उसका छोटा बेटा भी आने वाले समय में यहीं काम करेगा। उन्होंने कहा कि स्थानीय तालाबों में अब उतनी मछलियां नहीं हैं जितनी पहले हुआ करती थीं। भूजल के कम होने और धूल के आवरण के कारण आस-पास के खेत भी उर्वरता खो चुके हैं।

“पर हमारे घर के आसपास ही रोजगार मिल रहा है। इसके लिए हमें यह कीमत चुकानी होगी। इन खदानों के आसपास खेती पर निर्भर कई अन्य गांव हैं। उन गावों के मुकाबले हमारे गांव में अधिक समृद्धि है और अधिक पक्के मकान भी हैं,” हारा कुमार गुप्ता कहते हैं।

क्ले खनन में मशीनीकरण से कम हुए रोजगार

क्षेत्र में चीनी मिट्टी के खनन के लिए खनन प्रस्तावों के त्वरित विश्लेषण से पता चलता है कि इससे प्रत्यक्ष रोजगार बहुत अधिक नहीं उत्पन्न हो पाया है। उदाहरण के लिए, 2019 में, पटेल नगर मिनरल्स एंड इंडस्ट्रीज ने 130 एकड़ के प्लॉट के लीज नवीनीकरण के लिए 60 खनिकों सहित 74 पूर्णकालिक कर्मचारियों की आवश्यकता का हवाला दिया।

सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के एक नेता अरुण मित्रा ने कहा कि 2008 तक खारिया-कोमारपुर क्षेत्र में उनका एक पंजीकृत यूनियन हुआ करता था। उन्हीं दिनों अर्ध-मशीनीकृत खनन की शुरुआत हुई और मजदूरों की जरूरत में भारी कमी आई थी।

इसके अलावा, कुछ स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि, खनन पट्टे की शर्तों के अनुसार, वृक्षारोपण के लिए पट्टे की सीमा के साथ 7.5 मीटर ठोस अवरोध रखने की आवश्यकता होती है। यह अवरोध एक तरह से सुरक्षा रेखा है जिसका खनन नहीं किया जा सकता। हालांकि, इस नियम का जमकर उल्लंघन होता है। जब इस अवरोध को बनाए नहीं रखा जाता है, तो खनन क्षेत्र से बाहर की जमीन का पानी खदान में आ जाता है। जमीन अनुपयोगी होने से मजबूर होकर आसपास के लोग भी खदान मालिकों को अपनी जमीन बेच देते हैं। खनन के लिए। 

पश्चिम बंगाल के बीरभूम के खारिया (खोरिया) गांव में चाइना क्ले प्रोसेसिंग यूनिट के पास इकट्ठा हुए बच्चे। गांव का नाम खोरी से पड़ा, जो चीनी मिट्टी का स्थानीय नाम है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन।
पश्चिम बंगाल के बीरभूम के खारिया (खोरिया) गांव में चाइना क्ले प्रोसेसिंग यूनिट के पास इकट्ठा हुए बच्चे। गांव का नाम खोरी से पड़ा, जो चीनी मिट्टी का स्थानीय नाम है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन।
पश्चिम बंगाल के खारिया में सड़क के किनारे फेंके गए चीनी मिट्टी खनन से निकले मलबे के पास से साइकिल से गुजरता एक ग्रामीण। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन
पश्चिम बंगाल के खारिया में सड़क के किनारे फेंके गए चीनी मिट्टी खनन से निकले मलबे के पास से साइकिल से गुजरता एक ग्रामीण। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन

2014 में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ता और पश्चिम बंगाल के रायगंज विश्वविद्यालय में भूगोल के सहायक प्रोफेसर प्रोलय मंडल ने पाया कि खनन से आसपास की उपजाऊ कृषि भूमि खराब हो रही है। यहां जल संसाधनों में समस्या, धरती का विकृत आकार होना, वायु प्रदूषण, मिट्टी की गुणवत्ता खराब होना सहित कई पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

जब पटेल नगर में सरकार द्वारा संचालित एमडी बाजार ब्लॉक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों से यहां सांस लेने में कठिनाई वाले रोगियों के बारे में पूछा गया। उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

पटेल नगर मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड को एक ईमेल भेजा गया, जिसका कोई जवाब नहीं आया है।

 

बैनर तस्वीरः खनन के बाद बाजार में भेजने के लिए तैयार क्ले। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले से इसे देश के कई हिस्सो में भेजा जाता है। इस खनिज का इस्तेमाल सीमेंट, सिरेमिक, प्लास्टिक, पेंट और कई अन्य उत्पाद बनाने में किया जाता है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन

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