- इस साल जनवरी में हरियाणा के भिवानी जिले में एक खनन साइट पर पहाड़ दरकने से पांच लोगों की मौत हो गई। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में प्रस्तुत कई रिपोर्ट के अनुसार, साइट अवैध और अवैज्ञानिक थी लेकिन जुर्माना भरने के बाद यहां फिर से खनन की अनुमति दे दी गई।
- अरावली के जंगलों में 250 मीटर अंदर तक खुदाई हो रही है जबकि स्वीकार्य सीमा महज 78 मीटर है। यही नहीं खनन कंपनियों ने हाई-पावर मोटर का इस्तेमाल कर जमीन के नीचे से पूरा पानी निकाल लिया है।
- साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा में पारिस्थितिकी को हुए नुकसान का विश्लेषण करने के बाद राज्य में खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन साल 2011 में हरियाणा सरकार ने अरावली से सटी कई खदानों के लिए नीलामी नोटिस जारी कर दिया।
हरियाणा में खनन के दौरान पांच लोगों की मौत ने अरावली पर्वतमाला में अवैध खनन को फिर चर्चा में ला दिया है। इस साल जनवरी में भिवानी जिले के तोशाम तहसील में स्थित डाडम पत्थर खनन क्षेत्र में यह घटना पहाड़ दरकने से हुई। जाहिर है नियमों को ताक पर रखकर हो रहे खनन से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरा गहराता जा रहा है।
जहां पर यह घटना हुई, वह जगह अरावली की पहाड़ियों से घिरी है और 48 हेक्टेयर में फैली है। इस जगह का मालिकाना हक गोवर्धन माइन्स एंड मिनरल्स (जीएमएम) के पास है। आधिकारिक दस्तावेजों के मुताबिक, पट्टे वाले इस खनन क्षेत्र के 10 किलोमीटर की परिधि में तीन आरक्षित और तीन संरक्षित जंगल हैं। यही नहीं, सतह वाली संरचनाओं के 100 मीटर के दायरे में ब्लास्टिंग की अनुमति नहीं है। इलाके में जल स्तर की गहराई मानसून से पहले 80 मीटर लेकर मानसून के बाद 78 मीटर सतह से नीचे तक है। लेकिन गांव वालों का आरोप है कि यहां वन क्षेत्र में भी खनन बदस्तूर जारी है और वह भी 78 मीटर की स्वीकार्य सीमा से अधिक नीचे तक।
राज्य में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के नेता और भिवानी से सांसद धर्मवीर सिंह ने मोंगाबे-हिन्दी के साथ बातचीत में बड़ा आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अरावली की वन भूमि में 78 मीटर गहराई तक ही खुदाई करने की अनुमति है लेकिन ये काम 250 मीटर अंदर तक हो रहा है। बीजेपी सांसद ने कहा, “ठेकेदार ने हाई-पावर मोटर का इस्तेमाल कर जमीन के नीचे का पानी सोख लिया है और सतह से 250 मीटर नीचे बड़े ब्लॉक बनाए हैं। इससे आधार खोखला हो गया और चट्टानें दरक कर नीचे आ गईं जिससे पांच लोगों की जान चली गई।”
डाडम गांव के मुखिया रामफल ने भी बीजेपी सांसद जैसे ही आरोप लगाए। उन्होंने कहा, “खनन कंपनियों ने नियमों की धज्जियां उड़ाकर जमीन के नीचे का पूरा पानी निकाल लिया और यही उनके इलाके में पानी की भारी कमी का कारण है।”
रामफल आरोप लगाते हैं, “हमारे खेत सूख रहे हैं। हम धूल भरी सांस लेने को मजबूर हैं और इससे लोगों को फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां हो रही है।” वह कहते हैं कि अगर प्रशासन ने उनकी शिकायतों पर समय रहते ध्यान दिया होता तो यह हादसा नहीं होता। उन्होंन कहा, “पिछले साल अक्टूबर में हमने स्थानीय थाने में शिकायत दी थी। बताया था कि खनन कंपनियां स्वीकृत सीमा से अधिक नीचे से पानी खींच रही हैं और अरावली में तय क्षेत्र से अधिक संरक्षित इलाकों में खनन कर रही हैं।”
