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गंदी होती नदियों के बीच दिलासा देती है स्वच्छ सिंध, लेकिन रेत खनन से हैं चुनौतियां

दतिया जिले में एक कस्बा है लांच जहां सिंध नदी पर पुल 2021 की बाढ़ में ढह गया था। तस्वीर- राहुल सिंह

दतिया जिले में एक कस्बा है लांच जहां सिंध नदी पर पुल 2021 की बाढ़ में ढह गया था। तस्वीर- राहुल सिंह

  • देश में तेजी से गंदी होती नदियों के बीच मध्य प्रदेश की सिंध नदी उम्मीद बढ़ाती है। अधिकांश जगहों पर नदी का पानी पारदर्शी दिखता है यानी ऊपर से नीचे का तल दिख जाता है। लेकिन मानव बसावट के गंदे जल का सिंध में सीधा प्रवाह चिंता की बात है।
  • केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड द्वारा कुछ साल पहले जारी की गई प्रदूषित नदियों की सूची से सिंध बाहर है। इस सूची में मध्यप्रदेश की नर्मदा, चंबल, बेतवा और पार्वती समेत 22 नदियां शामिल हैं।
  • मध्य प्रदेश में नदी किनारे होने वाले रेत खनन के चलते सिंध में भी प्रदूषण बढ़ने का खतरा बढ़ता जा रहा है। राज्य के कई इलाकों में नियमों को ताक पर रखकर नदी के पेट से रेत निकाली जा रही है।

जब चारों तरफ नदियों के प्रदूषित होने की चिंता शामिल हो वैसे में मूलतः मध्य प्रदेश में बहने वाली सिंध नदी एक खुशनुमा एहसास कराती है। बहुतायत में अब भी लोग सिंध नदी के पानी का उपयोग पीने के लिए करते हैं। दतिया जिले के सेंवढ़ा तहसील के किसान मल्लाह समुदाय से आने वाले 32 साल के सुनील बाथम इस बात को बड़े खुशी से बताते हैं कि वे अब भी सिंध नदी का पानी पीते हैं। दतिया जिले के ही सिंध के तट पर स्थित खमरौली गांव के 25 वर्षीय किसान पंचम सिंह कहते हैं, “बरसात के दिनों को छोड़ कर हम हर मौसम में सिंध का पानी पीते हैं और यह दूसरी नदियों के पानी से अधिक स्वच्छ है।” वे कहते हैं कि शादी, भागवत कथा या किसी अन्य आयोजन के समय हम लोग सिंध का पानी टैंक में जमा कर देते हैं और उसका उपयोग पीने के लिए किया जाता है।

दतिया जिले के सेंवढ़ा तहसील की इस पंचायत के बगल से गुजरने वाली सिंध नदी के स्वच्छ होने की पुष्टि सरकारी मानकों से भी होती है। नदी की स्वच्छता वाले मानकीकरण में इस नदी का उल्लेख है, जो वाटर क्वालिटी डाटा 2018 पर आधारित है।

इस नदी के स्वच्छ होने का जिक्र इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि देश में प्रदूषित नदियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

जल शक्ति राज्य मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल द्वारा लोकसभा में 29 जुलाई 2021 के दिए एक सवाल के जवाब के अनुसार, वर्ष 2015 में देश के प्रदूषित नदियों की संख्या 302 थी, जो 2018 में बढ कर 350 हो गयी। इस जवाब में यह भी कहा गया है कि केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, देश में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता में जनसंख्या, शहरीकरण और लोगों की उन्नत जीवनशैली के कारण लगातार गिरावट आ रही है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सैंपल के मानकों का विश्लेषण

जब आखिरी बार यानी 2018 में आयी नदियों के जल की गुणवत्ता रिपोर्ट आई तो सिंध नदी तीनों मानकों पर उत्तम पाई गयी। इसमें पानी में घुलित ऑक्सीजन या डीओ (डिज़ाल्वड ऑक्सीजन), बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड और फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का मान शामिल है।

