- भारत ने अब तक 9.45 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य पूरा कर लिया है और उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2022 तक 10 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य भी पूरा कर लिया जाएगा।
- इथेनॉल नवीकरणीय ऊर्जा का एक स्रोत है। पेट्रोल में इसे मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। भारत सरकार पेट्रोल में अधिक से अधिक इथेनॉल मिलाकर कई लक्ष्य साधना चाहती है। इसमें पेट्रोल के आयात के खर्च को कम करना, गाड़ियों का बेहतर प्रदर्शन एवं कार्बन उत्सर्जन को कम करना इत्यादि शामिल है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि खाद्य समाग्रियों का इस्तेमाल कर इथेनॉल का निर्माण से देश की खाद्य सुरक्षा, खेतों और भूजल के लिए खतरा पैदा हो सकता हैं।
भारत सरकार ने हाल ही में संसद में पेश किए अपने बजट भाषण में बताया कि देश ने 9.45 प्रतिशत की इथेनॉल-पेट्रोल मिश्रण के लक्ष्य को हासिल कर लिया है। इस साल के अंत तक सरकार इसे बढ़ाकर 10 प्रतिशत तक ले जाना चाहती है। सरकार का कहना है कि इससे कई तरह का फायदा होगा। इसमें कार्बन उत्सर्जन में कमी और अन्य पर्यावरण से जुड़े फ़ायदे शामिल हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि भारत सरकार का यह लक्ष्य भी जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के कई राज्यों ने इसे हासिल भी कर लिया है यानी इन राज्यों में पेट्रोल में 10 प्रतिशत इथेनॉल मिलाया जाने लगा है। सरकार के संसद में मार्च 25 को दिये आंकड़ों के मुताबित 11 राज्य/केंद्र शाषित प्रदेशों ने इस लक्ष्य को हासिल कर लिया है। इनमें आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, पंजाब, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, दमन और दीव के साथ नगर हवेली शामिल हैं। भारत सरकार ने 2022 तक 10 प्रतिशत इथेनॉल-पेट्रोल मिश्रण का लक्ष्य रखा है। इसे आने वाले तीन सालों यानी 2025 तक 20 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य है।
इथेनॉल नवीकरणीय ऊर्जा का एक अच्छा स्रोत माना जाता हैं। इसे खाद्य सामाग्री जैसे गन्ने के जूस, गुड़ आदि से बनाया जाता है। इसे इथेनॉल का प्रथम श्रेणी के स्रोत कहा जाता है जबकि स्टार्च रहित फाइबर से लबरेज पौधे जैसे धान की भूसी, खोई, वन अवशेष आदि को द्वितीय श्रेणी का स्रोत माना जाता है।
भारत सरकार ने इथेनॉल मिश्रण परियोजना की शुरुआत 2003 में कुछ चुनिन्दा राज्यों में की थी। उस समय 5 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य रखा गया था। बाद में 2006 में इसे और व्यापक बनाया गया।
इथेनॉल में अधिक ऑक्टेन संख्या होने के कारण इसे एक बेहतर ईंधन माना जाता है। यह गाड़ी के इंजन और पर्यावरण, दोनों के लिहाज से अच्छा माना जाता है। यह पूरी तरह से जल जाता है जिससे वातावरण मे कम कार्बन मोनोआक्साइड उत्सर्जित होता है।
इन सबके बावजूद भी आगे की राह आसान नहीं है। सरकार इस मिश्रण में इथेनॉल की मात्रा 20 फीसदी तक ले जाना चाहती है। इसे देखते हुए विशेषज्ञ मानते हैं कि इथेनॉल पर अत्यधिक निर्भरता से कृषि और भूजल से जुड़ी ढेरों समस्याएं पैदा हो सकती हैं। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इथेनॉल बनाने में भोज्य पदार्थों का अधिक इस्तेमाल मतलब खेती की जमीन का अधिक इस्तेमाल। इससे खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
