Site icon Mongabay हिन्दी

महुआ बीनने के मौसम में छत्तीसगढ़ से मध्य प्रदेश के जंगल में आ गए हाथी, इंसानों के साथ द्वंद रोकना बड़ी चुनौती

हसदेव अरण्य को हाथियों का घर कहा जाता है। यह करीब 1,70,000 हेक्टेयर में फैला जैव विविधता से भरा हुआ जंगल है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

हसदेव अरण्य को हाथियों का घर कहा जाता है। यह करीब 1,70,000 हेक्टेयर में फैला जैव विविधता से भरा हुआ जंगल है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

  • मध्य प्रदेश के जंगलों में इन दिनों छत्तीसगढ़ से हाथी घुस आए हैं। महुआ बीनने जंगल गए लोगों के साथ हाथियों का टकराव हो रहा है, जिसमें अप्रैल महीने में पांच लोगों की मौत हो चुकी है। इलाके के आदिवासी हाथियों के डर से महुआ बीनने से डर रहे हैं।
  • मध्य प्रदेश के जंगल में हाथियों का मिलना एक नई बात है इसलिए वन विभाग के पास भी इन्हें संभालने के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं, न ही इलाके के लोगों का हाथियों के साथ रहने का कोई अनुभव।
  • वन विभाग का दल इन हाथियों पर पारंपरिक तरीकों सहित ड्रोन कैमरे जैसे आधुनिक तकनीक से निगरानी कर रहा है। ट्रेनिंग और साजोसामान न होने की वजह से हाथियों को संभालने में दिक्कत आ रही है।
  • मध्य प्रदेश में छत्तीसगढ़ के हाथियों का आना पिछले कई सालों से लगा हुई है। तकरीबन तीन साल पहले हाथियों का एक झुंड मध्य प्रदेश आकर वापस ही नहीं गया। जानकार मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में खनन और विकास गतिविधियों की वजह से हाथियों का आवास छिन रहा है इसलिए ऐसे टकराव सामने आ रहे हैं।

जंगल से सटा गांव मसियारी के लोगों के लिए मार्च-अप्रैल का महीना व्यस्तताओं भरा रहता है। वजह हैं महुआ के फूल। इन दो महीनों में हर कोई अधिक से अधिक फूल बीनकर पैसा बनाना चाहता है। लेकिन इस साल व्यस्तता के बजाए गांव में मातम और डर का माहौल है। गांव की फिजा में महुआ के फूलों की खूशबू तो पुराने समय जैसी ही है लेकिन इलाके में हाथियों के एक झुंड की वजह से ऐसा हाल बना हुआ है। इसी गांव में 5 अप्रैल को सुबह 5 बजे हाथी के हमले में महुआ बीनने गए गांव के दो लोगों की मौत हो गई। 

“खेती-बाड़ी से मुश्किल से हमारा गुजारा होता है, लेकिन महुआ बीनकर हम अपने शौक पूरे कर सकते हैं। महुआ की कमाई से हम हर साल कपड़े वगैरह खरीदते हैं। लेकिन इस साल हम जंगल जाने से डर रहे हैं,” यह कहना है मसियारी निवासी बाबी बैगा का। 

बैगा का परिवार तीन से चार क्विंटल महुआ इकट्ठा कर लेता है, लेकिन इसबार एक क्विंटल इकट्ठा करना भी मुश्किल है। 

“हाथी की वजह से गांव में अधिकारियों का आना-जाना लगा है। कोई हिम्मत कर जंगल जाए भी तो हमें एहतियातन रोका जाता है,” वह कहते हैं। 

मसियारी गांव मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में पड़ता है। इलाके में इससे पहले कभी हाथी नहीं देखा गया। 

“मेरी उम्र 47 साल होगी लेकिन इतनी उम्र में मैंने गांव में कभी जंगली हाथी नहीं देखा था। एकबार एक महात्मा पालतू हाथी लेकर गांव आए थे। उसके बाद मैंने अब हाथी देखा है,” बाबी बैगा ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत के दौरान बताया। 

