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बेमौसम बरसात से तबाह उत्तराखंड, जान-माल की भारी क्षति, केरल में भी बड़ी तबाही

उत्तराखंड के रामगढ़ तल्ला में तबाही के अवशेष। तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट

उत्तराखंड के रामगढ़ तल्ला में तबाही के अवशेष। तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट

  • मॉनसून जाने के बाद उत्तराखंड में ऐसी बारिश हुई कि सैकड़ों साल के रिकार्ड टूट गए। कई गांव तबाह हुए तो 72 लोगों की जान चली गयी। कुछ लोग अभी तक लापता है।
  • मौसम वैज्ञानिक इसे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बता रहे हैं। हाल के दिनों में यह देखने को मिल रहा है कि साल भर सूखे का माहौल बना रहता है और कुछेक घंटे में भारी बरसात हो जाती है। जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
  • केरल में भी आफत की बारिश हो रही है। अक्तूबर के शुरुआती 25 दिनों में औसत से दोगुनी बारिश हुई। इसमें अबतक 39 लोगों की जान जा चुकी है और अब तक 6 लोग लापता हैं।

मॉनसून बीत चुका था और उत्तराखंड में सामान्य जन-जीवन पटरी पर लौटने लगा था। इस बार 117 दिन तक सक्रिय रहे मॉनसून के बाकायदा, विदा होने की घोषणा हो चुकी थी। फिर ऐसी बारिश हुई कि 72 लोगों की जान चली गयी। मवेशी और फसलों का भी बड़ा नुकसान हुआ।  

मॉनसून विदा होने के बाद जनजीवन सामान्य हो ही रहा था कि मॉनसून विभाग ने राज्य में एक बार फिर तेज बारिश का अलर्ट जारी कर दिया। मौसम विभाग ने 14 अक्टूबर को ऑरेंज अलर्ट जारी किया। इसे 15 अक्टूबर को रेड अलर्ट में बदल दिया गया। लोगों के फोन पर मैसेज के रूप में इस अलर्ट की जानकारी पहुंचने लगी। लेकिन, चटक खिली धूप के बीच किसी ने इस अलर्ट को गंभीरता से नहीं लिया।

17 अक्टूबर की सुबह से राज्य के ज्यादातर हिस्सों में शुरू हुई रिमझिम बारिश, 18 अक्टूबर को तेज हो गई। जगह-जगह सड़कें बंद हो गई। शाम होते-होते लोगों के मौत की सूचना मिलने लगी। 

नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चम्पावत जिलों में तो बारिश कहर बनकर आई। आधी रात के बाद से छोटे-छोटे पहाड़ी नाले उफनने और गाद-मलबे के साथ निचले क्षेत्रों में आकर तबाही मचाने लगे। घरों के बहने या दबने का सिलसिला शुरू हुआ। लोग आधी रात तेज बारिश में घर छोड़कर सुरक्षित जगहों की तलाश में भागने लगे। बचने-बचाने के तमाम प्रयासों के बाद भी 70 से अधिक लोगों की मौत हुई। संपत्ति का कितना नुकसान हुआ अभी इसका आकलन होना बाकी है। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य का दौरा किया और आकलन के लिए केंद्र की टीम भेजने की बात कही। 

अक्टूबर के महीने में उत्तराखंड में तीन दिन में बेमौसमी और अप्रत्याशित बारिश में ताजा आंकड़ों के अनुसार मरने वालों की कुल संख्या अब तक 72 हो चुकी है और 4 लोग अभी लापता है। तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट
अक्टूबर के महीने में उत्तराखंड में तीन दिन में बेमौसमी और अप्रत्याशित बारिश में अब तक 72 लोग की जान जा चुकी है और 4 लोग अभी तक लापता है। तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट

