- कोयले से बिजली बनाने में अग्रणी रहा मध्य प्रदेश अक्षय ऊर्जा के मामले में सुस्त दिख रहा है। अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में देखें तो 2022 तक का एक लक्ष्य तय किया गया था। राज्य में अब तक उसका 44 प्रतिशत ही हासिल किया जा सका है।
- मध्य प्रदेश के पास फिलहाल 25.29 गीगावॉट की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता है जिसका 21 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा से आता है।
- लक्ष्य हासिल करने के लिए मध्य प्रदेश की नजर बड़ी सौर परियोजनाओं पर है। जानकार मानते हैं कि बड़ी परियोजनाओं पर दांव लगाने से प्रदेश की राह मुश्किल हो सकती है।
- तेजी से बदलती तकनीक, रूप टॉप सोलर उत्पादन में कमी, जमीनी विवाद और नीतियों में अनिश्चितता मध्य प्रदेश के सामने कुछ बड़ी चुनौतियां पेश कर रही हैं।
ऊर्जा उत्पादन के मामले में मध्य प्रदेश, देश का एक बड़ा केंद्र माना जाता रहा है। यहां कोयले से चलने वाले कई थर्मल पावर प्लांट या कहें ताप विद्युत संयंत्र हैं। थर्मल पावर के 16.4 गीगावॉट क्षमता के साथ, देश में ऊर्जा उत्पादन के मामले में, मध्य प्रदेश चौथे स्थान पर आता है। हालांकि, प्रदेश अक्षय ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने के मामले में पिछड़ता दिख रहा है।
अक्षय ऊर्जा के मामले में, मध्य प्रदेश के 2022 तक के तय लक्ष्य में, 44 फीसदी ही सफलता मिली है। राज्य सरकार को 12 गीगावॉट का अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य 2022 के अंत तक हासिल करना है जिसमें से अब तक महज 2.6 गीगावॉट सौर ऊर्जा और 2.5 गीगावॉट पवन ऊर्जा की क्षमता स्थापित की जा सकी है।
वर्ष 2015 में जीवाष्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की तरफ जाने के लिए भारत सरकार ने 2022 तक 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा की क्षमता विकसित करने का लक्ष्य रखा था। इसे पूरा करने के लिए देश के सभी राज्यों को भी लक्ष्य दिए गए थे।
अक्षय ऊर्जा के मामले में बीते कुछ वर्षों में मध्य प्रदेश का विकास बहुत तेज नहीं रहा है। वर्ष 2004 में प्रदेश में 0.03 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता थी, जो कि बढ़कर अब 5.38 गीगावॉट हो गई है। हालांकि, लक्ष्य प्राप्ति के लिए 6.6 गीगावॉट क्षमता को अगले 2022 के अंत तक हासिल करना होगा। खुद को पिछड़ता देख सरकार ने कुछ बड़ी परियोजनाओं पर दांव लगाया है।
“सरकार सौर ऊर्जा से 10 गीगावॉट से अधिक ऊर्जा उत्पादन की योजना पर काम कर रही है। जल्द ही शाजापुर सोलर पार्क मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा सोलर पार्क बन जाएगा। इसकी क्षमता 1.5 गीगावॉट होगी,” मध्य प्रदेश के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा, पर्यावरण विभाग के मंत्री हरदीप सिंह डंग ने एक बयान में कहा।
“इसके अलावा छतरपुर में 0.95 गीगावॉट और मुरैना में 1.4 गीगावॉट की परियाजनाओ पर काम चल रहा है। इन परियोजनाओं पर 18,000 करोड़ रुपए का खर्च आएगा और आने वाले समय में 4.5 गीगावॉट सौर ऊर्जा का उत्पादन हो सकेगा,” डंग ने बताया।
इन बड़ी परियोजनाओं के अलावा प्रदेश में किसानों की मदद से भी ऊर्जा उत्पादन पर काम चल रहा है। इसके लिए 2023 तक 45,000 सोलर पंप किसानों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। योजना के लिए अब तक 25,500 किसानों ने पंजीयन कराया है और 6,871 सोलर पंप का वितरण किया जा चुका है। प्रदेश के 357 किसानों ने 2,961 एकड़ भूमि पर 600 मेगावॉट (0.6 गीगावॉट) क्षमता का सोलर प्लांट लगाने की सहमति भी दी है। सरकार किसानों की मदद से 100 मेगावॉट बिजली उत्पादन का लक्ष्य 2021-22 में ही पूरा करना चाहती है।
खेल बिगाड़ सकती हैं बड़ी परियोजनाएं
