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[वीडियो] क्या सांप और इंसान बैंगलुरु जैसे शहर में साथ रह सकते हैं?

घर के भीतर नागराज। तस्वीर- अल्मास मसूद/मोंगाबे द्वारा फोटो।

घर के भीतर नागराज। तस्वीर- अल्मास मसूद/मोंगाबे द्वारा फोटो।

  • हाल में आए एक सर्वे में सामने आया है कि बैंगलुरु शहर में 33 प्रजाति के सांप पाए जाते हैं। अब यहां रसेल वाइपर जैसी प्रजातियां आम हो गई हैं, वहीं पहले दिखने वाली प्रजातियां गायब होती जा रहीं हैं। इंडियन वुल्फ स्नेक इसका एक उदाहरण है।
  • शहर के बढ़ने की वजह से सांपों के प्राकृतिक आवास सिकुड़ते गए। इससे सांपों और अन्य शहरी वन्यजीवों की आवाजाही प्रभावित हुई।
  • अब शहर में सांपों को बचाने के लिए रेस्क्यू टीम और नगर निगम के अधिकारियों के पास रोजाना कई फोन कॉल आने लगे हैं। शहर में सांप दिखना आम होता जा रहा है।
  • शहरी वन्यजीवों की आवाजाही के लिए वन्यजीव बफर, बेहतर कचरा निपटान, और वर्षा जल निकासी जैसे कुछ उपाय किये जाएं तो मानव आबादी वाले इलाकों में सांप भी बिना नुकसान पहुंचाए रह सकता है।

सूरज निकलते ही सांप भी निकल आता है। यह कहना है शौयब अहमद और यतीन कल्की का। दोनों अपने काम पर निकल रहे हैं। इनका काम है बैंगलुरु शहर में सांपों को बचाना। अभी-अभी एक महिला ने फोन कर उन्हें बताया है कि एक नागराज (जुवेनाइल स्पेक्टेकल कोबरा) सांप उनके घर में छिपा है। 

फोन कटा और टीम फटाफट तैयार होने लगी। सांप बचाने के इस काम में एक तकिया का खोल, सांप को पकड़ने वाला हुक, एक पाइप और टॉर्च की जरूरत पड़ने वाली है। अहमद हड़बड़ी में दिखे। गाड़ी की तरफ तेजी से भागते हुए उन्होंने कहा, ‘इस काम में समय का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है।’ 

कुछ ही मिनटों में पूरी टीम वहां पहुंच गई जहां सांप देखा गया था। कल्की ने सांप की खोज शुरू की और अहमद उन स्थानों की पड़ताल करने लगे जहां से सांप घर के भीतर आया होगा। उन्होंने पाया कि घर के सामने एक खुला मैदान है जहां कचरे का अंबार लगा हुआ है। यहां ढेर सारे मेढक मौजूद थे जिसकी तलाश में सांप इस तरफ आया होगा। 

अहमद ने वहां मौजूद लोगों को सलाह दी कि आसपास सफाई बेहद जरूरी है। इससे सांप को दूर रखा जा सकता है। 

अभी अहमद लोगों को सांप के बारे में समझा ही रहे थे कि कल्की ने सांप को खोज निकाला। सांप को बचाने से पहले उन्होंने कुछ जरूरी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कीं और फिर सांप को बचाया गया। इस काम में तकरीबन 20 मिनट लगे। 

आमतौर पर अहमद के पास रोजाना 10 फोन आते हैं। अहमद बैंगलुरु नगर निगम क्षेत्र में एक स्वतंत्र रेस्क्यूअर हैं जिन्होंने इस काम की ट्रेनिंग ली हुई है। 

दक्षिण भारतीय राज्यों में हर साल औसतन 2400 इंसानों की जान सांप काटने से हो जाती है। 

बैंगलुरु शहर में घूमता एक रेट स्नेक। तस्वीर- जॉइनटूमनीष/विकिमीडिया कॉमन्स
बैंगलुरु शहर में घूमता एक रेट स्नेक। तस्वीर– जॉइनटूमनीष/विकिमीडिया कॉमन्स

