- डीआरएंडआरडी प्रोजेक्ट को दामोदर नदी के गर्भ से कोयला खनन करने के लिए चार दशक पूर्व तैयार किया गया था। लेकिन, शुरुआती कामकाज के बाद यह परियोजना अबतक लंबित है और इसके बारे में कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है।
- इस परियोजना को शुरू करने के लिए झारखंड के बोकारो जिले के दो प्रखंड क्षेत्र के कम से कम सात गांव की जमीन अधिग्रहित की गयी, जिससे उस जमीन पर किसानों द्वारा खेती किया जाना बंद कर दिया गया और वे बंजर हो गयीं।
- इस परियोजना के तहत बनाया जा रहा रेल पुल अबतक अधूरा पड़ा है, जिसका उपयोग लोग पैदल आवागमन के लिए करते हैं और लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ी रहती है।
बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड क्षेत्र में पड़ने वाले चलकरी गांव के पंचानन मंडल की जिंदगी सेंट्रल कोल लिमिटेड (सीसीएल) में नौकरी के इंतजार में कट गयी। 62 साल के हो चुके पंचानन मंडल 1984 से नौकरी का इंतजार करते हुए बूढे हो गए और अब इस उम्र में वे अपने बच्चों के लिए नौकरी का इंतजार कर रहे हैं। पंचानन मंडल ने सीसीएल के लिए अपनी जमीन दी थी और उसके ऐवज में ही उन्हें नौकरी का दशकों इंतजार रहा। पंचानन मंडल और उनके जैसे चलकरी गांव के अन्य ग्रामीणों की जमीन सीसीएल की महत्वाकांक्षी दामोदर एंड रेल डायवर्सन प्रोजेक्ट (डीआरएंडआरडी) के लिए ली गयी थी।
अस्सी के दशक की शुरुआत में कोल इंडिया की सहायक कंपनी सीसीएल ने चलकरी सहित उसके आसपास के कई दूसरे गांव में डीआरएंडआरडी के तहत कोयला खनन की योजना बनायी थी। हालांकि करीब चार दशक का वक्त गुजरने के बावजूद यह परियोजना अधूरी है और कोई भी इसको लेकर कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं है, जिससे प्रभावित गांवों के हजारों लोगों की जिंदगी भी अधर में है। यह क्षेत्र सीसीएल यानी सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड के बोकारो-करगली क्षेत्र के अंतर्गत पड़ता है।
डीआरएंडआरडी प्रोजेक्ट के प्रभावित विस्थापितों सहित बेरमो कोयलांचल क्षेत्र के अन्य प्रभावित-विस्थापित ग्रामीणों ने 14 फरवरी 2022 से चक्का जाम आंदोलन करने का ऐलान किया है।
क्या है डीआरएंडआरडी प्रोजेक्ट
डीआरएंडआरडी प्रोजेक्ट सीसीएल की एक ऐसी प्रस्तावित परियोजना है, जिसके तहत कोयला खनन के लिए दामोदर नदी और रेल लाइन को डायवर्ट किया जाना था। उनके अनुसार, इस परियोजना के लिए बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड के चलकरी, झुंझको, खेतको, अंगवाली, खेढो, पिछरी एवं बोकारो जिले के ही बेरमो प्रखंड के ढोरी, घुटियाटांड़, जरीडीह आदि गांवों की 6436 एकड़ जमीन 80 के दशक में सीसीएल द्वारा अधिग्रहित की गयी।
इस योजना के तहत गोमो-बरकाकाना रेलखंड के बीच फुसरो रेलवे स्टेशन से अमलो हॉल्ट तक की रेल लाइन को डायवर्ट कर सीधे जारंगडीह स्टेशन की क्रासिंग में मिलाने की योजना तैयार की गयी थी। इसका उद्देश्य नदी व रेल लाइन को डायवर्ट किए जाने के बाद उस भूमि के नीचे से कोयला का उत्खनन किया जाना था।