मध्य प्रदेश में स्वच्छ ऊर्जा की असीम संभावनाएं हैं। अनुमान के मुताबिक 30 गीगावॉट की। सरकार का ध्यान बड़ी परियोजनाओं पर है। हालांकि छतों पर सोलर पैनल से ऊर्जा जैसे प्रभावी तरीकों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
31 अगस्त 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में छत पर सोलर पैनल से मात्र 120.11 मेगावॉट ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है।
मध्य प्रदेश के पास फिलहाल 25.29 गीगावॉट की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता है। इसका 21 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा क्षेत्र से आता है।
“प्रदेश में 1.7 गीगावॉट क्षमता की परियोजनाएं निर्माण के स्तर पर हैं, जिसमें से 0.42 गीगावॉट सोलर, 0.40 गीगावॉट पवन और 0.90 गीगावॉट हाइब्रिड परियोजनाएं शामिल हैं। आने वाले समय के लिए राज्य ने 5 गीगावॉट की परियोजनाओं को स्वीकृति दी है, जो कि 2022-2023 में उत्पादन शुरू होंगी,” यह कहना है पायल सक्सेना का। वे काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट और वाटर (सीईईडब्ल्यू) नामक गैर लाभकारी संस्था से जुड़ी हैं।
सीईईडब्ल्यू ने वर्ष 2017 में डीकार्बोनाइजिंग इंडियन रेलवे नामक एक अध्ययन किया। इसका मकसद रेल परिचालन के लिए जरूरी ऊर्जा को स्वच्छ ऊर्जा से हासिल करने में राज्यों की रेटिंग करना था। अध्ययन में पाया गया कि मध्य प्रदेश यूटिलिटी स्केल परियोजनाओं (सीधे ग्रिड को बिजली बेचने में सक्षम सौर ऊर्जा परियोजनाएं) में शीर्ष स्थान पर है। जिसे भारतीय रेलवे संचालन संबंधी आवश्यकता, भूमि की उपलब्धता, और अनुकूल नीतियों के आधार पर अपना 5 गीगावाट सौर ऊर्जा का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
“प्रदेश ने 2012 के बाद अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता हिस्सेदारी में 11 गुना बढ़ोतरी देखी है। अक्षय ऊर्जा के तय लक्ष्यों को समय पर पूरा करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की संस्थाएं, सेवा प्रदाता कंपनियां और अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसियां एकजुट होकर प्रयास कर रही हैं,” सक्सेना ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में कहा।
मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम के पूर्व सीनियर एनर्जी कंसल्टेंट मनोज वर्मा भी कुछ इसी तरह से सोचते हैं।
“बड़ी सौर परियोजनाओं के बूते मध्य प्रदेश अपना लक्ष्य जल्दी ही पा लेगा। भोपाल तालाब पर 750 किलोवॉट की परियोजना, कॉलेज और स्कूलों की छतों पर सोलर प्लांट जैसी कई परियोजनाओं की वजह से उत्पादन की क्षमता बढेगी,” वर्मा ने मोंगाबे-हिन्दी से कहा। वे फिलहाल छत्तीसगढ़ के स्वामी विवेकानंद टेक्नीकल यूनिवर्सिटी के ऊर्जा विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं।
वर्मा ने कहा कि सरकार की अक्षय ऊर्जा के संबंध में नीतियों के अलावा लोगों में जागरुकता फैलाने की तरफ भी काम करना चाहिए। स्थानीय स्तर पर लोगों को सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए दक्ष बनाने की कोशिश भी होनी चाहिए।
“बड़ी परियोजनाओं में निवेश एक बड़ी चुनौती है। बड़े स्तर पर उत्पादन में सौर उर्जा को स्टोर करना या सहेजना भी एक चुनौती है। इसका एक ही उपाय है ग्रीड के साथ इंटीग्रेशन यानि उत्पादित बिजली को सीधे ग्रीड तक पहुंचाना। हालांकि, इसकी प्रक्रिया काफी जटिल है जो कि साधारण इंसान की समझ से परे है,” वर्मा ने जोर देकर कहा।
सीईईडब्लू की सक्सेना एक दूसरी समस्या की तरफ ध्यान दिलातीं हैं। यह समस्या है जमीन संबंधित विवाद। इसमें अतिक्रमण, पुनर्वास की जरूरत और जमीन के लिए मुआवजा जैसी दिक्कतें शामिल हैं। इनके निपटारे में काफी समय लग सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि मध्य प्रदेश का ध्यान बड़ी सोलर परियोजनाओं की तरफ है, इससे पवन ऊर्जा में विकास की संभावनाओं पर असर हो सकता है।
