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दशरथ मांझी के गांव से समझिए बिहार में सौर ऊर्जा की हकीकत

  • बिहार में स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार की रफ्तार काफी धीमी रही है। राज्य ने नीति बनाकर अपने लिए एक लक्ष्य तय किया था। महज एक साल बाकी है पर उस लक्ष्य का बमुश्किल 11 फीसदी हासिल किया जा सका है।
  • अब सरकारी अधिकारी दावा कर रहे हैं कि बड़े स्तर पर सारे सरकारी इमारतों पर सौर ऊर्जा के पैनल लगाने का काम चल रहा है। साथ ही, राज्य में बड़े पैमाने पर सौर स्ट्रीट लाइट और तैरने वाले सौर पैनल भी लगाए जा रहे हैं।
  • बिहार सरकार का कहना है कि सौर परियोजना के लिए ज़मीन की कमी, महंगी खेतिहर ज़मीन एवं अन्य कई कारणों के चलते स्वच्छ ऊर्जा का विकास नहीं हो पा रहा है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत का आंकड़ा चिंताजनक है। इससे स्थानीय जीवन का स्तर भी प्रभावित होता है।

बिहार के गया जिले में स्थित एक पहाड़ी गांव गहलौर को दशरथ मांझी की वजह से जाना जाता है। वही दशरथ मांझी जिन्होंने दो दशक तक अथक परिश्रम से पहाड़ खोदकर गांव के लिए रास्ता बना दिया। साल 2015 में उनके जीवन पर एक फिल्म भी बनाई गई जिससे मांझी की ख्याति दूर-दूर तक फैली। छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा यह गांव और दिवंगत दशरथ मांझी का बनाया वह रास्ता आसपास के लोगों के लिए एक पर्यटन स्थल है। अब इस गांव को सौर ऊर्जा की नजर से देखते हैं।

चार साल पहले यहां 10 सोलरस्ट्रीट लाइट लगाए गए। दो लाइट दशरथ मांझी के घर के आसपास और बचे हुए आठ स्ट्रीट लाइट को  दशरथ मांझी की याद में बने मेंमोरियल पार्क में लगाया गया।

चार साल में ही गांव में लगे सोलर लाइट की हालत खस्ती हो गई। दशरथ मांझी के बेटे मिथुन मांझी ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में बताया कि इनमें से आधी लाइट अब काम नहीं करती।

“तीन साल तक रौशनी देने के बाद लाइट की बैटरी खराब हो गई। तब से यह इसी स्थिति में है,” मिथुन मांझी ने घर के पास लगी दो लाइट की तरफ इशारा करते हुए कहा।

पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए जिस गांव पर सरकार की विशेष नजर थी, सौर ऊर्जा के मामले में उसकी हालत खस्ती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार के दूसरे गांवों की हालत क्या होगी?

बिहार के गांवों में लगे सोलर लाइट्स देख-रेख के अभाव में खराब पड़े हैं। वर्षों से खराब पड़ी लाइट्स को देखकर अब लोगों को सौर ऊर्जा की क्षमता पर संदेह होने लगा है। हालांकि, राज्य सरकार के ‘मुख्यमंत्री ग्रामीणस्ट्रीट लाइट निश्चय योजना’ के वेबसाइट के मुताबिक राज्य के कई ग्रामीण इलाकों में सौर स्ट्रीट लाइट का विस्तार हुआ है।

यह तो रही स्ट्रीट लाइट की बात। पर ऊर्जा के लिहाज से बिहार के आंकड़े उत्साहजनक नहीं है। प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत के मामलें में बिहार सबसे पीछे  है। सूबे के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने हाल में आए देशव्यापी कोयला संकट के समय यह बात कही थी कि राज्य की किसी भी इकाई में अभी बिजली उत्पादन में नहीं हो रहा है। कोयला संकट के समय राज्य को मजबूरन अधिक मूल्य पर कोयले से बनी बिजली खरीदनी पड़ी थी।