मसियारी गांव के बगल में स्थित बांसा गांव में भी मातम का माहौल है। गांव के निवासी प्रभुराम बैगा ने बताया कि यहां हाथी की वजह से तीन लोगों की जान गई है। यह घटना पहली वाली घटना के एक दिन बाद 6 अप्रैल को घटी। इसके बाद से इलाके के लोग सहमे हुए हैं। 

बगल के गांव मोहनी में भी शोक पसरा है। गांव वाले बताते हैं कि जिन दो महिलाओं की बांसा गांव में मौत हुई है उनका मायका मोहनी गांव था। यानी वह दोनों इस गांव की बेटियां थीं। 

“हमारे गांव में किसी की जान तो नहीं गई लेकिन गांव के दो घर हाथियों ने तोड़े हैं। लोग महुआ बीनने जाने से डर रहे हैं। इस तरह हमारा काफी नुकसान होगा,” मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में कुसुम सिंह कवर (54) ने कहा। 

कवर, मोहनी गांव के सरपंच भी हैं। 

“हमने पहली बार पिछले साल हाथियों का एक झुंड देखा था। इस साल भी हाथियों का झुंड हमारे गांव के पास बांध से पानी पीने और नहाने आता है। गांव में एक दहशत का माहौल है और हर समय हमें आशंका रहती हैं कि कहीं हाथी इस गांव की तरफ न आ जाए,” उन्होंने कहा।

“मैंने गांव का सामुदायिक भवन खोलकर उसमें दरी बिछा दी है। पंचायत से लाउडस्पीकर पर जंगल के किनारे रहने वाले लोगों को शाम पांच बजे तक खाना बनाकर गांव के बीच में आने की सलाह दी जा रही है,” उन्होंने आगे कहा। 

इस तस्वीर में हाथी के शरीर पर बने घाव के निशान साफ दिख रहे हैं दो उन्हें इंसानी टकराव में मिले हैं। हाथी को कुछ वर्ष पहले वन विभाग ने पालतू बनाने के लिए पकड़ा था।
इस तस्वीर में हाथी के शरीर पर बने घाव के निशान साफ दिख रहे हैं दो उन्हें इंसानी टकराव में मिले हैं। हाथी को कुछ वर्ष पहले वन विभाग ने पालतू बनाने के लिए पकड़ा था। तस्वीर साभार- सत्येंद्र कुमार तिवारी

शहडोल के खैराहा गांव के बुजुर्ग किसान मोहम्मद सहजान की जान तब आफत में आ गई जब उनके आंगन में एक हाथी घुस आया। उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में बताया, “13 अप्रैल की रात को मैं आंगन में खाट पर सोया था। तभी पत्तों के खरखराने की आवाज आई। आवाज से पास में बंधी मेरी भैंस उठ खड़ी हुई और मेरी नींद भी खुल गई। सामने विशायकाय हाथी खड़ा था।”

हालांकि, हाथी ने सहजान पर हमला नहीं किया पर उनके घर से सटे उनके खेत में लगी टमाटर और गन्ने की फसल तबाह कर गया।  

हाथियों के जानकार मंसूर खान ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि शहडोल की हालिया घटना में शवों को देखकर प्रतीत होता है कि हाथियों ने यह हमला गुस्से में नहीं किया है। इन घटनाओं को वह मात्र एक दुखद दुर्घटना मानते हैं।  


और पढ़ेंः [वीडियो] हसदेव अरण्य और लेमरु हाथी रिजर्व: कोयले की चाह, सरकारी चक्र और पंद्रह साल का लंबा इंतजार


“हाथियों के पास अगर इंसान जाए तो बचाव में वे बस चेतावनी देते हैं। अगर गुस्से में वे हमला करते हैं तो शव को क्षत-विक्षत कर देते हैं। शहडोल की घटना का विवरण देखकर पता चलता है कि लोग रात में महुआ बीनने चले गए थे और हाथियों के झुंड के पास पहुंच गए,” उन्होंने कहा। 