अक्टूबर के महीने में उत्तराखंड में तीन दिन में बेमौसमी और अप्रत्याशित बारिश में ताजा आंकड़ों के अनुसार मरने वालों की कुल संख्या अब तक 72 हो चुकी है और 4 लोग अभी लापता है। इसके अतिरिक्त 26 लोग घायल हैं। मरने वालों की यह संख्या इस वर्ष मॉनसून सीजन में मरने वालों की कुल संख्या से दोगुनी है। मॉनसून सीजन में राज्य के अलग-अलग जिलों में 36 लोगों की मौत हुई थी। 

इस तरह से वर्ष 2021 में उत्तराखंड में आपदाओं में मरने वालों की कुल 330 हो चुकी है। इसी वर्ष चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से ऋषिगंगा में आई आपदा में 222 लोगों की मौत हुई थी।

राज्य में पिछले वर्षों में आपदा में मरने वालों की कुल संख्या देखें तो वर्ष 2013 के अलावा पिछले वर्षों में कभी इतनी बड़ी जनहानि नहीं हुई। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़े बताते हैं कि 2013 के जून में राज्य को अब तक की सबसे बड़ी आपदा का सामना करना पड़ था। केदारनाथ धाम और मन्दाकिनी घाटी बुरी तरह तबाह होने के साथ ही राज्य के अन्य हिस्सों में भी भारी जनहानि हुई थी। 

राज्य आपदा न्यूनीकरण केन्द्र और उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार पिछले 10 वर्षों में 2013 के बाद इस वर्ष जलजनित आपदा में सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई है।

बेमौसम बारिश में तबाह उत्तराखंड, जान-माल की भारी क्षति, केरल में भी बड़ी तबाही
स्रोत: उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण

चौंकाने वाली रिकॉर्ड बारिश

मौसम विभाग ने बारिश के जो आंकड़े जारी किये, वे चौंकाने वाले थे। राज्य के 13 में से 9 जिलों में भारी से अत्यधिक भारी बारिश हुई थी। चम्पावत जिले के पंचेश्वर में 230 मिलीमीटर (मिमी), पौड़ी जिले के लैंसडौन में 229 मिमी, ऊधमसिंह नगर जिले के गूलरभोज में 148 मिमी, बागेश्वर के सामा में 121 और पिथौरागढ़ में 112 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। राज्य के चमोली, रुद्रप्रयाग और अल्मोड़ा जिलों में भी अलग-अलग स्थानों पर 64.5 मिमी मिली से ज्यादा बारिश हुई थी। 

मौसम विभाग के मानकों के अनुसार 64.5 मिमी से ज्यादा बारिश को भारी बारिश कहा जाता है।

देहरादून स्थित राज्य मौसम विज्ञान केन्द्र के आंकड़े बताते हैं कि 18 अक्टूबर शाम से 19 अक्टूबर शाम तक 24 घंटे के दौरान हुई बारिश ने कुमाऊं मंडल में बारिश के सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिये थे। कुमाऊं मंडल में इस दौरान औसतन 197.5 मिमी और गढ़वाल मंडल में 65.5 मिमी बारिश दर्ज की गई। 

कुमाऊं मंडल के दो पुराने वेदर स्टेशन में अब तक हुई बारिश के ऑल टाइम रिकॉर्ड काफी पीछे छूट चुके थे। नैनीताल जिले में पंचेश्वर में 1 मई 1897 से मौसम संबंधी सूचनाएं दर्ज की जा रही हैं। यहां 24 घंटे में बारिश का ऑल टाइम रिकॉर्ड 18 सितम्बर 1914 को दर्ज किया गया था, जब यहां 254.5 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। लेकिन 18 से 19 अक्टूबर को 24 घंटे के दौरान मुक्तेश्वर में 340.8 मिमी बारिश हुई। इसी तरह ऊधमसिंह नगर जिले के पंतनगर में, जहां 25 मई 1962 से मौसम के आंकड़े एकत्रित किये जा रहे हैं, सबसे ज्यादा बारिश 10 जुलाई 1990 को 228 मिमी दर्ज की गई थी। यहां भी 19 अक्टूबर को सबसे ज्यादा बारिश का ऑल टाइम रिकॉर्ड टूट गया। पंतनगर में 24 घंटे में 403.2 मिमी बारिश हुई।

