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नीति आयोग के निर्देश के तीन साल बाद भी इलेक्ट्रिक वाहन को लेकर नीति नहीं बना पा रहे राज्य

हैदराबाद में एक इलेक्ट्रिक बस स्टैंड। आंकड़े बताते है की तेलंगाना राज्य मे देश मे ईवी के लिए सबसे ज्यादा चार्जिंग पॉइंट्स है। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

मध्य प्रदेश सरकार अब सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिए बहुत से इलेक्ट्रिक बस भोपाल और इंदौर जैसे शहरों मे लाने की तैयारी में हैं। तस्वीर-मनीष कुमार/मोंगाबे

  • नौ दिन चले अढ़ाई कोस। पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ पर यह कहावत सटीक बैठती है। ये वो राज्य हैं जो तीन साल बीत जाने के बाद भी इलेक्ट्रिक वाहन से संबंधित नीति बनाने में असफल रहे हैं। हरियाणा, बिहार, राजस्थान और झारखंड ने अब तक सिर्फ नीति का ड्राफ्ट बनाया है।
  • नीति आयोग ने वर्ष 2018 मे सभी राज्यों को अपनी इलेक्ट्रिक वाहन नीति बनाने और उसे अधिसूचित करने को कहा था। अभी तक केवल 14 ही ऐसे राज्य हैं जिन्होंने इलेक्ट्रिक वाहन नीति को अधिसूचित किया है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि इलेक्ट्रिक वाहन को लेकर स्पष्ट नीति होने से इसके विस्तार में मदद मिलती है।

नीति आयोग ने 2018 मे सभी राज्यो को खुद की इलेक्ट्रिक वाहन नीति बनाने के लिए कहा था। अब 2022 आने को है पर छत्तीसगढ़ जैसे राज्य अभी तक, इस दिशा में एक कदम तक नहीं चल पाए हैं। छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त पूर्वोत्तर के राज्यों का भी यही हाल है।  

इन राज्यों की यह सुस्त रफ्तार तब है जब यह स्पष्ट हो चुका है कि आने वाला भविष्य इलेक्ट्रिक वाहनों का ही होने वाला है। ये राज्य भविष्य की आहट भले न पढ़ पा रहे हों पर आम आदमी और उद्योग जगत समय के साथ कदमताल मिलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।     

उदाहरण के लिए हर्षवर्धन डिडवानिया को लीजिए। भुवनेश्वर मे रहने वाले डिडवानिया, एक इलेक्ट्रिक वाहन स्टार्टअप के सह-संथापक है। उन्होंने 2019 में ही ओमजय इवी लिमिटेड नाम की एक कंपनी बनाई। उन दिनों इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर जागरूकता न के बराबर थी। पर डिडवानिया ने न केवल इलेक्ट्रिक वाहन में निवेश किया बल्कि महानगर से दूर एक छोटे शहर को चुना। क्योंकि उन्हें इलेक्ट्रिक वाहन का भविष्य साफ नजर आ रहा था। 

डिडवानिया मोंगाबे-हिन्दी को बताते है की पिछले दो सालो में इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर लोगो मे जागरूकता बढ़ी है। “अगर हम दो साल पहले की बात करे तो हमें अपने उपभोक्ताओं को इसके बारे मे विस्तृत तौर पर सबकुछ बताना होता था। आज हमारे यहां ऐसे वाहन खरीदने आने वाले अधिकतर लोग इसके बारे मे जानते हैं। दो साल पहले रोजाना 50 लोग इसके बारे में पूछताछ करते थे तो अब कम से कम 200 लोग अपनी जिज्ञासा जाहिर करते हैं,” डिडवानिया बताते हैं। 

ठीक इसी तरह कई और ऐसे स्टार्टअप और ऑटोमोबाइल क्षेत्र के बड़े दिग्गज पिछले कुछ सालों मे ईवी के बाज़ार मे अपनी तकदीर आजमा रहे है। अगर हम इलेक्ट्रिक वाहन के विक्रय के आंकड़े देखें तो आने वाले भविष्य की आहट सुनाई पड़ती है। 

हैदराबाद में एक पेट्रोल पंप पर इलेक्ट्रिक चार्जिंग पॉइंट। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे
हैदराबाद में एक पेट्रोल पंप पर इलेक्ट्रिक चार्जिंग पॉइंट। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

