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कोयला से बिजली पैदा होने वाले संयंत्रों को बंद करना चुनौतीपूर्ण काम, एनजीटी के आदेश पर तैयार हुआ दिशानिर्देश

हरियाणा स्थित एक थर्मल पावर प्लांट। विशेषज्ञ मानते हैं कि कोयला संकट के पीछे की असल वजह पावर प्लांट की माली हालत और ढुलाई से जुड़ी दिक्कतें हैं। तस्वीर- विक्रमदीप सिधु/विकिमीडिया कॉमन्स

हरियाणा स्थित एक थर्मल पावर प्लांट। विशेषज्ञ मानते हैं कि कोयला संकट के पीछे की असल वजह पावर प्लांट की माली हालत और ढुलाई से जुड़ी दिक्कतें हैं। तस्वीर- विक्रमदीप सिधु/विकिमीडिया कॉमन्स

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश का पालन करते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों को बंद करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए हैं।
  • एनजीटी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से इस दिशानिर्देश के ड्राफ्ट को छह महीने के भीतर अंतिम रूप देने के लिए कहा है। ऐसे बिजली संयंत्रों को बंद करने के लिए एक व्यापक पर्यावरण प्रबंधन योजना और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (इनवायरनमेंट इंपेक्ट असेसमेंट) रिपोर्ट भी तैयार करवाने को कहा गया है।
  • प्रस्तावित दिशानिर्देशों में पानी और हवा के मुद्दों, खतरनाक कचरे के प्रबंधन, राख, इलेक्ट्रॉनिक कचरे, निर्माण अपशिष्ट, जहरीले धातुओं, एस्बेस्टस, राख के तालाबों को बंद करने, रसायनों को निपटाने और संयंत्र बंद होने के बाद इसकी निगरानी सहित कई उपायों का सुझाव शामिल हैं।

भारत फॉशिल फ्यूल आधारित ऊर्जा से गैर परंपरागत ऊर्जा यानी अक्षय ऊर्जा की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में कोयले से चलने वाले कई ऊर्जा संयंत्र चलन से बाहर होंगे। कई ऊर्जा संयंत्र अत्यधिक पुराने होने की वजह से भी बंद किए जाएंगे। 

ताप ऊर्जा संयंत्रों को बंद करना एक चुनौतीपूर्ण काम होता है और सावधानी से इसे न किया जाए तो कई तरह के प्रदूषण फैलने की आशंका रहती है। 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के एक आदेश का पालन करते हुए देश में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को बंद करने के लिए नए दिशानिर्देशों का प्रस्ताव दिया है। इसमें पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) और पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट सहित कई उपायों का सुझाव दिया गया है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के मार्च 2021 के आदेश के बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने ड्राफ्ट दिशानिर्देश तैयार किया था। यह आदेश धर्मेश शाह की अपील पर सुनवाई करते हुए जारी किए गए थे। इस अपील में शाह ने तमिलनाडु में नेवेली थर्मल पावर स्टेशन में प्लांट को बंद करने के लिए उचित दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की थी। शाह ने अदालत को बताया था कि ऐसी इकाइयों को बंद करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा कोई उचित दिशा-निर्देश नहीं हैं जो “खतरनाक पदार्थों के सुरक्षित प्रबंधन और निपटान के साथ-साथ बंद किए गए थर्मल पावर प्लांट के मशीनरी, भवन, राख के तालाब सहित संयंत्र की इमारतों के उचित निपटान और स्थान को सुधारने की जिम्मेदारी सुनिश्चित करते हों।

साबरमती नदी किनारे स्थित थर्मल पावर स्टेशन। देश में कोयले की कमी की चर्चा के बीच कई ऊर्जा संयंत्र बंद होने की कगार पर हैं। तस्वीर- कोशी/विकिमीडिया कॉमन्स
साबरमती नदी किनारे स्थित थर्मल पावर स्टेशन। देश में कोयले की कमी की चर्चा के बीच कई ऊर्जा संयंत्र बंद होने की कगार पर हैं। तस्वीर- कोशी/विकिमीडिया कॉमन्स