सिंध नदी के बगल के गांव बरसात छोड़कर लगभग हर मौसम में नदी का पानी पीते हैं। नदी का जल साफ होने की पुष्टि सरकारी आंकड़ों से भी होती है। तस्वीर- राहुल सिंह
सिंध नदी किनारे स्थित गांवों के लोग बरसात छोड़कर लगभग हर मौसम में नदी का पानी पीते हैं। नदी का जल साफ होने की पुष्टि सरकारी आंकड़ों से भी होती है। तस्वीर- राहुल सिंह

डिज़ाल्वड ऑक्सीजन पानी की गुणवत्ता का एक पैरामीटर है, जो पानी में ऑक्सीजन की मौजूदगी को इंगित करता है और यह जलीय जीवन और उसके अस्तित्व के लिए आवश्यक होता है। निम्न घुलित ऑक्सीजन स्तर पानी की खराब गुणवत्ता का संकेत देता है और ऐसे में जलीय जीवों के लिए उसमें जीवित रहना मुश्किल होता है। भारतीय मानक ब्यूरो स्नान के लिए डीओ मान 5 मिलीग्राम प्रति लीटर या उससे अधिक होने की सिफारिश करता है। सिंध नदी में डीओ मान 7.4 और 8.3 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच दर्ज किया गया था।

वहीं, बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड पानी में कार्बनिक या रासायनिक पदार्थों को विच्छेदित करने या घोलने के लिए आवश्यक घुलित ऑक्सीजन की मात्रा है। बीओडी की उच्च मात्रा का मतलब है कि अधिक ऑक्सीजन की जरूरत है और पानी की गुणवत्ता ठीक नहीं है। भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार, यदि बीओडी तीन मिलीग्राम से कम है तो सतह का जल स्नान के लिए उपयुक्त है। सिंध नदी का बीओडी मान क्रमशः 1.4 से 1.9 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच है।  

इसी तरह फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का एक स्वरूप है जो मानव व पशु मल में पाया जाता है और पानी में इसके रहने से उसमें रोगाणु होने का खतरा होता है। यह इस बात की संभावना को इंगित करता है कि अनुपचारित अपशिष्ट जल या सीवेज को नदी या जल निकाय में छोड़ा जा रहा है। चूंकि, सिंध नदी के पानी में फीसीज कोलीफॉर्म का मान कम 2 से 6 प्रति 100 मिली है तो इसे सुरक्षित और अच्छी गुणवत्ता का पानी माना जा सकता है।

बड़े शहर नदियों के लिए साबित हो रहे नुकसानदायक, कम मानव गतिविधियों से बची सिंध

सिंध नदी विदिशा जिले के सिरोंज तहसील के नैनवास कला स्थित एक ताल से निकलती है। यह जगह समुद्र तल से 1780 फीट की ऊंचाई पर है, जो मालवा पठार का हिस्सा है। सिंध उत्तर-उत्तरपूर्व दिशा में मध्यप्रदेश के गुना, अशोकनगर, शिवपुरी, दतिया, ग्वालियर, भिंड जिलों से होते हुए उत्तरप्रदेश के जालौन जिले में नौ किलोमीटर बहने के बाद पंचनदा में यमुना में मिल जाती है। सिंध नदी के कम प्रदूषित होने की बड़ी वजह मानव और औद्योगिक गतिविधियों का कम होना है। सिंध के तट पर कोई बड़ी आबादी वाला शहर नहीं है।  इस नदी के किनारे बसा सबसे बड़ा कस्बा ग्वालियर जिले में पड़ने वाला डबरा है जिसकी आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार, महज 2.37 लाख थी। सिंध के तट पर अधिकांश छोटे शहर या कस्बे हैं जहां बड़े  कल-कारखाने नहीं हैं। सिंध के तटीय गांव सीमित संसाधन व कम जरूरतों वाले हैं। यहां खेती और पशुपालन मुख्य पेशा है।