नई दिल्ली स्थिति सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (सीईईडबल्यू-सीएफ़) द्वारा संकलित आंकड़ों पता चलता है कि 2021-22 मे ऐसे वाहनों की बिक्री बढ़ी है। सीईईडबल्यू-सीएफ़ के अनुसार भारत मे कुल 441 इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता हैं और 2030 तक कुल वाहन की बिक्री 1.48 करोड़ तक पहुंच सकती है।

पीछे छूटते राज्य

यद्यपि बाजार और उद्योग ने इलेक्ट्रिक वाहन को लेकर भविष्य की आहट पहचान ली है पर अधिकतर राज्य में सरकारें अभी भी सुस्त पड़ी हुई हैं।  भारत मे केवल 14 ही ऐसे राज्य है जिन्होंने अभी तक अपनी इलेक्ट्रिक वाहन नीति अधिसूचित की है। इनके अतिरिक्त सात ऐसे राज्य है जिन्होंने इलेक्ट्रिक वाहन से संबंधित नीति का ड्राफ्ट तैयार किया है पर उसे अधिसूचित नहीं कर पाए हैं। 

पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जिसने अभी तक इस संदर्भ में कोई कदम नहीं उठाया है। हरियाणा, राजस्थान और झारखंड ने 2021 में इलेक्ट्रिक वाहन संबंधित अपनी ड्राफ्ट नीति तैयार किया है। इस मामले में बिहार अलहदा ही है। 2019 में इस राज्य ने अपनी ड्राफ्ट नीति तो तैयार कर ली पर अब तक उसको अधिसूचित नहीं कर पाया है। 

इलेक्ट्रिक वाहन के निर्माताओं की माने तो राज्य स्तरीय नीति न होने पर सबको नुकसान उठाना पड़ता है। उपभोक्ता से लेकर निर्माता सबको। ये लोग सरकारों से मिलने वाले संभावित वित्तीय सहायता एवं कई अन्य अनुदानों से वंचित रह जाते है। केंद्र सरकार इस क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए फ़ेम-II योजना के तहत सब्सिडी देती है।

“फ़ेम-II योजना के अंतर्गत ईवी के उपभोक्ता को वित्तीय सहायता दी जाती है। पहले यह राशि 10,000 रुपये प्रति किलोवाट थी जिसे हाल ही में बढ़ाकर 15,000 रुपये किया गया।  इसके अतिरिक्त कुछ राज्यों ने अपने यहां 5,000 से 10,000 रुपये के मदद का प्रावधान रखा है। इसके उलट कुछ ऐसे भी राज्य हैं जहां इस संबंध में अब तक ड्राफ्ट नीति भी नहीं बन पायी है,” एक इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया।

मेट्रो स्टेशन पर दोपहिया वाहनों के लिए इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे
मेट्रो स्टेशन पर दोपहिया वाहनों के लिए इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

नीति निर्माताओं की माने तो इलेक्ट्रिक वाहन नीति को अधिसूचित करने के बाद भी बहुत कुछ करना होता है ताकि राज्य में इसके अनुकूल माहौल बने। “सबसे पहले किसी राज्य मे उस क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा कर एक ड्राफ्ट नीति बनाई जाती है। सबकी सहमति के बाद एक फ़ाइनल नीति को अधिसूचित किया जाता है। ऐसे किसी नीति के अधिसूचित होने के बाद भी नीतियों मे लिखे कई वादों को अमल मे लाने के लिए अलग अलग विभाग भी कई नियम-कानून बनाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जो राज्य अब तक नीति नहीं बना पाए हैं, वे वाकई पिछड़ रहे हैं। इन राज्यों को इलेक्ट्रिक वाहन के अनुकूल माहौल बनाने में काफी समय लगने वाला है,” एक वरिष्ठ अधिकारी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। 

एक तरफ कई राज्य अभी कुछ नहीं कर पाए हैं तो दूसरी तरफ कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य हैं जो पहले बनाए ईवी नीतियों मे संशोधन करने की तैयारी मे हैं। 


