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दुर्लभ वन्यजीवों की तस्करी में सरकार की माफी योजना का हो रहा इस्तेमाल

सेशेल्स द्वीप से तस्करी कर लाए दो एल्डबरा विशाल कछुए लैलापुर में बरामद किए गए। यह प्रजाति दुनिया में मिलने वाले बड़े कछुए में शामिल है। तस्वीर- काचर वन मंडल

सेशेल्स द्वीप से तस्करी कर लाए दो एल्डबरा विशाल कछुए लैलापुर में बरामद किए गए। यह प्रजाति दुनिया में मिलने वाले बड़े कछुए में शामिल है। तस्वीर- काचर वन मंडल

  • भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने विदेशी मूल के जीवों के बढ़ते व्यापार को नियंत्रित करने के लिए एक एडवायजरी जारी किया था। हाल के रुझानों को देखते हुए ऐसा लगता है कि तस्कर इस एडवायजरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं।
  • असम-मिजोरम सीमा के लैलापुर से एक कंगारू, तीन कछुआ, छह नीले मकोव और दो बंदर जब्त किए गए थे। इनमें से कोई भी जीव भारत में नहीं पाया जाता है।
  • विदेशी जानवरों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत सूचीबद्ध नहीं किया गया है। इस वजह से तस्करों पर आरोप सिद्ध करना मुश्किल हो जाता है।

देश में वन्यजीव व्यापार पर पूर्ण प्रतिबंध है। यह प्रतिबंध देसी वन्यजीवों पर तो लागू है, पर विदेशी वन्यजीव इसके दायरे में नहीं आते। तस्कर इसी का फायदा उठा कर इन दुर्लभ जीवों के खरीद-फरोख्त को अंजाम दे रहे हैं।

राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) द्वारा प्रकाशित, भारत में तस्करी रिपोर्ट 2019-2020 में, सामने आया था कि भारत में विदेशी प्रजाति के जीवों की मांग में वृद्धि हुई है। 

“चूंकि देश में वन्य जीवों खासकर यहां पाए जाने वाले जीवों के व्यापार पर पूर्ण प्रतिबंध है, इसलिए तस्कर विदेशी प्रजाति के जीवों का व्यवसाय करने लगे हैं। इनमें से अधिकांश प्रजातियां विदेशी पालतू जानवरों की हैं,” रिपोर्ट में कहा गया है।

तस्कर नई-नई तरकीब निकालकर प्रवर्तन एजेंसियों से एक कदम आगे रहने की कोशिश कर रहे हैं। हाल के रुझानों से पता चलता है कि वे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय  द्वारा पिछले साल जारी स्वैच्छिक बताओ योजना का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। इस योजना में अपने पास मौजूद विदेशी जानवरों की सूचना खुद सरकार को देनी होती है। इस योजना का उद्देश्य देश में विदेशी जानवरों के बढ़ते बाजार को नियंत्रित करना है। 

जून 2020 में आई इस स्वैच्छिक बताओ योजना को एक माफी योजना की तरह लाया गया था। इसके तहत भारतीय किसी भी विदेशी जीवित प्रजाति के घर में होने की बात जाहिर कर सकते थे। ऐसा करने वाले को उस विदेशी जीव से संबंधित कोई भी दस्तावेज उपलब्ध कराने को नहीं कहा जाएगा। इसमें शर्त यह थी कि एडवायजरी जारी होने की तारीख के छह महीने के भीतर ही यह जानकारी देनी थी। इस अवधि को बाद में 15 मार्च, 2021 तक बढ़ा दिया गया था। इंडियास्पेंड द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2021 तक इस माफी योजना के लिए 30,000 से अधिक भारतीयों ने आवेदन किया था। 

लैलापुर में छह नीले मकाउ जब्त किए गए। यह एक प्रकार का तोता है और मध्य और पूर्वी-दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है। तस्वीर- हैंक जिलेट/विकिमीडिया कॉमन्स
लैलापुर में छह नीले मकाउ जब्त किए गए। यह एक प्रकार का तोता है और मध्य और पूर्वी-दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है। तस्वीर– हैंक जिलेट/विकिमीडिया कॉमन्स

हालांकि, सरकार की एडवायजरी के मुताबिक इस योजना का उद्देश्य आयात की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना और लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कन्वेंशन (सीआईटीईएस) के तहत सूचीबद्ध विदेशी प्रजातियों की एक सूची तैयार करना था। 