रम्या नटराजन, बेंगलुरु स्थित एक शोधकर्ता हैं और सेंटर फार स्टडी ऑफ साइन्स और पॉलिसी (सीएसटीईपी) से जुड़ी हैं। नटराजन ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि मौजूदा नीति का दुष्प्रभाव अनेक क्षेत्रों मे देखने को मिल सकता है। इसमें कृषि और ऑटोमोबाइल क्षेत्र शामिल है।
“भारत में आज भी इथेनॉल का निर्माण सबसे ज्यादा गन्ने से किया जाता है जिसकी खेती मे पानी की खपत काफी होती है। सीएसटीईपी के एक आंकलन के मुताबित भारत को अपने इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य 10 प्रतिशत तक ही सीमित रखना चाहिए। अगर इसे 20 प्रतिशत तक बढ़ाया गया तो कृषि योग्य जमीन और भूजल की जरूरत होगी। इससे देश की खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इसके अलावा मौजूदा गाड़ियां 5 से 10 प्रतिशत के मिश्रण से चल सकती हैं। अगर मिश्रण में इथेनॉल की मात्रा 20 प्रतिशत तक की गयी तो इसके इस्तेमाल के लिए नई गाड़ियों की जरूरत होगी। या पुराने गाडियों के मरम्मत की जरूरत होगी। इन सबपर आने वाले अतिरिक्त खर्च के लिए फिर तैयार होना पड़ेगा,” नटराजन कहती हैं।
नटराजन का कहना है कि पर्यावरण के लिए और खाद्य सुरक्षा के संतुलन को बनाए रखने के लिए देश को 10 प्रतिशत मिश्रण से ही संतुष्ट रहना चाहिए।
नटराजन के विचार, खुद नीति आयोग अध्ययन से मेल खाते हैं। नीति आयोग की 2019-20 की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश मे इथेनॉल के निर्माण में प्रयोग किए गए स्रोत का 91 प्रतिशत भाग गन्ने से ही आता है। नीति आयोग के एक और रिपोर्ट के अनुसार देश में गन्ने और धान के कृषि में ही देश की सिंचाई का 70 प्रतिशत हिस्सा चला जाता है। इससे दूसरी फसलों की सिंचाई प्रभावित होती है।
प्रोमित मुखर्जी, नई दिल्ली में ओआरएफ़ नामक संस्था मे एक शोधकर्ता हैं। मुखर्जी, इथेनॉल उत्पादन में प्रथम श्रेणी के स्रोतो के प्रयोग के सख्त खिलाफ हैं। हाल ही के एक लेख में मुखर्जी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इथेनॉल निर्माण के लिए द्वितीय श्रेणी स्रोत से प्रथम श्रेणी स्रोत की ओर जाना, पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है। खासकर तब जब इथेनॉल जैसे ईंधन का उपयोग यह कह कर किया जा रहा है कि इससे उत्सर्जन कम होगा, मुखर्जी कहते हैं।
मुखर्जी बताते हैं कि भारत में इथेनॉल बनाने की लागत अन्य देशों के मुकाबले अधिक है। क्योंकि यहां इसका निर्माण ऐसे खाद्य सामग्री पर निर्भर है जिसमें सब्सिडी दी जाती है। अगर हमें इथेनॉल के निर्माण पर लग रहे खर्च को कम करना है तो हमें कचरे या दूसरे श्रेणी के अन्य स्रोतों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा। हालांकि इस दिशा में बहुत शोध नहीं हुआ है। इसके लिए सरकारी निवेश, शोध इत्यादि की जरूरत है ताकि इसे व्यावसायिक स्तर पर अपनाया जा सके।
मुखर्जी की चिंताए भारत सरकार के 2018 जैव ईंधन नीति और 2021 मे नीति आयोग द्वारा बनाए गए इथेनॉल मिश्रण के रोडमप को लेकर है। 2018 में आई जैव ईंधन नीति में प्रथम श्रेणी के स्रोतों पर निर्भरता दिखाई गयी थी। वहीं, नीति आयोग की 2021 रोडमैप ने इथेनॉल उत्पादन में फिर से ज़ोर देने की बात की गयी है पर इसके लिए दूसरे श्रेणी के स्रोतों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