 नैनीताल जिले 40 घर बह गये कोसी नदी में। तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट
हाल में हुई बरसात में नैनीताल जिले 40 घर कोसी नदी में बह गये । तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट

24 घंटों के दौरान राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में कई जगहों पर अप्रत्याशित बारिश हुई। चम्पावत में 579 मिमी, इसी जिले के पंचेश्वर में 508 मिमी, ऊधमसिंह नगर जिले के रुद्रपुर में 484 मिमी और पिथौरागढ़ के गनाई गंगोली और नैनीताल जिले के हल्द्वानी में 325 मिमी बारिश हुई। चम्पावत, नैनीताल, ऊधमसिंह नगर, पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा, पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग और टिहरी जिले के कई अन्य स्थानों पर भी 100 से 300 मिमी तक बारिश दर्ज की गई।

नैनीताल जिला सबसे ज्यादा प्रभावित

17 से 19 अक्टूबर तक हुई भारी बारिश में उत्तराखंड का नैनीताल जिला सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। आपदा के पांच दिन बाद मोंगाबे-हिन्दी ने इस जिले के सबसे ज्यादा प्रभावित रामगढ़ और रामनगर विकासखंड का दौरा किया। रामगढ़ क्षेत्र में सबसे ज्यादा मौतें हुई। यहां काश्तकारों को भी भारी नुकसान हुआ है। इस क्षेत्र में फल उत्पादन काश्तकारों का मुख्य व्यवसाय है। लेकिन, क्षेत्र में भारी बारिश के बाद छोटे-छोटे नालों में आये उफान से सैकड़ों की संख्या में फलों के बगीचे नष्ट हो गये हैं। 

रामगढ़ ब्लॉक के बोहराकोट में 93 वर्षीय दीवान सिंह के फलों का बगीचा पूरी तरह नष्ट हो गया। दीवान सिंह के अनुसार उनके दो बेटे हैं। दोनों की आजीविका इसी बगीचे से चलती थी। बगीचे में सेब और आड़ू के करीब 1500 पेड़ थे। अब सिर्फ दो दर्जन पेड़ बाकी हैं। फलों से हर सीजन में करीब 8 लाख रुपये आमदनी होती थी। इसके अलावा गायें पालकर उनके दोनों बेटे रोजी-रोटी चलाते थे। लेकिन, आपदा में बगीचा बहने के साथ ही छह गायें भी दबकर मर गई। 

इसी ब्लॉक के तल्ला रामगढ़ में 12 मकान पूरी बह गये या मलबे में दब गये। गांव के लोगों ने घरों से भागकर जान बचाई। गांव की दीपा देवी ने बताया कि 19 अक्टूबर को सुबह तीन बजे के करीब नाले में भारी उफान आ गया था। पहले वे उम्मीद करते रहे कि पानी थम जाएगा, लेकिन जब मलबा उनके घरों में घुसने लगा तो घर से बाहर निकल कर सुरक्षित जगह की तरफ भागे। उनकी जान तो बच गई पर घर का बाकी कोई सामान नहीं बचा पाये। दीपा के परिवार के पास अब न राशन है और न बर्तन। वे सरकारी सहायता की उम्मीद कर रही हैं जो अब तक बहुत कम ही मिल पाई है। 

नैनीताल जिले के बोहराकोट में छोटे से बरसाती नाले में बह गये कई घर। तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट
नैनीताल जिले के बोहराकोट में छोटे से बरसाती नाले में बह गये कई घर। तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट

इस ब्लॉक के झुतिया और खैरना क्षेत्रों में भी व्यापक तबाही हुई है। आपदा के एक हफ्ते बाद भी इन क्षेत्रों में बिजली व्यवस्था बहाल नहीं हो पाई है। सड़क संपर्क कटा हुआ है और संचार सुविधा भी बंद है।

