- बिहार के किसानों को फिलहाल सोलर पंप पर सब्सिडी नहीं मिल रही है। राज्य में कुछ वर्ष पहले मुख्यमंत्री सौर पम्प योजना चली थी, जिसमें किसानों को 75 प्रतिशत सब्सिडी देने का प्रावधान था। दो वर्ष में ही इस योजना ने दम तोड़ दिया।
- योजना के तहत किसानों को बाजार से सोलर पंप खरीदना पड़ता था। छोटे किसान बिना सब्सिडी वाले महंगे सोलर पंप नहीं खरीद पाते थे, जिससे बिहार में सौर ऊर्जा से सिंचाई वाली योजना का प्रसार बहुत कम हुआ।
- केंद्र सरकार कीपीएम-कुसुम योजना में किसानों को सौर पम्प लगाने में सब्सिडी दी जाती है, लेकिन यह योजना आज तक बिहार में शुरू नहीं हो पाई है।
बिहार के गया जिले के बाघर गांव में रहने वाले जगदेव प्रसाद के पास कुल 3.5 एकड़ खेती की जमीन है जिसमें खेती कर वे अपने और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। इस खेत में प्रसाद, गेंहू के साथ-साथ कई सब्जियां उगाते हैं। खास बात यह है कि इन फसलों की सिंचाई सौर उर्जा से चलने वाले पंप से होती है। पर चार-पांच साल पहले तक यह स्थिति नहीं थी।
2018 से पहले प्रसाद भी खेतों की सिंचाई के लिए बिजली और डीजल से चलने वाले पंप पर निर्भर थे। इसके लिए पैसा और डीजल इत्यादि के बंदोबस्त की जद्दोजहद चलती रहती थी। एक दिन अखबार में उन्होंने मुख्यमंत्री नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा सौर पम्प योजना का विज्ञापन देखा जिसमें सौर पम्प लगाने के लिए बिहार सरकार से 75 प्रतिशत सब्सिडी मिलने का जिक्र था।
“लगभग दो साल पहले मैंने इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन दिया। सोलर पम्प की पूरी कीमत लगभग 2.6 लाख रुपये थी। पर मुझे इस योजना के तहत केवल 67,000 रुपये ही देने पड़े। फिर सिंचाई को लेकर संघर्ष कुछ कम हुआ। हमारे गांव में पहले बिजली की समस्या बनी रहती थी जिससे किसानों को सिंचाई में असुविधा होती थी। बिजली न होने की स्थिति में कई बार किसान पम्प चलाने के लिए डीजल का प्रयोग करते थे। इसमें डीजल वगैरह का बंदोबस्त करना एक और मुश्किल भरा काम होता था। इससे प्रदूषण होता था, सो अलग। सौर पम्प ने ऐसी सारी समस्याओं से हम किसानों को निजात दिलाई है,” प्रसाद ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
प्रसाद का मानना है कि उनके यहां लगे तीन किलोवॉट के सौर पम्प से कुछ वर्षों में उनके 67,000 रुपये के निवेश की वसूली हो जाएगी। “मैंने इस योजना के तहत ऑनलाइन आवेदन किया था जहां मुझे पूरी लागत का केवल 25 प्रतिशत राशि का ही भुगतान करना पड़ा। जल्द ही सौर पम्प के मोटर, सौर पैनल एवं दूसरे पुर्जे मेरे खेत में लग गए,” प्रसाद ने बताया।
ज़िले के बाराचट्टी ब्लॉक के एक अन्य किसान अजय प्रसाद ने भी इस योजना का लाभ उठाया था। सौर ऊर्जा चलित पंप लगने के बाद उनके लिए खेतों में सिंचाई करना आसान हो गया। “सौर ऊर्जा पंप से खेती में मुझे बड़ी मदद हुई है। अब मैं साल भर सिंचाई की चिंता किए बिना तरह-तरह की फसल उगा सकता हूं। सौर ऊर्जा से सिंचाई साल-भर की जा सकती है और डीजल खरीदने का झंझट भी नहीं रहता। इसके लिए बिजली का इंतजार भी नहीं करना पड़ता,” प्रसाद ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
