- बाढ़ और रुक-रुक कर होने वाली बारिश के डर से महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में किसान जल्द फसल की उम्मीद में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं।
- लेकिन, रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से मिट्टी में खारापन तेजी से बढ़ा है। खाद्य और कृषि संगठन का अनुमान है कि दुनियाभर में 8.33 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक नमक प्रभावित मिट्टी है, जो धरती का 8.7 फ़ीसदी हिस्सा है।
- कोल्हापुर के जंभाली गांव के किसान नारायण और कुसुम गायकवाड़ जैविक तरीके से गन्ना उगाकर रासायनिक खेती के दुष्परिणामों को दूर कर रहे हैं।
चौहत्तर साल के नारायण गायकवाड़ ने कभी नहीं सोचा था कि खेती के अपने तौर-तरीकों पर उन्हें फिर से विचार करना होगा। वे 60 सालों से भी ज्यादा समय से इस पेशे में हैं। लेकिन, मिट्टी में पोषक तत्वों की लगातार कमी और रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती कीमतों ने गायकवाड़ को जैविक खेती आजमाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने जून 2020 से इस विधि से खेती शुरू की।
गायकवाड़ बिना रासायनिक उर्वरकों के 30 से अधिक फसलों की खेती करना जानते थे। लेकिन, उन्होंने पहले कभी रासायनिक खाद के बिना गन्ने की खेती को आज़माया नहीं था क्योंकि इसे जोखिम भरा माना जाता था। इसके अलावा, नहीं आज़माने की एक और वजह मौसम का बदलता मिज़ाज भी था, जिसमें रुक-रुक कर होने वाली बारिश के साथ-साथ बढ़ती गर्मी और ठंड भी थी।
गायकवाड़ महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के जंभाली गांव के रहने वाले हैं। मौसम के बदलते मिज़ाज के बारे में वो कहते हैं, ”मैं पिछले चार सालों से ही इसका अनुभव कर रहा हूं।”
साल 2019 के बाद से ही कोल्हापुर में रुक-रुक कर बारिश हो रही है। इस दौरान अचानक से तापमान में बढ़ोतरी हो गई, जिसका बुरा असर फसलों पर पड़ा। कोल्हापुर के शिरोल में ठंड के मौसम में तापमान तेजी से गिरा और इस इलाके के लिए यह असामान्य घटना थी।
किसानों को लगा कि रासायनिक उर्वरकों का ज्यादा इस्तेमाल करने से पैदावार अधिक होगी। और इससे गन्ने की फसल को मौसम के बदलते मिज़ाज से भी निपटने में मदद मिलेगी।
हालांकि, रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते इस्तेमाल के साथ गायकवाड़ ने महसूस किया कि बगल के खेतों में मिट्टी खारी हो रही है। वो चिंतित थे। यही नहीं, उन्हें अपना कर्ज भी चुकाना था और इसका मतलब था कि गायकवाड़ को एक-एक पाई बचानी थी। वो कहते हैं, “एक एकड़ खेत के लिए, हमें 20 हजार रुपये के रासायनिक उर्वरकों की जरूरत होती है लेकिन मेरे पास फूटी कौड़ी नहीं थी।”
चिंतित गायकवाड़ के लिए नौ साल के उनके 9 वर्ष के पोते वरद किसी वरदान की तरह सामने आए। वरद ने अपने दादा को समाधान खोजने में मदद की। यूट्यूब पर ट्रैक्टर के वीडियो पंसद करने वाले वरद ने एक दिन “जैविक उर्वरक” खोजने के लिए वॉयस कमांड फीचर का इस्तेमाल किया। तुरंत ही जैविक खेती और उर्वरकों पर कई वीडियो सामने आए। गायकवाड़ ने उन्हें देखते हुए एक सप्ताह बिताया।
मन ही मन नोट बनाते हुए गायकवाड़ ने सबसे पहले एक बेकार डिब्बे में 190 लीटर पानी भरा। फिर उन्होंने दस किलोग्राम देसी गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, एक किलोग्राम चने का आटा और गुड़ मिलाया। इसके बाद, उन्होंने अगले पांच दिनों के लिए इस मिश्रण को सूरज की रोशनी से बचाकर रखा। यही नहीं, इसे हर दिन पांच मिनट तक हिलाते भी रहे। छठे दिन उन्होंने खेत में पटवन के साथ इस जैविक मिश्रण को मिला दिया।
साल 2020-21 में उन्होंने इस प्रक्रिया को हर 20 दिनों में दोहराया। यानी अपने 1.5 एकड़ के खेत में एक साल में लगभग 18 बार। आखिर में, इस विधि से उन्हें गन्ने की दो किस्मों (Co 86032 और Co 8021) की 77 टन उपज मिली। वो इस बदलाव के नफ़े-नुक़सान की बात करते हुए कहते हैं, “अगर मैंने रसायनों का इस्तेमाल किया होता तो उत्पादन 100 टन के क़रीब होता। लेकिन गायकवाड़ को अपने प्रयासों पर गर्व है।”
तस्वीर- संकेत जैन/मोंगाबे