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जलवायु परिवर्तन को लेकर कॉप-26 में क्या हुआ हासिल?

अपने सम्बोधन में भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद के तौर पर अमीर देशों से एक लाख करोड़ डॉलर की मांग की।। तस्वीर- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन/कियारा वर्थ

अपने सम्बोधन में भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद के तौर पर अमीर देशों से एक लाख करोड़ डॉलर की मांग की।। तस्वीर- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन/कियारा वर्थ

  • संयुक्त राष्ट्र का जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन, ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए सालाना आयोजित किया जाता है। इसमें संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के अंतर्गत आने वाले सभी देश शामिल होते हैं।
  • इस बार यानी कॉप 26 में नतीजे के तौर पर ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट सामने आया जिसमें पृथ्वी के बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का संकल्प लिया गया।
  • मोंगाबे-हिन्दी ने कॉप का विस्तृत कवरेज किया। इसमें वार्ता की सारी बारीकियों का विश्लेषण, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से बातचीत कर गूढ़ विषयों की विस्तृत व्याख्या के साथ सारे मुद्दों की रिपोर्टिंग शामिल रहा।

संयुक्त राष्ट्र का 26वां जलवायु परिवर्तन सम्मेलन को आयोजन यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में आयोजित किया गया था। इसे कॉप-26 के नाम से भी जाना जाता है। इस सम्मेलन का एक मुख्य उद्देश्य था कि औद्योगिक युग की शुरुआत की तुलना में वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर कैसे रखा जाए। वर्ष 2015 के पेरिस समझौते में यही लक्ष्य तय किया गया था। ग्लासगो जलवायु संधि में “तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया।”

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के क्योटो प्रोटोकॉल से पेरिस समझौते की तरफ अग्रसर होने के बाद कॉप का आयोजन पहली बार हुआ। नए फ्रेमवर्क की तरफ अग्रसर होने का तात्पर्य है कि अब सभी देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य निर्धारित करना होगा। यद्यपि यह लक्ष्य स्वैच्छिक होना है। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत सिर्फ अमीर देशों को उत्सर्जन में कटौती करना था। इसके अतिरिक्त कोविड महामारी और अर्थव्यवस्था पर पड़े इसके प्रभाव की वजह से भी लोग, कॉप को लेकर उत्सुक थे।

इस कॉप के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा। इसके साथ ही भारत भी अब उन देशों में शामिल हो गया जिनका उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य तय हो गया है।

बीते दो दशक तक भारत ने खुद को इसमें शामिल करने का विरोध किया था। रियो शिखर सम्मेलन के बाद से, भारत के अपने तर्क रहे हैं कि ऐतिहासिक तौर पर उत्सर्जन में भारत की भूमिका नगण्य रही है। देश में करोड़ों लोग अभी गरीबी रेखा से नीचे हैं। इन सबको ध्यान में रखते हुए भारत को विकास के लिए जरूरी कदम उठाने ही होंगे। ऐसे में उत्सर्जन में कटौती करना मुश्किल होगा।

पर पेरिस समझौते के साथ, भारत ने भी राष्ट्रीय स्तर पर उत्सर्जन में कटौती की घोषणा की। प्रधानमंत्री की ग्लासगो में की गयी घोषणा इस सिलसिले को आगे बढ़ाती है। पहले 2030 तक 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य हासिल करने की घोषणा की गयी थी। ग्लासगो में, इसे बढ़ाकर 500 गीगावॉट कर दिया गया। प्रधानमंत्री के अनुसार 2030 तक ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 फीसदी तक स्वच्छ ऊर्जा से हासिल किया जाना है।

मोंगाबे-हिन्दी के कॉप-26 के कवरेज में वार्ता में चल रही उठा-पटक, भारत के द्वारा किए गए घोषणा पर विस्तार से लिखा गया। इन विषयों की बारीकी को समझने के लिए विश्वस्तरीय विशेषज्ञों से बातचीत की गयी। सम्मेलन में शामिल लोगों से उनकी राय समझी गयी।

शिखर सम्मेलन के आखिर में अधिकतर लोगों का मानना रहा कि दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचाना है तो बड़े-बड़े वादों को जमीनी कार्रवाई में बदलने की जरूरत है। मोंगाबे-इंडिया ने जिन विशेषज्ञों से बात की, उनमें से अधिकतर का मानना रहा कि ग्लासगो शिखर सम्मेलन में बड़े-बड़े बोल बोले गए पर ठोस कुछ हासिल नहीं हुआ। इनलोगों का यह मानना था कि विकसित देश ग्लोबल वार्मिंग के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने और इससे जुड़ी समस्या से निपटने के लिए आर्थिक मदद करने को लेकर गंभीर नहीं हैं।