बैंगलुरु शहर के विकास के साथ शहर में सांपों की संख्या में भी अंतर आया है, हालांकि, इस विषय पर अधिक शोध नहीं हो पाया है। बैंगलुरु शहर के सांपों को लेकर जो आधिकारिक जानकारी उपलब्ध है वह तकरीबन 100 साल पुरानी होगी। 

एडवर्ड निकोलसन ने वर्ष 1874 में एक चेकलिस्ट बनाई थीं। इस सूची में जहरीले और गैर विषैले सांपों सहित कुल 18 प्रजातियां थीं। तब से, शहरी विकास की वजह से सांपों की आबादी में काफी उतार-चढ़ाव हुआ है। लेकिन इस क्षेत्र में सांपों की संख्या स्पष्ट नहीं है।

एक ताजा अध्ययन के मुताबिक बैंगलुरु जिले में साल 2020 में सांपों की 33 प्रजातियों को देखा गया था। इन प्रजातियों में चार प्रमुख प्रजाति हैं- रसेल वाइपर, सॉ स्केल्ड वाइपर, इंडियन कोबरा और कॉमन करैत। 

इस अध्ययन को स्नेक रेस्क्यू के आंकड़ों और आमतौर पर दिखने वाले सांपों के माध्यम से तैयार किया गया है। अध्ययन में पाया गया कि 100 साल पहले जो सांप देखे गए थे उनमें से कई सांप अब नहीं दिख रहे। जबकि नई सूची में सांपों की कई नई प्रजातियां शामिल हो गई हैं।  

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कल्की इस अध्ययन की प्रमुख अध्ययनकर्ताओं में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि 100 साल पहले बनी सूची में शामिल कई सांप काफी कम संख्या में देखे जा रहे हैं। साथ ही, पहले सामान्य माने जाने वाली सांपों की प्रजाति की संख्या भी घटी है। अब नागराज और रसेल वाइपर काफी संख्या में देखे जा रहे हैं। इंसानों की मृत्यु के पीछे भी इन्हीं दोनों प्रजाति के सांप का काटना अधिक जिम्मेदार है। पहले सामान्य सांप माने जाने वाले कैट स्नेक, बंडेड रेसर, इंडियन वुल्फ स्नेक और बफ स्ट्रिपेड कीलबेक आदि अब कम ही दिखते हैं। 

“इस अध्ययन से यह परिणाम नहीं निकलता कि शहर में नई प्रजाति के सांप आ गए हैं। इसका मतलब है कि अध्ययन के लिए अधिक पुख्ता सर्वे किया गया है,” कल्की ने कहा। 

वह कहते हैं कि हमें बैंगलुरु शहर को विकसित शहर के तौर पर देखना होगा। तेजी से शहर बसने की वजह से कई स्थानों पर भूमि का उपयोग बदला गया है। खेती या जंगल की जमीन पर इमारतें बना दी गईं हैं। पिछले 150 वर्षों में शहर का दायरा भी बढ़ा है। इन सब वजहों से कुछ सांपों की प्रजाति फली-फूली जबकि कुछ की संख्या में कमी आई। 

कैसा बीतता है सांप बचाने वालों का दिन

मोंगाबे-हिन्दी ने दो दिनों तक शौयब और कल्की के दैनिक गतिविधियों को करीब से देखा। उन्हें इन दो दिनों में बैंगलुरु के अलग-अलग इलाके से सात फोन आए। इन सात में से चार नागराज और तीन रेट स्नेक था। दोनों का दिन बेहद व्यस्त रहता है, सुबह जल्दी काम शुरू होता है और देर रात तक सांप देखने वाले लोगों के फोन आते रहते हैं। 

इस दौरान वे न सिर्फ सांपों को घरों से निकालते हैं बल्कि आम लोगों को सांपों के बारे में जागरूक भी करते हैं। जैसे घर के आसपास सफाई रखकर कैसे सांपों को दूर रखा जा सकता है।

वाइल्डलाइफ बायोलॉजिस्ट यतीन कल्की सांप पकड़ने और उसे बचाने का काम (स्नेक रेस्क्यू) करते हैं। तस्वीर- अल्मास मसूद/मोंगाबे
वाइल्डलाइफ बायोलॉजिस्ट यतीन कल्की सांप पकड़ने और उसे बचाने का काम (स्नेक रेस्क्यू) करते हैं। तस्वीर- अल्मास मसूद/मोंगाबे