आखिरी साल में लक्ष्य हासिल करने की कोशिश

वर्ष 2017 में बिहार ने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा नीति बनाया। इसमें स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रावधान किए गए थे। राज्य ने लक्ष्य रखा था कि वर्ष 2022 तक राज्य 3,433 मेगावॉट स्वच्छ ऊर्जा की स्थापित क्षमता हासिल करेगा। इस में 2,969 मेगावॉट, सौर ऊर्जा से, 244 मेगावॉट बायोमास से और 220 मेगावॉट ऊर्जा छोटे पनबिजली ऊर्जा की क्षमता विकसित करने की परिकल्पना की गई थी।

लेकिन अभी वास्तविकता यह है कि अब तक स्वच्छ ऊर्जा में केवल 386 मेगावॉट स्थापित क्षमता को ही हासिल किया जा सका है। यह लक्ष्य का महज 11 प्रतिशत ही है। अब जब केवल एक वर्ष बचा है, इतने बड़े लक्ष्य को हासिल करना काफी मुश्किल प्रतीत होता है।

दशरथ मांझी के घर के बाहर बने एक मूर्ति के पास 4 साल पहले लगी सौर स्ट्रीट लाइट वर्षो से खराब पड़ी है। तस्वीर-मनीष कुमार

बिहार नवीकरणीय विकास एजेन्सी (ब्रेड़ा), जो कि अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए बिहार सरकार का नोडल विभाग है, का कहना है कि ऐसे कई कार्य किए जा रहे हैं जिससे प्रदेश के बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की भागीदारी बढ़ सके। ब्रेड़ा अब ऐसे कई और विकल्प पर काम कर रही है जिससे कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा नवीकरणीय उर्जा योजना का विस्तार हो सके।

ब्रेड़ा के अधिकारियों की मानें तो राज्य के सारे सरकारी भवनो में सोलर रूफ़टॉप लगाने का काम ज़ोर शोर से शुरू हो चुका है। इसमें अस्पताल, स्कूल, पंचायत भवन एवं कई अन्य भवनो को सौर ऊर्जा से जोड़ना हैं।

‘यह एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसे बिहार सरकार पूरा करने जा रही है। ऐसा प्रयास शायद ही किसी प्रदेश में किया गया हो जहां सरकार के 100 प्रतिशत भवनों को सौर ऊर्जा से जोड़े जाने की प्रक्रिया चल रही है। इस परियोजना के अंतर्गत सरकारी भवन जैसे-स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, जेल जैसे सभी इमारतों में सोलर रूफटॉप लग रहे हैं। यह काम जल जीवन हरियाली परियोजना के तहत किया जाना है,’ ब्रेड़ा के प्रोजेक्ट निदेशक अभिषेक सेनगुप्ता ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

सोलरस्ट्रीट लाइट पर ध्यान 

सभी इमारतों में सौर पैनल लगाने के अलावा, राज्य सरकार सोलरस्ट्रीट लाइट पर भी निवेश करने जा रही है। बीते साल पंचायत चुनाव के ठीक पहले, अगस्त के महीने में सरकार ने 8,300 पंचायतों और 143 शहरी इलाकों में 20,000 करोड़ की लगात से सोलरस्ट्रीट लाइट लगाने की घोषणा की।

सरकार के दावे के मुताबिक, बिहार के कई ग्रामीण इलाकों में तो सोलर लाइट अपनी पहुंच पहले ही बना चुका हैं।

‘यह एक बड़ी परियोजना है जिससे स्वच्छ ऊर्जा को प्रदेश के हर भाग में ले जाने की योजना बनाई गई है। ग्रामीण इलाकों में ऐसे कुछ प्रयोग पहले भी किए जा चुके हैं। यह परियोजना एक ऑफ-ग्रिड परियोजना होगी जिससे सोलरस्ट्रीट लाइट ग्रिड से जोड़ा नहीं जाएगा बल्कि बैटरी से चलाया जाएगा। दिन में सौर ऊर्जा से बनी बिजली से बैटरी चार्ज की जाएगी जिससे रात में ये स्ट्रीट लाइट जलेंगी,’ नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर परियोजना से जुड़ी एक सौर ऊर्जा की कंपनी के प्रतिनिधि ने मोंगाबे-हिन्दी को यह जानकारी दी।