विडंबना ही है कि उधर कॉप का आयोजन हो रहा था इधर भारत के कई हिस्सों में प्राकृतिक आपदाओं का असर देखने को मिल रहा था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मोंगाबे-इंडिया के संपादक गोपीकृष्ण वारियर ने कहा कि ग्लासगो में उधर बड़ी-बड़ी बाते हो रही हैं और दुनिया एक नए समय में प्रवेश कर रही है। क्या यह सामान्य है, वारियर ने पूछा? उनका इशारा केरल के थ्रीसुर शहर में अप्रैल महीने से लगातार हो रही बरसात की तरफ था।

कॉप 26: नेट-जीरो की घोषणा कर भारत ने ग्लासगो क्लाइमेट सम्मेलन में किया ऊर्जा का संचार

ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र का जलवायु सम्मेलन की शुरुआत में ही एक बड़ा मोड़ आया जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बड़ी घोषणाएं की और दुनिया को चौंका दिया। मोदी ने घोषणा की कि भारत 2070 तक वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों में अपना योगदान शून्य कर लेगा।

भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 01 नवंबर, 2021 को ग्लासगो, स्कॉटलैंड में कॉप 26 में वक्तव्य दिया। तस्वीर- प्रेस सूचना ब्यूरो
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 01 नवंबर, 2021 को ग्लासगो, स्कॉटलैंड में कॉप 26 में वक्तव्य दिया। तस्वीर- प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो

कॉप-26 और भारत: वैश्विक कार्बन बजट, न्याय की लड़ाई और विकासशील देशों का नेतृत्व

कोविड-19 महामारी की वजह से विश्व भर में लगे लॉकडाउन ने कार्बन उत्सर्जन में थोड़ी कमी जरूर की थी। पर वैश्विक अर्थव्यवस्था खुलने के साथ उत्सर्जन भी तेजी से बढ़ा है। हाल ही में आए एक शोध में इसकी चर्चा की गयी है। इस शोध में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या इसलिए विद्रुप होती जा रही है क्योंकि सही समय पर नीतिगत कार्यवाहियां नहीं की गईं। दूसरे ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए आर्थिक सहयोग नहीं किया गया। इस आर्थिक सहयोग को क्लाइमेट फाइनैन्स कहते हैं। 

ग्लासगो में कॉप 26 आयोजन स्थल से सटे एक पुल पर विरोध प्रदर्शन करता एक आदमी। जलवायु परिवर्तन को रोकने संबंधित बैनर-पोस्टर के साथ ग्लासगो शहर में ऐसे कई प्रदर्शनकारी देखे जा सकते हैं। तस्वीर- सौम्य सरकार
ग्लासगो में कॉप 26 आयोजन स्थल से सटे एक पुल पर विरोध प्रदर्शन करता एक आदमी। जलवायु परिवर्तन को रोकने संबंधित बैनर-पोस्टर के साथ ग्लासगो शहर में ऐसे कई प्रदर्शनकारी देखे जा सकते हैं। तस्वीर- सौम्य सरकार

कॉप-26: ग्रीन ग्रिड के सपने की राह में खड़ी हैं ढेरों तकनीकी और राजनैतिक चुनौतियां

ग्लासगो में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में भारत और यूके द्वारा स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार के बाबत दुनिया के बिजली पावर ग्रिड को जोड़ने की संयुक्त पहल की सराहना हुई। पर विशेषज्ञों ने चेताया है कि इस योजना को धरातल पर उतारने का रास्ता बहुत कठिन है।

मुंबई में स्थापित बिजली की लाइन। पीछे परिकल्पना यह है कि कई देश अपने अतिरिक्त सौर ऊर्जा को उन देशों में भेज सकेंगे जहां इसकी कमी होगी। तस्वीर- अनप्लैश
मुंबई में स्थापित बिजली की लाइन। पीछे परिकल्पना यह है कि कई देश अपने अतिरिक्त सौर ऊर्जा को उन देशों में भेज सकेंगे जहां इसकी कमी होगी। तस्वीर- अनप्लैश

कॉप-26: बढ़ते प्राकृतिक आपदा के बीच क्या ग्लासगो भी एक खानापूर्ति का मंच बनकर रह जाएगा?

सम्मेलन के पहले सप्ताह में बहुत सारी घोषणाएं हुईं। भारत की तरफ से 2070 तक नेट ज़ीरो हासिल करने की घोषणा हुई। वन क्षेत्र के विस्तार के साथ-साथ मीथेन के उत्सर्जन को कम करने पर भी सहमति बन गयी है। पर विकासशील देशों से आए राजनयिकों और कार्यकर्ता मानते हैं कि अभी तक कुछ सार्थक हासिल नहीं हो पाया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन ने मंगलवार को सौर ऊर्जा ग्रिड के पहले अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के की घोषणा की। इसे ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव – वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड के रूप में सामने रखा गया। तस्वीर- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन/कियारा वर्थ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन ने मंगलवार को सौर ऊर्जा ग्रिड के पहले अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के की घोषणा की। इसे ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव – वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड के रूप में सामने रखा गया। तस्वीर- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन/कियारा वर्थ