नदी किनारे बड़ी मात्रा में रेत का खनन है। कई जगहों पर पर्यावरण मंत्रालय एवं राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के तय मानकों के विपरीत रेत का उत्खनन हो रहा है। तस्वीर- राहुल सिंह
नदी किनारे बड़ी मात्रा में रेत का खनन हो रहा है। कई जगहों पर पर्यावरण मंत्रालय एवं राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के तय मानकों के विपरीत रेत का उत्खनन हो रहा है। तस्वीर- राहुल सिंह

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगा बेसिन में जिन 19 प्रमुख औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण के खतरे के मद्देनजर चिह्नित किया है उसमें एक भी सिंध के तट पर नहीं है।

लेकिन देश में मध्य प्रदेश देश के प्रदूषित नदी खंडों (नदी का एक हिस्सा) के मामले में तीसरे पायदान पर है। इनकी संख्या 22 है। सीपीसीबी ने 2018 में देश की 351 प्रदूषित नदियों को सूचीबद्ध किया था। इस सूची में सबसे अधिक 53 प्रदूषित खंड महाराष्ट्र में और 44 असम में हैं।

सुकून की बात यह है कि राज्य के 22 प्रदूषित नदी खंडों में सिंध शामिल नहीं हैं। जबकि उसके आसपास की कई नदियां बेतवा, चंबल और यहां तक कि उसकी सहायक नदी पार्वती भी प्रदूषित है। इसी में देश की तीसरी सबसे बड़ी नदी नर्मदा भी शामिल है जो राज्य में करीब एक हजार किमी तक बहती है।

यही नहीं, सिंध देश की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में एक यमुना की सहायक नदी है। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में नौ किमी बहने के बाद यह यमुना में मिल जाती है।

नदियों के किनारे बसे शहर इनके प्रदूषण में बड़ी भूमिका निभाते हैं। सीपीसीबी के आकलन के अनुसार क्लास 1 और क्लास 2 शहरों में मानव उपयोग के बाद निकलने वाले दूषित जल की कुल मात्रा में महज एक तिहाई के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट उपलब्ध हैं। नेशनल मिशन फोर क्लीन गंगा के अनुसार गंगा बेसिन में लगभग 1-20 लाख मीट्रिक लीटर दूषित जल प्रतिदिन उत्पन्न होता है, लेकिन उपचार की क्षमता एक-तिहाई यानी 40 हजार मीट्रिक लीटर की ही है।

मार्च 2021 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार देश के शहरी क्षेत्रों में 7,23,680 लाख लीटर दूषित जल प्रतिदिन निकलता है। इसके मुकाबले आधे से भी कम यानी 3,18,410 लाख लीटर दूषित पानी के सीवेज उपचार  के लिए संयंत्र उपलब्ध है। यह गैप और प्रमुख शहरों पर बढ़ता मानव दबाव नदियों के प्रदूषित होने की प्रमुख वजह है। खैरियत है कि इस स्थिति से अभी सिंध दूर है इसलिए वह स्वच्छ है। लेकिन मानव बसावट का दूषित जल सीधे सिंध में समाता है। उदाहरण के लिए दतिया जिले में पांच शहरी निकाय हैं और जिले के 2021 के पर्यावरण एक्शन प्लान के अनुसार, उनसे 19.65 एमएलडी दूषित जल प्रतिदिन निकलता है, जिसमें औद्योगिक प्रदूषित जल मात्र 9.5 एमएलडी होता है, लेकिन यहां 100 प्रतिशत दूषित जल अनुपचारित है।

सिंध देश की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में एक यमुना की सहायक नदी है। उत्तर प्रदेश के जौलान जिले में नौ किमी बहने के बाद यह यमुना में मिल जाती है। तस्वीर- राहुल सिंह
सिंध देश की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में एक यमुना की सहायक नदी है। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में नौ किमी बहने के बाद यह यमुना में मिल जाती है। तस्वीर- राहुल सिंह

