Site icon Mongabay हिन्दी

जलवायु परिवर्तन से जंग में पीछे छूटते भारतीय बैंक

पवन चक्की से कुछ दूर जलावन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करता एक किसान। नेट जीरो को लेकर भारत की महत्वाकांक्षी योजना को लेकर जानकारों की राय है कि वर्तमान स्थिति में भारत की नीति निर्माण में भारी विरोधाभास है। तस्वीर- वेस्तास/याहू/फ्लिकर

पवन चक्की से कुछ दूर जलावन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करता एक किसान। नेट जीरो को लेकर भारत की महत्वाकांक्षी योजना को लेकर जानकारों की राय है कि वर्तमान स्थिति में भारत की नीति निर्माण में भारी विरोधाभास है। तस्वीर- वेस्तास/याहू/फ्लिकर

  • जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में भारत के बैंकिंग क्षेत्र को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। देश ग्रीन ट्रांजिशन की तरफ बढ़ रहा है जिसमें इन चुनौतियों को टालने और इनसे निपटने की क्षमता विकसित की जा रही है। हालांकि एक ताजा रिपोर्ट कहती है कि भारतीय बैंक इस भूमिका को निभाने के लिए तैयार नहीं हैं।
  • रिपोर्ट को क्लाइमेट रिस्क होराइजंस (सीआरएच) नामक थिंक टैक ने तैयार किया है। रिपोर्ट के मुताबिक देश के ज्यादातर बैंक ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को अपने व्यावसायिक नीतियों में शामिल तक नहीं किया है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकिंग संस्थाओं को नवीन ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कर्ज देने की अपनी नीति बनानी चाहिए।

भारत एनर्जी ट्रांजिशन के दौर से गुजर रहा है। इस ट्रांजिशन के तहत देश कार्बन उत्सर्जन करने वाले जीवाश्म ऊर्जा के स्रोत जैसे पेट्रोलियम, कोयला आदि की जगह सौर और पवन ऊर्जा जैसे ऊर्जा स्रोत को तेजी से अपना रहा है। हालांकि, बदलाव के इस दौर में देश के बैंक पीछे छूट रहे हैं। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की चुनौती और बदलाव की इस बयार को लेकर देश के बैंक तैयार नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन से होने वाले वित्तीय चुनौतियों को लेकर भी बैंकिंक क्षेत्र की तैयारी कुछ खास नहीं है। 

“अनप्रेपर्ड: इंडियाज बिग बैंक्स स्कोर पुअरली” नाम के इस रिपोर्ट को थिंक टैंक क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स (सीआरएच) द्वारा मार्च के शुरुआत में जारी किया गया। इस रिपोर्ट में सामने आया कि जलवायु चुनौती पर भारत के बड़े बैंकों का स्कोर काफी खराब है। रिपोर्ट में देश के 34 सबसे बड़े बैंक में से कुछ को छोड़कर, अधिकांश भारतीय बैंकों ने अपनी व्यावसायिक रणनीतियों में जलवायु परिवर्तन को शामिल करना शुरू भी नहीं किया है। 

कौन बैंक इस चुनौती को लेकर किस तरह की तैयारी कर रहा है इसकी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इस बात को रिपोर्ट में प्रमुखता से उठाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय बैंकों को अपनी क्षमता इस तरीके से बढ़ानी चाहिए कि वे जलवायु संबंधित चुनौतियों की वजह से होने वाले नुकसान से आसानी से निपट सकें। 

कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अधिकतर भारतीय बैंक ने इस दिशा में काम करने की शुरुआत तक नहीं की है। इस रिपोर्ट में कुछ बड़े बैंकों  का जिक्र है। जैसे भारतीय स्टेट बैंक और यूनियन बैंक, आईसीआईसीआई बैंक जैसे सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंक का जिक्र करते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की तैयारी के मामले में ये बैंक काफी खराब प्रदर्शन कर रहे हैं।

रिपोर्ट ने चेताया है कि यह स्थिति निवेशकों के लिए बेहद चिंताजनक है। साथ ही, इन संस्थानों की निगरानी करने वाले नियामकों (भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी) के लिए भी यह बेहद चिंताजनक है और इस बाबत कदम उठाने की जरूरत है। रिपोर्ट में आगे यस बैंक, इंडसइंड बैंक, एचडीएफसी बैंक और एक्सिस बैंक का जिक्र आता है जिन्हें इस रैंकिंग में शीर्ष स्थान दिया गया है। इन बैंकों ने जलवायु परिवर्तन को एक मुद्दा मानना शुरू कर दिया है। देश का सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक को इस रैंकिंग में छठवें स्थान पर रखा गया है। 