नैनीताल जिले के रामनगर ब्लॉक में कोसी नदी ने भी कुछ गांवों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। इन्हीं में से एक गांव है-चुमुक। यह जिले का ऐसा गांव है, जो बरसात के दिनों में कोसी का जलस्तर बढ़ने के साथ ही दुनिया से कट जाता है। कोसी नदी में पुल बनाने की मांग इस गांव के लोग लगातार करते रहे हैं। करीब 65 परिवारों के लोग मॉनसून सीजन शुरू होने से पहले ही 4 महीने का राशन और जरूरी चीजें जमा कर लेते हैं। बाकी दिनों में नदी में पानी कम होने से लोग तैरकर दूसरी तरफ जाते हैं। लेकिन, इस बार मॉनसून के बाद हुई बारिश ने गांव के सामने संकट खड़ा कर दिया है। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि अब क्या करें। 

मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत करते हुए ग्रामीणों ने बताया कि इस बारिश में कोसी नदी ने अप्रत्याशित रूप से अपना रास्ता बदल लिया। पहले नदी गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर बहती थी, लेकिन अब गांव के पास बह रही है। 19 अक्टूबर की रात नदी में इतना पानी आया कि पूरे गांव में पानी भर गया। लोगों ने ऊंचाई की तरफ भागकर जान बचाई। इस अप्रत्याशित बाढ़ में गांव के करीब 30 घर बह गए। ये लोग अब टेंट लगाकर रह रहे हैं। इन्हीं लोगों में एक चंपादेवी ने नदी की धारा के दूसरी तरफ करीब 500 मीटर दूर इशारा करते हुए बताया कि वहां उनका पक्का घर था। साथ में कई खेत थे जिनमें धान की फसल खड़ी थी। अब वहां सिर्फ पत्थर और नदी का मलबा है। 

क्या है बेमौसमी तबाही का कारण

देहरादून स्थिति मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक और मौसम वैज्ञानिक बिक्रम सिंह के अनुसार 17 से 19 अक्टूबर तक राज्य में एक ताकतवर पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय था। इसके बारे में पहले ही सूचना दे दी गई थी। पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने के साथ ही बंगाल की खाड़ी की तरफ से हवाओं ने राज्य के कुमाऊं क्षेत्र को हिट किया। इसी वजह से कुमाऊं मंडल के जिलों में ज्यादा बारिश हुई। कुमाऊं से लगते गढ़वाल मंडल के चमोली और पौड़ी जिलों पर भी काफी असर देखा गया। 

नैनीताल जिले के तल्ला रामगढ़ में दर्जनभर घर और दुकानें टूट गई। तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट
नैनीताल जिले के तल्ला रामगढ़ में दर्जनभर घर और दुकानें टूट गई। तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट

बिक्रम सिंह का कहना है कि मॉनसून जाने के जाने के बाद इस तरह के बारिश पहले कभी दर्ज नहीं की गई। 24 घंटे में सबसे ज्यादा बारिश का ऑल टाइम रिकॉर्ड अब तक मॉनसून सीजन में ही बना था। इस बार यह रिकार्ड मॉनसून के जाने के बाद टूटा। 

भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सती इस बेमौसमी बारिश को जलवायु परिवर्तन की घटना से जोड़ते हैं। वे कहते हैं कि इस बार मॉनसून सीजन में उत्तराखंड में सामान्य से कम बारिश हुई। लेकिन मॉनसून के बाद हुई बारिश ने पिछले कई रिकॉर्ड तोड़ दिये। डॉ. सती के अनुसार इतनी ज्यादा बारिश के बावजूद यदि आप साल के अंत में बारिश का औसत निकालेंगे तो वह पिछले वर्षों जितना ही होगा। 