इसके अलावा ब्रेड़ा पानी पर तैरते सौर पैनल लगाने में भी जुड़ा है ताकि ज़मीन की कमी और ऐसी असुविधा से निपटा जा सके।  राज्य सरकार ने ऐसी दो तैरने वाले सोलर पैनल परियोजना पर काम शुरू भी कर दिया हैं। इसमें से एक 1.6 मेगावॉट की परियोजना दरभंगा जिले के एक तालाब में लगाया जा रहा है।  525 किलोवॉट की ऐसी ही एक और परियोजना सुपौल ज़िले में प्रस्तावित है। ब्रेड़ा इस परियोजना से तालाब में काम कर रहे लोगो के साथ मत्स्य पालन को भी बढ़ावा देगा। इन दोनों परियोजनों से सरकार पानी पर तैरते सौर परियोजनाओं से पानी के जीव-जन्तुओ पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करेगी।

इसके अलावा राज्य सरकार ज़मीन पर सौर ऊर्जा के बड़े प्लांट लगाने पर भी ध्यान दे रही है। सरकार ने हाल ही में दो कंपनियों- सतलुज जल विद्युत निगम को 250 मेगावॉट एवं अवादा एनर्जी को 50 मेगावॉट का टेंडर, सौर ऊर्जा परियोजनाओं को विकसित करने के लिए आवंटित किए है।

हालांकि, बिहार सरकार ने अब तक कोई बड़े सोलर पार्क या परियोजना की शुरुआत नहीं की है। अब तक का सबसे बड़ा जमीन पर लगा सौर ऊर्जा का प्लांट गया ज़िले में है, जहां से 40 मेगावॉट की बिजली बनाई जाती है। अगर निवेश की बात करे तो नवीकरणीय योजना में अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में कोई बड़ा निवेश अब तक नहीं हुआ है।

इन सब के अलावा इस राज्य में सोलर रूफ़टॉप की योजना भी अभी अपने दूसरे चरण में चल रही है। इस परियोजना में केंद्र सरकार 40 प्रतिशत सब्सिडी और राज्य सरकार 25 प्रतिशत की सब्सिडी देती है। हालांकि कई और प्रदेशों की तरह यहां भी केंद्र से सब्सिडी मिलने में भारी देरी देखने को मिला है। कुछ ऐसे मामले भी है जहां सब्सिडी तीन साल बाद मिली।

कुछ महीने पहले भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय  ने लोक सभा में दिए एक जवाब में सदन को बताया था कि बिहार में तीन शहर-राजगीर, वैशाली और बोध गया को सोलरसिटी के तौर पर विकसित किया जाएगा। इस परियोजना के तहत इन शहरों को उत्सर्जनमुक्त बनाया जाएगा एवं यहां की बिजली की जरूरतों को सौर ऊर्जा से पूरा किया जाएगा। हालांकि इस परियोजना में अब तक कोई काम शुरू नहीं हुआ है।

क्या है विकास की राह में चुनौतियां

केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (सीईए) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक बिहार अपने पड़ोसी कई राज्यों जैसे ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश की अपेक्षा नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता में पीछे चल रहा है। जहां पश्चिम बंगाल में 583 मेगावॉट की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता है, वहीं ओडिशा में 590 मेगावॉट स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता है। बिहार में अब तक महज 386 मेगावॉट की ही क्षमता विकसित की जा सकी है।

जब ब्रेड़ा से पिछड़े रिकॉर्ड की बात पूछी गई तो एक अधिकारी ने नाम न लिखने की शर्त पर मोंगाबे-हिन्दी तो बताया, “दूसरे राज्यों की अपेक्षा बिहार में ज़मीन की कीमत आधिक है। साथ ही, प्रदेश में घनी आबादी भी है। ऐसी स्थिती में ज़मीन पर बड़े अक्षय ऊर्जा के प्लांट लगाना एक चुनौती भरा काम है। ज़मीन पर बड़ी परियोजना लगाना उन राज्यों में संभव है जहां खाली जमीन आसानी से मिल जाए जैसे राजस्थान और गुजरात। वरना सोलर प्लांट लगाने वाले कंपनियो को एवं सरकार को भी ज्यादा ज़मीन अधिग्रहण में आने वाले आधिक खर्च की वजह से परियोजना महंगी हो जाएगी,” उन्होंने कहा।