इनके जीवन में एक और चुनौती है, हर रेस्क्यू एक समान नहीं होता। किसी काम में चार घंटे  भी लग जाते हैं। जैसे कभी भारी-भरकम सामानों को हटाकर अंधेरे वाले कोनो में फंसे हुए सांप की खोज करनी होती है। उन्हें काफी सावधानी से काम करना होता है, क्योंकि वे पहले से ही डरे और गुस्साए सांप को और नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते। साथ ही, खुद की जान भी बचानी होती है। 

एक रेस्क्यू के दौरान कल्की का सामना नशे की हालत में एक आदमी से हुआ जो बार-बार उनके काम में बाधा बन रहा था। जब भी वह सांप पकड़ने की कोशिश करते, वह आदमी उनका हाथ खींच देता। व्यस्त इलाकों में सांप को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है जिन्हें संभालना कई बार मुश्किल होता है। अक्सर, सांप को बचाने से भी अधिक मुश्किल लोगों को संभालना हो जाता है।

तेजी से बढ़ता शहरीकरण

पिछले 147 वर्षों में एक गार्डेन सिटी से बैंगलुरू ने एशिया के सिलिकॉन वैली का तमगा हासिल करने तक का सफर तय किया है। 

इस शहर का शानदार इतिहास रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां रोजगार की तलाश में आए लोगों की भीड़ उमड़ गई। और नए लोगों के लिए विकास की बड़ी परियोजनाएं तेजी से चलीं।

1950 के दशक तक, केम्पेगौड़ा के इस गार्डेन सिटी में करीब दस लाख लोग रहते थे, जो कृषि, खनन, व्यापार और निर्माण कार्य पर निर्भर थे। 1980 के दशक तक, अग्रणी अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं, शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ने बैंगलुरु शहर को बदलकर रख दिया। जनसंख्या की इस अचानक वृद्धि के लिए बुनियादी ढांचे को तैयार करने के लिए शहर की कई प्रसिद्ध झीलें गायब होने लगीं। 2000 के दशक तक शहर एक आईटी उद्योग का केंद्र बन गया और जनसंख्या बढ़कर पचास लाख से अधिक हो गई। केवल दो दशकों में, 2020 तक, लगभग एक करोड़ 20 लाख लोग शहर में रहने लगे। 1991 और 2001 के बीच जनसंख्या में 38% की वृद्धि के साथ, नए लोगों की आमद के परिणामस्वरूप बैंगलुरु में रीयल एस्टेट में काफी उछाल आया। विकास का ऐसा विस्फोट हुआ कि शहर के जल स्रोत खत्म होते गए। 

सस्टेनेबल डिजाइन में विशेषज्ञता रखने वाले आर्किटेक्ट सागर तुलशन कहते हैं, “शहर कई परतों वाला एक जटिल और जीवंत सिस्टम है, जहां खाली स्थान और निर्माण की वजह से भरे हुए स्थान के बीच संतुलन होना चाहिए। जब एक शहर विकसित किया जा रहा है, तो यह देखना होता है कि क्या उस स्थान में विकास और आजीविका को बनाए रखने के लिए पर्याप्त संसाधन और क्षमता है। यदि अच्छी तरह से योजना नहीं बनाई गई, तो यह स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करेगा।

पिछले कुछ दशक में बैंगलुरु जिले में कैसे फैला शहर

क्या सांप और इंसान बैंगलुरु जैसे शहर में साथ रह सकते हैं?

तुलशन कहते हैं, “नीति निर्माण आमतौर पर स्थिरता के बजाय व्यावसायिक उद्देश्य से संचालित होता है। हालांकि बैंगलुरु को दक्कन के पठार पर एक ऊंचे स्थान पर स्थापित किया गया था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में शहर में बाढ़ की घटनाएं दिखी हैं। यह आम तौर पर तब होता है जब शहर के भीतर बुनियादी ढांचे जैसे कि वर्षा जल निकासी प्रणाली, कचरा निपटान प्रणाली, आदि का रखरखाव सही न हो या अच्छी तरह से नियोजित नहीं किया गया हो। बाढ़ का एक अन्य कारण शहर से झीलों का तेजी से गायब होना है, जिनके किनारे ऊंचे-ऊंचे कंक्रीट के ढांचे का निर्माण किया गया है।

