Site icon Mongabay हिन्दी

हिमाचल में ट्रीटमेंट प्लांट ही बन रहा प्रदूषण का कारण

हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में नालागढ़ औद्योगिक क्षेत्र के पास जंगलों में खुलेआम कूड़ा डाला जा रहा है। तस्वीर- कपिल काजल।

हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में नालागढ़ औद्योगिक क्षेत्र के पास जंगलों में खुलेआम कूड़ा डाला जा रहा है। तस्वीर- कपिल काजल।

  • हिमाचल के माजरा गांव में लोगों के साथ-साथ मवेशी भी बीमार हो रहे हैं। स्थानीय लोग इसके पीछे गंदे पानी को जिम्मेदार मानते हैं। आरोप है कि एक ट्रीटमेंट प्लांट की वजह से इलाके का भूजल प्रदूषित हो रहा है।
  • माजरा के लोग आरोप लगाते हैं कि ठोस कचरा को साफ करने वाले प्लांट से निकला केमिकल रिसकर जमीन में जा रहा है। इससे भूजल पीने लायक नहीं रहा। हालांकि, प्लांट के अधिकारी इससे इनकार करते हैं।
  • गांव वालों के आरोपों को जानकार भी सही ठहरा रहे हैं। उनका मानना है कि कचरे की वजह से हिमाचल प्रदेश की नदियां प्रदूषित हो गई हैं।

आज से करीब 20 साल पहले हिमाचल प्रदेश के माजरा गांव की करमों देवी ने पीने के पानी के लिए एक कुआं खोदवाया। बीते 20 साल से यह कुआं करमों के परिवार की प्यास बुझाता आ रहा है। हाल ही में उनके दुधारू मवेशियों की मृत्यु होने लगी। इन्हें धीरे-धीरे एहसास हुआ कि इन मवेशियों की मृत्यु प्रदूषित पानी पीने से हुई है। 

यह गांव नालागढ़ के तहत आता है जो कि प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। 

करमों कहती हैं, “पानी का रंग काला हो गया है। पानी में जहरीले तत्व होने की वजह से कई मवेशी मर गए। यहां तक कि गांव वालों को भी जानलेवा बीमारियां हो रही हैं।”

इनका मानना है कि पास के शिवालिक सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की वजह से पानी प्रदूषित हो रहा है। 

कचरा प्रबंधन के उद्देश्य से यह प्लांट, माजरा में 15 वर्ष पहले लगाया गया था। आसपास के उद्योगों से निकले कचरे को यहां साफ किया जाता है। 

माजरा गांव के मुखिया बलविंदर कौर कहतीं हैं कि पंचायत से जब अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेना था तो इस परियोजना को एक पर्यावरण से संबंधित परियोजना बता दिया गया। बाद में हमें एहसास हुआ कि हमारे साथ छल किया गया है। 

“जब यह प्लांट बनकर तैयार हुआ तब देखा कि आसपास के उद्योगों से खतरनाक रासायनों से युक्त कचरा यहां ट्रीट होने आता है। गांव के लोग बीमार होने लगे और मवेशियों की मौत होने लगी तब हमें अंदाजा हुआ कि इस प्लांट की वजह से भूजल कितना प्रदूषित हो चुका है। हमने पाया कि कचरा साफ करने के बजाए, प्लांट यहां कचरा डंप कर रहा है। यह रसायन रिसकर जमीन के नीचे चला जाता है और वहां मौजूद पानी में मिल जाता है,” कौर कहती हैं।

जुलाई 2021 में माजरा गांव के लोगों ने प्रशासन को एक पत्र लिखकर इस मामले की शिकायत की। उन्होंने आरोप लगाया कि इस प्लांट के माध्यम से पिछले 15 वर्षों से ठोस कचरे को, बिना उचित उपचार किए ही, जमीन में दबा दिया जा रहा है। फिर उसे मिट्टी से ढक दिया जाता है। इस कचरे से रसायन रिसता रहता है। इसके कारण माजरा और आसपास के गांवों के प्राकृतिक स्रोतों जैसे कुओं और बोरवेल का पानी जहरीला हो गया है।

कुएं से दूषित पानी दिखाते माजरा गांव के लोग। तस्वीर- विशेष प्रबंध
कुएं से दूषित पानी दिखाते माजरा गांव के लोग। तस्वीर- विशेष प्रबंध

इलाके में भूजल सुरक्षा के लिए काम करने वाली संस्था हिम परिवेश के उपाध्यक्ष संजीव कौशल ने ग्रामीणों की शिकायत के बाद संयंत्र का दौरा किया। उन्होंने पाया कि प्रदूषित पानी को प्लांट परिसर के अंदर एकत्र किया जाता है। बारिश के साथ यह पानी गांव में प्रवेश कर जाता है। उन्होंने कहा, “बारिश के दौरान, केमिकल भी बारिश के पानी में मिल जाता है। फिर आस-पास की नालियों में बहने लगता है। ठोस कचरा, प्लांट के आसपास, खुले में पड़ा रहता है। कचरे को संयंत्र तक ले जाने वाले वाहनों से केमिकल लीक होता देखा गया।