खान इस समस्या का समाधान लोगों को जागरूक कर निकाल रहे हैं। 

“मैंने छत्तीसगढ़ के बाद अब मध्य प्रदेश के हाथी के विचरण क्षेत्र में आने वाले गांवों में पर्चा बांटकर लोगों को जागरूक करना शुरू किया है,” उन्होंने बताया। 

मध्य प्रदेश में शहडोल के अलावा अनूपपुर, उमरिया, सीधी, डिंडौरी सहित छत्तीसगढ़ से सटे अन्य कई जिलों में हाथियों की हलचल है।

दरअसल ये हाथी मध्य प्रदेश के जंगल के नहीं हैं, बल्कि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के जंगलों से आए हैं।  

मध्य प्रदेश के जंगलों के लिए नए हैं हाथी 

बाघ की संख्या के मामले में देश में अव्वल मध्य प्रदेश के जंगलों में हाथी न के बराबर पाए जाते हैं। 2019 में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में सात हाथी हैं। हालांकि, खाने की तलाश में हाथी मध्य प्रदेश के जंगलों का रुख करते हैं और फिर वापस छत्तीसगढ़ के जंगलों में चले जाते हैं। 

साल 2021 में हाथियों से बढ़ते टकराव को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने एक कमेटी बनाई थी। कमेटी के सदस्य और मध्य प्रदेश राज्य वन्यप्राणी बोर्ड के सदस्य अभिलाष खांडेकर ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में कमेटी की रिपोर्ट के बारे में बताया। 

“हमने जनवरी 2022 में इस रिपोर्ट को सरकार को सौंपा था। रिपोर्ट में हमने पाया था कि वन विभाग के पास हाथियों को संभालने का अनुभव नहीं है, इसलिए उनकी ट्रेनिंग होनी चाहिए। साथ ही हाथियों के लिए अभयारण्य बनाए जाने का सुझाव भी रिपोर्ट में है,” उन्होंने कहा। 

इस एक्सपर्ट कमेटी में चेयरमैन तत्कालीन प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (वन्यजीव) आलोक कुमार थे। इनके अतिरिक्त हाथियों के विशेषज्ञ आर सुकुमार, अभिलाष खांडेकर, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) के विवेक मेनन, डब्लूडब्लूएफ- इंडिया के सौमेन डे, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट (आईआईएफएम) से प्रो. योगेश दुबे, और बांधवगढ़ के फील्ड डायरेक्टर बीएस अन्नीगिरी, इस कमेटी के सदस्य थे। 

कमेटी बनाने की जरूरत जंगल में आग लगने की घटनाओं के बाद शुरू हुई। 

खांडेकर कहते हैं कि 2021 में बांधवगढ़ के जंगल में आग लगने की घटनाएं बढ़ गईं थी। पता चला कि हाथी को भगाने के लिए लोग ऐसा कर रहे हैं। इंसान और हाथियों के टकराव को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत महसूस हुई। 

मध्य प्रदेश के जंगल में गश्ती करते हाथी। वन विभाग के पास पचास से अधिक हाथी हैं, लेकिन गश्ती के लिए लगभग 35 हाथी ही फिट हैं। तस्वीर- सत्येंद्र कुमार तिवारी
मध्य प्रदेश में पालतू हाथी की मदद से जंगली हाथी पर नजर रखी जाती है। तस्वीर- सत्येंद्र कुमार तिवारी

इस रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में इंसानों और हाथियों के बीच टकराव में पहली बार 2018 में दो लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद 2020 में चार लोगों की जान गईं। साल 2021 में टकराव में 6 लोगों की मौत हो गई थी। 

“लगभग ढ़ाई वर्ष पहले छत्तीसगढ़ से हाथियों का एक समूह मध्य प्रदेश आया और वापस ही नहीं गया। इसकी वजह यहां पानी और हरे जंगल जिसमें बांस का जंगल होना हो सकता है। छत्तीसगढ़ से आए 41 हाथी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में रहते हैं। लेकिन वे हाथी कोर एरिया में हैं और इंसानी आबादी से दूर हैं,” मध्य प्रदेश वन विभाग के प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (वन्यजीव) जेएस चौहान ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। 