कॉप-26 में गूंजा ‘गांव छोड़ब नहीं’ की धुन, युवाओं ने भी संभाला मोर्चा

ग्लासगो में आयोजित जलवायु सम्मेलन कॉप-26 के दूसरे सप्ताह में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ। लोग कॉप में हो रही घोषणाओं से खुश नहीं थे। इन नाखुश बिरादरी में युवाओं की संख्या काफी अधिक थी। वे इस वार्ता को समावेशी नहीं मान रहे थे। दुनियाभर से जमा हुए युवा मांग कर रहे थे कि उनकी भी बात सुनी जाए और निर्णय-प्रक्रिया में उन्हें भी शामिल किया जाए। 

23-वर्षीय एलिस बरवा ने शनिवार को विरोध प्रदर्शन में आदिवासी युवाओं का प्रतिनिधित्व किया। उनके नेतृत्व में गांव छोड़ब नहीं और हसदेव अरण्य बचाओ जैसे पोस्टर्स प्रदर्शनी में शामिल किए गए। तस्वीर- प्रियंका शंकर/मोंगाबे
हाल ही में ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र का जलवायु सम्मेलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न हुआ। वहां भी छत्तीसगढ़ के आदिवासी और हसदेव अरण्य की बात उठी। तस्वीर- प्रियंका शंकर/मोंगाबे

कॉप-26: मौसमी आपदाएं बढ़ रहीं हैं, क्या लॉस एंड डैमेज को लेकर बात होगी!

ग्लासगो में चल रहा संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन खत्म होने की कगार पर था। तब इस समझौते में सक्रिय राजनयिक और वार्ताकार के बीच इस बात को लेकर जद्दोजहद चल रही थी कि आखिर में जारी किया जाने वाला सहमति पत्र कैसा हो। सम्मेलन के इन आखिरी कुछ दिनों में इन लोगों पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले लॉस एंड डैमेज पर तत्काल कदम उठाने का दबाव बढ़ता जा रहा था। 

क्लाइमेट जस्टिस की मांग को लेकर ग्लासगो में कॉप 26 सम्मेलन स्थल पर प्रदर्शन करते प्रदर्शनकारी। तस्वीर- सौम्य सरकार/मोंगाबे
क्लाइमेट जस्टिस की मांग को लेकर ग्लासगो में कॉप 26 सम्मेलन स्थल पर प्रदर्शन करते प्रदर्शनकारी। तस्वीर- सौम्य सरकार/मोंगाबे

कॉप-26: ग्लासगो वार्ता में बेचे गए बस सपने, आर्थिक मदद और ठोस कार्रवाई नदारद

जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए कमजोर देशों को अमीर देशों का सहयोग नहीं करना, सबसे निराशाजनक रहा। पहले के जलवायु समझौतों में क्लाइमेट फाइनैन्स पर सहमति होने के बावजूद भी अमीर देश अपनी जिम्मेदारी निभाने में हीलाहवाली करते रहे।

सुंदरबन के किनारे रहने वाले भारत और बंगलादेशी नागरिकों पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखना शुरू हो गया है। समुद्र के जल स्तर में वृद्धि एक बड़ा संकेत है। तस्वीर- सौम्य सरकार/मोंगाबे
सुंदरबन के किनारे रहने वाले भारत और बंगलादेशी नागरिकों पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखना शुरू हो गया है। समुद्र के जल स्तर में वृद्धि एक बड़ा संकेत है। तस्वीर- सौम्य सरकार/मोंगाबे

कॉप-26 और मीथेन उत्सर्जन: वैश्विक जलवायु परिवर्तन की बातचीत में भारतीय मवेशी भी रहे मुद्दा

ग्लासगो पर्यावरण सम्मेलन की कुछेक उपलब्धियों में मीथेन गैस के उत्सर्जन में कटौती करना भी शामिल है। हालांकि भारत ने अपने को इससे दूर रखा और वजह बताई कि देश के करोड़ों लोगों की आजीविका पर खतरा हो सकता है। भारत के अतिरिक्त रूस और चीन ने भी इस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये।

गुजरात के हाइवे पर मवेशियों को ले जाते चरवाहे। मीथेन उत्सर्जन में मवेशियों की भी भूमिका होती है। मीथेन गैस उत्सर्जन में कटौती की जाए तो देश में कई लोगों की आजीविका संकट में आ जाएगी। तस्वीर- दिव्या मुदप्पा/विकिमीडिया
गुजरात के हाइवे पर मवेशियों को ले जाते चरवाहे। मीथेन उत्सर्जन में मवेशियों की भी भूमिका होती है। मीथेन गैस उत्सर्जन में कटौती की जाए तो देश में कई लोगों की आजीविका संकट में आ जाएगी। तस्वीर- दिव्या मुदप्पा/विकिमीडिया

 

बैनर तस्वीर: अपने सम्बोधन में भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद के तौर पर अमीर देशों से एक लाख करोड़ डॉलर की मांग की।। तस्वीर- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन/कियारा वर्थ 

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