उन्होंने अदालत से कहा था कि अगर संयंत्रों से ठीक से बंद नहीं किया जाए तो इससे इलाके में पानी, हवा और मिट्टी प्रदूषित हो सकती है। बिजली संयंत्रों से एस्बेस्टस, आर्सेनिक, लेड जैसे खतरनाक पदार्थ रिसते हैं। ये मनुष्यों में गंभीर बीमारियों जैसे मस्तिष्क की क्षति, किडनी फेल होना या एस्बेस्टोसिस जैसी घातक बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को आमतौर पर जर्जर होने के बाद बंद कर दिया जाता है। आमतौर पर भारत में 30 से 45 साल तक ही एक कोयला संयंत्र उपयोग लायक रहता है। नेवेली थर्मल पावर प्लांट 600 मेगावाट क्षमता का है जिसमें जिसमें 50 मेगावाट की छह इकाइयां हैं। इसे 1962 में चालू किया गया था। 

एनजीटी में शाह के आवेदन के बाद ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी), केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) और सीपीसीबी से एक संयुक्त समिति गठित करने और एक नीति या दिशानिर्देश विकसित करने के लिए कहा था। इसमें संयंत्र को बंद करने के तरीकों को शामिल करना था। 

आदेश में कहा गया था कि दिशानिर्देशों में बिजली संयंत्र और खनन क्षेत्र द्वारा इसे ठीक से कैसे लागू किया जा रहा है, इसकी निगरानी के लिए तंत्र बनाने का तरीका शामिल होना चाहिए।

प्रस्तावित दिशानिर्देशों का उद्देश्य ईएमपी, ईआईए रिपोर्ट, पानी और हवा के मुद्दों, खतरनाक कचरे के प्रबंधन, राख, इलेक्ट्रॉनिक कचरे, निर्माण अपशिष्ट, जहरीली धातुओं, एस्बेस्टस, राख के तालाबों को बंद करने के मुद्दों को शामिल करना था। बंद करने की प्रक्रिया के बाद रसायनों को हटाना और प्रक्रिया की निगरानी करना भी इन दिशानिर्देशों में शामिल हैं।

महाराष्ट्र के तटीय शहर दहानू में दहानू थर्मल पावर स्टेशन। 31 मार्च, 2021 तक, भारत में 267 कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र थे। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे
महाराष्ट्र के तटीय शहर दहानू में दहानू थर्मल पावर स्टेशन। 31 मार्च, 2021 तक, भारत में 267 कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र थे। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

प्रस्तावित दिशानिर्देशों में कहा गया है कि थर्मल पावर प्लांट के स्थान के भविष्य के उपयोग को पूर्व निर्धारित करने से विघटन और सफाई की लागत को कम करने में मदद मिल सकती है। यदि इमारतों और बुनियादी ढांचे को बनाए रखा जाना है तो उसे तोड़ने की अनुमति देने से पहले उसकी संरचना का इंजीनियर के द्वारा सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। ड्राफ्ट में सिफारिश की गई है कि ईएमपी तैयार करते समय और संयंत्र को बंद करने की प्रक्रिया के लिए ईआईए रिपोर्ट बनाने के साथ पर्यावरण और सुरक्षा मुद्दों पर कानूनों के साथ-साथ सामुदायिक चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। बंद करने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले आवश्यक अनुमति ली जानी चाहिए।

संयंत्र बंद करने की प्रक्रिया को जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974, वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम, 1981 और खतरनाक और अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन और सीमापार आवाजाही) नियम, 2016, निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 और राख के प्रबंधन और उपयोग के संबंध में नियमों पालन करना चाहिए।

ड्राफ्ट दिशानिर्देशों में कहा गया है कि कोयला क्षेत्र के बीच में या शहरी क्षेत्रों में स्थित थर्मल पावर प्लांट को बंद करने को लेकर अतिरिक्त पर्यावरणीय चिंताएं हो सकती हैं। यहां विशेष रूप से उन चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए। 

ड्राफ्ट में संयंत्र के बंद होने और संयंत्र को तोड़ने से होने वाले उत्सर्जन से निपटने के उपायों का सुझाव दिया। राख के तालाबों को बंद करना इस प्रक्रिया के दौरान किए जाने वाले सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य होंगे। इसमें सुझाव दिया गया राख से भरे तालाब का पानी निकालकर उसमें मौजूद राख को मिट्टी की सतह से ढंककर उसके ऊपर हरियाली उगाई जा सकती है। 


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ड्राफ दिशानिर्देशों में कहा गया है कि निर्माण और ढ़ाचे को तोड़ने से उत्पन्न हुए कचरे का संग्रह, परिवहन से धूल और शोर उत्पन्न हो सकता है। इससे वायु प्रदूषण होने की आशंका होगी। इस कचरे का निपटारा कैसे किया जाएगा इसका उल्लेख भी संयंत्र बंद करने की कार्ययोजना में होना चाहिए। 

