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क्या बैंकों द्वारा नवीन ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने से भारत के ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव आएगा?

मध्यप्रदेश के रीवा स्थित सोलर प्लांट। यहां बनने वाली बिजली का एक बड़ा भाग दिल्ली में मेट्रो परिचालन के लिए भेजा जाता है। आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली मेट्रो में 60 फीसदी बिजली की जरूरत इस पार्क से पूरी होती है। तस्वीर- मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम

मध्यप्रदेश के रीवा स्थित सोलर प्लांट। यहां बनने वाली बिजली का एक बड़ा भाग दिल्ली में मेट्रो परिचालन के लिए भेजा जाता है। आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली मेट्रो में 60 फीसदी बिजली की जरूरत इस पार्क से पूरी होती है। तस्वीर- मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम

  • भारत को 2030 तक अपनी क्लीन एनर्जी टारगेट को अर्जित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 1.5 से 2 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है। जबकि वर्तमान में इसका बजट 750 बिलियन रुपए है जो कि लक्ष्य का तकरीबन आधा है।
  • भारतीय संसद की एक समिति के द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट ने देश के बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ‘रिन्यूएबल वित्तीय दायित्व’ की सिफारिश की है। ताकि वे अपने निवेश का एक हिस्सा रिन्यूएबल उर्जा क्षेत्र में निवेश कर सकें।
  • समिति ने सरकार से हरित बैंक व्यवस्था को संचालित करने का आग्रह किया है, ताकि वित्तीय चुनौतियों का मुकाबला किया जा सकें।

2030 तक क्लीन एनर्जी के अपने तयशुदा लक्ष्य को पाने के लिए भारत को वर्तमान में निवेश की जा रही धन राशि की तुलना में कम से कम दोगुने धन की आवश्यकता है। इस बात को ध्यान देते हुए संसदीय समिति ने इस सेक्टर के लिए वित्तीय सुविधा हेतु कुछ तरकीबों की सिफारिश की है।

गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित उर्जा परियोजना की क्षमता को स्थापित करने के लिए भारत को 2030 तक 500 गिगावाट के लक्ष्य को हासिल करना होगा। इसके लिए भारत को प्रत्येक वर्ष 1.5 से 2 लाख करोड़ (1.5-2 ट्रिलियन) के निवेश की आवश्यकता होगी। एक आकलन के अनुसार हाल के वर्षों में भारत का रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में सालाना निवेश 75,000 करोड़ रुपये रहा है।

आने वाले आठ वर्षों में भारत के उर्जा वृद्धि के लिए जितनी राशि की जरूरत है और जितना अभी खर्च हो रहा है इसके बीच करीब दोगुने का अंतर है। यह देखते हुए भारतीय संसद की एक समिति ने सरकार को सुझाव पेश किया है। ताकि यह राशि सुनिश्चित की जा सके की नवीन ऊर्जा का विकास अबाध गति से चलती रहे। समिति ने “बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए “रिन्यूएबल वित्तीय दायित्व” लागू करने पर विचार करने का सुझाव दिया है। ताकि वे अपने निवेश का एक हिस्सा नवीन ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करें। नवीन और नवीनकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के अनुसार 2030 तक लगभग 17 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत है।

फरवरी 2022 को जनता दल (यूनाइटेड) के नेता राजीव रंजन सिंह के नेतृत्व में संसदीय स्थायी समिति के द्वारा ऊर्जा पर प्रस्तुत रिपोर्ट में “आवश्यक और वास्तविक निवेश के बीच के भारी अंतर” का उल्लेख करते हुए कहा गया था कि इसे पूरा करना एक “बड़ा लक्ष्य” होगा। इसके लिए सरकार द्वारा बनाए गए एक सक्षम ढांचे की जरूरत है।

इस रिपोर्ट ने सरकार को “स्थायी वित्तीय संबंधी चुनौतियों” का हल निकालने के लिए “एक हरित बैंक प्रणाली” को स्थापित करने का सुझाव दिया। यह ग्रीन बैंक सिस्टम सार्वजनिक क्षेत्र का होगा, जो स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए कम लागत वाली पूंजी सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

राजस्थान में लगा सौर ऊर्जा का संयंत्र। विदेशी निवेश को आकर्षित करने के मामले में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र अग्रणी रहा है। तस्वीर- जितेंद्र परिहार/थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन/फ्लिकर
राजस्थान में लगा सौर ऊर्जा का संयंत्र। तस्वीर– जितेंद्र परिहार/थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन/फ्लिकर

समिति ने एमएनआरई से “वित्तीय व्यवस्था का नया तंत्र और वैकल्पिक वित्तीय पूर्ति” का रास्ता तलाशने को कहा था। इनमें इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड, इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट, अल्टरनेट इन्वेस्टमेंट फंड्स, ग्रीन बांड, क्राउड फंडिंग इत्यादि शामिल हैं।”

वर्तमान में 28 फरवरी, 2022 तक भारत की कुल ऊर्जा क्षमता 395.6 गीगावाट है और इसमें से नवीन उर्जा का हिस्सा 106.3 गीगावाट है। 2029-30 तक इसकी कुल क्षमता 820 गीगावाट तक होने का अनुमान है। इसमें से तकरीबन 450 गीगावाट नवीन ऊर्जा के जरिए प्राप्त होने की उम्मीद है।

भारत में, नवीन ऊर्जा प्रोजेक्ट के वित्तीय पोषण के लिए पहले से ही, द इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (इरेडा) मौजूद है। यह एक विशेष सार्वजनिक वित्तीय संस्था है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। 31 मार्च, 2021 तक इरेडा ने 96,250 करोड़ रुपये का ऋण देकर पूरे भारत में 2,800 से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को वित्त पोषित किया था। इसने हरित ऊर्जा की क्षमता में वृद्धि के लिए 16.16 गीगावाट से अधिक की क्षमता के लिए 63,158 करोड़ रुपये दिया था।

भारत सरकार ने समिति को बताया कि अपनी सीमित क्षमता की वजह से बड़ी क्षमता वाली परियोजनाओं को वित्तीय मदद देने में इरेडा, सक्षम नहीं है। लेकिन इरेडा अपने वित्तीय मजबूती के लिए आईपीओ के साथ काम करने की योजना बना रहा है। समिति ने सुझाया कि इरेडा को भी रिन्यूएबल ऊर्जा क्षेत्र के लिए कम लागत वाले वित्तीय संसाधनों को सुनिश्चित करने के लिए दूसरे महत्वपूर्ण संस्थानों की तरह ही रेपो दर पर भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार लेने के लिए विशेष छूट और सहूलियत दी जानी चाहिए।

हालांकि, डिपार्टमेंट ऑफ प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड के अनुसार सन 2010-11 और 2019-20 के बीच की दस वर्ष की अवधि के दौरान, भारतीय गैर-पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्र में “एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) का इक्विटी फ्लो” केवल 840 करोड़ अमेरिकी डॉलर ही रहा है।

साल दर साल, भारत सरकार ने रिन्यूएबल ऊर्जा क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने के लिए आटोमेटिक रूट के तहत सौ प्रतिशत एफडीआई, एक्सेलरेटेड डेप्रिसिएशन जैसे राजकोषीय प्रोत्साहन, कम दरों पर गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी), रियायती सीमा शुल्क, प्लग और प्ले (लगाओ और चलाओ) की बहुत सी सुविधाएं दी हैं। जिसके आधार पर जमीन मुहैया कराना और उसका हस्तांतरण करना भी शामिल है। ताकि अल्ट्रा-मेगा रिन्यूएबल एनर्जी पार्कों की स्थापना की जा सके।

रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट्स को वित्तीय मदद 

संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत में, केवल “कुछ वित्तीय संस्थान और बहुत कम बैंक ऐसे हैं जो रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में वित्तीय सहायता दे रहे हैं। क्योंकि सभी वित्तीय संस्थान और बैंक इस क्षेत्र में रिटर्न (लाभ) और जोखिम को नहीं समझते हैं। ऐसे में परियोजनाओं के वित्त की व्यवस्था एक बड़ी चुनौती बन जाती है।

संसदीय समिति ने पाया कि उन्हें ऐसा भी बताया गया कि भारत की वित्तीय प्रणाली में ‘हरित’ नाम का कोई तत्व मौजूद नहीं है। और इसलिए “रिन्यूएबल ऊर्जा की परियोजनाओं को अन्य दूसरी परियोजना के रूप में ही देखा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रिन्यूएबल ऊर्जा का अप्रत्यक्ष लाभ पर्यावरण और समाज को बड़े पैमाने मिलता है। इस वजह से निवेश के वक़्त इस पर अक्सर विचार नहीं किया जाता है। समिति ने यह भी पाया कि ऐसे परिदृश्य में जब बैंकिंग क्षेत्र रिन्यूएबल ऊर्जा क्षेत्र को वित्तीय सहायता देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता है तो इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र को आगे आना चाहिए।

भारत के राज्य तेलंगाना में बना सौर ऊर्जा का प्लांट। फोटो- थॉमस लॉयड ग्रुप/विकिमीडिया कॉमन्स
भारत के राज्य तेलंगाना में बना सौर ऊर्जा का प्लांट। फोटो– थॉमस लॉयड ग्रुप/विकिमीडिया कॉमन्स

सुरेश कोज्हिकोटे, जो कि एसबीआईकैप वेंचर लिमिटेड में प्रबंधक निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी है उन्होंने बताया कि ग्रीन प्रोजेक्ट के साथ नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेशकों की रूचि पिछले पांच सालों में निश्चित तौर पर बढ़ी है।

कोज्हिकोटे ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि अभी हम एसवीएल-एसएमई के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू संस्थागत निवेशकों (जिसमे खुदरा निवेशक शामिल नहीं हैं) के माध्यम से लगभग 2000 करोड़ रूपया जुटाने की प्रक्रिया में हैं। यह राशि हरित परियोजनाओं के लिए जुटाई जा रही है। जिसमें कचड़ा (वेस्ट) मैनेजमेंट, प्रदूषण नियंत्रण, नवीकरणीय ऊर्जा, और अन्य परियोजनायें भी शामिल हैं। हमने इसकी शुरुआत 400 करोड़ रुपया जुटाने के लक्ष्य से किया था, लेकिन हमारी शुरुआत काफी ठीक रही और हम उम्मीद करते हैं कि वित्तीय वर्ष 2023 के अंत तक, हम 2000 करोड़ रुपए जुटा सकेंगे। इस मद को हम अगले पांच वर्षों तक हरित परियोजनाओं पर निवेश करेंगे, ऐसी उम्मीद है।

भारत में ऊर्जा परियोजनाओं के वित्त के सबंध में, सेंटर फॉर फाइनेंसियल एकाउंटेबिलिटी और क्लाइमेट ट्रेंड का हालिया अध्ययन बताता है कि 2020 में रिन्यूएबल ऊर्जा परियोजनाओं को वित्तीय सहायता देने में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया सबसे आगे रहा। जबकि, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी), और इसकी सहायक ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कारपोरेशन), एकमात्र राज्य स्वामित्व वाली वित्तीय संस्थान रहा जिसने 2020 में कोयला बिजली परियोजनाओं को वित्तीय पोषण प्रदान किया था।

इस दौरान समिति ने यह भी पाया कि “पीएफसी लिमिटेड, आरईसी लिमिटेड और इरेडा जैसी सरकारी स्वामित्व वाले सेक्टरों को सहायक नीतिगत पहलुओं, छूटों, रियायतों आदि के माध्यम से सुविधा देने और प्रोत्साहित करने की जरूरत है। ताकि फंड पर निर्भरता को कम किया जा सके।

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) के लीड इंडिया में कार्यरत, ऊर्जा अर्थशास्त्री विभूति गर्ग ने बताया कि इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के इंडिया आउटलुक एनर्जी 2021 के अनुसार, सस्टेनेबल डेवलपमेंट परिदृश्य के तहत रिन्यूएबल ऊर्जा लगाने के लिए- बैटरी स्टोरेज, इलेक्ट्रिक वहान, और नेटवर्क विस्तार के साथ ग्रिड के आधुनिकीकरण के लिए भारत को सालाना 11,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की जरूरत होगी। यह राशि इस क्षेत्रों में हो रहे वर्तमान निवेश यानी 400 करोड़ अमेरिकी डॉलर से तीन गुना अधिक है।

पवन चक्की से कुछ दूर जलावन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करता एक किसान। नेट जीरो को लेकर भारत की महत्वाकांक्षी योजना को लेकर जानकारों की राय है कि वर्तमान स्थिति में भारत की नीति निर्माण में भारी विरोधाभास है। तस्वीर- वेस्तास/याहू/फ्लिकर
पवन चक्की से कुछ दूर जलावन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करता एक किसान। तस्वीर– वेस्तास/याहू/फ्लिकर

कॉप 26 (ग्लासगो क्लाइमेट समिट) में भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने मांग की है कि अमीर देश अगले दशक में भारत के जलवायु वित्तीय सहायता के लिए 1 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता करें। यह धनराशि पुरानी डील के अनुसार समस्त विकासशील देशों को प्रति वर्ष में दी जाने वाली 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की धनराशि से बहुत अधिक है। गर्ग ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि आईईईएफए ने पाया कि भारत प्राइवेट ग्लोबल मार्किट से फण्ड इकट्ठा करने में सफल रहा है।

नवीन ऊर्जा की वास्तविकता को समझना जरूरी है

संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि नवीन ऊर्जा क्षेत्र की कुछ जरूरी वास्तविकताओं को “वित्तीय सहायता और निवेश से जुड़ी नीतियों को तैयार करते वक्त ध्यान में नहीं रखा जाता है। क्योंकि रिन्यूएबल एनर्जी के मौसमी होने के चलते राजस्व की प्राप्ति पूरे वर्ष एक समान नहीं रहती है। जिसके चलते रिन्यूएबल ऊर्जा परियोजनायें रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के नियमों और दिशानिर्देशों का अनुपालन करने सक्षम नहीं हो पाती। इसकी वजह से इन परियोजनाओं का एनपीए (नॉन परफोरमिंग एसेट) होने का खतरा बढ़ जाता है।


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समिति ने एमएनआरई  को उन बैंकों से आग्रह करने को कहा जो रिन्यूएबल ऊर्जा सेक्टर को फंड मुहैया कराते हैं कि वे लोन को अलग तरह से पुनर्गठित करके धनराशि उपलब्ध कराएं। ऐसे मौसम में ईएमआई ज्यादा रखा जाए जब सबसे अधिक रिन्यूएबल ऊर्जा पैदा होती है जबकि ऑफ़-सीजन के दौरान इसे कम कर दिया जाये। इसने केन्द्रीय मंत्रालय से राज्य सरकारों के साथ जुडकर काम करने का भी आग्रह किया है ताकि पीपीए का किसी भी तरह से एकतरफा कैंसलेशन/रिजिगनेशन से बचा जा सके। क्योंकि ऐसा होने से अनिश्चितता बढ़ती है और रिन्यूएबल ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।

संसदीय समिति ने यह भी पाया कि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया रिन्यूएबल ऊर्जा क्षेत्र को गैर-जरूरी क्षेत्र की ऋण की सूची में रख कर 30 करोड़ के लोन की एक सीमा निर्धारित की है। एमएनआरई के अनुसार किसी भी तरह से पर्याप्त नहीं है। क्योंकि यह केवल रिन्यूएबल ऊर्जा की छोटी परियोजनाओं की ही पूर्ति कर सकता है। अतः इस सीमा को बढ़ाने की जरूरत है।

 

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बैनर तस्वीरः मध्यप्रदेश के रीवा स्थित सोलर प्लांट। यहां बनने वाली बिजली का एक बड़ा भाग दिल्ली में मेट्रो परिचालन के लिए भेजा जाता है। आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली मेट्रो में 60 फीसदी बिजली की जरूरत इस पार्क से पूरी होती है। तस्वीर- मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम

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