वह कहते हैं, “जिन हाथियों का सामना इंसानों से हो रहा है वह दो झुंड में हैं। एक की संख्या सात है और दूसरे की नौ। ये अभी-अभी छत्तीसगढ़ से हमारे इलाके में घुसे हैं। खाने-पीने की खोज में इनका सामना मनुष्यों से हो रहा है और टकराव की वजह से पांच लोगों की जान चली गई।”


और पढ़ेंः खाने की खोज में आ गए छत्तीसगढ़ के हाथी मध्यप्रदेश के बाघ वाले इलाके में


मध्य प्रदेश के वनों में हाथी न होने की वजह से वन विभाग के पास हाथी को संभालने का कोई खास अनुभव नहीं है। 

“हमारे लोग प्रशिक्षित नहीं है। प्रदेश में हाथी आने के बाद हमने प्रशिक्षण पर ध्यान देना शुरू किया है। टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हाथियों की निगरानी के लिए अब हमारे पास ड्रोन और अन्य संसाधन भी उपलब्ध हैं,” बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर बीएस अन्नीगिरी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। 

“तत्काल हाथियों की निगरानी की जरूरत है। हमने दो तरह के दल बनाए हैं, एक हाथी के पीछे चलता है और एक उसकी चाल भांपकर आगे वाले गांव वालों को सचेत करता है। हमने ग्रामीणों को  या तो जंगल न जाने या झुंड में जाने की सलाह दी है,” चौहान ने तत्कालिक तौर पर हाथियों से बचाव की कोशिशों के बारे में बताते हुए कहा। 

वह कहते हैं कि एक तरीका हाथी को उठाकर उसके झुंड में शामिल करना हो सकता है, लेकिन फिलहाल यह तरीका कारगर नहीं होगा। यहां हाथी एक से अधिक हैं। 

जेएस चौहान मानते हैं कि वन विभाग के साथ-साथ ग्रामीणों की भी ट्रेनिंग होनी चाहिए। 

“दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर और अन्य हाथी बाहुल्य राज्यों में वन विभाग के साथ नागरिक भी हाथियों से परिचित हैं। वे हाथी की उपस्थिति में उसके अनुकूल व्यवहार करते हैं। यहां तक कि उनके फसल में उसी मुताबिक होते हैं। इसी तरह की जागरुकता हम मध्य प्रदेश के हाथी वालों क्षेत्रों में फैला रहे हैं। डब्लूटीआई (वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया) जैसी गैर सरकारी और दूसरे राज्यों की सरकारों के अधिकारियों की मदद से हम ऐसी ट्रेनिंग कर रहे हैं।”

क्या छत्तीसगढ़ से निकलना चाह रहे हैं हाथी?

छत्तीसगढ़ में 2017 में हुई हाथियों की गणना के मुताबिक राज्य में 398 हाथी हैं। हालांकि, अनुमान के मुताबिक ताजा आंकड़ा 500 तक भी हो सकता है। राज्य में हाथियों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन इसके उलट खनन और अन्य विकास गतिविधियों की वजह से उनके लिए रहने लायक स्थान कम हो रहा है।

हाल ही में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक को अनुमति दी है। यह इलाका सरगुजा क्षेत्र में आता है जहां के जंगल हाथियों का आशियाना है। कभी छत्तीसगढ़ सरकार इस इलाके को हाथी अभयारण्य बनाना चाहती थी, लेकिन अब खनन की वजह से हाथियों का एक प्रमुख आवास छिन सकता है। लंबे समय से प्रकृति प्रेमी और स्थानीय आदिवासी इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। 

“हाथियों को अपने इलाके में किसी तरह की दखल पसंद नहीं है। खनन की वजह से इनका आवास प्रभावित होगा,” यह कहना है मंसूर खान का। 

हाथियों के जानकार खान, पिछले एक दशक से छत्तीसगढ़ के हाथी वाले जंगलों में लोगों को जागरूक कर रहे हैं। खान अचानकमार टाईगर रिजर्व सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं। 

खान कहते हैं कि जो जंगल बचा हुआ है उसे नहीं उजाड़ना चाहिए। हाथियों के लिए इंसान जंगल नहीं लगा सकता, यह संभव ही नहीं है। 

मंसूर खान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हाथी के विचरण क्षेत्र में आने वाले गांवों में पर्चा बांटकर लोगों को जागरूक करते हैं। तस्वीर साभार- मंसूर खान
मंसूर खान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हाथी के विचरण क्षेत्र में आने वाले गांवों में पर्चा बांटकर लोगों को जागरूक करते हैं। तस्वीर साभार- मंसूर खान

खांडेकर ने बताया कि मध्य प्रदेश में हाथी आने की एक बड़ वजह खनन है। “छत्तीसगढ़ और ओडिशा में हाथियों के लिए पर्याप्त खाना उपलब्ध नहीं है, इसलिए वह इसकी खोज में मध्य प्रदेश के जंगलों में आ रहे हैं,” उन्होंने आगे कहा। 

वह आशंका जताते हैं कि जिस तरह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के जंगलों में तीन सौ साल बाद हाथी दिखे, उसी तरह मध्य प्रदेश में भी इनके आने का सिलसिला शुरू हुआ है। बहुत पहले कभी मध्य प्रदेश में ग्वालियर के जंगलों में हाथी हुआ करते हैं।  

मध्य प्रदेश में हाथियों की आमद पर खान कहते हैं कि फिलहाल मध्य प्रदेश में तकरीबन 65 हाथी हैं जो छत्तीसगढ़ से गए हैं। 

“अभी हाथियों ने जाना शुरू किया है। आने वाले समय में और भी हाथी यहां से जा सकते हैं। हाथियों की प्रकृति ऐसी है कि यह एक स्थान पर टिककर नहीं रहता, बल्कि भ्रमण करता रहता है। इसे पांच सौ से 1500 किलोमीटर तक घूमने की जगह चाहिए होती है।”

हाथियों को मध्य प्रदेश का रास्ता दिखाता त्रिदेव

खान ने एक छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के बीच आवाजाही करने वाले एक हाथी को चिन्हित किया है। उन्होंने बताया, “हमें पिछले साल बारिश से पहले यह हाथी दो छोटे हाथियों के साथ छत्तीसगढ़ के जंगलों में मिला था। हमने इसका नाम त्रिदेव रख दिया। यह हाथी इस दौरान कई बार मध्य प्रदेश गया है और जो रास्ता इसने चुना उसी रास्ते पर बाकी के हाथी आगे बढ़ रहे हैं। हमने पाया है कि त्रिदेव बाकी हाथियों के लिए रास्ता खोजता है। इस तरह हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि छत्तीसगढ़ से अभी और भी हाथी मध्य प्रदेश पहुंचेगे।”

उन्होंने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के बीच हाथियों के जाने के रास्ते पर भी अध्ययन किया है। 

“हाथियों के मध्य प्रदेश में घुसने की पहल सबसे पहले सरगुजा के हाथी करते हैं। वे पहाड़ पार कर गुरुघासीदास नेशनल पार्क पहुंचते हैं फिर मध्य प्रदेश स्थित संजय दुबरी राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश करते हैं। हाथियों की मंजिल है बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, जहां पहले से एक बड़ा झुंड मौजूद है। ब्यौहारी, मरवाही, राजेंद्रग्राम से होते हुए मध्य प्रदेश में जाने वाला हाथियों का एक नया रास्ता भी हाल में देखा गया है,” खान कहते हैं।

 

बैनर तस्वीरः हसदेव अरण्य को हाथियों का घर कहा जाता है। यहां खनन शुरू होने से इनका आशियाना छिन सकता है और खाने की खोज में हाथी भटक सकते हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

Exit mobile version