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कश्मीर: मछली पकड़ने के उत्सव से जुड़ा एक झरने का अस्तित्व

हर साल मई के तीसरे सप्ताह में धान के खेतों की जुताई से पहले गांव के बुजुर्ग मछली पकड़ने जाने के लिए एक दिन चुनते हैं। साथ ही, वे पंजथ नाग झरने की सफाई भी करते हैं। तस्वीर- वसीम दार

हर साल मई के तीसरे सप्ताह में धान के खेतों की जुताई से पहले गांव के बुजुर्ग मछली पकड़ने जाने के लिए एक दिन चुनते हैं। साथ ही, वे पंजथ नाग झरने की सफाई भी करते हैं। तस्वीर- वसीम दार

  • दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में पंजथ नाग से ट्राउट फिश हैचरी के पानी की आपूर्ति होती है। नीचे के कई गांवों में पीने और सिंचाई के काम भी इस झरने का बड़ा योगदान है।
  • स्थानीय त्योहार रोहन पोश पर अपनी परंपरा के तहत गांवों के सैकड़ों पुरुष और बच्चे साल में एक बार झरने पर मछली पकड़ने जाते हैं।
  • इस सामूहिक पर्व की वजह से झरने की साफ-सफाई भी होती है। झरने के संरक्षण में इस पर्व का बड़ा योगदान है।
  • झरने पर सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी प्रासंगिक है औऱ प्राचीन समय से ही इस अवसर पर यहां साफ-सफाई का काम होता आ रहा है।

कश्मीर की वादियों में एक ऐसा भी गांव है जहां साल में एक बार सभी बच्चे-बूढ़े मछली पकड़ने के लिए छुट्टी लेते हैं। प्रथम दृष्टया यह कहानी बीते दिनों की बात लग सकती है पर इस गांव में यह परंपरा आज भी जारी है। प्रकृति ने कश्मीर के अनंतनाग जिले को कई खूबसूरत झरनों से नवाजा है। उनमें से सबसे बड़ा काजीगुंड के पंजथ गांव में है। 

स्थानीय लोग इस झरने को पंजथ नाग के नाम से जानते हैं। इसी से इस गांव का नाम भी पड़ा है। ‘पंच हाथ’ से यह नाम बना है, जिसका कश्मीरी में मतलब होता है पांच सौ। कहा जाता है कि यह झरना कभी कई छोटे जलप्रपातों का स्रोत रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि उनमें से अधिकांश प्रदूषण और अतिक्रमण के कारण खत्म हो गए। इसकी वजह यहां की बढ़ती आबादी भी है। बढ़ती जनसंख्या के साथ लोगों ने घर और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का निर्माण किया। झरने से एक नाला निकलता है। इस नाले से निचले इलाकों के कई गांवों में धान के खेतों की सिंचाई के अलावा, पीने के पानी की आपूर्ति भी होती है। पाइप लाइन के माध्यम से। इससे 25 से अधिक गांव के लोगों को पीने का पानी मिलता है। यहां मछली पालन विभाग के द्वारा स्थापित एक ट्राउट मछली हैचरी और बिक्री केंद्र में भी इसी झरने का पानी पहुंचता है। 

लेकिन पिछले कुछ वर्षों में गर्मियों के दौरान पानी का स्तर नीचे चला जाता है। इसमें जलीय खरपतवार जैसे कोनटेल, कैटेल, वाटरवीड, वाटरमील इत्यादि के उग आने से झरने में बाढ़ की स्थिति बन जाती है। लेकिन स्थानीय लोग, सामूहिक मछली पकड़ने के दौरान साफ-सफाई भी करते हैं जिससे झरने का संरक्षण भी हो रहा है। 

कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थिल इस झरने से कई गांवों में धान के खेतों की सिंचाई के अलावा, पीने के पानी की आपूर्ति भी होती है। तस्वीर- वसीम दार
कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थिल इस झरने से कई गांवों में धान के खेतों की सिंचाई के अलावा, पीने के पानी की आपूर्ति भी होती है। तस्वीर- वसीम दार

हर साल मई के तीसरे सप्ताह में धान के खेतों की जुताई से पहले गांव के बुजुर्ग मछली पकड़ने जाने के लिए एक दिन चुनते हैं। साथ ही, वे पंजथ नाग झरने की सफाई भी करते हैं। इस दिन को इस तरह चुना जाता है कि वह रोहन पोश (आत्माओं के प्रफूल्लित होने का दिन) के साथ मेल खाता है। यह त्योहार इस क्षेत्र के लिए विशिष्ट पारंपरिक वार्षिक फल-फूल उत्सव भी है।

