- वन्यजीव संरक्षण और जैवविविधता संरक्षण जैसे कानूनों में प्रस्तावित संशोधन के इतर देश का पर्यावरण मंत्रालय, सामान्य आदेशों के माध्यम से भी कई बदलाव करने की कोशिश में है।
- मंत्रालय से आए ऐसे ही एक आदेश के माध्यम से एक हेक्टेयर तक के वन भूमि को दूसरे उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी गयी। राज्यों के जल्दी ग्रीन क्लियरेन्स देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए स्टार रेटिंग सिस्टम लाया गया है।
- इन विषयों पर काम कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से कई मामलों में, जिसमें अधिकारी बस एक आदेश के माध्यम से परिवर्तन ला रहे हैं, लोगों से विचार विमर्श नहीं किया गया है।
बीते कुछ महीनों में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की तरफ से दो महत्वपूर्ण संशोधन का प्रस्ताव आया है- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 और जैवविविधता कानून 2002 । पर्यावरणविद् और वन संरक्षण में लगे लोगों का ध्यान इन संशोधनों पर है जिसे वे मौजूदा कानून को कमजोर करने की कोशिश बता रहे हैं। दूसरी तरफ मंत्रालय ने ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनस’ के नाम पर कई आदेश जारी कर दिया है। इससे पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव हो सकता है। जब कानून में संसोधन होता है तो इसमें लोगों की रायशुमारी भी होती है। आम नागरिक या संस्थाएं इन बदलावों को लेकर अपने सुझाव दे सकती हैं। इसके लिए उन्हें समय दिया जाता है। हालांकि, ऑफिस ऑर्डर के तहत जो बदलाव किए जा रहे हैं इसमें आम लोगों से रायशुमारी की कोई गुंजाइश नहीं है।
मंत्रालय से जो आदेश आए उनमें एक आदेश कहता है कि एक हेक्टेयर तक वनभूमि को किसी विशेष परिस्थिति में आवासीय परियोजनाओं के लिए दिया जा सकता है। एक दूसरे आदेश में राज्यों को स्टार रेटिंग सिस्टम देने की व्यवस्था की गयी है। इसके माध्यम से राज्यों को पर्यावरणीय अनुमति देने में कम से कम समय लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। मंत्रालय ने वन भूमि के डायवर्जन (हस्तांतरण) के लिए लगाए जाने वाले नेट प्रेजेंट वेल्यू (एनपीवी) की दरों में संशोधन का आदेश भी जारी किया है।
आदेशों के जरिए बदल रही पर्यावरण नीति!
24 जनवरी को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वन संरक्षण विभाग ने सभी राज्य सरकारों को एक पत्र भेजा। यह पत्र वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत आवासीय उद्देश्यों के लिए वन भूमि के उपयोग की स्थिति स्पष्ट करने के उद्देश्य से भेजा गया। इस पत्र के अनुसार, “विशेष परिस्थितियों में एक हेक्टेयर तक की आवासीय परियोजनाओं को अनुमति दी जा सकती है।” वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत मंत्रालय ऐसा कर सकता है अगर संबंधित राज्य सरकार ने “उचित औचित्य बताया है और सिफारिश की” है। आदेश में कहा गया है कि “उद्योगों की स्थापना, आवासीय कॉलोनियों, संस्थानों के निर्माण, फ्लाई ऐश के निपटान, विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास आदि स्थल-विशिष्ट गतिविधियां नहीं हैं। और ऐसी गतिविधियों के लिए वन भूमि पर विचार नहीं किया जा सकता है।”