और पढ़ेंः चुनौतियों के बीच इलेक्ट्रिक वाहनों के विस्तार की कोशिश में ओडिशा


देश के बहुत से राज्यों ने अपने इलेक्ट्रिक वाहन नीति का ड्राफ्ट 2021 मे तैयार किया या उसको अधिसूचित किया। ऐसे राज्यों मे-हरियाणा, ओडिशा, झारखंड, असम, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और कर्नाटक शामिल हैं। 

इलेक्ट्रिक वाहन को लेकर नीति अधिसूचित करने वाले राज्यों में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिल नाडु, तेलंगाना, उत्तराखंड, मेघालय, गुजरात, पश्चिम बंगाल एवं और कुछ अन्य राज्य शामिल हैं।   

जिन राज्यों में अभी बस ड्राफ्ट नीति तैयार है उनमे बिहार, राजस्थान, झारखण्ड, असम, हिमाचल प्रदेश इत्यादि शामिल हैं।

ओडिशा के पुरी शहर में ई रिक्शा चलाती एक महिला। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे
ओडिशा के पुरी शहर में ई रिक्शा चलाती एक महिला। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

 देश मे सबसे पहले इलेक्ट्रिक वाहन की नीति को अधिसूचित करने वाला राज्य कर्नाटक है। 2017 मे। उसके बाद आंध्रा प्रदेश (2018), उत्तर प्रदेश (2019) जैसे राज्य ने भी जल्दी ही इस दिशा में कदम बढ़ाए।  

भारत सरकार के लोकसभा में दिए आंकड़ो (अगस्त 2021) के मुताबिक जिन राज्यों ने पहले इलेक्ट्रिक वाहन नीति बनायी वहां ऐसे वाहनों की बिक्री सबसे अधिक रही। जैसे, कर्नाटक। यहां 2017 मे ही इलेक्ट्रिक वाहन संबंधित नीति बन गयी। फ़ेम -II योजना के तहत इस राज्य में अब तक 19,270 ईवी के वाहनो का विक्रय हुआ। तमिल नाडु, 13,525 वाहनों के साथ दूसरे नंबर पर रहा। उत्तर प्रदेश ने भी 6022 विक्रय का रिकॉर्ड बनाया। 

कई राज्यों की नीतियों में सुधार की गुंजाईश 

विशेषज्ञ मानते हैं कि व्यावसायिक इकाई के लिए, ऋण की व्यवस्था, महत्वपूर्ण है। हालांकि बहुत कम राज्यों की नीतियों में ही इसका जिक्र किया गया है। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के कार्यक्रम सहयोगी अभिनव सोमन ने कहा, “कुछ राज्यो की नीतियों में इसका प्रावधान है, जैसे कि दिल्ली। यह संबंधित उद्योगों के विकास के लिए बहुत जरूरी है। सनद रहे कि कई बैंक और वित्तीय संस्थान, शुरुआती दिनों में  ऐसे उद्योगों को ऋण मुहैया नहीं कराते हैं।,” उन्होने ये भी कहा कि हाल-फिलहाल आई कुछेक राज्यों की नीतियां  व्यापक हैं। उनमें इन सब बातों का खयाल रखा गया है। 

“उदाहरण के तौर मे आप महाराष्ट्र के हाल ही में आए नीति को देखिए। इसमें इलेक्ट्रिक वाहन के बैटरी पर पांच साल की गारंटी की बात की गयी और साथ में समय पूरा होने के बाद कंपनियों को इसे वापस लेने का भी प्रावधान रखा गया है,”  सोमन कहते है।

आंकड़े बताते है कि तेलंगाना राज्य मे देश मे इलेक्ट्रिक वाहन के लिए सबसे ज्यादा चार्जिंग पॉइंट्स है। 

सरकारी आंकड़ो के हिसाब से देश में नवम्बर 11, 2021 तक कुल 8,46,132 इलेक्ट्रिक वाहन मौजूद हैं। इसमे से सबसे ज़्यादा दो पहिया और तीन पहिया वाहन है।

 

बैनर तस्वीरः हैदराबाद में एक इलेक्ट्रिक बस स्टैंड। आंकड़े बताते है कि तेलंगाना राज्य मे देश मे ईवी के लिए सबसे ज्यादा चार्जिंग पॉइंट्स है। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

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