त्योहार के दौरान दोपहर में कब्रिस्तानों में जाकर अपने परिजनों की कब्रों पर चावल के साथ फूलों की बौछार करते हैं। यह एक प्रथा है जो दिवंगत आत्माओं को शांत करने के लिए मनाया जाता है। बुजुर्ग मृतकों के लिए प्रार्थना करते हैं और बच्चों के बीच घर में पकी हुई चपातियां बांटी जाती है।

इससे पहले, दिन में, स्थानीय लोगों को झरने में मछली पकड़ने जाने की अनुमति होती है। बाकी दिनों में लोग झरने की सीमा में नहीं जाते। मछली पकड़ने के लिए जाल का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि एक विशेष टोकरी का इस्तेमाल किया जाता है। टोकरी की मदद से मछलियों को पानी छानकर, निकाला जाता है। 

यहां ऐसे लोग भी जाते हैं जो कीचड़ में उतरना पसंद नहीं करते पर त्योहार के दिन उनका उत्साह देखना बनता है। वे झरने के किनारे से ही इस उत्सव को देखते हैं, लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए शोर मचाते हैं और मछली के शिकार में अपना हिस्सा पाने की प्रतीक्षा करते हैं।

उत्सव से आगे 

झरने में मछली पकड़ने गए लोगों को वहां खरपतवार होने की वजह से तैरने में दिक्कत होती है। मछली का लालच और उत्सव के जोश में वे सफाई का काम जारी रखते हैं। मछली पकड़ने की चाह में वे खरपतवार निकालकर झरने के किनारे इकट्ठा करते जाते हैं। 

“हमारा उद्देश्य सिर्फ मछली पकड़ना ही नहीं है। यह हमारे पूर्वजों के समय से चली आ रही एक परंपरा है, ” स्थानीय निवासी शब्बीर अहमद कहते हैं। “इसके पीछे एक बड़ा उद्देश्य है, झरने की सफाई। इससे पीने और सिंचाई के लिए अच्छा पानी साल भर मिलता रहता है।”

साल के एक दिन ही स्थानीय लोगों को झरने में जाने की अनुमति होती है। साल के बाकी दिनों में लोग झरने की सीमा में नहीं जाते। तस्वीर- वसीम दार
साल के एक दिन ही स्थानीय लोगों को झरने में जाने की अनुमति होती है। बाकी दिनों में लोग झरने की सीमा में नहीं जाते। तस्वीर- वसीम दार
त्योहार के दौरान पकड़े गए मछली को दिखाता एक प्रतिभागी। तस्वीर- वसीम दार
त्योहार के दौरान पकड़े गए मछली को दिखाता एक प्रतिभागी। तस्वीर- वसीम दार
यहां ऐसे लोग भी जाते हैं जो कीचड़ में उतरना पसंद नहीं करते पर त्योहार के दिन उनका उत्साह देखना बनता है। वे झरने के किनारे से ही इस उत्सव को देखते हैं, लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए शोर मचाते हैं और मछली के शिकार में अपना हिस्सा पाने की प्रतीक्षा करते हैं। तस्वीर- वसीम दार
यहां ऐसे लोग भी जाते हैं जो कीचड़ में उतरना पसंद नहीं करते पर त्योहार के दिन उनका उत्साह देखना बनता है। वे झरने के किनारे से ही इस उत्सव को देखते हैं, लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए शोर मचाते हैं और मछली के शिकार में अपना हिस्सा पाने की प्रतीक्षा करते हैं। तस्वीर- वसीम दार

हालांकि, अधिकारियों का मानना है कि बिना किसी उत्सव के भी यह काम हो सकता है। “यदि आवश्यक हो तो यहां डी-वीडिंग भी की जा सकती है। वाटरवेज डेवलपमेंट ऑथोरिटी कभी-कभी ऐसा करता भी है,” पास के हैचरी के उप निरीक्षक फ़याज़ अहमद ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

कश्मीर घाटी में पर्यावरण संरक्षण के कामों के बारे में बताते हुए फयाज कहते हैं कि जल निकायों, विशेष रूप से श्रीनगर की राजधानी में विश्व प्रसिद्ध डल झील की स्थिति खराब हो गई है। इससे जैव-विविधता का नुकसान और प्रदूषण हो रहा है। शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कश्मीर के खरपतवार विशेषज्ञ और एसोसिएट प्रोफेसर आशिक हुसैन कहते हैं, “रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण विकल्प नहीं है क्योंकि इससे विषाक्तता और पानी की गुणवत्ता में गिरावट हो सकती है।” .

