- दिल्ली का विकास और विस्तार तेजी से हो रहा है। इसके बावजूद भी यह अब भी एक समृद्ध जैवविविधता वाला शहर है।
- एक अध्ययन में दिल्ली की कॉलोनियों, पार्कों और औद्योगिक इलाकों के आस-पास स्थित तालाबों में पक्षियों की लगभग 170 प्रजातियां दर्ज की गई हैं।
- कई प्रवासी पक्षी तो रूस जैसे देशों से यहां पहुंचते हैं। लेकिन जिन वेटलैंड्स पर वे ठहरते हैं, उनपर खतरा मंडरा रहा है।
- शहरी की पारिस्थितिकी का अध्ययन और उसके संरक्षण के उपायों से शहरों के विस्तार के साथ, वन्यजीवों का आवास भी बचाए जा सकते हैं।
राजधानी दिल्ली के शहरी कचरे से पटा एक गंदा सा तालाब, सर्दी में खूबसूरत और रंगबिरंगे पेंटेड स्टॉर्क नाम के पक्षी के आने से गुलजार हो उठा है। हल्का सफेद बदन, चमकदार गुलाबी रंग की पूंछ और पीले रंग की लंबी चोंच वाले ये पक्षी इस गंदे पानी के बावजूद भी दिल्ली के सरदार पटेल तालाब की शोभा बढ़ा रहे हैं। दक्षिण पूर्व दिल्ली स्थित इमारतों और सड़कों के बीच करीब 2.5 हेक्टेयर में फैला यह झील आस-पास से जमा हुए कूड़े का ढेर समेटे हुए है।
सर्दियों में प्रवास पर दिल्ली आई इस चिड़िया को स्थानीय लोग कंठ सारस या जंघिल भी कहते हैं।
इन्हीं दिनों दिल्ली में पाइड एवेसेट्स नाम की चिड़िया भी देखी जा रही है। इन्हें जल जमाव की वजह से बने तालाबों में तैरते हुए देखा जा सकता हैं। मध्य एशिया और यूरोप से भारतीय उपमहाद्वीप को आने वाले इस पक्षी को, खास अंदाज से मुड़े घुमावदार चोंच से पहचाना जा सकता है। दिल्ली में फ्लाइओवर निर्माण स्थल के बगल में जल जमाव के बाद एक ऐसा तालाब बन गया है जहां हाल ही में इस चिड़ियां को देखा गया। इस तरह बने तालाबों को एक्सिडेंटल पॉन्ड भी कहते हैं।
तालाब के किनारे सुबह की सैर पर आए लोगों से बचता हुए ग्रीनिश वार्बलर को भी फुदकते हुए देखा जा सकता है। यह नन्हा पक्षी तालाब के किनारे पसरे हरियाली में अपना खाना खोजता दिख जाता है। दिल्ली में साल दर साल इस नन्हें पक्षी की आमद कम होती जा रही है।
इस मौसम में दिल्ली में ऐसे अनेकों पंख वाले मेहमान देखे जा रहे हैं। इस साल के रिकार्ड सर्दी में दिल्ली के तालाबों में इन्हें आवास और भोजन मिल रहा है।
राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र (एनसीटी) में पक्षियों की 400 प्रजातियां पाई जाती हैं। साल 2021 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक सर्दी के दौरान शहर की 37 प्रतिशत पक्षियों की संख्या तालाबों में पाई जाती है। पांच हेक्टेयर से कम में फैले जल स्रोत को तालाब के रूप में परिभाषित किया गया है।
वैसे तो शहरी जल स्रोतों में पक्षियों को तैरते देखना आम बात है पर शहरों के प्लैनिंग में इन तालाबों को अक्सर नजरअंदाज किया जाता रहा है। तालाबों के आसपास पक्षियों को देखकर यह बात साफ है कि ये तालाब, प्रवासी और स्थानीय पक्षियों के लिए बेहद जरूरी हैं।
शहरी तालाबों के पारिस्थितिकी तंत्र पर काफी कम शोध हुए हैं। शोध की कमी को देखते हुए प्रखर रावल ने इस विषय पर एक अध्ययन करने की ठानी। उन्होंने दिल्ली के तालाबों पर अध्ययन के दौरान पाया कि यहां अतिक्रमण, रियल एस्टेट गतिविधियों जैसे भवन निर्माण, ठोस कचरे को तालाबों में फेंकने और गंदे पानी को बहाने की वजह से तालाबों की स्थिति खराब है।