भारत सरकार ने पहले 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य 2030 तक हासिल करने का निर्णय लिया था। अपनी पिछली सफलता से उत्साहित सरकार ने अब इसे 2025 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इसके साथ ही डीजल मे भी 5 प्रतिशत का बायोडीजल मिश्रण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वह भी 2025 तक ही पूरा किया जाना है।
इथेनॉल का निर्माण सामान्यतः गन्ने या चीनी से बने पदार्थो से होता है वहीं बायोडीजल को बनाने में बीज या पौधों का इस्तेमाल होता है।
भोजन या ईंधन
2020 के वैश्विक भूख सूचकांक या ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत को 94 वां स्थान दिया है। कुल 107 देशों की गिनती में। ऐसे स्थिति में खाने के स्रोतों से ईंधन बनाने की पूरी प्रक्रिया चिंता का विषय है।
कुछ अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में यह भी कहा गया है कि जब भारत में नवीन ऊर्जा का विस्तार इतनी तेजी से हो रहा है तो जैव ईंधन पर इतना ध्यान न्यायसंगत नहीं है।
इंस्टिट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंसियल एनालिसिस (आईईईएफ़ए) ने यह पाया कि एक इलेक्ट्रिक वाहन को जितनी ऊर्जा 1 हेक्टेयर में लगे सौर प्लांट से मिलेगी, उतने के लिए 251 हेक्टेयर में गन्ने की खेती करने होगी, अगर इथेनॉल पर निर्भरता बढ़ानी है।
इस अध्ययन में यह भी कहा गया कि इतने बड़े स्तर पर खेतों को इन लक्ष्यों के लिए इस्तेमाल करना, देश के खाद्य सुरक्षा, पानी की सुरक्षा को संकट में डालेगा।
निर्माण से जुड़े समाधान
गुजरात के आनंद में रह रहे डॉ संजीब कुमार कर्मी, सरदार पटेल नवीकरणीय ऊर्जा अनुसंधान केंद्र (एसपीआरईआई) में प्रमुख वैज्ञानिक हैं। उन्होने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “देश मे कई जगहों पर इथेनॉल के निर्माण के लिए कारखाने बने हैं। लेकिन बहुत सी जगहों पर साल भर का निरंतर कच्चा माल (स्त्रोत) नहीं मिल पाता जिससे इथेनॉल बनाया जा सके। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन मशीनों में एक ही किस्म के खाद्य सामाग्री का प्रयोग किया जाता रहा है। यह किस्म साल भर नहीं मिल सकता।”
इन सभी संभावित चुनौतियों के बाद भी भारत सरकार देश मे इथेनॉल का निर्माण बढ़ाने मे लगी है। सरकार की दलील है कि भारत मे ऊर्जा की खपत वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है और देश में आज भी विदेशों से तेल का आयात हो रहा है। सरकार ने हाल ही में भारत खाद्य निगम (एफ़सीआई) मे मौजूद अधिक चावलों को भी इथेनॉल के निर्माण के लिए अनुमति दे दी है।
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) के मुताबित इथेनॉल बनाने के मामले में भारत चौथा सबसे बड़ा देश है। 2023 तक तीसरे स्थान पर आ जाने की संभावना है। अभी ब्राज़ील, अमरीका और चीन इथेनॉल निर्माण में भारत से आगे हैं। 2013-14 (इथेनॉल आपूर्ति वर्ष) में देश मे इथेनॉल के उत्पादन 1.55 करोड़ लीटर था जो 2021-21 में 302.30 करोड़ लीटर हो गया।
बैनर तस्वीरः महाराष्ट्र के गन्ना समृद्ध क्षेत्र बारामती में एक किसान अपने खेत की जुताई करता हुआ। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे