Site icon Mongabay हिन्दी

बिहार में शिकारियों की बहार, प्रवासी पक्षियों का हो रहा कारोबार

बिहार के दरभंगा स्थित नेहरा में चन्दियार पक्षियों का एक समूह। तस्वीर- Vaibhavcho/विकिमीडिया कॉमन्स

बिहार के दरभंगा स्थित नेहरा में चन्दियार पक्षियों का एक समूह। तस्वीर- Vaibhavcho/विकिमीडिया कॉमन्स

  • बिहार में विकासात्मक गतिविधियां बढ़ने और झीलों के सिकुड़ते रकबे की वजह से प्रवासी पक्षियों की आवक कम हो रही है। राज्य सरकार की ‘बर्ड्स इन बिहार’ पुस्तक से इसका खुलासा हुआ है।
  • बिहार में प्रवासी पक्षियों की संख्या में कितनी कमी आई है, इसका ठोस आंकड़ा तो मौजूद नहीं है लेकिन जानकारों का कहना है कि शिकार भी इन पक्षियों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार है।
  • राज्य में कई जगहों पर पक्षियों की खरीद-बिक्री हो रही है। अधिकारियों का कहना है कि इस पर रोक लगाने का निर्देश दिया गया है। बिहार सरकार ने पक्षियों की सही संख्या का पता लगाने के लिए गणना भी शुरू की है।

प्रवासी पक्षियों के लिए स्वर्ग माने जाने वाले बिहार में अब इन मेहमानों की तादाद घटती जा रही है। बिहार के वन और पर्यावरण मंत्रालय की ओर से प्रकाशित बर्ड्स इन बिहार  इसका उल्लेख मिलता है। इसके मुताबिक अक्टूबर से फरवरी महीने के दौरान बिहार की झीलें, नदियां और ताल-तलैया प्रवासी मेहमानों से गुलजार रहते हैं। लेकिन विकासात्मक गतिविधियां के बढ़ने और पोखर-तालाब व झीलों के सिकुड़ने की वजह से प्रवासी पक्षियों की संख्या कम हो रही है।  

हालांकि पक्षियों के लिए काम करने वाले संगठन शिकार को भी बड़ी वजह मानते हैं। इस वजह से पक्षियों ने कई इलाकों में आना बंद या कम कर दिया है। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस), नालंदा के पक्षी अनुसंधानक राहुल कुमार बताते हैं, “लगभग 10-12 साल पहले तक बिहार में पांच लाख से अधिक प्रवासी पक्षी आते थे। लेकिन अब पूरे सूबे में एक लाख के आसपास ही पक्षियों का आगमन होता है। शिकारियों की संख्या बढ़ना, फसलचक्र बदलना, कीटनाशकों के अधिकाधिक उपयोग के साथ-साथ जलस्रोतों में पानी की अधिकता के बाद अचानक सूख जाना इसकी बड़ी वजह है।”

ऐसा भी नहीं है कि बिहार सरकार को पक्षियों के शिकार और अवैध व्यापार की जानकारी नहीं है। इसे रोकने के लिए राज्य सरकार ने एक समिति गठित की थी। बिहार और झारखंड में लंबे समय से विलुप्तप्राय पक्षियों के संरक्षण में जुटे पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा बताते हैं, “बिहार सरकार के आदेश पर 2020 में  प्रवासी पक्षियों का अवैध व्यापार रोकने के लिए अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक प्रभात कुमार गुप्ता की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी। जिस समिति के सात सदस्यों में मैं भी था। इस समिति के गठन के बाद ही प्रवासी पक्षियों का बिक्री खुलेआम बंद हो पाई। चाहे वह भागलपुर का पक्षी बाजार हो या पसराहा चौक, जहां सबसे ज्यादा प्रवासी पक्षियों का शिकार कर बिक्री की जाती थी।” 

उत्तर बिहार में विदेशी पक्षियों का सबसे ज्यादा शिकार

वैसे तो बिहार के कई इलाकों में मांस के लिए प्रवासी पक्षियों का शिकार होता है। लेकिन उत्तर बिहार यानी भागलपुर, खगड़िया, सुपौल, सहरसा, बेगूसराय और मोतिहारी जिले इसके लिए सबसे ज्यादा कुख्यात हैं। 

पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा कहते हैं,दक्षिण बिहार और उत्तर बिहार की स्थिति अलग है। उत्तर बिहार में स्टेटस सिंबल और मिथक के कारण हर साल प्रवासी पक्षियों का शिकार होता है। 1980 के दशक में ठंड के मौसम में मंत्री और बड़े-बड़े अधिकारियों के गंगा-कोसी क्षेत्र भ्रमण के दौरान उपहार स्वरूप प्रवासी पक्षियों को भेंट किया जाता था।” 

बेगूसराय स्थित कांवर झील। साल 2017 में छपे एक शोध पत्र के मुताबिक कावर झील के आसपास पक्षियों के शिकार की वजह से प्रवासी मेहमानों का आना बहुत कम हो गया है। तस्वीर- समीर वर्मा
बेगूसराय स्थित कांवर झील। साल 2017 में छपे एक शोध पत्र के मुताबिक कावर झील के आसपास पक्षियों के शिकार की वजह से प्रवासी मेहमानों का आना बहुत कम हो गया है। तस्वीर- समीर वर्मा

उन्होंने कहा, आज भी इसको खाने वाले अधिकतर अमीर वर्ग के लोग ही हैं। साथ ही इन पक्षियों के मांस लाल होने से एक धारणा यह भी है कि इसे खाने से शरीर को ज्यादा खून मिलेगा। हालांकि यह पूरी तरह से गलत है। शिकार और अन्य वजहों से अब प्रवासी पक्षियों का आना भी कम हो गया है। हालांकि बिहार सरकार ने इन पक्षियों को बचाने के लिए कई कदम उठाए हैं और इसका शुरुआती लाभ भी मिला है।” 

बिहार में पक्षियों का शिकार लंबे समय से होता रहा है। लेकिन इस बारे में ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। हालांकि समय-समय पर राज्य सरकार की तरफ से शिकारियों पर सख्ती का आदेश भी निकाला जाता है। पिछले साल नवंबर में राज्य के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग ने संबंधित अथॉरिटी को राज्य की प्रमुख झीलों के आसपास निगरानी बढ़ाने का निर्देश दिया था ताकि पक्षियों का शिकार रोका जा सके, खासकर बेगूसराय की कावर झील, पूर्वी चंपारण की सरोतर झील और पटना के राजधानी जलाशय के आसपास।

वहीं साल 2017 में छपे एक शोध पत्र के मुताबिक कावर झील के आसपास पक्षियों के शिकार की वजह से प्रवासी मेहमानों का आना बहुत कम हो गया है। इसमें कहा गया है, “1980 के दशक तक यह झील प्रवासी पक्षियों के प्रजनन की सबसे बड़ी जगहों में एक थी। लेकिन अब शिकारियों ने यहां कब्जा कर लिया है और इस वजह से पक्षियों की संख्या में भारी कमी आई है। एक अनुमान के मुताबिक 1984-85 के दौरान महज एक सीजन में शिकारियों ने 1,35,0 00 से अधिक बत्तखों का शिकार किया। हालांकि इसे पक्षी अभयारण्य घोषित किए जाने के बाद यहां पक्षियों के शिकार में भारी कमी आई है।

उत्तर बिहार के ही एक और जिले सुपौल में कोसी नदी पर काम करने वाले कोसी कंसोर्टियम के भगवानजी पाठक बताते हैं, लगभग 10 सालों से इस इलाके में काम कर रहा हूं। 5-7 साल पहले तक यहां सामा-चकेवा पर्व के बाद से ही जगह- जगह रंग-बिरंगे पक्षी दिखने लगते थे। इन पक्षियों में लालसर (रेड क्रेस्टेड पोचार्ड), अधंगा, सराय, चकवा, गडवाल और विजन आदि थे। लेकिन गांवों में इनका धड़ल्ले से शिकार किया जाता था। सरकार की तरफ से पक्षियों के संरक्षण का काम ना के बराबर होता था। धीरे-धीरे इन पक्षियों का आना कम हो गया है। तभी तो ग्रामीण इलाकों में भी 500 रुपए में बिकने वाला लालसर 1000 रुपए में बेचा जा रहा है।”

