- सुंदरबन के पानी से गंगा डॉल्फिन खत्म हो रही हैं। वजह है नदी के मुहाने पर ताजे मीठे पानी की कमी।
- बांध और बैराज बनाकर पानी का रास्ता रोकने की वजह से मध्य सुंदरबन क्षेत्र के निचले इलाके में पानी में खारापन बढ़ा है और मीठे पानी की कमी हुई है।
- पूरे देश में गंगा पर बने बांध और बैराज की वजह से समुद्री मुहाने पर पानी का बहाव कम हुआ है। साथ ही, गंगा वाले इलाकों में ऐसी खेती भी बड़ी है जिसमें अधिक पानी का इस्तेमाल होता है। इस वजह से भी समस्या विकृत हो रही है। नतीजा यह कि गंगा की डॉल्फिन के अस्तित्व पर संकट गहरा गया है।
भारत का एक अनोखा जलीय जीव है गंगा डॉल्फिन जिसकी गिनती लुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में होती है। कभी सुंदबन क्षेत्र में सामान्यतः दिख जाना वाले इस जीव को अब देख पाना एक दुर्लभ अनुभव है। एक अध्ययन के मुताबिक नदी के मुहाने पर पानी में लवणता यानी नमक की मात्रा बढ़ने की वजह से यह जलीय स्तनपायी जीव गायब होते जा रहे हैं। इस अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि समुद्र के पास नदी के मुहाने पर ताजे या मीठे पानी की कमी हो रही है, जो कि इस जीव के अस्तित्व के लिए खतरा है।
सदियों पुराने (1879) रिकॉर्ड से पता चलता है कि मीठे पानी में पाया जाने वाला यह जीव गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के एक छोर से दूसरे छोर तक विचरण करता है। इसे इन नदियों के सभी सहायक नदियां और बंगाल की खाड़ी में डेल्टा से हिमालय की तलहटी तक देखा जा सकता है। यहां तक कि दिल्ली को छूकर बहने वाली नदी यमुना में भी डॉल्फ़िन देखा गया है।
गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के पानी के एकत्र होने पर सुंदरबन में मैंग्रोव क्षेत्र का निर्माण होता है। इस स्थान पर डॉल्फिन अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती दिख रही हैं। अब कुछेक स्थानों पर ही इन्हें देखा जा सकता है।
बांग्लादेश से सटे भारत में सुंदरवन डेल्टा के लगभग 100 किलोमीटर के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि डॉल्फिन केवल पश्चिमी हिस्से में ही पाई गयी है। हुगली नदी के निचले हिस्से में। यहां बाकी स्थानों की तुलना में पानी में लवणता कम है।
सर्वेक्षण में पाया गया कि नदी के जिन हिस्सों में गाद जमने की वजह से मीठे पानी का प्रवाह बाधित हुआ है वहां से सटे समुद्र में लवणता का स्तर बढ़ गया है।
बांग्लादेश की पद्मा नदी के साथ मीठे पानी की कनेक्टिविटी वाले भारतीय सुंदरवन का पूर्वी भाग कम खारा है। वहीं बांग्लादेश सुंदरबन का दक्षिण-पश्चिम भाग अत्यधिक खारा है।
जर्नल ऑफ थ्रेटन टैक्सा में प्रकाशित इस सर्वेक्षण में यह बात कही गयी है। सर्वे में सामने आए कारणों में मीठे पानी की कम उपलब्धता और लवणता में वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया गया है।
दूसरी ओर, भारतीय हिस्से के मुहाने में इरावदी डॉल्फ़िन (ओर्केला ब्रेविरोस्ट्रिस) का लगातार आना जारी है। इरावदी डॉल्फ़िन एक यूरीहैलाइन प्रजाति होती है, जो सागर के तट के निकट पायी जाती है। इस प्रजाति का नाम म्यांमार की इरावदी नदी के नाम पर रखा गया है।