इन किसानों के पास जो सोलर पंप लगे हैं वे ऑफ-ग्रिड हैं, यानी बिजली के ग्रिड से उनका कोई संपर्क नहीं है। ऐसे में सूरज ढलने के बाद सिंचाई का काम संभव नहीं हो पाता। सौर चलित पंप में बैटरी बैकअप की व्यवस्था नहीं है।
इस परियोजना के तहत बिहार सरकार ने दो या तीन हॉर्स पावर (एचपी) सौर पम्प देने का प्रावधान रखा था। दो एचपी वाले पंप पर 2,05,800 रुपये और तीन एचपी वाले पंप पर 2,69850 रुपये की लागत आनी थी। इसमें किसानों को दो एचपी के लिए 51,450 रुपये एवं तीन एचपी के लिए 67,463 रुपये का भुगतान करना पड़ता था। यह परियोजना उन किसानों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी जिनके पास एक से पांच एकड़ तक की खेतिहर ज़मीन थी। इस योजना के तहत बिहार सरकार ने 3,300 सौर पम्प अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए आरक्षित रखा था।
गया के ज़िला ग्रामीण विकास एजेंसी (डीआरडीए) के एक अधिकारी ने बताया कि गया जिले में ही इस योजना के अंतर्गत केवल दो वर्षों में ही 102 सौर पम्प लगाए गए। लेकिन साल 2019 में यह योजना बंद हो गई।
इस परियोजना में कई सौर ऊर्जा एजेंसियों को शामिल किया गया था। इनका कहना है कि इस इससे काफी किसानों को फायदा हुआ। “यह एक बेहतरीन योजना थी जिसने कई किसानों के सिंचाई से जुड़े ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया। उन्हें आत्मनिर्भर होने में मदद की। इस योजना में किसानों को सौर पैनल, एक कंट्रोलर, एक डीसी मोटर दिया जाता था। किसान इसे दिन के किसे भी समय, सिंचाई के लिए प्रयोग कर सकते थे। इस योजना से बहुत से किसानों को प्रदूषण करने वाले डीजल पम्प से छुटकारा मिला”, अमरनाथ गुप्ता ने बताया जो माइ सोलर के प्रोजेक्ट निदेशक हैं। माइ सोलर एक सौर विकास एजेंसी है।
योजना से जुड़ी चुनौतियां
बिहार सरकार ने 2012 में इसी तरह की एक योजना शुरू की थी। इसे बिहार सौर क्रांति सिंचाई योजना के नाम से जाना जाता था। योजना के तहत दो किलोवॉट के सौर पम्प लगाए जाने की व्यवस्था थी। इस योजना में 90 प्रतिशत तक सब्सिडी देने का प्रावधान था। इस योजना से भी बहुत से किसानों को डीजल पम्प छोड़ने में मदद मिली। बिहार नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (ब्रेड़ा) ने 2017 के अपने नवीकरणीय ऊर्जा नीति में 2022 तक 10,000 सौर पम्प लगाने का लक्ष्य रखा जिसके अंतर्गत मुख्यमंत्री नई एवं नवीकरणीय ऊर्जा सौर पम्प योजना की शुरुआत की गई।
बहुत से किसान जिन्होंने दो एचपी या तीन एचपी के सौर पम्प, सरकार के किसी योजना की मदद से, लगवाए, वे इससे असन्तुष्ट दिखते हैं। उनका कहना है कि पंप के सीमित क्षमता के कारण सिंचाई का काम सीमित दायरे तक ही किया जा सकता है। सूरज ढलने के बाद की अनुपियोगिता भी इन सौर पम्प की एक कमी रही है। इस विषय में किए गए कुछ अध्ययनों का भी मानना है कि दो एचपी के सौर पम्प काफी सीमित क्षेत्र में ही सिंचाई ही कर पाते है। 2016 के एक अध्ययन में यह बात निकल कर आई कि दो एचपी के सौर पम्प को सभी लोग नहीं खरीद सकते थे। ऐसे में यह योजना गांवों के चुनिंदा अमीर वर्ग के लोगों तक ही सीमित होकर रह गई।