खास जगहों पर होती है पक्षियों की खरीद-बिक्री

राजधानी पटना से लगभग 250 किलोमीटर दूर भागलपुर जिले के नारायणपुर प्रखंड के वीरबन्ना चौक पर सुबह शिकारी एक खास जगह पर इन पक्षियों को बेचते हैं। जब मोंगाबे-हिन्दी ने यहां मौजूद लोगों से बातचीत की तो उन्होंने सभी पक्षियों की अलग-अलग कीमत बताई।

डोरी से बांधी गईं इन पक्षियों को लेकर तीन-चार लड़के खड़े थे। उसी में से एक लड़का जैबार कहता है, “सात हजार रुपया दीजिए, तीन लालसर हैं।” महंगे होने की बात बोलने पर जैबार कहता है, “रात मैं तालाब में जाल लगाना होता है। बहुत परेशानी है। दस हजार देकर भी ये चीज नहीं मिलेगा।”

जैबार ने बताया, बिहार में सबसे अधिक मांग अंधिगा, लालसर (रेड क्रेस्टेड पोचार्ड) और चाहा (वुड स्नाइप) की रहती है। इसमें भी लालसर पक्षी का मांस खाने वाले शौकीनों की संख्या बहुत है। शिकारी इनकी मुंहमांगी कीमत लेते हैं। यही हाल कैमा, मुरार, सुरखाब (रुडी शेलडक) जैसी पक्षियों के भी हैं। लेकिन यह पक्षी अब नहीं मिल रहे हैं।” 

बिहार के एक तालाब पर लेसर व्हीसलिंग डक या छोटी सिल्ली का दल। तस्वीर- शशिधर कुमार "विदेह"/विकिमीडिया कॉमन्स
बिहार के एक तालाब पर लेसर व्हीसलिंग डक या छोटी सिल्ली का दल। तस्वीर– शशिधर कुमार “विदेह”/विकिमीडिया कॉमन्स

वीरबन्ना चौक के अलावा खगड़िया जिले के पसराहा चौक पर भी लड़के सुबह के 9 बजे प्रवासी पक्षियों को बेच रहे थे। वहां पक्षी को खरीदने आए परबत्ता गांव के पप्पू मंडल बताते हैं, “बगेरी 300 से लेकर 350 रुपए प्रति दर्जन, अधिंगा और कारंग 1000 रुपए प्रति जोड़ा, चाहा 350-500 रुपए प्रति दर्जन और गुलाबसर व लालसर 1500-2500 रुपए प्रति जोड़ी तक बेची जाती है। लालसर और गुलाबसर सुबह के 6 बजे तक बाजार से शौकीनों तक पहुंच जाती हैं। इसे खुलेआम नहीं बेचा जाता है। बाकी पक्षियों को भी शिकारी काटकर कढ़ाई में चढ़ाने लायक बना ही देते हैं। ताकि कोई सबूत बचा नहीं रहे।” 

नाम न बताने के शर्त पर भागलपुर जिला के भ्रमरपुर गांव का एक शिकारी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “पहले तीर कमान और बंदूक के साथ-साथ जहरीली दवाओं का प्रयोग करके इन पक्षियों को मारा जाता था। अब बंदूक और तीर कमान का प्रयोग कम होता है। अब खेत में  जहर डालकर और फंदा लगाकर इन पक्षियों का शिकार किया जाता है। दरअसल, ये पक्षी जब खेतों व नदी किनारे अपने भोजन की तलाश में निकलते हैं, तब शिकारी आसपास जाल लगाकर और जलाशयों के किनारे आटे में जहर मिलाकर इनका शिकार करते हैं। यह बात सच है कि पहले की तुलना में अब पुलिस की कार्रवाई अधिक हो रही है।”

शिकारी ने बताया, इसका शिकार तो गांव में होता है लेकिन बिक्री शहरों में अधिक होती है। इस पक्षी को खाने वाले अधिकतर गिने-चुने रईस लोग होते हैं। अब शिकारियों की संख्या भी कम हो गई है। वन विभाग के कर्मचारी और पुलिस की सांठ-गांठ के चलते पेशेवर शिकारी यह काम आज भी कर रहे हैं।” 

