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कॉप-26: ग्रीन ग्रिड के सपने की राह में खड़ी हैं ढेरों तकनीकी और राजनैतिक चुनौतियां

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन ने मंगलवार को सौर ऊर्जा ग्रिड के पहले अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के की घोषणा की। इसे ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव – वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड के रूप में सामने रखा गया। तस्वीर- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन/कियारा वर्थ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन ने मंगलवार को सौर ऊर्जा ग्रिड के पहले अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के की घोषणा की। इसे ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव – वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड के रूप में सामने रखा गया। तस्वीर- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन/कियारा वर्थ

  • भारत और ब्रिटेन की सौर ऊर्जा ग्रिड को जोड़ने की योजना से कई तरह के फायदे की उम्मीद है। इससे, न केवल तकनीकी क्षेत्र में नया विकास हो सकता है बल्कि विकासशील देशों को चौबीसों घंटे, स्वच्छ ऊर्जा का लक्ष्य हासिल करने के लिए, जरूरी आर्थिक मदद जुटाने में मदद भी मिल सकती है।
  • हालांकि ग्रीन ग्रिड परियोजना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कैसे लागू की जाएगी, यह अब तक स्पष्ट नहीं है। यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है खासकर तब जब दुनिया में कोई सामान्य तकनीकी प्रोटोकॉल मौजूद नहीं है। अभी हर देश का ग्रिड प्रबंधन करने का अपना तरीका है।
  • ऊर्जा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इंटरकनेक्टिविटी एक बड़ी बात होगी। ऊर्जा क्षेत्र को अक्सर राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखा जाता है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय ग्रिड को अमली जामा पहनाने में कई सारी राजनैतिक अड़चने भी आने की संभावना है।

ग्लासगो में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में भारत और यूके द्वारा स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार के बाबत दुनिया के बिजली पावर ग्रिड को जोड़ने की संयुक्त पहल की सराहना हो रही है। पर विशेषज्ञों ने चेताया भी है कि इस योजना को धरातल पर उतारने का रास्ता बहुत कठिन है। तकनीकी और राजनैतिक, दोनों संदर्भ में। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन ने मंगलवार को सौर ऊर्जा ग्रिड के पहले अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की घोषणा की। इसे ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव – वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड के रूप में सामने रखा गया। 

इंटरनेशनल सोलर अलायंस और ब्रिटिश ग्रीन ग्रिड कार्यक्रम के नेतृत्व की इस संयुक्त पहल में सौर ग्रिड को जोड़ने का प्रयास किया जाएगा। इसके पीछे परिकल्पना यह है कि कई देश अपने अतिरिक्त सौर ऊर्जा को उन देशों में भेज सकेंगे जहां इसकी कमी होगी। चूंकि सूरज दुनिया के किसी न किसी हिस्से में चमक ही रहा होता है (24 घंटे में), इस आधार पर कोई न कोई देश सौर ऊर्जा का उत्पादन करता ही रहेगा। इंटरनेशनल सोलर अलायंस का कार्यालय भारत में ही है। 

दोनों देशों के इस पहल का उद्देश्य, सौर तथा पवन ऊर्जा के साथ-साथ ऊर्जा भंडारण (स्टोरेज) में, निवेश को प्रोत्साहन देना है। लंबी दूरी की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं में ट्रांसमिशन लाइन के साथ-साथ डिमांड सेंटर का निर्माण करना है। ग्रीन ग्रिड के मुताबिक नई तकनीकी का खोज करना है। विश्व समुदाय को जीरो उत्सर्जन वाली वाहनों की तरफ प्रोत्साहित करना है। सोलर मिनी ग्रिड तथा ऑफ ग्रिड की तरफ निवेश आकर्षित करना है। इसके अतिरिक्त ऐसे बाजार की संरचना करनी है जहां सस्ता निवेश हासिल किया जा सके। इसमें वैश्विक सोलर ग्रिड के लिए क्लाइमेट निवेश भी शामिल है। 

इस आइडिया का समय अब आ चुका है 

भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लासगो में कहा, “वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड एंड ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव का समय आ गया है। अगर दुनिया को एक स्वच्छ और हरित भविष्य की ओर बढ़ना है तो इसके लिए इंटरकनेक्टेड अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसनेशनल ग्रिड महत्वपूर्ण समाधान होने जा रहा है।”

यूके ने ग्लासगो ब्रेकथ्रूज़ नामक एक योजना भी पेश की है जिसका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा को प्रोत्साहित करना है। इस मौके पर जॉनसन ने कहा, “हम चाहते हैं कि नए आविष्कारों और विचारों को आत्मसात करें। उसके लिए आर्थिक मदद के साथ अन्य जरूरतों का बंदोबस्त करें। फिर यह सुनिश्चित करें कि पूरी दुनिया में वह तकनीकी सुलभ हो।”

मुंबई में स्थापित बिजली की लाइन। पीछे परिकल्पना यह है कि कई देश अपने अतिरिक्त सौर ऊर्जा को उन देशों में भेज सकेंगे जहां इसकी कमी होगी। तस्वीर- अनप्लैश
मुंबई में स्थापित बिजली की लाइन। अंतर्राष्ट्रीय ग्रिड के पीछे परिकल्पना यह है कि कई देश अपने अतिरिक्त सौर ऊर्जा को उन देशों में भेज सकेंगे जहां इसकी कमी होगी। तस्वीर- अनप्लैश

ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव – वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड को पहले से 80 देशों का समर्थन प्राप्त है। इसके तहत अमीर देश, विकासशील देशों के उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि इसकी घोषणा में इस योजना को लागू करने पर आने वाली लागत और निवेश के स्रोत की चर्चा नहीं की गयी है। 

