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अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में छोटे-छोटे कदम से सुनिश्चित हो रही महिलाओं की भागीदारी

सोलर पंप के साथ समूह की महिलाएं। भूजल संरक्षण के लिए इन सोलर पंप का इस्तेमाल सिर्फ सतही पानी को पंप करने में किया जा सकता है। तस्वीर- श्रीकांत चौधरी

सोलर पंप के साथ समूह की महिलाएं। भूजल संरक्षण के लिए इन सोलर पंप का इस्तेमाल सिर्फ सतही पानी को पंप करने में किया जा सकता है। तस्वीर- श्रीकांत चौधरी

  • तमाम अन्य क्षेत्र की भांति ऊर्जा क्षेत्र में भी महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। वर्तमान में सभी का जोर अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के विकास पर है। अगर शुरू से ही इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाए तो इससे एक साथ दो लक्ष्य- अक्षय उर्जा और महिला सशक्तिकरण- हासिल किया जा सकता है।
  • अगर नीति-निर्माता इस लक्ष्य को लेकर गंभीर हैं तो सबसे जरूरी है आंकड़ों के मध्यम से वर्तमान स्थिति को समझना और आगे के लिए रोडमैप बनाना ताकि ऑडिट इत्यादि के माध्यम से पता चलता रहे कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है या नहीं।
  • अगर विद्यार्थी जीवन से ही लड़कियों को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित जैसे विषयों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तो इससे उर्जा क्षेत्र में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना आसान हो जाएगा।

कर्नाटक के बिंदूर स्थित एक डेयरी में इकतीस वर्ष की नागरत्ना मवेशियों के बीच काम में लगी हैं। वह एक जुगाड़ से बनी मशीन  खींच रही हैं। यह मशीन एक ट्रॉली पर लगी है जिसमें लगे सोलर पैनल धूप में चममचा रहे हैं। गौर से देखने पर पता चलता है कि इस मशीन का इस्तेमाल मवेशियों से दूध निकालने के लिए किया जाता है। सौर ऊर्जा से चलने चलने वाली इस मशीन से नागरत्ना का पूरा एक घंटा बच जाता है। 

यह पूछे जाने पर कि इस बचे हुए समय में वह क्या करती हैं, नागरत्ना, बच्चों की तरह खिलखिला देती हैं।  कहती हैं, “सुबह थोड़ी देर और सो लेती हूं।” जब यह मशीन नहीं थी तो उन्हें दूध निकालने में काफी वक्त लगता था और इसके लिए उन्हें जल्दी जागना होता था। 

“मशीन की मदद से दूध जल्दी और आसानी से निकल जाता है। अब मैं कुछ और गाय खरीदकर  अपनी गौशाला को  विस्तार देने का सोच सकती हूं,” नागरत्ना ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। 

नागरत्ना उन 50,000 उद्यमियों में शामिल  हैं जिन्हें भारतीय विकास ट्रस्ट (बीवीटी) नामक एक गैर लाभकारी संस्था ने ट्रैनिंग दी है तथा नई मशीनों को उपलब्ध कराने में मदद की है। 

मणिपाल स्थित इस संस्था को बीते वर्ष ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में आयोजित एक आधिकारिक समारोह में ‘एनर्जी एक्सेस स्किल्स’ श्रेणी में एशडेन अवार्ड 2021 भी दिया गया। यह संस्था मूल रूप में कर्नाटक में सक्रिय है और विशेष रूप से महिलाओं, युवाओं और दिव्यांग सहित हाशिए पर खड़े लोगों की मदद  करती है। 

नागरत्ना दूध निकालने के लिए सोलर चलित मशीन का इस्तेमाल करती हैं। इससे रोजाना एक घंटे का समय बचता है। तस्वीर- भारतीय विकास ट्रस्ट
नागरत्ना दूध निकालने के लिए सोलर चलित मशीन का इस्तेमाल करती हैं। इससे रोजाना एक घंटे का समय बचता है। तस्वीर- भारतीय विकास ट्रस्ट

नागरत्ना को साल 2021 की शुरुआत में सहयोग के तौर पर 50,000 रुपये का ऋण मिला। इन पैसों से उन्होंने दूध निकालने वाली मशीन खरीदी। यह मशीन सौर ऊर्जा से चलती है। 

“हमारे पास गांव में बिजली के आने-जाने का कोई नियम नहीं है, इसलिए मैं दूध निकालने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण पर निर्भर हूं,” उन्होंने कहा। 

 नागरत्ना जैसे जमीनी स्तर के उद्यमियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ, बीवीटी बैंक कर्मचारियों और प्रबंधकों के साथ भी काम करता है ताकि ये बैंक अक्षय ऊर्जा उद्यमों पर भरोसा करें और उन्हें आसानी से कर्ज उपलब्ध करवाएं। संस्था ने अब तक 15,000 बैंककर्मियों के साथ काम किया है। 

बीवीटी के मास्टर ट्रेनर सुधीर कुलकर्णी कहते हैं कि आने वाले 50 साल में बहुत कुछ अक्षय ऊर्जा पर आधारित होगा। लेकिन इस बदलाव के लिए सबसे जरूरी है कि लोग खुद को इसके लिए तैयार करें। इसके लिए मानव संसाधन का विकास करना होगा और उस स्तर का कौशल विकसित करना होगा।