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक हालिया आदेश में यह नहीं बताया गया है कि ये ‘विशेष परिस्थितियां’ क्या होंगी। इस आदेश में विशेषज्ञों की कमेटी के विवेक पर सब छोड़ दिया गया है। यह आदेश एक विशेषज्ञ वन पैनल की सिफारिश पर आधारित था। हालांकि, मंत्रालय के अधिकारी इस कदम का बचाव करते हुए कहते हैं कि यह आदेश एक विसंगति की दूर करने के लिए लाया गया है। उस विसंगति या गलत व्याख्या की वजह से वन क्षेत्रों का दोहन हो रहा था।
मंत्रालय का एक और निर्णय स्टार रेटिंग प्रणाली को लेकर आया है। यह प्रणाली पर्यावरण मंजूरी की मांग वाले प्रस्तावों को तेजी से मंजूरी दिलाने के लिए शुरू की गई है। इसका उद्देश्य इज ऑफ बिजनस को बढ़ावा देना है।
17 जनवरी को आए इस आदेश में कहा गया है कि मंत्रालय ने पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया को कारगर बनाने और मंजूरी देने में लगने वाले समय को कम करने के लिए कई उपाय किए हैं। मंजूरी देने वाले राज्यों की रैंकिंग प्रणाली का मुद्दा 13 नवंबर, 2021 को उठाया गया था। तब केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में ‘इज ऑफ बिजनस’ के उपायों पर चर्चा करने के लिए एक बैठक हो रही थी।
“यह तय किया गया है कि राज्यों को स्टार रेटिंग प्रणाली के माध्यम से पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे राज्यों को प्रोत्साहन के साथ खामियों को दूर करने का मौका भी मिलेगा,” आदेश में कहा गया है।
रेटिंग का निर्धारण मंजूरी देने में लगने वाले समय, मंजूरी के लिए आए आवेदन के निपटान का प्रतिशत और शिकायतों के समाधान की संख्या आदि को देखकर किया जाएगा।
पर्यावरण की कीमत पर व्यापार?
एक फरवरी को बजट भाषण के दौरान भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पर्यावरण मंजूरी के प्रस्तावों को तेजी से पूरा करने के लिए एकल फॉर्म की घोषणा की।
“सभी पर्यावरण मंजूरी के लिए एक सिंगल विंडो पोर्टल परिवेश को 2018 में शुरू किया गया था। पर्यावरण मंजूरी के आवेदनों के निपटान में यह पोर्टल सहायक रहा। आवेदकों को जानकारी प्रदान करने के लिए अब इस पोर्टल के दायरे का विस्तार किया जाएगा। यहां विशिष्ट स्वीकृतियों के बारे में जानकारी प्रदान की जाएगी। इस पोर्टल के सहारे एक ही फॉर्म के माध्यम से सभी चार अनुमोदनों के लिए आवेदन किया जा सकेगा और इसकी ट्रैकिंग भी हो सकेगी,” वित्त मंत्री ने घोषणा की।
पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले अधिवक्ता राहुल चौधरी ने मोंगाबे-हिन्दी से कहा कि चाहे सरकार द्वारा लाए जा रहे एक के बाद एक बदलावों को देखें, या हाल ही में पेश किए गए बजट, इनका इरादा स्पष्ट है।
“सरकार बस यह सुनिश्चित करना चाहती है कि व्यवसायों के लिए तेज मंजूरी की उनकी नीति के खिलाफ कोई विरोध या जांच न हो। भले ही पर्यावरण पर इसका बुरा असर होता हो। उदाहरण के लिए सरकार अपनी जरूरतों के हिसाब से जंगल की परिभाषा बदलती रहती है। यह पीछे ले जाने वाली प्रक्रिया है, चौधरी कहते हैं। वे दिल्ली स्थित लीगल इनिशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरनमेंट (लाईफ) के सह-संस्थापक हैं। इस संस्था को हाल ही में 2021 का राइट लाइवलीहुड अवार्ड मिला है।
ऑफिस ऑर्डर में आम लोगों की रायशुमारी नहीं
एक पर्यावरण नीति या कानून में संशोधन को बजाय सार्वजनिक परामर्श के, एक के बाद एक ऑफिस ऑर्डर के जरिए लागू करना कोई नई बात नहीं है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि कई वर्षों से ऐसा होता आ रहा है।