30 सितंबर को, न्यायमूर्ति के रामकृष्णन की अध्यक्षता वाली एनजीटी पीठ ने सभी पक्षों को शामिल करते हुए व्यापक परामर्श प्रक्रिया का पालन करने के बाद पर्यावरण मंत्रालय को छह महीने (मार्च 2022 तक) के भीतर अधिसूचना को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया। 

जस्ट ट्राजिशन के लिए महत्वपूर्ण है कोयला संयंत्रों का सावधानीपूर्वक संचालन

भारत में 31 मार्च, 2021 तक उपलब्ध की जानकारी के अनुसार 267 ताप विद्युत संयंत्र हैं जिनकी कुल स्थापित क्षमता 234,728.2 मेगावाट है। यह देश की 382,151.2 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता का 61 प्रतिशत से अधिक है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच वर्षों में लगभग 9,908 मेगावाट क्षमता के ताप विद्युत संयंत्र चलन से बाहर हो गए हैं और निकट भविष्य में लगभग 1,988 मेगावाट क्षमता के प्लांट को बंद करने के लिए चिन्हित किया गया है। 

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू)  ने जुलाई 2021 में एक विश्लेषण जारी किया जिसके अनुसार 125,000 मेगावाट से अधिक कोयला आधारित बिजली क्षमता जो कि कुल उत्पादन का लगभग 65 प्रतिशत है, को पिछले 10 वर्षों में स्थापित या कमीशन किया गया है।

कार्तिक गणेशन और दानवंत नारायणस्वामी के द्वारा किए इस अध्ययन मे प्रस्ताव दिया गया कि 30,000 मेगावाट अतिरिक्त क्षमता को त्वरित डीकमिशनिंग या बंद करने की प्रक्रिया शुरु करनी चाहिए। इन्हें इस दशक (2021-2030) के दौरान बंद करने के लिए राष्ट्रीय विद्युत योजना (2018) में चिन्हित किया गया था। 

तमिलनाडु स्थित एक ताप ऊर्जा संयंत्र। कोविड-19 महामारी का प्रकोप कम होने पर ऊर्जा जरूरत की पूर्ति के लिए भारत में कोयले की खपत बढ़ी है। तस्वीर- राजकुमार/विकिमीडिया कॉमन्स 
तमिलनाडु स्थित एक ताप ऊर्जा संयंत्र। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को आमतौर पर जर्जर होने के बाद बंद कर दिया जाता है। तस्वीर- रामकुमार/विकिमीडिया कॉमन्स

“इस काम में जितनी देरी हो रही है वायु, पानी और मिट्टी प्रदूषण प्रबंधन करने का बोझ बढ़ रहा है। अगर इन संयंत्रों को बंद किया गया तो रुपये की एकमुश्त बचत भी होती है। आंकलन के मुताबिक अब तक बंद हुए संयंत्रों की वजह से एक मुश्त 10,200 करोड़ (102 अरब रुपये) की बचत हुई जो कि संचालन जारी रहने की स्थिति में प्रदूषण-नियंत्रण के प्रयासों के लिए खर्च हो सकते थे,” अध्ययन में कहा गया। इसने इस बात पर जोर दिया था कि लगभग 20,000 मेगावाट क्षमता वाले पावरप्लांट को बंद किया जा सकता है और जब बिजली का अचानक जरूरत हो तो इसे चालू किया जा सकता है।”

अध्ययन में कहा गया था कि “बिजली क्षेत्र को इससे पहले कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करने की जरूरत है, क्योंकि इससे ऊर्जा के क्षेत्र में बदलाव की तैयारी हो सकेगी। भारत ने इसी तरीके से अगले 10 वर्षों में अक्षय ऊर्जा को तेजी से अपनाया है। हाल ही में, ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप-26 भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि भारत 2030 तक लगभग 500,000 मेगावाट अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता पा लेगा। 

“विद्युत क्षेत्र में भारत के ऊर्जा के बदलाव के लिए पहला कदम थर्मल ऊर्जा में उत्पादन की स्थिति में सुधार करना चाहिए,” अध्ययन में गणेशन ने कहा है।

 

बैनर तस्वीरः हरियाणा स्थित एक थर्मल पावर प्लांट। भारत फॉशिल फ्यूल आधारित ऊर्जा से गैर परंपरागत ऊर्जा यानी अक्षय ऊर्जा की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में कोयले से चलने वाले कई ऊर्जा संयंत्र चलन से बाहर होंगे। तस्वीर– विक्रमदीप सिधु/विकिमीडिया कॉमन्स

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