“इस अध्ययन के पीछे मेरा पहला उद्देश्य दिल्ली जैसे महानगर के तालाबो में रहने वाले पक्षियों की प्रजातियों और विविधता को पता करना था,” रावल कहते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक भारत के कुल वेटलैंड क्षेत्र (1.526 करोड़ हेक्टेयर) में से लगभग 8% शहरी इलाकों में स्थित है। वहीं देश का 3.64% वेटलैंड 2.25 हेक्टेयर से कम दायरे का है। इन आंकड़ों को यहां देने का उद्देश्य शहरों में वेटलैंड की स्थिति बताना है।
सनद रहे कि वेटलैंड को लेकर देश में एकमात्र राष्ट्रीय डेटाबेस मौजूद है। इसमें भी वेटलैंड को बिना सीमा और आकार के दिखाया गया है। इस डेटाबेस में इन वेटलैंड को बिंदुओं के रूप में दर्शाया गया है।
इस अध्ययन के लेखकों ने दिल्ली के वेटलैंड्स का नक्शा उपलब्ध न होने की वजह से गूगल अर्थ से ली गई तस्वीरों का मदद लिया और अपने शोध पूरे किये। उन्होंने दिल्ली के 574 वेटलैंड्स की पहचान की और 5 हेक्टेयर तक के विभिन्न आकारों के 39 तालाबों में सर्वेक्षण भी किया।
“बावजूद इस के कि दिल्ली के कुल क्षेत्रफल का 0.5 प्रतिशत क्षेत्र ही तालाब है, हमने पाया कि यहां चिड़ियों की 170 प्रजातियां रहती हैं,” नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन से जुड़े वैज्ञानिक और इस अध्ययन के सह लेखक केसी गोपी सुंदर ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
वह आगे कहते हैं, “इस संख्या का मतलब यह हुआ कि दिल्ली में हम जिन पक्षियों को जानते हैं उनकी संख्या का 37 प्रतिशत तालाबों पर आश्रित है। इस तरह दिल्ली शहरी वेटलैंड तंत्र की जैवविविधता के मामले में समृद्ध शहरों में शामिल हो जाता है।”
एक तालाब पक्षियों के लिए कितना अनुकूल होगा, यह उसकी बनावट पर निर्भर करता है।
सुंदर समझाते हुए कहते हैं कि एक तालाब को सुंदर बनाने के चक्कर में किनारों को कंक्रीट से भर दिया जाता है। ऐसे में सैंडपाइपर्स जैसे पक्षी वहां रह नहीं रह पाते। इन्हें खाना खोजने के लिए कुदरती तौर पर बने गीली मिट्टी वाला इलाका चाहिए।
साथ ही, वृक्षारोपण और गैर स्थानिक झाड़ियों की छंटाई से भी पक्षी आकर्षित होते हैं। “हमने पाया है कि लगभग आधे पक्षी तालाब के किनारे की हरियाली में रहना पसंद करते हैं,” उन्होंने कहा।
शोधकर्ताओं ने पाया कि तालाबों में फव्वारों की वजह से बने कृत्रिम टीलों की वजह से पक्षियों की विविधता भी बढ़ती है।
पक्षियों के फ्लाइवे में ढाबे की तरह दिल्ली के तालाब
पानी किनारे रहने वाले पक्षी लंबी उड़ान भर अंतरराष्ट्रीय सीमा को पार करते हुए भारतीय उपमहाद्वीप में आते हैं। ये पक्षी आसमान में जिस रूट का प्रयोग करते हैं उन्हें फ्लाइवे कहा जाता है। पूरे विश्व में ऐसे नौ फ्लाइवेज हैं। इनमें से कुछ पक्षियों के लिए दिल्ली के तालाब आराम फरमाने का ठिकाना हो सकता है। जैसा हाइवे पर लोग खाने या ईंधन के लिए ढाबे और पेट्रोल पंप पर रुकते हैं । ठीक वैसे ही, ये पक्षी कुछ खास जगहों पर रुककर आराम फरमाते हैं और आगे की उड़ान पर निकल जाते हैं। कुछ पक्षियों के लिए ये तालाब मंजिल भी है, जहां ये प्रवास पूरा करते हैं।
अध्ययन के दौरान रावल का सबसे अच्छा समय प्रवासी पक्षी जैसे नॉर्दरन शॉवलर और लंबी उड़ान भरने के लिए मशहूर बार-टेल्ड गॉडविट जैसे पक्षियों को पश्चिमी दिल्ली के औद्योगिक इलाके के एक तालाब में देखते हुए बीता।
ये पक्षी नौ वैश्विक फ्लाइवे में से एक मध्य एशियाई फ्लाईवे (सीएएफ) से उड़कर आए होंगे।
इस फ्लाइवे में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह फ्लाइवे आर्कटिक और हिंद महासागरों के बीच यूरेशिया के एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। उड़ान के दौरान रास्ते में रुकने के लिए भारत में महत्वपूर्ण स्थान मौजूद हैं। इनमें मुख्यतः वेटलैंड शामिल हैं। इस रास्ते पर उड़ने वाले 90 फीसदी पक्षी रुकने के लिए इन तालाब, झील, नदियों और पोखर जैसे वेटलैंड का प्रयोग करते हैं।
तस्वीर- प्रखर रावल
इसके अलावा, भारत में आने वाले प्रवासी जलीय पक्षी का एक बड़ा हिस्सा राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों से परे, शहरी और अन्य इंसानी मौजूदगी वाले स्थानों का प्रयोग करता है। पर इंसानी गतिविधियों की वजह से पक्षियों का अवास तेजी से विलुप्त हो रहा है ऐसे में पक्षियों की सालाना यात्रा भी प्रभावित हो रही है।
सुंदर के अनुसार, उनके अध्ययन के दौरान देखे गए लगभग 30-40% पक्षी, प्रवासी थे।
“हम पहले नहीं जानते थे कि इतनी बड़ी संख्या में प्रवासी प्रजातियों के लिए शहरी तालाब भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान हैं। इसलिए दिल्लीवासी इस मायने में बहुत भाग्यशाली हैं कि प्रवास की यह ऐतिहासिक घटना अभी भी उनके चारों ओर हो रही है,” वह कहते हैं।
हिमालयी शहर देहरादून में पक्षी संरक्षण के लिए शहरी हरियाली की भूमिका का अध्ययन करने वाली मोनिका कौशिक ने कहा, “इससे स्पष्ट होता है कि शहर के ढांचे को महज स्थानीय हरियाली और जैव-विविधता के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए।”
कौशिक इस शोध से नहीं जुड़ी हैं। वह कहती हैं कि जलवायु परिवर्तन से पक्षियों के आवासों का नुकसान होता है और वन्यजीवों की आवाजाही के पैटर्न प्रभावित होते हैं। हरे और नीले स्थान, यानी जंगल और वेटलैंड गायब होने से पक्षियों के प्रवास के लिए जरूरी लिंक समाप्त हो सकते हैं।
इस अध्ययन के दौरान रावल और उनकी टीम के पास पक्षियों को लेकर पुराना कोई आंकड़ा नहीं था। पक्षियों के बारे में अलग-अलग स्रोतों से जानकारी हासिल करने वाले जानकार भी मानते हैं कि तालाबों को लेकर भी आंकड़ों की कमी है। कौशिक ने स्टेट ऑफ इंडिया बर्ड्स रिपोर्ट 2020 को तैयार करने में नागरिकों से मिली जानकारी का विश्लेषण किया था। वह मानती हैं कि सड़कों से दूर और कम जानकारी वाले इलाकों को लेकर जानकारी काफी कम है। अगर उनकी जानकारी भी मौजूद हो तो पक्षियों के बारे में समझने में और आसानी होगी।
स्कूल ऑफ ह्यूमन इकोलॉजी, अंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली में विजिटिंग असिस्टेंट प्रोफेसर कौशिक ने शहरों के भीतर प्रकृति के संरक्षण के लिए एक नई वजह पर प्रकाश डाला।
“प्रकृति से एक निरंतर अलगाव है, जिसे हम ‘अनुभव का विलुप्त होना’ कहेंगे। हम चाहते हैं कि युवा पीढ़ी प्रकृति का अनुभव करे,” वह कहते हैं।
छोटे वेटलैंड पर देना होगा ध्यान
छोटे वेटलैंड न केवल जैवविविधता को बनाए रखते हैं, बल्कि भूजल स्तर, बाढ़ से सुरक्षा और स्थानीय तापमान को भी नियंत्रित करते हैं। यह सभी मुद्दे दिल्ली और देश के अन्य बड़े शहरों के लिए महत्वपूर्ण है।
वेटलैंड्स इंटरनेशनल दक्षिण एशिया के निदेशक रितेश कुमार ने बताया कि ‘छोटा’ शब्द भ्रामक हो सकता है। “आधा एकड़ में फैला एक वेटलैंड जरूर कम ग्राउंड वाटर रिचार्ज करेगा पर इस क्षेत्र में अगर ऐसे 20 वेटलैंड हों तो इससे जलतंत्र, पारिस्थितिकी और हर चीज में एक बड़ा योगदान माना जाएगा,” वह कहते हैं।
वैसे दिल्ली को अपनी बिगड़ती वायु गुणवत्ता के लिए जाना जाता हैं। पर एनसीआर ने भी 1970 और 2014 के बीच निर्माण गतिविधियों, अतिक्रमण और प्रदूषण के कारण अपनी 38% वेटलैंड खो दिया। कुमार ने कहा कि एक बढ़ते शहर में सबसे अधिक खतरा छोटे वेटलैड पर मंडरा रहा होता है। उन्होंने कहा कि किसी वेटलैंड को मारना हो तो पानी का प्रवाह बंद कर दिया जाता है। इसके अलावा सौंदर्यीकरण के नाम पर भी वेटलैंड तबाह किए जा रहे हैं।
दिल्ली के वेटलैंड्स की जानकारी इकट्ठा करने का पहला सरकारी प्रयास 2013 में हुआ। दिल्ली के वेटलैंड अथॉरिटी ने सभी आकार के 1043 वेटलैंड्स को सूचीबद्ध किया और विशिष्ट पहचान दी। इसका उद्देश्य जल निकायों को आधिकारिक तौर पर वेटलैंड के रूप में अधिसूचित करना है। इससे इन वेटलैंड को अतिक्रमण, ठोस अपशिष्ट डंपिंग और अन्य खतरों से वेटलैंड संरक्षण नियम, 2017 के तहत कानूनी सुरक्षा मिलती है।
दिल्ली के वेटलैंड अथॉरिटी के सदस्य सचिव के.एस. जयचंद्रन ने कहा, “हम दीर्घकालिक संरक्षण के उद्देश्य के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही हम बड़े आकार और उच्च जोखिम वाले वेटलैंड की अधिसूचना को प्राथमिकता दे रहे हैं। 5 जनवरी, 2022 तक, प्राधिकरण ने जीआईएस प्लेटफॉर्म पर 1014 जल निकायों की मैपिंग की थी और दस आर्द्रभूमि अधिसूचित होने की प्रक्रिया में थे।”
दिल्ली के जल निकायों का स्वामित्व 16 विभिन्न भूमि एजेंसियों के पास है। इससे इनकी निगरानी और संरक्षण में कई चुनौतियां आती हैं। जयचंद्रन ने कहा कि शहरी वेटलैंड के प्रबंधन में पारिस्थितिक तरीकों का पालन करने के लिए स्थानीय एजेंसियों के लिए एक दिशानिर्देश, जल्द ही जारी किया जाएगा।
अधिसूचित होने के बाद, प्राधिकरण एक एकीकृत प्रबंधन योजना तैयार करेगा। इस योजना में जिसमें अतिक्रमण, आक्रामक प्रजातियों आदि को हटाना शामिल है। इसके लिए जरूरी फंड की व्यवस्था भी की जाएगी।
सुंदर और कौशिक भी इस विचार से सहमत दिखते हैं।
“किसी शहरी योजनाकार के लिए नया हरियाली वाला स्थान बनाना संभव नहीं हो सकता है, लेकिन पहले से मौजूद हरे-भरे स्थानों या वेटलैंड्स का प्रबंधन जरूर किया जा सकता है। यह प्रबंधन इस तरीके से हो जिसमें जैव विविधता का भी ख्याल रखा जा सके,” कौशिक ने कहा।
बैनर तस्वीरः दिल्ली में इन दिनों पाइड एवोकेट्स नामक एक चिड़िया भी देखी जा रही है। इन्हें जल जमाव की वजह से बने तालाबों में तैरते हुए देखा जा सकता हैं। तस्वीर- प्रखर रावल