समस्या को कम करने के सरकारी प्रयासों के बारे में, हुसैन कहते हैं कि डल झील के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को बचाना  प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर है। “ड्रेजिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (डीसीआई) को  जलकुंभी और लिली पैड को हटाने का काम सौंपा गया था। वे इस काम में भारी ड्रेजर का उपयोग करते हैं। वाटरवेज डेवलपमेंट ऑथोरिटी ने भी डल और नगीन झीलों की मैन्युअल डी-वीडिंग शुरू कर दी है। लेकिन अगर इसे मशीनों की मदद से नहीं किया गया तो यह एक कभी खत्म न होने वाला काम बन सकता है, ”आशिक ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

पंजथ नाग का एरियल व्यू। यहां मछली पकड़ने के दौरान झरने की सफाई भी हो जाती है। तस्वीर- वसीम दार

हालांकि, पंजथ नाग के उप निरीक्षक अहमद का कहना है कि सामूहिक मछली पकड़ने की गतिविधि से होने वाले लाभ से इनकार नहीं किया जा सकता है। “जब एक या दो हजार लोग पानी उतरते हैं तो हलचल होती है। इससे खरपतवार की वजह से रुके हुए पानी को बहने का रास्ता मिलता है। इसके अलावा, यह प्रथा लोगों के लिए पारंपरिक महत्व का है। हम उन्हें रोक नहीं सकते,” वह कहते हैं। 

चली आ रही पुरानी परंपरा 

त्योहार के इतिहास के बारे में पूछे जाने पर बुजुर्गों ने भी अनभिज्ञता जाहिर की। “यह प्राचीन काल से हमारी परंपरा का हिस्सा है। यह महाराजाओं के युग (1846-1947 ई.) से चला आ रहा है। पर हमारे पूर्वज भी इससे उतने ही अनजान थे। उन्हें भी नहीं मालूम कि यह त्योहार कब शुरू हुआ,” 60-वर्षीय मोहम्मद इब्राहिम कहते हैं।

मछली पकड़ने पानी में उतरा एक किशोर। मछली पकड़ने के लिए जाल का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि एक विशेष टोकरी का इस्तेमाल किया जाता है। टोकरी की मदद से मछलियों को पानी छानकर, निकाला जाता है। तस्वीर- वसीम दार
मछली पकड़ने पानी में उतरा एक किशोर। मछली पकड़ने के लिए जाल का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि एक विशेष टोकरी का इस्तेमाल किया जाता है। टोकरी की मदद से मछलियों को पानी छानकर, निकाला जाता है। तस्वीर- वसीम दार
एक साथ कई लोग जब पानी उतरते हैं तो हलचल होती है। इससे खरपतवार की वजह से रुके हुए पानी को बहने का रास्ता मिलता है। तस्वीर- वसीम दार
एक साथ कई लोग जब पानी उतरते हैं तो हलचल होती है। इससे खरपतवार की वजह से रुके हुए पानी को बहने का रास्ता मिलता है। तस्वीर- वसीम दार

पंजथ झरने की एक पौराणिक प्रासंगिकता है, जिसका उल्लेख नीलमाता पुराण और राजतरंगिणी में मिलता है। इसका जिक्र कश्मीरी इतिहासकार कल्हण द्वारा लिखित 12 वीं शताब्दी के कश्मीर के पौराणिक इतिहास में भी है। वह इसे पंचहस्त का नाग कहते हैं। 

यह एक ऐसा शुद्ध स्थान है।  इसे वितस्ता नदी या झेलम के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसे संत कश्यप की प्रार्थना द्वारा दोबारा लाया गया। यह नदी किसी पापी पुरुष के स्पर्श से गायब हो गई थी। 

आज झरने को संरक्षित करने के लिए गांव आगे आया है। स्थानीय लोग इसे कश्मीर के पर्यटन मानचित्र पर देखने की आस में है। ऐसा होने से इसकी बेहतर देखभाल हो सकेगी।

 

बैनर तस्वीरः हर साल मई के तीसरे सप्ताह में धान के खेतों की जुताई से पहले गांव के बुजुर्ग मछली पकड़ने जाने के लिए एक दिन चुनते हैं। साथ ही, वे पंजथ नाग झरने की सफाई भी करते हैं। तस्वीर- वसीम दार