भागलपुर जिले के रेंजर ब्रज किशोर सिंह कहते हैं, पहले भागलपुर में कई जगह पक्षियों का बाजार लगता था, जिसे पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। राष्ट्रीय राजमार्ग-31 और पसराहा चौक पर खुलेआम शिकारियों का घूमना बंद हो गया है। सरकार प्रवासी पक्षियों को लेकर पूरी तरह जागरूक है। आगे शिकारियों पर और लगाम कसी जाएगी।” 

बेगूसराय और खगड़िया जिलों के वन क्षेत्र पदाधिकारी अजय कुमार सिंह मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “प्रवासी पक्षियों के संरक्षण को लेकर कोई विशेष व्यवस्था सरकार की तरफ से नहीं की जाती है। जहां तक बात शिकारियों को पकड़ने की है तो प्रशासन इसमें लापरवाही नहीं बरतता है। शिकारी पहले की तरह खुले में बिक्री नहीं कर रहे हैं। अगर कोई शिकार करते या बेचते पाया गया है तो हमने करवाई की है। शिकार की सही सूचना देने पर छापेमारी की जाती है।”

विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य में लालसर ( रेड क्रेस्टेड पोचार्ड)। तस्वीर- मृणाल कौशिक/विकिमीडिया कॉमन्स
विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य में लालसर ( रेड क्रेस्टेड पोचार्ड)। तस्वीर– मृणाल कौशिक/विकिमीडिया कॉमन्स

गौरतलब है कि वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 की धारा 9 के तहत कई तरह की पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध है। शिकार करते हुए पकड़े जाने पर तीन से लेकर सात साल की कैद के साथ 10 हजार रुपए जुर्माना देना पड़ता है। दूसरी बार भी शिकार करने पर जुर्माना बढ़कर 25 हजार रुपए हो जाता है। 

कैसे होती है पक्षियों की गणना

इस साल जनवरी से सूबे में पहली बार व्यापक स्तर पर पक्षी गणना की गई। बिहार सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के आदेश पर बीएनएचएस के पक्षी विज्ञानी, पक्षियों की प्रजातियों को चिन्हित करने का प्रयास किया। 

बिहार सरकार के बर्ड्स इन बिहार पुस्तक के अनुसार  सूबे में 250 से अधिक प्रजातियों की पक्षियां पाई जाती हैं। जबकि अभी तक 121 पक्षियों की पहचान की गई है। मतलब अब तक सूबे में व्यापक स्तर पर पक्षियों की गणना नहीं हुई थी।

भागलपुर में विक्रमशिला डॉल्फिन अभ्यारण के साथ भारतीय वन्यजीव संस्थान में गंगा संरक्षक के लिए काम करने वाले दीपक कुमार, मोंगाबे-हिन्दी को बताते हैं, “प्रवासी पक्षियों के भ्रमण के विश्व के कुल नौ फ्लाईवेमें से दो बिहार से होकर गुजरते हैं। इसकी वजह अनुकूल जलस्रोतों की अधिकता और यहां की खेती का इन पक्षियों के भोजन के अनुकूल होना है। प्रवासी समेत स्थानीय पक्षियों की संख्या बढ़ाने के लिए बिहार सरकार ने बेहतर पहल शुरू की है। पक्षी गणना के बाद उनकी संख्या बढ़ाने के लिए सरकार की तरफ से और भी योजनाएं बनाई जाएंगी।”


और पढ़ेंः बिहार को मिले पहले रामसर स्थल से क्यों खुश है मछुआरे


उन्होंने कहा, बिहार में प्वाइंट काउंट मेथड से पक्षियों की गणना हो रही है। इसके तहत उन स्थानों को चिह्नित करते हैं, जहां पक्षियों का बसेरा होता है। फिर क्षेत्रफल के आधार पर अधिक से अधिक कर्मियों की संख्या तय करके एक साथ वहां पहुंचते हैं। पक्षियों की प्रजातियां चिह्नित करने के लिए फोटोग्राफी की जाती है। कैमरा जीपीएस से लैस होता है। जिससे उनके सही लोकेशन का पता चलता है। फिर क्षेत्र की चारों दिशाओं से अलग-अलग गणना करके आंकड़ों को एकीकृत किया जाता है।”  

 

बैनर तस्वीरः बिहार के दरभंगा स्थित नेहरा में चन्दियार पक्षियों का एक समूह। तस्वीर– Vaibhavcho/विकिमीडिया कॉमन्स

Exit mobile version