- ग्लासगो में चल रही जलवायु परिवर्तन की अंतर्राष्ट्रीय वार्ता की सफलता इसपर तय होगी कि मौसमी आपदाओं की वजह से हो रही क्षति को लेकर कोई कदम उठाया जा रहा है कि नहीं। अंग्रेजी में इस क्षति को लॉस एंड डैमेज के नाम से संबोधित किया जाता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह एक प्रमुख मुद्दा है।
- इन आपदाओं को झेल रहे कमजोर देशों को आर्थिक मदद की तत्काल आवश्यकता है ताकि वे प्रभावित लोगों को पुनः खड़ा करने में मदद कर सकें। ऐसी घटनाओं में न केवल जान-माल की क्षति होती है बल्कि रोजगार, मानवाधिकार का भी नुकसान होता है। विस्थापन के खतरे भी बने रहते हैं।
- अमीर देश जिनके ग्रीनहाउस उत्सर्जन की वजह से जलवायु परिवर्तन जैसा खतरा बना है, वे इस नुकसान से निपटने में सहयोग नहीं करना चाहते हैं। इनके इस तेवर की वजह से अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की विश्वसनीयता घटी है।
ग्लासगो में चल रहा संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन अब खत्म होने की कगार पर है। अब इस समझौते में सक्रिय राजनयिक और वार्ताकार के बीच इस बात को लेकर जद्दोजहद चल रही है कि आखिर में जारी किया जाने वाला सहमति पत्र कैसा हो। सम्मेलन के इन आखिरी कुछ दिनों में इन लोगों पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले लॉस एंड डैमेज पर तत्काल कदम उठाने का दबाव बढ़ता जा रहा है।
बीते तीन दशक से संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक शिखर सम्मेलन में इन मुद्दों को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है। इन वार्ताओं की मंथर गति, इनकी विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा करती है, विशेषज्ञ मानते हैं। तमाम देशों, वैज्ञानिक या गैर सरकारी संगठनों और कार्यकर्ताओं के बीच भरोसे की भारी कमी है। इनके कार्य प्रणाली को लेकर अविश्वास इतना गहरा है कि कॉप-26 में होने वाली हरेक घोषणा के तुरंत बाद इसे खारिज कर दिया जा रहा है।
ऐसे परिदृश्य में विशेषज्ञ मानते हैं कि सम्मेलन की सफलता इस पर निर्भर करती है कि क्लाइमेट फाइनैन्स पर क्या कदम उठाया जा रहा है। इस शिखर सम्मेलन की सफलता इस बात से भी आंकी जाएगी कि लॉस एंड डैमेज को लेकर क्या कदम उठाया गया। लॉस एंड डैमेज को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसे फिलहाल किसी भी तरीके से टाला नहीं जा सकता है।
भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का असर दिखने लगा है। चक्रवात, बाढ़ की बढ़ती आवृति से इन कमजोर देशों में अच्छी-खासी क्षति होती है। हालांकि जलवायु परिवर्तन में इन देशों का कोई खास योगदान नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इन कमजोर देशों और प्रभावित लोगों को तत्काल आर्थिक मदद करने की जरूरत है ताकि ये इन आपदाओं से होने वाले नुकसान से निपट पाएं। इसमें रोजी-रोटी, मानवाधिकार और अन्य कई तरह के नुकसान शामिल हैं। ऐसी घटनाओं की वजह से लाखों लोग विस्थापन का दंश झेलने को मजबूर हैं।
स्टॉकहोम इनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट की अक्टूबर की एक रिपोर्ट के अनुसार, लॉस एण्ड डैमेज को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे गतिरोध को तोड़ने की सख्त जरूरत है। साथ ही इसमें अमीर देशों की भी भूमिका तय करने की जरूरत है।
ग्लासगो में, “लॉस एंड डैमेज को लेकर देशों के बीच द्विपक्षीय वित्तीय सहयोग को लेकर सहमति बनाई जा सकती है,” संस्थान ने कहा। “वैश्विक स्तर पर लॉस एण्ड डैमेज के बड़े स्तर को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमति बनना एक दूरगामी लक्ष्य जरूर हो सकता है।”
कॉप 26 में लॉस एंड डैमेज
हालांकि 2015 के ऐतिहासिक पेरिस समझौते में लॉस एंड डैमेज का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है पर वार्षिक जलवायु सम्मेलनों के आधिकारिक एजेंडे में इसे कभी जगह नहीं मिली, सलीमुल हक कहते हैं। हक बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन और विकास के लिए बने अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के निदेशक हैं। “इस मुद्दे पर पहली बार कॉप-26 में बात हो रही है, यह राहत की बात है। पर इस पर बहुत काम होना बाकी है,” उन्होंने कहा।
जर्मनवॉच ने क्लाइमेट रिस्क असेसमेंट 2021 नाम से एक रिपोर्ट जारी की है। इसके अनुसार दक्षिण एशिया के देश जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं। पिछले दो दशकों में सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में से आठ विकासशील देश हैं, बर्लिन स्थित पर्यावरण संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा।
और पढ़ेंः कॉप-26ः ग्लासगो के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में सिर्फ वादों से नहीं थमने वाला ग्लोबल वार्मिंग