हालांकि मध्य प्रदेश के प्रमुख नदी विशेषज्ञ और राजीव गांधी वाटर शेड मिशन के पूर्व सलाहकार केजी व्यास सिंध के साफ होने के सवाल पर कहते हैं, “नदी का पानी साफ नजर आया, इससे उसकी रासायनिक गुणवत्ता भी ठीक होगी ऐसा नहीं कह सकते हैं। वाटर सैंपल का विश्लेषण करते हैं तो वह उस साल, उस समय और उस जगह का होता है। वह पूरे साल व पूरी नदी का डाटा नहीं होता।”

अवैज्ञानिक रेत खनन चिंता का सबब

इन डरावने आंकड़ों के बीच सिंध का पानी कब तक साफ रह पाएगा कहा नहीं जा सकता। इसकी वजह नदी किनारे बड़ी मात्रा में रेत का खनन है। कई जगहों पर पर्यावरण मंत्रालय एवं राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के तय मानकों के विपरीत रेत का उत्खनन हो रहा है।

दतिया जिले में एक कस्बा है लांच जहां जहां सिंध नदी पर पुल 2021 की बाढ़ में ढह गया था, वहां के सरपंच रमेश परसंढिया ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “लांच का पुल पांच-छह साल पहले ही बना था, लेकिन पिछले साल की बाढ़ में वह ध्वस्त हो गया। पुल के बगल में रेत का उठाव होता है और यह पूरी तरह से अवैध है। सत्तापक्ष से मिले लोग पुलिस के संरक्षण में ऐसा करते हैं।” तय मानकों के अनुसार जहां पर पुल या किसी अन्य प्रकार का निर्माण हुआ है वहां रेत का उत्खनन नहीं किया जाना चाहिए।

पास के तिलैथा में भी जेसीबी व अन्य मशीनों के सहारे रेत का खनन हो रहा है। दतिया जिला पंचायत के पूर्व सदस्य पंजाब सिंह ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “जहां पानी नहीं होता वहां जेसीबी से बजरी का उठाव किया जाता है और जहां पानी होता है वहां पनडुब्बी (एक प्रकार की मशीन) का उपयोग करते हैं।”


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रेत उत्खनन से नदियों पर पड़ने वाले असर को लेकर नदी विशेषज्ञ केजी व्यास कहते हैं, “नदी के किनारे में पानी, रेत और तट होता है। नदी के बेसिन एरिया के सबसे ऊंचे बिंदु से पानी चलते चलते नदी में आता है और रेत नदी को बॉयोलॉजिकल सपोर्ट करता है। जब आप रेत हटाते हैं तो उसमें जो जीवन होता है वह तो खत्म हो जाता है, उस जगह से पानी निकलने की गति भी तेज हो जाती है। वहां से पानी तेजी से डिस्चार्ज होता है।” गंगा से गाद निकालने को लेकर तैयार की गई एक रिपोर्ट में भी रेत खनन से नुकसान का जिक्र है।

सिंध नदी में अवैध रेत खनन के खिलाफ पदयात्रा कर चुके मध्यप्रदेश के लहार से कांग्रेस विधायक गोविंद सिंह ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, पुलिस वाले व रेत माफिया मिले हुए हैं, जिससे सिंध नदी खत्म हो रही है। उन्होंने कहा, पनडुब्बी से 10 से 15 मीटर नदी के अंदर तक जाकर रेत माफिया रेत का उठाव कर रहे हैं, जो पूरी तरह गलत है। मध्यप्रदेश रेत के अवैध खनन के लिए चर्चित रहा है।

राहुल सिंह और ऐशानी गोस्वामी भारत के नदियों पर काम करने वाली संस्था वेदितम इंडिया फाउंडेशन के रिसर्च फेलो के तौर इस नदी की यात्रा कर चुके हैं। राहुल झारखंड से एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ऐशानी अहमदबाद बेस्ड वाटर प्रैक्टिशनर हैं।

 

बैनर तस्वीरः दतिया जिले स्थित रतनगढ़ माता मंदिर के पास सिंध नदी पर पुल 2021 की बाढ़ में ढह गया था। तस्वीर- राहुल सिंह

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