सामान्य तौर पर रैंकिंग से पता चलता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अपने प्रभाव और प्रभुत्व के बावजूद इस मामले में निजी बैंकों से पीछे हैं। 

भारतीय रिज़र्व बैंक की 2007 की एक तस्वीर। केंद्रीय बैंक ने अपने नवीनतम बुलेटिन में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव भारतीय बैंकों के लिए जोखिम पैदा करता है। तस्वीर- सोहम बनर्जी / फ़्लिकर
भारतीय रिज़र्व बैंक की 2007 की एक तस्वीर। केंद्रीय बैंक ने अपने नवीनतम बुलेटिन में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव भारतीय बैंकों के लिए जोखिम पैदा करता है। तस्वीर– सोहम बनर्जी / फ़्लिकर

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि केवल सात भारतीय बैंक हैं जिन्होंने “वनों की कटाई, मानवाधिकारों के उल्लंघन, और जैव विविधता के नुकसान, आदि में शामिल संस्थाओं को” उधार देने या सेवा देने से बाहर रखने की नीति बना रखी है। केवल दो बैंकों ने कोयला खानों और कोयला बिजली संयंत्रों को नए वित्तपोषण से बाहर रखा है। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 27 बैंकों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और उससे जूझने के लिए क्षमता विकसित करने के लिए हरित ऋण/बांड/वित्तीय सहयोग जारी किया है।

क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स के सीईओ और रिपोर्ट के लेखकों में से एक आशीष फर्नांडिस ने कहा कि इसका सार यह है कि भारतीय वित्तीय प्रणाली, जलवायु संकट के अनुसार खुद को ढालने में, पीछे छूट रही है। इसके परिणामस्वरूप इससे जुड़े वित्तीय संस्थान, कंपनियां, निवेशक और समूची अर्थव्यवस्था पर वित्तीय जोखिम आने का खतरा बना हुआ है।

उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि अगर नीतियां नहीं बनाई गईं तो जीरो कार्बन उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था हासिल करने में देरी होगी। इसका भी वित्तीय और भौतिक प्रभाव होगा।  

इसके कारण निवेश के जोखिम के बारे में पूछे जाने पर, फर्नांडिस ने कहा, “जीवाश्म ईंधन, विशेष रूप से कोयला, और तेल इत्यादि में नया निवेश रिस्की रहेगा।  इसके अतिरिक्त कुछ ढांचागत परियोजनाओं में निवेश भी रिस्की हो सकता है। इसमें तटीय सड़कें, बड़े बांध, बाढ़ के मैदानों में विकास इत्यादि शामिल हैं। 

उन्होंने जोर दिया कि बैंकों को अपने निवेश के लिए बदलते समय के अनुसार योजना बनाने की जरूरत है। 

इस रिपोर्ट में जिन बदलावों की बात की गई है वही बात संसद की एक हालिया रिपोर्ट में भी शामिल है। संसद की एक समिती द्वारा तैयार रिपोर्ट में सरकार को सुझाव दिया गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करने के लिए नीति बनाई जाए और इसके लिए बैंकों को बाध्य किया जाए। इससे नवीकरणीय क्षेत्र में एक तय प्रतिशत में निवेश हो सकेगा। 


और पढ़ेंः [व्याख्या] जस्ट ट्रांजिशन: जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में पीछे छूटते लोगों को साथ लेकर चलने की कोशिश


सीआरएच की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि कुछ अंतरराष्ट्रीय स्तर के बैंक ने कार्बन उत्सर्जन को रोकने के ऊपाय शुरू किए हैं। उन्होंने इस क्रम में निवेश के निर्णय में जलवायु-संबंधी जोखिमों का आकलन भी करना शुरू कर दिया है।  ऐसा करने वाले प्रमुख बैंकों में कैक्सा बैंक, इंटेसा सैनपोलो, डांस्के बैंक, मित्सुबिशी यूएफजे फाइनेंशियल ग्रुप (एमयूएफजी), केबीसी ग्रुप, यूबीएस, बैंको ब्रैडेस्को और एबीएन एमरो इत्यादि शामिल हैं। 

जीवाश्म ईंधन में निवेश से दूरी बनाने के लिए लक्ष्य की जरूरत 

सीआरएच रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने अक्षय ऊर्जा, रूफटॉप और कृषि सौर, परिवहन के विद्युतीकरण और उद्योग के लिए हरित हाइड्रोजन से संबंधित महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इन लक्ष्यों के माध्यम से भारत अपने बड़े जलवायु लक्ष्यों को हासिल कर सकेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकिंग संस्थानों को इन लक्ष्यों के साथ-साथ मिटीगेशन के लिए उपलब्ध फाइनैन्स से संबंधित जानकारी को सार्वजनिक करना चाहिए। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2070 तक भारत के कार्बन न्यूट्रल (कार्बन तटस्थता) बनाने के लिए बिजली, परिवहन, औद्योगिक क्षेत्र को काम शुरू कर देना चाहिए।

रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि जीवाश्म ईंधन और उच्च कार्बन उत्सर्जन करने वाले क्षेत्रों में  निवेश को खत्म करने के लिए स्पष्ट नीति की जरूरत है। 

अगर जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल-डीजल, कोयला और अन्य पेट्रोलियम ईंधन के उपक्रमों में निवेश से दूरी बढ़ाई जाए और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित किया जाए तो कार्बन उत्सर्जन करने वाले क्षेत्र से शून्य कार्बन उत्सर्जन वाले क्षेत्रों की तरफ बढ़ा जा सकता है। 

बिहार के गया जिले में मुख्यमंत्री सौर पंप योजना के तहत लगा सोलर पंप। तस्वीर- मनीष कुमार
बिहार के गया जिले में मुख्यमंत्री सौर पंप योजना के तहत लगा सोलर पंप। तस्वीर- मनीष कुमार

मार्च 2022 के बुलेटिन में भारतीय रिजर्व बैंक भारतीय बैंकों के इस मौजूद स्थिति के बार में बात की गयी है। इसमें कहा गया है कि नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक उपयोग करने वाले उत्पादकों का व्यवसाय प्रभावित होगा। इन उद्योगों पर जो खतरा मंडरा रहा है उसका असर भारतीय बैंकों पर भी हो सकता है। 

भारत के केंद्रीय बैंक ने पाया है कि प्रत्यक्ष जोखिम वाले तीन क्षेत्र – बिजली, रसायन और ऑटोमोबाइल – में औद्योगिक क्षेत्र के कुल ऋण का लगभग 24 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि इन क्षेत्रों में किसी भी परिवर्तन से बैंकिंग प्रणाली पर भी इसका असर होगा। कई अन्य उद्योग अप्रत्यक्ष रूप से जीवाश्म ईंधन का उपयोग करते हैं और इसलिए हरित ऊर्जा के लिए किसी भी बदलाव का उनकी आय पर भी प्रभाव पड़ सकता है। आरबीआई की बुलेटिन के मुताबिक समग्र बैंकिंग प्रणाली पर पड़ने वाले प्रभाव पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। 

भारत के केंद्रीय बैंक की भूमिका पर, फर्नांडिस ने कहा कि ऐसा लगता है कि आरबीआई धीरे-धीरे इस मुद्दे पर सजग हो रहा है।

“आरबीआई ने संकेत दिया है कि वह इस पर बैंकों के साथ संवाद करेगा, लेकिन अभी कोई ठोस कार्रवाई या नियम आना बाकी है। जाहिर है, आरबीआई जितनी तेजी से इस पर आगे बढ़ सकता है, उतना अच्छा होगा ,” उन्होंने कहा। 


और पढ़ेंः ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी: हाइड्रोजन को फ्यूचर फ्यूल बनाने की कोशिश


सीआरएच रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई ने अभी तक शेड्यूल्ड और कमर्सियल बैंकों के लिए इन जोखिमों के आकलन या प्रबंधन पर कोई जलवायु संबंधी दिशानिर्देश जारी नहीं किए हैं।  हालांकि, 2022 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, आरबीआई जलवायु जोखिम पर बैंकों की प्रगति का आकलन करने की प्रक्रिया में है।

ऊर्जा के मुद्दों पर काम करने वाले पुणे स्थित एक संगठन प्रयास से जुड़े वित्त विशेषज्ञ सोनाली गोखले ने बताया कि वर्तमान में भारत का बैंकिंग क्षेत्र विभिन्न क्षेत्रों के बचे हुए ऋणों (एनपीए) से जूझ रहा है। जिसमें बिजली क्षेत्र का बड़ा योगदान है।

“आरबीआई और सेबी ने हाल ही में कुछ अध्ययन प्रकाशित किए हैं। हम उम्मीद करते हैं कि समय के साथ भारत के वित्तीय बाजारों की परिपक्वता और भविष्य की विकास योजनाओं के अनुरूप नियामकों द्वारा जलवायु जोखिम मूल्यांकन के लिए उपयुक्त रूपरेखा विकसित की जाएगी,” गोखले ने कहा।

 

बैनर तस्वीरः पवन चक्की से कुछ दूर जलावन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करता एक किसान। तस्वीर– वेस्तास/याहू/फ्लिकर

Exit mobile version