तोशाम तहसील के एसडीएम मनीष फोगट ने भी मोंगाबे-हिन्दी के साथ बातचीत में ग्रामीणों से शिकायत मिलने की पुष्टि की। उन्होंने माना, “गांव वाले लंबे समय से इन मुद्दों की शिकायत कर रहे हैं। करीब तीन महीने पहले हमें शिकायत मिली थी और इसे संबंधित विभाग (हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) को भेज दिया गया था।“
गांव वालों की शिकायत संबंधित विभाग यानी हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, हरियाणा भूजल प्राधिकरण और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को भेजी गई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
अवैज्ञानिक खनन और अवैध खदानें
पिछले साल 20 जुलाई को एनजीटी ने डाडम के ही रहने वाले कुलदीप सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए रिपोर्ट मांगी थी। याचिका में जंगल क्षेत्र में अवैध खनन, खनन क्षेत्र में गहरे तक उत्खनन और बिना अनुमति के जमीन से पानी खींचने के मामले शामिल थे। एनजीटी ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस प्रीतम पाल को डाडम की पहाड़ियों पर जीएमएम द्वारा वन क्षेत्र के बाहर अवैध खनन से जुड़े तथ्यों की सच्चाई पता लगाने का जिम्मा सौंपा था। आठ सदस्यों वाली समिति ने 13 अक्टूबर, 2021 को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपी थी।
रिपोर्ट में समिति ने “जंगल क्षेत्र में बिना वैध अनुमति के रास्ते बनाने और गैर-खनन क्षेत्र में खनन उपकरण मिलने की बात कही थी।” रिपोर्ट में कहा गया था कि डाडम हिल्स में “अवैध तरीके से खनन के सबूत मिले।” वहीं वन भूमि में दो साइटों की पहचान की गई, जहां अवैध खनन देखा गया। समिति ने पाया कि खनन वैज्ञानिक तरीके से नहीं किया जा रहा है। यही नहीं 109 मीटर गहराई तक खनन किया जा रहा है जबकि अनुमति महज 78 मीटर तक की है, जो पर्यावरण मंजूरी और अनुमत खनन योजना की शर्तों का उल्लंघन है।
रिपोर्ट में 2020 में एक आधिकारिक निरीक्षण का हवाला भी है। इसमें बताया गया था कि नियमों के उल्लंघन के साथ ही अवैध रूप से भूजल निकाला जा रहा है। इसके बाद हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने खदानों को बंद करने की सिफारिश की थी। नियमों की धज्जियां उड़ाने के बावजूद, जीएमएम को जुर्माना देकर खनन जारी रखने की अनुमति मिल गई। संयोग से जिस दिन डाडम में घटना हुई, वह निरीक्षण के चलते लंबे समय से चली आ रही रोक के बाद पूर्ण खनन का दूसरा दिन था।
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क्षेत्र के किसान संघ के प्रमुख ओमप्रकाश ने कहा कि खदानों ने स्थानीय लोगों की आजीविका पर भारी चोट की है। उन्होंने कहा, “सरकार को स्थानीय लोगों या पर्यावरण की परवाह नहीं है। वह केवल अपने मुनाफे और खनन कंपनियों के फायदे की परवाह करती है।”
ओमप्रकाश ने मोंगाबे-हिन्दी से कहा, “जब ये खदानें स्थापित हुईं तो उन्होंने ग्रामीणों को रोजगार देने का वादा किया। लेकिन खदानों ने रोजगार नहीं दिया क्योंकि वे अपने सभी इंजीनियरों और मजदूरों को बाहर से लाते हैं। खदान कंपनियां पर्यावरण की देखभाल भी नहीं करती हैं। जाहिर है ग्रामीण अपने स्वास्थ्य, जीवन और आजीविका के लिए लड़ रहे हैं क्योंकि इन खदानों के चलते खेती को भी नुकसान हुआ है।”
अरावली में अकेला नहीं है डाडम
अरावली की अपनी अहमियत है। यह दुनिया की पुरानी पर्वतमालाओं में से एक है। दिल्ली में खत्म होने वाली अरावली की पहाड़ियां गुजरात, राजस्थान से लेकर दक्षिण हरियाणा तक फैली हुई हैं। हरियाणा में अरावली की पहाड़ियां मेवात, फरीदाबाद, गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी जैसे जिलों में है। यहां अंधाधुंध खनन होता रहा है। इसकी वजह इन इलाकों में तेज विकास और निर्माण गतिविधियां हैं। एनजीटी को सौंपी गई एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि पिछले आठ सालों में गुरुग्राम के अरावली ने प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र (एनसीजेड) का 10,000 एकड़ (4,046 हेक्टेयर) से अधिक खोया है। यह शहर का सबसे हरा-भरा वन क्षेत्र माना जाता है।
जाहिर है अरावली की पारिस्थितिकी को लंबे समय नुकसान पहुंचाया जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 1975 से 2019 के बीच 3,676 वर्ग किमी जमीन (यानी राज्यों में कुल अरावली वन भूमि का 4.86 प्रतिशत) बंजर हो गई। इस दौरान 776.8 वर्ग किमी भूमि (1.02 प्रतिशत) पर बस्तियां बस गई। इतना ही नहीं अरावली के जंगलों में 5,772.7 वर्ग किमी (7.63 प्रतिशत) की कमी आई है। अनुमान है कि साल 2059 में कुल 16,360.8 वर्ग किमी (21.64 प्रतिशत) वन भूमि पर लोग रहने लगेंगे।
फरीदाबाद जिले में सतही जल निकायों के साथ भूमि-उपयोग परिवर्तन और खनन गतिविधियों के आपसी संबंधों पर एक अध्ययन किया गया। इसमें 1970-2006 यानी 35 सालों में हुए बदलावों को बारीकी से देखा गया। अध्ययन से निष्कर्ष निकला कि बड़े बदलाव ज्यादातर उन क्षेत्रों में देखे गए जहां पहले वनस्पति, कृषि और जंगल थे और इनका आवासीय उपयोग शुरू हो गया। इससे पता चला कि 1970 से 2006 के बीच शहरी क्षेत्र में 310.8 प्रतिशत और खनन क्षेत्रों (वैध और अवैध दोनों) में 587.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इससे वनस्पति और सतही जल को भारी नुकसान हुआ। यह नोट किया गया कि खनन गतिविधि के कारण ज्यादा से ज्यादा पानी निकाला गया और इससे सतही जल में कमी आई।
रिवाइटालइजिंग रेनफेड एग्रीकल्चर नेटवर्क के समन्वयक प्रतीक कुमार ने कहा, “हरियाणा में खनन के असर को अब बदलना अब नामुमकिन है।”
कुमार ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “डाडम दूसरी खदानों के लिए महज दर्पण की तरह है। डाडम और खनक वाले डाडम खनन क्षेत्र के अलावा दादरी और महेंद्रगढ़ खनन क्षेत्र भी एक जैसे स्तर पर ही हैं यानी यहां भी नुकसान बहुत हुआ है। इसमें पिचोपा कलां, अटेला कलां, कलियाना और माई गांव शामिल हैं। इन गांवों में खेती खत्म हो गई है और भूजल बचा नहीं है क्योंकि खदानों ने पूरा पानी सोख लिया है।”
नीतियों में चूक
हरियाणा की बात करें तो यहां कई और मसले भी हैं। उनमें से एक स्वामित्व और अरावली में भूमि के निजीकरण की प्रक्रिया है। 1970 के दशक में राज्य ने सामान्य भूमि स्वामित्व मानदंडों में बदलाव किए। तब सामान्य भूमि को वन विभाग को हस्तांतरित करने के बजाय राज्य सरकार ने उन्हें पंजाब गांव सामान्य भूमि कानून के तहत ग्राम पंचायतों के साथ मिला दिया।
बाद में 1970-80 के दशक के दौरान, राजस्व विभाग ने “सामान्य भूमि में हिस्से को हितधारकों को हस्तांतरित करने” की अनुमति दी। इस प्रकार, भूमि को भूस्वामियों के बीच बांट कर कम कीमत पर बेच दिया गया। इससे लाभ कमाने के लिए भूमि की फिर से बिक्री की गुंजाइश बन गई। पर्यावरणविदों के अनुसार, यह हरियाणा में अरावली के निजीकरण का आधार है, विशेष रूप से दिल्ली के आसपास जहां अचल संपत्ति में लोगों की रुचि बहुत ज्यादा है।