मौसम की चरम घटनाओं के कहर झेलने के मामले में भारत को सातवें नंबर पर रखा गया। इन घटनाओं से काफी क्षति होती है। 2019 में मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा के कारण भारी बाढ़ आई। इस बाढ़ में 14 राज्यों में 1,800 लोगों की जान चली गयी और करीब 18 लाख लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा। कुल मिलाकर 1.18 करोड़ लोग प्रभावित हुए और 1000 करोड़ अमरीकी डॉलर की आर्थिक क्षति हुई।
दक्षिण एशिया में, हाल के दिनों में गंभीर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का सिलसिला चला। सिर्फ 2019 में कुल आठ चक्रवात आए। इनमे छः बहुत तीव्र गति के थे जिसे ‘बहुत गंभीर’ करार दिया गया। जर्मनवाच ने कहा कि सबसे तीव्र चक्रवात फानी था जिससे मई 2019 में 2.8 करोड़ लोग प्रभावित हुए। भारत और बांग्लादेश में 90 लोग मारे गए और 810 करोड़ अमरीकी डॉलर की आर्थिक क्षति हुई। इस दीर्घकालिक जोखिम सूचकांक में बांग्लादेश सातवें स्थान पर है।
जर्मनवॉच ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा, “चूंकि उष्णकटिबंधीय चक्रवात जैसी चरम घटनाओं की आवृति और गंभीरता में, जलवायु परिवर्तन के साथ, बढ़ोत्तरी होगी। इसलिए लॉस और डैमेज पर बात करना बहुत जरूरी है।”
कई विकासशील देशों के लिए, लॉस एंड डैमेज पर हासिल सफलता ही कॉप-26 की असली सफलता टिकी है। इसलिए, ग्लासगो में इसको लेकर मांग जोर पकड़ रही है। “जलवायु आपदाओं की वजह से संघर्ष करते लोगों के लिए आर्थिक मदद कहां हैं?” एक अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन एक्शनएड इंटरनेशनल में जलवायु नीति समन्वयक टेरेसा एंडरसन पूछती हैं।
अफ्रीका और एशिया के कमजोर देशों में लाखों लोग पहले से ही काफी मुश्किल में हैं। न केवल चरम मौसमी घटनाओं से जुड़ी आपदा की वजह से बल्कि समुद्र के स्तर में वृद्धि से भी। नैरोबी स्थित थिंक टैंक पावरशिफ्ट अफ्रीका के निदेशक मोहम्मद अडो कहते हैं, “कमजोर देशों की प्रमुख मांगों की चर्चा यहां (जलवायु वार्ता में) बहुत कम है। इन देशों को जलवायु प्रभावों के अनुकूल बनाने और स्थायी नुकसान और क्षति से निपटने में मदद करने पर चर्चा बहुत अस्पष्ट है।”
लॉस एंड डैमेज के लिए आर्थिक मदद की मांग
300 से अधिक गैर सरकारी संगठनों के एक समूह ने विश्व के बड़े नेताओं को एक खुला पत्र लिखा है। इस पत्र में लॉस एंड डैमेज के लिए आर्थिक मदद की मांग की गई है। इस पत्र में यह दावा किया गया है कि 2030 तक सिर्फ विकासशील देशों को ऐसे नुकसान से 29,000 करोड़ 58,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का बोझ उठाना पड़ेगा।
इसलिए इन देशों और प्रभावित लोगों को समुचित आर्थिक सहयोग देना बहुत जरूरी है ताकि जलवायु परिवर्तन से लड़ते इस समुदाय को खड़ा होने में मदद किया जा सके, इस पत्र में कहा गया है।
अमीर राष्ट्र इस लॉस एंड डैमेज के मुद्दे पर बगलें झांकने लगते हैं। इस मामले को लेकर किसी भी तरह के वादा करने से बचने की कोशिश करते रहते हैं। दूसरी तरफ गरीब देशों के लोगों का मानना है कि इस जलवायु परिवर्तन की मूल जिम्मेदारी अमीर लोगों की है क्योंकि उन्हीं के उत्सर्जन का परिणाम है यह।
इस समूह ने मांग की है कि कॉप-26 में शामिल वार्ताकारों को इसको लेकर भी पर्याप्त आर्थिक सहयोग सुनिश्चित करने की जरूरत है। यह मदद पहले से अन्य मद में तय 1,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद के अतिरिक्त होनी चाहिए।
इस समूह ने फंडिंग बढ़ाने के लिए कोई तरीका ईजाद करने की मांग की है। साथ में यह भी कि विकसित देशों को सही समय पर यह मदद सुनिश्चित की जाए। इसके साथ प्रत्येक देश को राष्ट्रीय स्तर पर भी एक ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिए कि इस मदद को आम लोगों तक पहुंचाया जा सके।
“जिस वितरण प्रणाली की मांग हो रही है वह सामाजिक सुरक्षा के अन्य उपायों के जैसा ही है। जैसे भारत में प्राकृतिक आपदाओं के कारण परिवारों को नुकसान की स्थिति में मुआवजा दिया जाता है। हालांकि, इस मदद को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत और पारदर्शी तंत्र बनाने की जरूरत है,” क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के वरिष्ठ सलाहकार हरजीत सिंह कहते हैं।
इसलिए कॉप 26 जलवायु वार्ता में स्पष्ट रेखा खींच दी गयी है। अमेरिका के एक एडवोकेसी ग्रुप 350 डॉट ऑर्ग के प्रवक्ता एग्नेस हॉल का कहना है, “अगर विकसित देश जरूरत के हिसाब से पैसा नहीं खर्च करते हैं तो कोई सार्थक परिणाम नहीं आने वाला।”
बैनर तस्वीरः लॉस एण्ड डैमेज की मांग को लेकर ग्लासगो में कॉप-26 सम्मेलन स्थल पर प्रदर्शन करते लोग। तस्वीर- सौम्य सरकार/मोंगाबे