बिजली ग्रिड से 96.7 प्रतिशत परिवार जुड़े हुए हैं लेकिन अनियमित आपूर्ति की वजह से लोगों को काफी नुकसान होता है। काम के समय या कहें जब जरूरत होती है तो बिजली नहीं रहती। 

“ऑफ-ग्रिड घरेलू सौर ऊर्जा से  बिजली की अनियमित आपूर्ति के बावजूद महिलाओं को बहुत मदद हुई है। इन महिलाओं के लिए अब अपना काम जल्दी खत्म कर दूसरे काम के लिए समय निकालना आसान हो गया है। जब हम नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा को सुलभ बनाने की बात करते हैं, तो हमें समाज के कमजोर पक्ष का भी ध्यान रखना होगा। अब तक सिर्फ ऊर्जा के एक स्रोत को दूसरे स्रोत से बदलने बातें होती रही हैं,” बीवीटी के सुदीप्त घोष ने मोंगाबे-हिन्दी से कहा।

सोलर पंप के रखरखाव की जिम्मेदारी महिला समूह पर है। समूह में 51 महिलाएं हैं जिनमें से 35 खेती करती हैं। तस्वीर- श्रीकांत चौधरी
सोलर पंप के रखरखाव की जिम्मेदारी महिला समूह पर है। समूह में 51 महिलाएं हैं जिनमें से 35 खेती करती हैं। तस्वीर- श्रीकांत चौधरी

“हम जानते हैं कि ऊर्जा क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। समाज के इस हिस्से की भागीदारी बढ़ाने के लिए अव्वल तो मौजूदा असमानता को समझने की जरूरत है। इसे समझने के लिए अभी भी काफी आंकड़े और साहित्य उपलब्ध है,” ऑस्ट्रिया के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस से जुड़ीं शोनाली पचौरी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

बड़ी परियोजनाओं में महिलाओं की भागीदारी जरूरी 

विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा जैसे ऑफ-ग्रिड और घर-आधारित ऊर्जा उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में महत्वपूर्ण है, मंजुश्री बैनर्जी कहती हैं। इन्होंने ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के लिए भारत- अफ्रीकी साझेदारी में महिलाओं की भागीदारी पर एक शोध किया है। वह कहती हैं कि भारत में ग्रिड से जुड़ी बड़ी परियोजनाओं में महिलाओं की भागीदारी नगण्य है। अगर ऐसा रहा तो संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य सात को हासिल करना मुश्किल होगा। इस लक्ष्य सात में सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा का लक्ष्य रखा गया है। “किसी भी अन्य उद्योग की तरह, बड़ी अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में महिलाओं की भागीदारी कम है। खासकर निर्णय लेने वाली या नेतृत्व देने वाली भूमिका में तो लगभग नहीं ही हैं। अगर हम चाहते हैं कि ग्रिड विद्युतीकरण और सौर ऊर्जा बिजली  क्षेत्र  से अधिक से अधिक महिलाएं जुड़ें तो हमें शुरुआत से ही विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित जैसे शिक्षा को अपनाने के लिए महिलाओं को उन्मुख करना होगा,” बैनर्जी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।


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वैश्विक स्तर पर, अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में सभी पूर्णकालिक नौकरियों में महिलाओं की हिस्सेदारी 32% है और तेल और गैस क्षेत्र में केवल 22% है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कुछ देशों में सामाजिक परिस्थितियों की वजह से यह संख्या और कम हो जाती है। बैनर्जी ने आगे कहा कि महिलाओं को मुख्यधारा  के सभी स्तरों पर शामिल किया जाना चाहिए। अर्थात नीति, योजना, कार्यान्वयन और रखरखाव- सभी क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील देश भी है। भारत ने ग्लासगो में जलवायु सम्मेलन में घोषणा की कि यह 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य प्राप्त हासिल कर लेगा। 

एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जेंडर क्लाइमेट ट्रैकर के अनुसार, भारत ने भी अन्य देशों की तरह क्लाइमेट चेंज से निपटने में अपना योगदान निर्धारित किया है। इस लक्ष्य में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के साथ-साथ लैंगिक समानता का खयाल भी रखा गया है।

हालांकि जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है उसको हासिल करने का कोई रोडमैप नहीं दिखता। यानी उन लक्ष्यों को कैसे पाया जाएगा उसका रास्ता स्पष्ट नहीं है। पचौरी ने कहा कि बताए गए लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जिन बदलावों की आवश्यकता होगी, उसी बदलाव की प्रक्रिया में सामाजिक न्याय और लैंगिक समानता को भी हासिल किया जा सकता है। 

“कथित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए रोडमैप और योजनाओं में एक लैंगिक परिप्रेक्ष्य को शामिल करने की आवश्यकता होगी। ताकि ऑडिट वगैरह के माध्यम से इस बात का मूल्यांकन किया जा सके कि लैंगिक समानता आई या नहीं,” पचौरी कहती हैं।

 

बैनर तस्वीरः झारखंड में सौर पैनलों के सामने एक महिला। यहां महिला स्वयं सहायता समूहों को सौर पैनल प्रबंधन का काम दिया गया है। तस्वीर- श्रीकांत चौधरी/मोंगाबे 

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