भारत के “डॉल्फ़िन मैन” के नाम से मशहूर पारिस्थितिक विज्ञानी रवींद्र सिन्हा ने इन निष्कर्षों से अपनी सहमति जताई। सिन्हा कहते हैं कि पहले पानी के विभिन्न चैनलों या सहायक नदियों सहित पूरे सुंदरबन में गंगा डॉल्फ़िन को देखा जा सकता था।
“गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फ़िन मीठे पानी का जीव है। यह डॉल्फिन कभी समुद्र में प्रवेश नहीं करती। पर इन्हें खारे पानी और मीठे पानी के बॉर्डर वाले क्षेत्र में आसानी से पाया जा सकता था। सुंदरवन ऐसा ही एक उदाहरण है। लेकिन पिछले दशक में इस क्षेत्र में भी मीठे पानी के प्रवाह में कमी आई है और दूसरी तरफ, समुद्र की तरफ से खारे पानी का प्रवेश शुरू हो गया है। इससे लवणता बढ़ रही है, सिन्हा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। अब यह जीव शायद ही कभी दिखाई देता है। पहले इनकी संख्या काफी थी, वह आगे कहते हैं।
गंगा डॉल्फिन के लिए संरक्षण कार्य योजना 2010-2020 के लेखकों में से एक सिन्हा ने कहा कि गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉल्फ़िन विश्व स्तर पर बचे महज चार प्रजातियों में शामिल है जो नदियों में पाई जाती हैं। क्योंकि यांग्त्ज़ी नदी डॉल्फ़िन लगभग विलुप्त हो चुकी है।
इस अध्ययन ने सुंदरबन में पायी जाने वाली डॉल्फिन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में प्रकाश डाला गया है। इनकी संख्या और इनकी भौगोलिक सीमा को ध्यान में रखते हुए। इसमें स्पष्ट किया गया है कि एक समय में डॉल्फ़िन को पूरे वर्ष कम लवणता वाले पानी में देखा जा सकता था। ऐसा पानी गंगा के मुहाने पर पाया जाता है।
मौजूदा शोध, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, चेन्नई में कार्यरत संगीता मित्रा और महुआ रॉय चौधरी ने मिलकर किया है। चौधरी कलकत्ता विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल में समुद्री जीवविज्ञानी हैं।
इस अध्ययन में 2013 से 2016 तक, स्थानीय नाविकों और मछुआरों से बातचीत की गयी। जमीनी सर्वेक्षण के माध्यम से लेखकों ने पाया कि जलवायु-प्रेरित परिवर्तनों के कारण हिमनदों के पिघलने और समुद्र के स्तर में वृद्धि से लवणता का स्तर प्रभावित होता है।
पानी के डायवर्जन और ऊपर की ओर बड़े बैराजों के बनने से सुंदरबन क्षेत्र में नदियों की लवणता बढ़ी है। यहां साल भर मीठे पानी की आपूर्ति नहीं होती है।
अध्ययन में कहा गया है, “फरक्का बैराज के चालू होने के बाद भारत में गंगा नदी में लवणता के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई थी।” इस परियोजना को पश्चिम बंगाल में 1975 में शुरू किया गया था।
गंगा का गिरता प्रवाह गंगा की डॉल्फिन के लिए सबसे बड़ा खतरा
पूरे भारत के परिदृश्य को देखते हुए सिन्हा ने गंगा की डॉल्फिन के लिए सबसे बड़ा खतरा गंगा नदी में घटते प्रवाह को बताया। बांधों और बैराजों के निर्माण से इस जीव का आवास खतरे में है। कृषि कार्यों में जल के बेजा इस्तेमाल से भी डॉल्फिन का आवास प्रभावित हो रहा है।
इसका प्रमाण इस तथ्य से मिलता है कि जब 1975 में फरक्का बैराज चालू किया गया था तब गंगा के मुख्य चैनल में डॉल्फ़िन को दो उप-समूह में विभाजित किया गया था।
उत्तर प्रदेश में, नरोरा में निचला गंगा बैराज (1966) और बिजनौर में मध्य गंगा बैराज (1984) की वजह से इसे चार उप-समूह में विभाजित कर दिया। डॉल्फ़िन को अब बिजनौर में मध्य गंगा बैराज मे नहीं देखा जा सकता है।