वन्यजीव तस्करों ने इसे अपने लाभ के लिए भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। पिछले साल लैलापुर में पूर्वोत्तर क्षेत्र में विदेशी जानवरों की सबसे बड़ी खेप पकड़ी गई थी। इस दौरान महाराष्ट्र के सतारा जिले के रहने वाले नवनाथ तुकाराम धैगुड़े को गिरफ्तार किया गया था। वह वन्यजीवों से भरी गाड़ी का चालक था। इसके बाद बीते साल गुवाहाटी उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी जिसमें स्वैच्छिक बताओ योजना के तहत जब्त किए गए जानवरों को वापस मांगा गया। याचिका में तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को घोषणाकर्ता होने के नाते, कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है। इसमें यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करना भी केंद्र सरकार की माफी योजना के खिलाफ होगा। 

लैलापुर में क्या हुआ था

28 जुलाई, 2020 की आधी रात को गश्त के दौरान लैलापुर (असम-मिजोरम सीमा से सटे एक गांव) के पास एनएच-54 राजमार्ग पर एक वाहन को रोका गया। वाहन के अंदर डिब्बों से तेज बदबू आ रही थी, इसलिए गश्त करने वाली टीम ने इसे खोलकर देखने के फैसला किया। फिर जो दिखा वह अप्रत्याशित था। इसमें विदेशी नस्ल का एक लाल कंगारू, तीन कछुए, छह नीले मकाऊ और दो बंदर मौजूद थे। इनमे से कोई भी जीव भारत में नहीं पाया जाता है।

धैगुडे और उनके साथी नरसिम्हा रेड्डी को तब गिरफ्तार किया गया जब वे इन जानवरों के परिवहन के लिए कोई वैध परमिट उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे थे। स्थानीय स्तर पर पुनर्वास केंद्र न होने की वजह से उन जानवरों को असम के एक चिड़ियाघर में भेजा गया। आगे की जांच में वाहन से एक बाघ का पंजा, दो भारतीय कछुए और एक लाल कान वाला कछुआ बरामद किया गया।

वहां के संभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) सनी चौधरी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “अपने बयान में आरोपी ने कहा कि वह सिलीगुड़ी से अइजोल तक प्याज ले जा रहा था। वहीं पर उसे ये कार्टन सौंपे गए थे। लाला नाम के एक व्यक्ति ने 15,000 रुपए देकर इसे गुवाहाटी में डिलीवरी करने के लिए कहा। उसने कहा था कि उसे नहीं पता कि इन डिब्बों में क्या है। अब अपनी याचिका में वह इन जानवरों का मालिक होने का दावा कर रहा है। धैगुडे एक आपराधिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति है और उसे पहले भी जंगली जानवरों की तस्करी के आरोप में कोलकाता में गिरफ्तार किया जा चुका है।”

कैपुचिन बंदर मध्य और दक्षिण अमेरिका में पाए जाते हैं। लैलापुर में दो कैपुचिन बंदर पकड़े गए। तस्वीर- डेविड एम जेन्सेन/विकिमीडिया कॉमन्स
कैपुचिन बंदर मध्य और दक्षिण अमेरिका में पाए जाते हैं। लैलापुर में दो कैपुचिन बंदर पकड़े गए। तस्वीर– डेविड एम जेन्सेन/विकिमीडिया कॉमन्स

वन विभाग ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी धैगुड़े सीमा पार से भारत में जानवरों के सामानों की अवैध तस्करी में शामिल है और मंत्रालय द्वारा जारी की गई एडवाइजरी का अनुचित लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है। 

पूर्वी क्षेत्र में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) के क्षेत्रीय उप निदेशक, अग्नि मित्र ने याचिका पर प्रतिक्रिया दर्ज करने में असम वन विभाग की मदद की। मित्रा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि धागुड़े इस माफी योजना की आड़ में बच नहीं सकता। इस मामले में विदेशी जानवरों को रखने के आरोप में आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया था। उस पर तस्करी का मामला दर्ज किया गया था।

विदेशी जानवरों के संबंध में अधिकांश मामलों में प्रवर्तन एजेंसियां ​​​​आरोपी को पकड़ने में विफल रहती हैं।  उन्होंने कहा, “विदेशी प्रजातियों को ले जाने वाली इन खेपों में से अधिकांश को सीमावर्ती क्षेत्रों में रोक दिया जाता है जो सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अधिकार क्षेत्र में आता है। बीएसएफ को बहुत खुले मैदान में काम करना पड़ता है, जहां अक्सर आरोपी भागने में सफल हो जाते हैं। वे केवल जानवर जब्त कर पाते हैं।”