इस प्रस्तावित परियोजना को लेकर लंबे समय तक संघर्ष करने वाले विस्थापितों के नेता काशीनाथ केवट कहते हैं, इसके लिए जारंगडीह स्टेशन को स्थानांतरित कर जरीडीह बस्ती में और बेरमो स्टेशन को घुटियाटांड़ में स्थापित करने का प्रस्ताव था। वहीं, झारखंड और पश्चिम बंगाल की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में एक दामोदर को खेतको बस्ती से मोड़ कर चलकरी होते हुए अंगवाली की दिशा में मोड़ने का प्रारूप तैयार किया गया था। दामोदर नदी को 3.35 किलोमीटर डायवर्ट किया जाना था।
केवट कहते हैं, “इस कवायद का उद्देश्य करीब छह हजार चार सौ छत्तीस एकड़ भूमि में बेशकीमती प्राइम कोकिंग कोल का खनन करना था। इस वजह से इस परियोजना का नाम दामोदर नदी व रेल विपथन प्रोजेक्ट पड़ा।”
काशीनाथ केवट बताते हैं कि दामोदर नदी की धारा को पेटरवार प्रखंड के खेतको बस्ती से मोड़ कर चलकरी गांव होते हुए अंगवाली बस्ती की दिशा में मोड़ने का प्रारूप तैयार किया गया था। वहीं, गोमो-बरकाकाना रेलखंड के बीच फुसरो रेलवे स्टेशन से अमलो हॉल्ट की रेल लाइन को मोड़ कर जरीडीह बाजार होते हुए सीधे जारंगडीह स्टेशन की क्रॉसिंग में मिलाने की योजना तैयार की गयी थी।
यह जगह झारखंड की राजधानी रांची से उत्तर पूर्व में 115 किमी की दूरी पर है, जबकि जिला मुख्यालय बोकारो से इसकी दूरी करीब 33 किमी है।
1981 में तैयार हुआ था परियोजना का डीपीआर
डीआरएंडआरडी प्रोजेक्ट का डीपीआर 1981 में तैयार किया गया था। इसके बाद बोकारो जिले के दो प्रखंडों के कई गांवों के लोगों की जमीन का अधिग्रहण भी किया गया। पेटरवार प्रखंड के चलकरी, झुंझको, खेतको, अंगवाली आदि जबकि बेरमो के ढोरी, घुटियाटांड़, जरीडीह की जमीन अधिग्रहित की गयी।
एटक के महासचिव व धनबाद-बोकारो कोयला खनन क्षेत्र के एक प्रमुख नेता लखन लाल महतो ने मोंगाबे हिंदी से कहा, 1980 में यह परियोजना अधिसूचित की गयी थी, दामोदर नदी को 3.35 किमी डायवर्ट करना था और साथ ही रेल ट्रैक भी डायवर्ट करना था और इसके लिए कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत 6431 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गयी थी, लेकिन लगता है कि अब कोल इंडिया की इसमें रुचि नहीं है। उन्होंने कहा, डायवर्जन के लिए रेलवे के पुल भी बने लेकिन कुछ हुआ नहीं।
वे कहते हैं कि अगर यह कोयला परियोजना शुरू हो जाती तो करीब 1000 लोगों को रोजगार मिलता, लोगों ने अपनी जमीन भी दे दी, लेकिन कुछ हुआ नहीं। उनके अनुसार, इस परियोजना के अधर में लटकने से 10 से 12 गांव के 20 से 25 हजार लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है, वे खेती योग्य भूमि पर खेती नहीं कर सकते, रैयत उसे बेच नहीं सकते और चूंकि वह जमीन अधिग्रहित हो गयी है, इसलिए सरकारी विकास व जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ वहां मिल नहीं सकता। वे कहते हैं, अगर इस भूमि पर काम नहीं करना है तो इसकी अधिसूचना रद्द की जानी चाहिए।
लखन लाल महतो एक और महत्वपूर्ण बात बताते हैं कि जहां भूमि अधिग्रहण से संबंधित कई दूसरे कानूनों में एक समय सीमा तय है कि अगर आप काम नहीं कर रहे हैं तो रैयतों को उसे वापस कर दें, लेकिन कोल बेयरिंग एक्ट 1957 में ऐसी कोई समय सीमा नहीं है। इस एक्ट के अनुसार, अधिग्रहित भूमि को केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में माना जाएगा और इस पर कब्जे के लिए आवश्यकतानुसार बल प्रयोग भी किया जा सकेगा।