करीब पांच साल से इस प्लांट में काम कर रहे गांव के ही गुरदयाल सिंह कहते हैं, ‘प्लांट अपने कचरे की सफाई या उपचार ठीक से नहीं कर रहा है। प्लांट को ठीक तरह से बनाया गया है लेकिन पैसे बचाने के लिए लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा है।”

“मेरे साथ प्लांट में काम करने वाले बलविंदर सिंह सहित अनेकों लोग कई तरह की बीमारियों से जूझ रहे हैं। गांव का पानी पीने से भी लोग बीमार हो रहे हैं,” उन्होंने कहा। 

हालांकि, प्लांट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अशोक शर्मा ने अपने संयंत्र से पानी के रिसाव से इनकार किया। उन्होंने कहा, ‘प्लांट के अंदर का एक प्रतिशत भी रासायनिक पानी गांव में नहीं जाता है। अपशिष्ट और पानी का उचित उपचार किया गया है। प्लांट की वजह से गांव का पानी खराब नहीं हुआ है।”

जहरीला होता भूजल

पिछले एक दशक से हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य में उद्योगों को प्रोत्साहित कर रही है। इन्हें काफी सक्रियता से मंजूरी दी जा रही है। उद्यमियों को बुनियादी ढांचा सहायता प्रदान करने के लिए, हिमाचल प्रदेश सरकार ने 41 औद्योगिक क्षेत्रों का विकास किया है। निवेश लाने के मामले में सोलन, सिरमौर, कांगड़ा और ऊना जिला सबसे आगे है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार, राज्य में 54,310 इकाइयां कार्यरत हैं। इनमें से 140 बड़ी औद्योगिक इकाइयां हैं और 628 मध्यम स्तर की औद्योगिक इकाइयां हैं। उद्योग स्थापित करने की दृष्टि से सोलन जिला राज्य का सर्वाधिक विकसित जिला माना जाता है। सोलन में 15 औद्योगिक पार्क हैं जिनमें 5,331 लघु उद्योग, 240 मध्यम और 106 बड़े पैमाने के उद्योग शामिल हैं।

हिमधारा कलेक्टिव की सह-संस्थापक मानसी अशर कहती हैं, “इन उद्योगों ने न केवल जंगलों को काटकर और हवा को प्रदूषित करके राज्य के भूमि उपयोग को बदल दिया है, बल्कि इन उद्योगों से निकलने वाला ठोस कचरा भूजल और नदियों को भी प्रदूषित कर रहा है। राज्य तेजी से उद्योगों को मंजूरी दे रहा है लेकिन ठोस कचरा प्रबंधन के मुद्दे अभी भी राज्य की प्राथमिकता में नहीं हैं। 

हिमधारा के सदस्यों ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एकत्र किए गए आंकड़ों को साझा किया। इससे पता चलता है कि नालागढ़ क्षेत्र में 2,063 इकाइयों में से 50 प्रतिशत से अधिक वैध सहमति के बिना काम कर रहे हैं। यह दर्शाता है कि इकाइयों को शायद ही कभी कारण बताओ नोटिस जारी किए जाता है और कभी नोटिस दे भी दिया गया तो उसपर आगे कार्रवाई नहीं होती।

कुओं से निकला दूषित पानी। तस्वीर- विशेष प्रबंध
कुओं से निकला दूषित पानी। तस्वीर- विशेष प्रबंध

हिमधारा के मुताबिक इस इलाके के लगभग 60 प्रतिशत इकाइयों में एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) नहीं है और भूजल गंभीर रूप से प्रदूषित है। पंजाब विश्वविद्यालय के एक अध्ययन ने क्षेत्र में भूजल का आकलन किया। पता चला कि यहां लोहा, सीसा, तांबा, मैंगनीज और क्षारीयता का स्तर सुरक्षित सीमा को पार कर गया है।

बद्दी नालागढ़ औद्योगिक क्षेत्र में एक अन्य अध्ययन में भूजल में भारी धातुओं की उपस्थिति पाई गई। अध्ययन में कहा गया है कि बद्दी, संधोली और नालागढ़ में भारी धातु की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक हैं। संधोली में मैंगनीज और लोहा सबसे ज्यादा है और नालागढ़ में आर्सेनिक की मात्रा हद से अधिक है। हिमाचल प्रदेश के करियर पॉइंट विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर योगेश कुमार वालिया कहते हैं, “बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास ने हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों जैसे सोलन, बद्दी, सिरमौर और नालागढ़ में भूजल को गंभीर चिंता का विषय बना दिया है। फैक्ट्रियों के पास जमा अपशिष्ट पदार्थ, बारिश के दौरान, भूजल तक पहुंच रहे हैं।”