बैंगलुरू में मानव बस्तियों के इस अनियोजित विस्तार के कारण शहर के छोटे शहरी वन्यजीवों के पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ी शुरू हो गई। 

सीमेंट, टार, प्लिंथ से ढकी अधिकांश भूमि के साथ, हरियाली वाले इलाके सिकुड़ गए हैं। अब शहर में हरियाली छिटफुट इलाके में हैं। अक्सर, हरियाली वाले इलाके सड़कों, बुनियादी ढांचे, आवासीय क्षेत्रों की वजह से एक दूसरे से कट जाते हैं। इन्हीं हरियाली वाले इलाकों में सांप एक तरह से फंस गए हैं। इस प्रकार सांपों को भोजन या सहवास की तलाश में बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इससे शहर में इंसानों और सांपों का संपर्क बढ़ गया है।

कल्की कहते हैं, “संयोग  ही है कि कोबरा, रसेल वाइपर और रैट स्नेक के मुख्य आहार में कीड़े और मेढक होते हैं, जो इंसानी इलाकों के पास ही पाए जाते हैं शहर की नालियों में भोजन और सुरक्षित घर मिलने से ये तीन सांप यहां लोगों के घरों से सबसे ज्यादा देखे जा रहे हैं। 

अहमद कहते हैं, “हम आमतौर पर मानसून में लोगों के घरों से बहुत सारे कोबरा के बच्चे या रैट स्नेक को बचाते हैं। सांपों के अंडे देने की अवधि मानसून के मौसम के साथ मेल खाती है। शहर में हर साल बाढ़ आने से लोगों के घरों में सांपों के दिखने की घटनाएं बढ़ गई हैं।

शहर में सांप और इंसान के सह-अस्तित्व की संभावनाएं

इंसान और सांप बिना एक दूसरे को नुकसान पहुंचाए किसी शहर में रह सकते हैं। ऐसा तब संभव होगा जब शहर का विकास योजनाबद्ध तरीके से हो और शहर के लोग जागरूक हों। 

कल्की और तुलशन दोनों इस बात पर जोर देते हैं कि शहरी वन्यजीवों की आवाजाही के लिए वन्यजीव बफर जैसा कोई सिस्टम  बनाया जाना चाहिए और इसकी जिम्मेदारी शहरी विकास के लिए जिम्मेदार एजेंसी को उठानी चाहिए। 


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तुलशन सुझाव देते हैं, “हमें वन्यजीवों को स्वतंत्र रूप से आने-जाने के लिए रास्ते की जरूरत है। शहर के खुले स्थानों का विकास अधिकारियों और व्यवसायों के निजी हितों से स्वतंत्र होना चाहिए। हमें लक्ष्यहीन रूप से विकास करने के बजाय मौजूदा स्थानों को स्थायी रूप से पुनर्विकास करने का प्रयास करना चाहिए। हमें सूक्ष्म-पारिस्थितिकी तंत्र में स्थानीय वन्यजीवों को ध्यान में रखने के लिए कानूनों की आवश्यकता है। हमें एक बेहतर कचरा निपटान प्रणाली भी बनानी चाहिए। यदि हमारा परिवेश स्वच्छ है, तो हम कीटों से बच सकते हैं। वर्षा जल निकासी वाले नालियों का रखरखाव कर बाढ़ से भी बचा जा सकता है। 

कल्की आगे कहते हैं, “लोगों को उनके पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में जानकारी जरूरी है। विशेष रूप से ऐसे शहर में जहां सांप जैसे जीव मौजूद हों। उन्हें कम से कम सबसे आम सांपों की पहचान करने और जहरीले और बिना जहर वाले सांप के बीच अंतर करना आना चाहिए। मैंने देखा है कि बच्चे जल्दी सीखते हैं। उन्हें सह-अस्तित्व का विचार  सिखाया जाना चाहिए।”

मैप– टेक्नोलॉजी फॉर वाइल्डलाइफ

 

बैनर तस्वीरः घर के भीतर नागराज। तस्वीर- अल्मास मसूद/मोंगाबे

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