लखन लाल महतो एवं काशीनाथ केवट ने इस परियोजना के प्रभावितों व विस्थापितों की लड़ाई लड़ने के लिए विस्थापित संघर्ष मोर्चा नामक एक संगठन का भी गठन किया, जिसके दोनों क्रमशः अध्यक्ष एवं महासचिव हैं। केवट खुद इस परियोजना के केंद्र चलकरी गांव के निवासी हैं।
यह प्रस्तावित परियोजना सीसीएल के बोकारो एवं करगली क्षेत्र के अंतर्गत आती है। सीसीएल के बोकारो एवं करगली क्षेत्र के जीएम एमके राव से इस संबंध में मोंगाबे हिन्दी द्वारा संपर्क किए जाने पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और बात करने की बात कह कर सवालों को टाल गए।
सरकारी अधिकारियों ने क्या कहा
इस संबंध में पेटरवार के सीओ (सर्किल ऑफिसर) ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव ने मोंगाबे हिन्दी से कहा, अगर किसी परियोजना के तहत भूमि अधिग्रहण कर लिया गया है, तो वहां पर किसी प्रकार की गतिविधि संचालित करना अवैध होगा। उन्होंने यह स्वीकार्य किया कि अधिग्रहित जमीन की खरीद-बिक्री या बंदोबस्ती नहीं हो रही है। श्रीवास्तव ने कहा, उस जमीन पर सीसीएल का पोजिशन है और यह उसे देखना होगा कि वहां माइनिंग करना है या नहीं। नदी के डायवर्सन या खनन की शुरुआत किए जाने को लेकर उन्होंने ऊपरी स्तर से किसी प्रकार की सूचना या निर्देश प्राप्त होने से इनकार किया।
वहीं, बेरमो के सीओ मनोज कुमार ने मोंगाबे हिन्दी से कहा, जब जमीन को कोल इंडिया ने लिया है तो उस पर अवैधानिक रूप से कोई काम नहीं कर सकता है। उन्होंने मुआवजा या उस पर काम किए जाने के सवाल पर कहा कि यह सब सीसीएल को करना है तो हमारे पास इस संबंध में कोई सूचना नहीं है। उन्होंने कहा कि कोल इंडिया ही इस बारे में बता सकती है। उन्होंने कहा, हमलोग जमीन का सिर्फ सत्यापन करते हैं, मुआवजा नहीं देते।
हालांकि कोयला खनन के लिए झारखंड में अन्य कई क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण किए गए हैं, लेकिन बोकारो जिले का यह मामला एक अबूझ पहेली है, जिससे जुड़े सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है या संबंधित प्राधिकारी जवाब देना नहीं चाहते हैं। मोंगाबे हिन्दी ने बोकारो के भूमि उपसमाहर्ता (डिप्टी कलेक्टर) जेम्स सुरीन से भी फोन पर इस संबंध में सवालों के जवाब के लिए संपर्क किया। उन्होंने इसके जवाब में कहा, यह मामला राजस्व शाखा से डील किया जाता है, हमारी उसमें सहभागिता नहीं है, आप वहीं संपर्क करें।
कहानी चलकरी के ग्रामीणों की
चलकरी 10 हजार की आबादी वाला बड़ा गांव है। यह गांव इतना बड़ा है कि इसे चलकरी उत्तरी एवं चलकरी दक्षिणी दो पंचायतों में बांटा गया है। इस गांव में सिलाई की दुकान चलाने वाले मोहम्मद रिजवान कहते हैं, उनकी चार एकड़ जमीन इस परियोजना में गयी, भाई मो जैनुल को नौकरी मिली थी, वे रिटायर कर गए। वे कहते हैं कि उस समय सीसीएल का यहां काम चल रहा था, लेकिन अभी जमीन यूं ही पड़ी है, अगर काम चलता तो हम ग्रामीणों को रोजगार मिलता।