गलत पहचान से कमजोर हुआ केस

लैलापुर मामले में शुरू में वन विभाग ने कुछ जानवरों की गलत पहचान की और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (डब्ल्यूएलपीए), 1972 के तहत मामला दर्ज किया गया। चूंकि विदेशी जानवर वन्यजीव संरक्षण के तहत नहीं आते हैं, इसलिए आरोपी को पिछले साल जमानत मिल गई थी। जमानत के आदेश में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने कहा, “चूंकि जब्त किए गए जानवर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के दायरे में नहीं आते हैं, इसलिए याचिकाकर्ताओं को हिरासत में नहीं लिया जा सकता।”

चूंकि बचाए गए जानवर विदेशी थे और जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन  (सीआईटीईएस) की श्रेणी में आते थे, इसलिए इसे सीमा शुल्क विभाग को सौंप दिया गया था। याचिकाकर्ता ने बीते साल मार्च में जब्त किए गए जानवरों को मांगने के लिए सीमा शुल्क अधिकारियों के समक्ष एक आवेदन दिया। दो महीने बाद सीमा शुल्क अधिकारियों ने जब्त किए गए जानवरों को इस शर्त पर दिया कि याचिकाकर्ता उन जानवरों के 100% मूल्य के लिए एक बांड भरेंगे। जानवरों और जानवरों के मूल्य का 25% नकद भी जमा करेंगे। याचिकाकर्ता ने सारी शर्ते मान लीं और उन्हें जानवर लेने की अनुमति मिल गई। 

फिर उन्होंने इन जीवों को पाने के लिए रेंज वन अधिकारी, धोलाई से संपर्क किया। पर यहां इस आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया। 

इसी के बाद धागुड़े ने एक आपराधिक याचिका दायर कर उपरोक्त मांग रखी थी। 

रेड कंकारू को बचाकर काचर वन मंडल लैलापुर में रखा गया। भारत में विदेश से तस्करी कर लाए ऐसे दुर्लभ जीवों की बढ़ती संख्या की वजह से यहां के स्थानीय वन्यजीवों में संक्रमण का खतरा भी है। तस्वीर- काचर वन मंडल
रेड कंकारू को बचाकर काचर वन मंडल लैलापुर में रखा गया। भारत में विदेश से तस्करी कर लाए ऐसे दुर्लभ जीवों की बढ़ती संख्या की वजह से यहां के स्थानीय वन्यजीवों में संक्रमण का खतरा भी है। तस्वीर- काचर वन मंडल

चौधरी कहते हैं, “सीमा शुल्क विभाग ने वन विभाग से कहा कि हम उन जंगली जानवरों को छोड़ दें जिन्हें हमने जब्त किया था। फिर उच्च न्यायालय ने उस आदेश को खारिज कर दिया। समस्या तब उत्पन्न हुई जब दो एजेंसियों – सीमा शुल्क और वन विभाग ने अपने स्वयं के कानून के अनुसार कार्य किया। ये कानून एक दूसरे से मिलते-जुलते थे। हम इनमें से कई जानवरों को पहली बार देख रहे थे, इसलिए पहचानने में मुश्किल आई। हम एक कंगारू की पहचान तो कर सकते थे लेकिन अन्य जीवों के बारे में भरोसे के साथ कहना मुश्किल था। समय भी कम था क्योंकि उन्हें चौबीस घंटे के भीतर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना था। हमें साबित करना था कि ये विदेशी मूल के जीव हैं। अंततः हमने भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जेडएसआई) का हवाला देकर प्रजातियों की पहचान की।”


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याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने बीते साल अक्टूबर में अपने फैसले में कहा कि कि चूंकि याचिकाकर्ता ने सभी तथ्यों का खुलासा नहीं किया, इसलिए यह अदालत इस याचिका को रद्द करती है। 

मित्रा का कहना है कि डब्ल्यूसीसीबी में अपने पांच साल से अधिक के कार्यकाल में, यह पहली बार है जब किसी व्यक्ति ने जब्त विदेशी जानवरों की हिरासत की मांग की है। “वन्यजीवों की खेप करोड़ों रुपये की थी। खेप के लिए भुगतान करने वाले व्यक्ति ने सोचा कि वह एक अच्छे वकील को काम पर रखकर जानवरों की कस्टडी पाने की कोशिश करेगा। चूंकि वह खुद सामने नहीं आ सके, इसलिए उन्होंने धैगुड़े के नाम से याचिका दायर की। पर उनका दाव नहीं चल सका,” उन्होंने कहा।

 

बैनर तस्वीरः सेशेल्स द्वीप से तस्करी कर लाए दो एल्डबरा विशाल कछुए लैलापुर में बरामद किए गए। यह प्रजाति दुनिया में मिलने वाले बड़े कछुए में शामिल है। तस्वीर- काचर वन मंडल 

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