वे कहते हैं कि हाल के वर्षों में मौसम में इस तरह के परिवर्तन नजर आ रहे हैं। साल के कुछ दिनों में भारी से बहुत भारी बारिश हो जाती है और बाकी दिन लगभग सूखे की स्थिति बनी रहती है। 

हाल की बारिश में तबाही के लिए वे अनियोजित विकास और अनियोजित निर्माणों को जिम्मेदार ठहराते हैं। नैनीताल जिले के चुकुम गांव का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि कोसी नदी, इस गांव से करीब 1 किलोमीटर दूर बहती थी। लेकिन नदी के दूसरी तरफ हाल के सालों में बड़े-बड़े रिजॉर्ट बन गये। नदी में पानी बढ़ा तो स्वाभाविक धारा में रिजॉर्ट अड़चन बन गये और नदी की धारा को रुख बदलकर गांव की तरफ जाना पड़ा। उनका कहना है कि रामगढ़ क्षेत्र में जिस नाले से सबसे ज्यादा तबाही की वह छोटा ही सही लेकिन ऊंचाई वाले क्षेत्र से आता है। यहां भी नाले के आसपास बड़ी संख्या में घर बनाये गये हैं, नाले में उफान आते ही इन घरों को नुकसान पहुंचना स्वाभाविक था।


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केरल में भी आफत की बारिश, अबतक 39 की गई जान, 6 लापता 

अक्टूबर में केरल में लगातार हुई बारिश की वजह से हर तरफ तबाही का मंजर सामने आया। बीते एक महीने में कई जिलों में सड़क बहने, पेड़ उखड़ने और घर गिरने की घटनाएं सामने आई हैं। केरल में अब भी भारी बारिश का दौर जारी है। मौसम विभाग ने 26 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट में केरल के 12 जिलों में 30 अक्टूबर तक के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। 

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 20 अक्टूबर को विधानसभा में कहा कि राज्य में बारिश के कहर और भूस्खलन से अब तक 39 लोगों की मौत हो चुकी है और छह लोग अब भी लापता हैं। 

“राज्य में 11 अक्टूबर से भारी वर्षा हो रही है। 13 से 17 अक्टूबर तक बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पूर्वी तट और अरब सागर में लक्षद्वीप के तट पर बने दोहरे निम्न दबाव के क्षेत्रों की वजह से कुछ हिस्सों में भारी वर्षा हुई,” विजयन ने कहा। 

26 अक्टूबर तक राज्य में 109 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई है। तस्वीर- भारत मौसम विज्ञान विभाग
26 अक्टूबर तक राज्य में 109 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई है। तस्वीर- भारत मौसम विज्ञान विभाग

मौसम विभाग की ताजा जानकारी के मुताबिक एक अक्टूबर से 26 अक्टूबर तक केरल में 542.2 मिमी बारिश हुई, जो कि सामान्य से 109 प्रतिशत अधिक है। इस दौरान औसम सामान्य बारिश 259.8 ही होती है। राज्य सभी 14 जिलों में लार्ज एक्सेस यानी सामान्य से 60 फीसदी से अधिक बारिश हुई। 

केरल में भी दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून में औसत से कम बारिश दर्ज की गई। आंकड़ों के मुताबिक एक जून से 30 सितंबर तक 1718.2 मिमी औसत बारिश दर्ज की गई, जबकि केरल में औसतन 2049.2 मिमी बारिश होती है। इस तरह मॉनसून सामान्य से 16 प्रतिशत कम बारिश लेकर आया। हालांकि, उत्तर पूर्वी मॉनसून जिसका केरल में अक्टूबर से दिसंबर तक प्रभाव रहता है, कहर बरपा रहा है। 26 अक्टूबर तक राज्य में 109 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई है।  

(इनपुट- मनीष चंद्र मिश्र)

 

बैनर तस्वीरः उत्तराखंड के रामगढ़ तल्ला में तबाही के अवशेष। तस्वीर- त्रिलोचन भट्ट

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