जगदेव प्रसाद जैसे कई लाभार्थियों ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि उनके आस-पास के गांव के किसान भी अपने यहां सौर पम्प लगवाना चाहते हैं और ऐसे ही किसी सब्सिडी योजना का इंतजार कर रहे हैं।
पीएम-कुसुम का इंतज़ार
अब जबकि मुख्यमंत्री नई एवं नवीकरणीय ऊर्जा सौर पम्प योजना बिहार में बंद हो चुकी है, बिहार के किसान केंद्र कि प्रधान-मंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) का इंतज़ार कर रहे हैं, जो अब तक इस राज्य में शुरू नहीं हो पायी हैं। मार्च 2019 में भारत सरकार ने पीएम-कुसुम नाम की की इस महत्वाकांक्षी योजना की शुरूआत की जिसका उद्देश्य किसानों को सब्सिडी की मदद से सौर पंप उपलब्ध कराने के साथ-साथ, 2022 तक देश में 30.8 गीगावाट के अतिरिक्त सौर ऊर्जा क्षमता विकसित करना था। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों की भागीदारी से सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना था।
इस योजना के तहत किसान 7.5 एचपी की क्षमता के सौर पम्प अपने खेतों में लगवा सकते हैं। इस योजना में किसानों को केवल सौर पम्प पर लगने वाले खर्च का सिर्फ 10 प्रतिशत ही व्यय करना पड़ता है।
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2019 में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट एवं अन्य संस्थानों ने बिहार एवं राजस्थान में सिंचाई क्षमता पर एक अध्ययन किया। इस अध्ययन में इन दोनों राज्यों में पीएम-कुसुम योजना को शुरू करने की वकालत की गयी। अध्ययन में कहा गया कि केंद्र और राज्य का संगठित प्रयास प्रदेश में सिंचाई के साधनों को बढ़ाने में योगदान दे सकता है।
बावजूद इसके सिंचाई को लेकर इस देशव्यापी योजना को बिहार में अब तक शुरू नहीं किया गया। ऐसे क्या कारण रहे कि बिहार में यह योजना जमीन पर नहीं उतर पाई?
इस सवाल के जवाब में बिहार के ऊर्जा विभाग के एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा,“पीएम-कुसुम को बिहार में शुरू करने के लिए अब तक कोई ठोस काम नहीं उठाए गए हैं। बिहार में इस योजना को लागू करने के लिए राज्य सरकार को अपनी स्वीकृति देनी है। इस स्वीकृति के बिना, राज्य में इसकी शुरुआत नहीं हो सकती। कुछ तकनीकी और व्यवहारिक विषयों के कारण योजना अब तक बिहार में अटकी पड़ी है। बिहार सरकार इस विषय पर इस परियोजना से जुड़े विभागों के संपर्क में है और इस विषय में विचार विमर्श चल रहा है।”
“पीएम-कुसुम और राज्य सरकार के सौर योजनाएं अलग तरह से काम करती हैं। राज्य कि योजनाओं में ब्रेड़ा नोडल एजेंसी रहती है जिसके पास परियोजना के विकास के लिए कंपनी का चयन का अधिकार रहता है। वहीं पीएम-कुसुम जैसी योजना में सौर ऊर्जा के लिए प्राइवेट एजेंसी का चयन केंद्र सरकार खुद करती है,” एक अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
बिहार में सिंचाई की बदहाल स्थिति जगजाहिर हैं, बावजूद इसके सिंचाई से जुड़ी सौर योजनाओं में देरी हो रही है। बिहार की हालिया आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में भी इस जरूरत की ओर इशारा किया गया है।
बैनर तस्वीरः बिहार के गया जिले में मुख्यमंत्री सौर पंप योजना के तहत लगा सोलर पंप। तस्वीर- मनीष कुमार