एक अन्य मुद्दा वन क्षेत्र की परिभाषा से जुड़ा है। हरियाणा, 2005 में तैयार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रीय योजना बोर्ड की क्षेत्रीय योजना 2021 के अनुसार लगभग 60,000 एकड़ (24,281 हेक्टेयर) अरावली को एनसीजेड के रूप में आधिकारिक रूप से अधिसूचित करने में विफल रहा है। एनसीजेड स्टेट्स केवल 0.5 प्रतिशत क्षेत्र में निर्माण की अनुमति देता है और इसका उद्देश्य खास तौर पर “क्षेत्रीय मनोरंजक गतिविधियां” होना चाहिए। लेकिन बिना किसी कानूनी संरक्षण के चलते रियल एस्टेट लॉबी अरावली के जंगलों को खत्म कर रही है। यही नहीं अरावली को जंगलों की कटाई और दूसरी विकासात्मक गतिविधियों से भी खतरा है।
साल 2009 में, सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा में पारिस्थितिकी को हुए नुकसान का विश्लेषण करने के बाद राज्य में खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन नवंबर 2011 में, हरियाणा के खान और भूविज्ञान विभाग ने राज्य में अरावली से सटी कई खदानों के लिए नीलामी नोटिस जारी किया। साल 2013 में इसमें डाडम को भी शामिल कर लिया गया।
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प्रतीक कुमार ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद हरियाणा में अंधाधुंध खनन जारी है। राज्य ने बड़ी चतुराई से अरावली से सटी खनन साइटों को कंपनियों को दे दिया। ऐसे में ये कंपनियां अरावली में खनन करती हैं। वे संरक्षित और वन क्षेत्रों की परवाह नहीं करती हैं। खनन पर प्रतिबंध के 10 साल बाद भी अरावली की पारिस्थितिकी में कोई सुधार नहीं हुआ है। स्थिति और बदतर हो गई है। गुरुग्राम और फरीदाबाद के इलाके भी पानी के लिए तरस रहे हैं।”
खनन के चलते अरावली में बड़े पैमाने पर विनाश के बावजूद हरियाणा सरकार नहीं चेती है। राज्य सरकार ने सभी को हैरान करते हुए पिछले साल गुरुग्राम और फरीदाबाद में अरावली में खनन शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मांगी थी।
लेकिन, गुरुग्राम के खनन अधिकारी अनिल कुमार भरोसा दिलाते हैं कि पर्यावरण नुकसान में खनन की कोई भूमिका नहीं है क्योंकि सभी तरह की सावधानियां बरतकर इसे अंजाम दिया जाता है। उन्होंने दावा किया, “हमें स्थानीय लोगों के लिए नौकिरयां और राज्य के लिए संसाधन चाहिए। खनन से दोनों मिलेंगे। खनन इस तरह किया जाएगा कि इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचे।”
हालांकि पर्यावरणविद इससे सहमत नहीं हैं। स्थानीय पर्यावरणविद् जतिंदर भड़ाना ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया,“अरावली में भरपूर जैव विविधता है। यहां पेड़ों, झाड़ियों और जड़ी-बूटियों की 400 से अधिक प्रजातियां हैं। 200 के करीब देशी और प्रवासी पक्षी प्रजातियां; 100 के आसपास तितली प्रजातियां; सांपों की करीब 20 प्रजातियां और 20 के करीब स्तनपायी प्रजातियां यहां पाई जाती हैं। इनमें तेंदुए भी शामिल हैं। अरावली जल स्तर को भी रिचार्ज करती है। लेकिन खनन के कारण, अब हम गिरते भूजल स्तर, प्रदूषण और तूफानों में बढ़ोतरी, बारिश के पैटर्न में बदलाव, झीलों के सूखने और जानवरों के नुकसान समेत जैव विविधता को खत्म होता देख रहे हैं।”
भड़ाना ने कहा कि अगर और खनन की अनुमति दी जाती है तो इसका स्थानीय पारिस्थितिकी पर हानिकारक असर पड़ेगा, जिसे ठीक करना असंभव है। उन्होंने सरकार से सभी तरह की खनन गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग की ताकि अरावली की पहाड़ियां सांस ले सकें।
बैनर तस्वीरः गुरुग्राम, हरियाणा में एक निर्माण स्थल पर काम करती महिलाएं। प्रतीकात्मक तस्वीर– माइकल कैनन/विकिमीडिया कॉमन्स