सिन्हा ने कहा कि आज वे बिजनौर नरोरा और फरक्का बैराज से घिरे तीन उप-समूह में पाए जाते हैं।
“गंगा के मुख्य भाग पर बैराज के अलावा, विभिन्न सहायक नदियों पर उनके समकक्ष, जैसे वाल्मीकि नगर, बिहार में भारत-नेपाल सीमा पर गंडक नदी पर त्रिवेणी बैराज, कोसी नदी पर कोसी बैराज, बहराइच जिले में घाघरा नदी पर गिरिजापुरी बैराज के निर्माण से आवास खंडित हो गया,” उन्होंने कहा।
प्रजातियों को बचाने के लिए आवास को बचाना जरूरी
भारत में गंगा डॉल्फ़िन की 80 प्रतिशत आबादी (नेपाल और बांग्लादेश को मिलाकर) पाई जाती है। बिहार राज्य देश के 50 प्रतिशत डॉल्फिन को आश्रय देता है।
“हमारा अनुमान है कि भारत, बांग्लादेश और नेपाल में गंगा नदी के सिस्टम में लगभग 3750 डॉल्फ़िन हैं। पिछले 200 वर्षों में, उनके आवास में 20 प्रतिशत की कमी आई है। इस तथ्य को देखते हुए कहा जा सकता है कि उनका प्रजनन काफी धीमा होता है। फिलहाल कहा जा सकता है कि उनकी संख्या स्थिर है, ” सिन्हा ने कहा।
स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन, नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा 2018, (एनएमसीजी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉल्फ़िन की आबादी, जो 19वीं शताब्दी के अंत में लगभग 10,000 थी, 2014 में घटकर 3,526 हो गई।
यहां तक कि बिहार के विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य (वीजीडीएस) जो कि गंगा डॉल्फिन के लिए देश के एकमात्र संरक्षित क्षेत्र है, में भी कमी आई है। यहां विशेषज्ञों ने 2015 में 207 और 2017 में 154 डॉल्फिन होने का अनुमान लगाया।
सिन्हा ने कहा, “इस अभयारण्य को 1990 में अधिसूचित किया गया था, लेकिन फिर भी इसमें प्रभावी प्रबंधन योजना का अभाव बना रहा।”
सिन्हा का मानना है कि मछली पकड़ने के जाल में उलझने और मांस और तेल के शिकार पर और भी अंकुश लगाने की जरूरत है।
“लेकिन हमें उप-प्रजातियों को बचाने के लिए इसके आवास को बचाने की जरूरत है। चीनी डॉल्फ़िन का विलुप्ती की कगार पर पहुंचना हमारे लिए एक खतरे का संकेत है। हमें समुदायों को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है,” सिन्हा ने कहा।
चीन में यांग्त्ज़ी नदी में पाई जाने वाली मीठे पानी की डॉल्फ़िन प्रजाति बैजी मानवीय गतिविधियों की वजह से विलुप्त हो गईं। “भारत में, बढ़ते प्रदूषण और नदी में यातायात को देखते हुए हमें भी इस प्रजाति का खास ख्याल रखना होगा,” अध्ययन के लेखक बताते हैं। इनका कहना है, “सुंदरबन में मोटर चलित नावें अच्छी संख्या में चलती हैं। इनकी गति भी काफी होती है। यह आशंका है कि पानी के नीचे का शोर डॉल्फ़िन के व्यवहार को प्रभावित करता है। डॉल्फिन अपने आसपास की चीजों को महसूस करने के लिए ध्वनि संकेतों पर निर्भर होते हैं।”
“भारतीय सुंदरबन में गंगा नदी की डॉल्फ़िन की आबादी में गिरावट को भविष्य में और अध्ययन की जरूरत है। हालांकि मीठे पानी के प्रवाह में कमी और लवणता में क्रमिक वृद्धि से यह तो स्पष्ट है कि डॉल्फिन के निवास क्षेत्र का क्षरण हो रहा है,” अध्ययन में पाया गया।
बैनर तस्वीर: गंगा डॉल्फिन। तस्वीर- जहांगीर अलोम/ मैरिन मेमल कमिशन/राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन/विकिमीडिया कॉमन्स