“इसकी रफ्तार धीमी होने के कारणों में सौर के साथ मूल्य (टैरिफ) को लेकर कड़ी प्रतिस्पर्धा है। क्योंकि जहां हवा की अधिकता है वह स्थान पहले से ही भरे हुए हैं। सौर ऊर्जा के लिए ज्यादा विस्तृत क्षेत्र की तुलना में पवन ऊर्जा के लिए जगहों का सीमित होना और उत्पादित बिजली के वितरण के लिए बुनियादी ढांचे से जुड़ी समस्याएं इस क्षेत्र में प्रमुख कंपनियों या निवेशकों की रुचि को सीमित करती हैं,” उन्होंने कहा।
सस्ते टैरिफ की होड़ भी एक चुनौती
मध्य प्रदेश का दावा है कि राज्य ने निवेशकों से सौर ऊर्जा खरीदने का सबसे सस्ता टैरिफ हासिल किया है। सौर ऊर्जा पार्क में निवेश करने वाली कंपनियां राज्य को एक नियत दर पर बिजली देती है। निवेश करने से पहले ही यह दर तय की जाती है। हालांकि, सस्ती दर पर बिजली खरीदने की होड़ ऊर्जा के विकास में एक बाधा बन सकती है।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश के नीमच में बनने वाला सोलर पार्क का यूनिट नंबर 2 से महज 2.14 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलेगी।
“प्रदेश में सौर ऊर्जा की दर देश में न्यूनतम दर पर है। निरंतर जारी नवाचारों और तकनीक के बल पर प्रदेश में दो रूपये 14 पैसे प्रति यूनिट सौर ऊर्जा का टैरिफ प्रदान किया जा रहा है,” मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निवेशकों की एक बैठक में कहा।
इस साल लगी बोली में शाजापुर में प्रति यूनिट टैरिफ 2.35 रुपये और 2.33 रुपये क्रमशः यूनिट 1 और यूनिट 2 के लिए था। आगर सोलर पार्क के लिए सबसे कम बोली 2.45 रुपये और 2.44 रुपये क्रमशः यूनिट 1 और यूनिट 2 को लिए लगाई गई थी। पिछले वर्ष रीवा सोलर पार्क जिसे राज्य सरकार देश का सबसे बड़ा सोलर प्रोजेक्ट मानती है, का टैरिफ 2.97 रुपये प्रति यूनिट था।
भारत में कम टैरिफ को सौर ऊर्जा की सफलता के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन विशेषज्ञ इसे एक बड़ी चुनौती मानते हैं। दिसंबर 2020 में हुए एक शोध में जेएमके रिसर्च एंड एनालिटिक्स की ज्योति गुलिया और एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फायनेंसिसयल एलालिसिस के विभूति गर्ग ने एक अध्ययन में पाया कि देश में कई वजहों से कम टैरिफ मिल रहा है।
“नए वैश्विक निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी, कम लागत वाली फंडिंग की उपलब्धता, सौर मॉड्यूल की कीमतों में गिरावट की उम्मीद, और उत्पादन बढ़ाने के लिए नई तकनीक को अपनाने की संभावना, कुछ ऐसे कारक हैं जो टैरिफ को कम से कम स्तर पर ला रहे हैं, अध्ययन में सामने आया।
अध्ययन ने आगाह किया कि ऐसे आक्रामक कदम उठाने से पहले जिन जोखिमों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, उनमें अनुमानित से कम विकिरण (धूप की कमी) के कारण कम उत्पादन, सोलर पार्क में रखरखाव की कमी, उपकरण के खराब होने, आरबीआई के दिशानिर्देशों के अनुरूप ब्याज दरों के बदलने की वजह से आने वाले समय में दिक्कतें आ सकती है।
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मनोज वर्मा कहते हैं, “नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करते समय मौसम, जलवायु और भौगोलिक स्थिति बिजली उत्पादन को प्रभावित करती है।”
वह मानते हैं कि केवल पवन या सौर पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अधिक कुशल बिजली उत्पादन के लिए सौर-पवन हाइब्रिड संयंत्रों की स्थापना की जा सकती है।
इसके अलावा, तकनीक में तेजी से विकास भी एक चुनौती है। हर दो-तीन महीने में फोटोवोल्टिक (पीवी) मॉड्यूल की तकनीक बेहतर हो जाती है। जो कि पिछली तकनीक से बेहतर और सस्ती होती है।
बैनर तस्वीरः भोपाल स्थित बड़ा तालाब पर हाल ही में 750 किलोवॉट का सौर ऊर्जा संयंत्र लगाया गया है। इससे मिलने वाली बिजली का उपयोग पानी पंप करने में हो रहा है। तस्वीर- स्मार्ट सिटी भोपाल