पहले भारत के तटीय इलाकों में पर्यावरण की मंजूरी के लिए नियमों को शिथिल किया गया। उदाहरण के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (एनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट/ ईआईए) अधिसूचना 2006 को बदलने लिए ईआईए अधिसूचना 2020 के मसौदे को लेते हैं। इस ड्राफ्ट की बड़ी आलोचना हुई। मसौदे में प्रस्तावित कई बदलाव पहले ही ऑफिस ऑर्डर के माध्यम से कई वर्ष पहले ही अस्तित्व में आ चुके थे।
विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के एक इकोलॉजिस्ट और सीनियर रेजिडेंट फेलो देबदित्य सिन्हा कहते हैं कि न आम लोग और न ही विशेषज्ञ, इस विषय पर बारीकी से नज़र रखते हैं। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा लाए गए परिवर्तनों को ट्रैक करना आसान है।
“अक्सर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, पर्यावरण, वन, वन्यजीव या जैव विविधता क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव देकर बड़े परिवर्तनों की घोषणा करता है। लेकिन यही एकमात्र तरीका नहीं है। वर्ष भर ऑफिस से जारी आदेशों और अधिसूचनाओं के माध्यम से, नियम कानून में परिवर्तन लाया जाता है। यदि इन सभी परिवर्तनों को एक साथ देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार, पहले ही मौजूदा नियम-कानूनों में बड़ा बदलाव ला चुकी है या उसे कमजोर कर दिया है। वह भी बिना आम रायशुमारी या सार्वजनिक परामर्श के। ईआईए विनियमन या सीआरजेड (तटीय विनियमन क्षेत्र) अधिसूचना के समय यही हुआ था और अब यही हो रहा है,” सिन्हा ने मोंगाबे-हिन्दी से कहा।
“क्या कोई ऐसी परियोजना है जिसे सरकार में मंजूरी न मिली हो या उसे खारिज कर दिया गया है? भारत के पर्यावरण बचाने की जिम्मेदारी जिसको दी गयी है उनकी जवावदेही तय करने का कोई सीस्टम नहीं बना है,” उन्होंने सवाल किया।
सिन्हा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नवीनतम बजट में भी, वायु गुणवत्ता आयोग, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण और भारतीय वन अनुसंधान और शिक्षा परिषद, भारतीय वन प्रबंधन संस्थान , भारतीय वन्यजीव संस्थान , जीबी पंत इंस्टीट्यूट, और सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री जैसे स्वायत्त अनुसंधान संस्थानों के लिए आवंटन कम कर दिया गया है।
पर्यावरण मंत्रालय जिन संशोधनों पर काम कर रहा है, उनमें सबसे नया संसोधन वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम (1972) और जैविक विविधता अधिनियम (2002) में होना है। संशोधनों पर व्यापक आलोचना के बाद, सरकार ने जैविक विविधता अधिनियम संशोधन विधेयक (2021) को एक संयुक्त संसदीय समिति और वन्य जीवन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 को एक संसदीय स्थायी समिति के पास भेज दिया है।
समितियों ने हितधारकों तक पहुंचने और उनके द्वारा उठाई गई चिंताओं को सुनने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उदाहरण के लिए, नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन (एनसीएफ) ने संसदीय स्थायी समिति के प्रतिवेदन में उन संशोधनों पर चिंता व्यक्त की है जिसकी वजह से राज्य वन्यजीव बोर्ड निरर्थक हो जाएंगे।
बैनर तस्वीरः पर्यावरण मंत्रालय के एक आदेश के मुताबिक विशेष परिस्थितियों में एक हेक्टेयर तक वन भूमि को आवासीय परियोजनाओं के लिए डायवर्ट किया जा सकता है। इससे जंगल की कटाई बढ़ सकती है। तस्वीर– विश्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स