पहले चरण में, परियोजना मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में इंटरकनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगी। इसके बाद अफ्रीका महाद्वीप को इसमें शामिल किया जाएगा। 

इंटरनेशनल सोलर अलायंस के महानिदेशक अजय माथुर ने एक बयान में कहा कि ऐसे नेटवर्क की स्थापना, एक तरह से आधुनिक इंजीनियरिंग चमत्कार होगी। आने वाले दशक में जलवायु परिवर्तन को प्रभावी ढंग से कम करने में यह योजना, अभूतपूर्व भूमिका निभा सकती है। 

अगर सिर्फ इरादों की बात की जाए तो यह पहल गेम-चेंजर साबित हो सकती है। पर ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञों की माने तो इसके लिए ढेरों तकनीकी संबंधित मुश्किलों से गुजरना होगा तब जाकर यह योजना जमीन पर उतारी जा सकेगी। 

विविध परिचालन मापदंड

विभिन्न देशों में पावर ग्रिड के प्रबंधन और परिचालन के विविध मापदंड हैं। इसलिए समान मापदंड विकसित किए बिना तमाम देशों को इस ग्रिड में जोड़ना आसान नहीं होगा, कहते हैं एसपी गोन चौधरी जो इन्टरनेशनल सोलर इनोवैशन कौंसिल के संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष हैं।   

“उड्डयन जैसे क्षेत्रों के विपरीत, बिजली की निकासी और संचरण के लिए बिजली ग्रिड में एक आम अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल नहीं होता है,” उन्होंने कहा। 

यूनाइटेड किंगडम में एक सौर फार्म। तस्वीर- टैमसिन क्लेव/विकिमीडिया कॉमन्स
यूनाइटेड किंगडम में एक सौर फार्म। तस्वीर- टैमसिन क्लेव/विकिमीडिया कॉमन्स

एक विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि तकनीकी मुद्दों को सुलझाने और उसके लिए जरूरी रिसर्च के लिए, बड़े निवेश निवेश की जरूरत होगी। “अव्वल तो विभिन्न देशों के ग्रिड ऑपरेटरों को एक साथ बैठाना होगा ताकि तकनीकी विशेषज्ञ मिलकर सामान्य प्रोटोकॉल तैयार कर सकें और आम मानकों पर सहमत हो सकें। इन पहलू पर विस्तृत चर्चा होनी अभी बाकी है।” 

गोन चौधरी ने कहा, ग्रिड इंटरकनेक्टिविटी का विचार उत्तम है पर ट्रांसमिशन दक्षता को लेकर चुनौतियां हैं जिसमें सुधार की जरूरत है। 

क्रॉस-बॉर्डर ग्रिड कनेक्टिविटी

विशेषज्ञों ने बताया कि ग्रिड कनेक्टिविटी के प्रयास पहले भी हुए हैं। उदाहरण के लिए, दक्षिण एशियाई देशों का संघ (सार्क) में भी ग्रिड को जोड़ने का प्रयास हुआ था। पारंपरिक बिजली के निर्बाध व्यापार के लिए।

लेकिन एक दशक बीत जाने के बावजूद भी इसमें कुछ खास प्रगति नहीं हो पाई। तमाम देशों के शीर्ष नेता इस सहमति पर हस्ताक्षर भी कर चुके हैं। बावजूद इसके यह कोशिश फेल हो गयी, एक विद्युत विशेषज्ञ ने नाम न बताने की शर्त पर कहा।

उन्होंने कहा कि अधिकतर तकनीकी बाधाओं को आसानी से हल किया जा सकता था क्योंकि भारत, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में विद्युत संबंधित एक जैसी चुनौती मौजूद है। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति न होने की वजह से इस क्षेत्रीय इंटरकनेक्टिविटी की पहल में कुछ खास हासिल नहीं किया जा सका। 


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अगर दक्षिण एशिया में इस प्रयोग को सफलतापूर्वक हासिल किया जा सकता है जहां भौगोलिक बाधाएं ने के बराबर हैं, तो भविष्य की राह आसान होती। विश्व समुदाय के पास देखने को एक मॉडल होता, उन्होंने कहा।

नई दिल्ली स्थित एक विशेषज्ञ ने कहा कि इस परियोजना की घोषणा बिना राजनीतिक सवालों और चुनौतियों को ध्यान में रखकर किया गया है। उन्होंने कहा, “कल्पना कीजिए कि भारत और पाकिस्तान राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दों को नजरअंदाज करते हुए अपने पावर ग्रिड को जोड़ रहे हैं। ऐसा हो सकता है भला! कोई भी राजनीतिक नेता या पार्टी इस तरह के कदम नहीं उठा पाएगी। यह जानते हुए भी कि इस तरह के इंटरकनेक्टिविटी से सभी का भला होने वाला है।” 

हालांकि, इतना भी निराश होने की जरूरत नहीं है। विशेषज्ञों ने कहा कि पहले तकनीकी मुद्दों पर काम शुरू किया जा सकता है जो भविष्य में समान ग्रिड के लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेगा। अगर इस योजना के तहत उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय देशों में सौर ऊर्जा विकसित करने के लिए समुचित पूंजी मिल जाए और ऊर्जा खरीदने-बेचने का बाजार विकसित हो पाए तो भविष्य के लिए बहुत उपयोगी समाधान होगा, विशेषज्ञ मानते हैं।

 

बैनर तस्वीर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन ने मंगलवार को सौर ऊर्जा ग्रिड के पहले अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के की घोषणा की। इसे ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव – वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड के रूप में सामने रखा गया। तस्वीर- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन/कियारा वर्थ

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