पटना स्टेशन के पास व्यस्त सड़क। तस्वीर-मनीष कुमार

“जब यह क्षेत्र स्टांप ड्यूटी और सर्कल चार्ज से वंचित होता है, राज्य के राजस्व पर इसका भारी खर्च आता है। अगर रूफ़टॉप सोलर की ही बात करें तो वह भी शहर के सारे भवनो पर नहीं हो सकता। वजह आग लगने या ऐसी किसी दुर्घटना की स्थिति में छत पर खाली जगह जरूरी होता है। ऐसा करने से बिल्डिंग कोड का भी उलंघन होगा,” ब्रेड़ा के अधिकारी ने बताया।

2012 में पर्यावरण एवं ऊर्जा विकास केंद्र (सीईईडी) ने राज्य की राजधानी पटना में सर्वे कर सरकार को बताया था कि केवल पटना शहर में अगर 10-12 प्रतिशत भवनो में सौर ऊर्जा के पैनल लगाए जाए तो 700 मेगावॉट तक की बिजली पैदा की जा सकती है। इससे शहर की आधी बिजली जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। हालांकि रूफ़टॉप सोलर में भी बिहार का प्रदर्शन बहुत खास नहीं रहा है।

रमापति कुमार, सीईईडी के सीईओ ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में बताया कि बिहार में वर्ष के अधिकांश दिन सूरज चमकता है। इसका इस्तेमाल नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है।

जब उनसे पूछा गया की स्वच्छ ऊर्जा की रफ्तार  में बिहार में कैसे तेजी लाई जा सकती है, तो कुमार कहते है, “हमें लोगों को इस पूरे परियोजना में साथ में लेकर चलना पड़ेगा। उदाहरण के तौर पर ग्रिड से जुड़े सोलर रूफ़टॉप के नेट मीटरिंग की योजना को ही देखिये। यहां सौर ऊर्जा के ग्राहक के मीटर के बिल में एडजस्टमेंट किया जाता है जबकि यदि बिजली डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियां एडजस्ट करने की जगह सौर ऊर्जा बनाने वाले लोगो को वही पैसे के रूप में दे तो शायद आम आदमी को इसकी उपयोगिता बेहतर समझ आएगी,” कुमार ने मोंगबे-हिन्दी को बताया।

कुमार ने दक्षिण भारत के बेंगलुरु शहर का भी ज़िक्र किया जहां सभी नए भवनों के निर्माण में कर्नाटक सरकार ने पानी गर्म करने की लिए सोलर हीटर लगाना अनिवार्य कर दिया है। इससे प्रतिदिन यह शहर लगभग1800 मेगावॉट की बिजली बचा पा रहा है।

विशेषज्ञों का भी कहना है कि जागरूकता के अभाव में कई नवीकरणीय ऊर्जा की योजनाएं ज़मीन पर सफल नहीं हो पाती। वैशाली शहर पर किए एक शोध के अनुसार जागरूकता की कमी ऐसी कई परियोजनाओ को विफल कर देती है। इस शोध ने स्कूल के पाठ्यक्रम में नवीकरणीय योजना के बारे में बताने की सिफारिश की है।

बिहार का स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में धीमा रिकॉर्ड तब है जब यहां प्रति व्यक्ति बिजली ऊर्जा खपत पिछले सात सालों में 129 प्रतिशत बढ़ी है। बिहार के पिछले आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में 1.59 करोड़ ऊर्जा के उपभोक्ता हैं।

बैनर तस्वीर: गहलौर में स्थित दशरथ मांझी स्मृति पार्क से सटे लगभग 10 सौर स्ट्रीट लाइट हैं जिनमें से आधे काम नहीं करते। तस्वीर-मनीष कुमार

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