अशर ने जोर देकर कहा कि राज्य में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) की कोई बात नहीं होती।

“इस समस्या को दूर करने के लिए राज्य के अधिकारियों ने कागज पर कचरा के वर्गीकरण, संग्रह, परिवहन, प्रसंस्करण और निपटान तंत्र बनाकर एक एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की सुविधा का वादा किया है। लेकिन जब बात धरातल पर आती है तो नीति और कानून पूरी तरह विफल दिखते हैं। माजरा स्थित प्लांट इसकी पुष्टि करता है। राज्य सरकार भी इन मुद्दों को हल करने के लिए बहुत सक्रिय नहीं है, ” मानसी अशर ने कहा।

नदियां डंपिंग ग्राउंड में हो रहीं तब्दील 

जानकारों के मुताबिक नदियों में ठोस कचरा डालने से क्षेत्र की नदियां भी अब प्रदूषित हो रही हैं। इस साल की शुरुआत में बद्दी औद्योगिक क्षेत्र के मालपुर खुद में एक दवा फैक्ट्री ने एक टैंकर का पानी बहाया तो नदी का पानी नीला हो गया।

2018 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 351 नदी क्षेत्र का आकलन किया और उनमें से सात हिमाचल प्रदेश में थीं। उन्होंने पाया कि नालागढ़ और सोलन के बीच एक बड़ा हिस्सा राज्य में सबसे प्रदूषित स्थानों में शामिल है। उन्होंने पाया कि मारकंडा, ब्यास, सुखना, सिरसा, अश्विनी, गिरि और पब्बर नदियां अत्यधिक प्रदूषित थीं।

सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट के आगे विरोध प्रदर्शन करते माजरा निवासी। तस्वीर- विशेष प्रबंध
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट के आगे विरोध प्रदर्शन करते माजरा निवासी। तस्वीर- विशेष प्रबंध

यह सुनिश्चित करने के लिए कि कचरे का ठीक से प्रबंधन किया जाए, राज्य सरकार ने नदियों में अनुपचारित कचरे के प्रवाह को रोकने के लिए एसएसडब्लूएमपी और कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) जैसे संयंत्र स्थापित किए हैं। 

दूसरी तरफ यह आरोप लगाया जा रहा है कि एसएसडब्ल्यूएमपी ने माजरा और आसपास के गांवों में भूजल को दूषित कर दिया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पाया कि सीईटीपी अनुपचारित अपशिष्टों को सरसा नदी में छोड़ रहा था।

हिमाचल प्रदेश के लिए मौजूदा उद्योगों से निकले ठोस कचरे का समुचित प्रबंधन करना एक मुश्किल काम है। बावजूद इसके सरकार नई परियोजनाओं को तेजी से हरी झंडी दे रही है। राज्य ने सोलन में आठ औद्योगिक परियोजनाओं को सिंगल-विंडो के माध्यम से क्लीयरेंस प्रदान किया है। राज्य की औद्योगिक बस्ती नालागढ़ में स्वास्थ्य उपकरण और उपकरण निर्माण क्षेत्र के लिए 5,000 करोड़ रुपये का ‘मेडिकल डिवाइस पार्क’ बनाने के लिए केंद्र ने स्वीकृति भी दे दी है। 


और पढ़ेंः हर साल जलवायु परिवर्तन का दंश झेलता हिमाचल प्रदेश


पर्वतीय क्षेत्रों के सतत विकास पर जोर देने वाली संस्था राष्ट्रीय हिमालय नीति अभियान (हिमालयी नीति अभियान) के प्रमुख कुलभूषण उपमन्यु ने कहा कि उचित ठोस कचरा प्रबंधन का पालन नहीं करने वाले इन उद्योगों का निर्माण ऐसे नाजुक वातावरण में नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इनमें से कई उद्योग बिना उचित मंजूरी के चल रहे हैं। उन्होंने पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन मानदंडों की अनदेखी करने और तेजी से सिंगल-विंडो मंजूरी प्रदान करने के लिए राज्य सरकार की आलोचना की।

माजरा स्थित प्लांट में अनियमितताओं का मामला अब हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के अधीन है, जिसने सितंबर 2021 में, हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव, हिमाचल प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव और सोलन जिले के उपायुक्त को प्रदूषण के संबंध में नोटिस जारी किया था। 

 

बैनर तस्वीरः हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में नालागढ़ औद्योगिक क्षेत्र के पास जंगलों में खुलेआम कूड़ा डाला जा रहा है। तस्वीर- कपिल काजल।

Exit mobile version