वहीं, गांव के बुजुर्ग अशोक कुमार मंडल जो खुद सीसीएल ढोरी क्षेत्र से एकाउंटेंट की नौकरी से सेवानिवृत्त हुए हैं, कहते हैं, तीन चरण में 1982, 1983 और 1985 में जमीन का अधिग्रहण हुआ है। उनके अनुसार, साढे छह हजार एकड़ जमीन ली गयी और 631 लोगों को नौकरी मिली। जरीडीह, चलकरी, खेतको, झुनको, अंगवाली, पिछरी, घुटियाटांड़, सिंघाड़बेड़ा गांव की जमीन ली गयी।
चलकरी में मेडिकल की दुकान चलाने वाले मोहम्मद गुलाम के अनुसार, उनके परिवार की भी जमीन इस प्रस्तावित परियोजना में गयी, जिसके ऐवज में उनके चाचा को नौकरी व मुआवजा मिला था, लेकिन यह उनके परिवार की स्थायी आजीविका नहीं साबित हुआ। वे कहते हैं, हमारी खेती खत्म हो गयी, उम्मीद बहुत खराब चीज होती है, रैयतों में अब इसको लेकर अविश्वास हो गया है।
प्रस्तावित परियोजना से प्रभावित पिछली पंचायत के सूरज महतो ने कहा, पिछरी व खेड़ो मौजा की 1900 एकड़ जमीन ली गयी, उनमें पांच लोगों को नौकरी मिली बाकी सब ऐसे ही हैं।
डीआरएंडआरडी प्रोजेक्ट में मिली नौकरियों में भ्रष्टाचार का मामला भी काफी चर्चा में आया था। स्थानीय लोग याद करते हैं कि 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिए आए तत्कालीन कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने मंच से चुनावी घोषणा की थी कि अगर उनकी पार्टी यहां से जीतती है तो इस परियोजना को शुरू कर दिया जाएगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ। लखन लाल महतो का कहना है क अगर सीसीएल को इस पर काम नहीं करना है, तो जमीन मूल रैयतों को वापस कर देना चाहिए। वे कहते हैं कि किसी परिणाम पर पहुंचना होगा।
नदी के जानकार क्या कहते हैं
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डेम, रिवर्स एवं पीपुल्स (एसएएनडीआरपी) के संयोजक और नदी विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर ने दामोदर नदी की दिशा को मोड़े जाने के असर के सवाल पर मोंगाबे हिंदी से कहा, “किसी नदी को डायवर्ट करने से उसका कितना असर पड़ेगा यह उसके डीपीआर के अध्ययन से पता चलेगा, लेकिन नदियों की दिशा मोड़े जाने से उसमें बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है। ऐसा किए जाने से आसपास की जैव-विविधता पर असर पड़ेगा। आसपास के कुछ इलाके डूब क्षेत्र बन जाएंगे”। उन्होंने कहा कि ऐसी परियोजना के पर्यावरण एवं सामाजिक प्रभावों का आकलन का अध्ययन करने के बाद ही इस पर केंद्रित प्रतिक्रिया दी जा सकती है।
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ठक्कर कहते हैं, “जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए सबसे पहले तो इस तरह की परियोजना पर अमल होना ही नहीं चाहिए और कोई नई कोयला खनन कार्य शुरू नहीं किया जाना चाहिए। बेहतर यह होगा कि किसानों की अधिग्रहित की गयी जमीन को कृषि योग्य बनाकर उन्हें वापस कर दिया जाए।“
भारत की नदियों पर शोध करने वाली संस्था वेदुतम के को फाउंडर सिद्धार्थ अग्रवाल ने दामोदर नदी को डायवर्ट किए जाने के सवाल पर मोंगाबे हिंदी से कहा, दामोदर बड़ी नदी है और ऐसा किया जाना सही नहीं होगा, हो सकता है कि इस परियोजना के टाले जाने की यह एक वजह रही हो।“
बैनर तस्वीरः दामोदर नदी पर चलकरी से घुटियाटांड़ के बीच बनाया जा रहा था। यह रेल पुल पूरा जोड़ा नहीं गया है, इसलिए लोग इससे आ-जा नहीं पाते हैं। तस्वीर- राहुल सिंह