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[वीडियो] झारखंड: सौर ऊर्जा से बदल रही है गुमला के महिला उद्यमियों की तस्वीर

सोलर से चलने वाले नेट मीटर के कारण बहुत से बिजली ग्राहक अब अपने बिजली बिल को कम करने में सक्षम हो पाये हैं। तस्वीर-मनीष कुमार/मोंगाबे

  • झारखंड के गुमला जिले के 44 गावों में सौर ऊर्जा के छोटे ग्रिड के विकास से 24 घंटे बिजली रहने लगी है। इससे यहां की तस्वीर बदलती दिख रही है।
  • बिजली उपलब्ध होने के बाद गांव की महिलाओं ने उसका इस्तेमाल अपने उद्यमों को बढ़ाने में किया। इससे उनकी आमदनी में इजाफा हो रहा है।
  • ऐसे कई दूर दराज और आदिवासी गावों में सौर ऊर्जा से चलने वाले तेल पेराई मशीन, आटा चक्की और कई और छोटे स्तर के उद्योगों को विकसित होते देखा जा सकता है।

पचास वर्ष की बिरसुनी उरांव झारखंड के गुमला जिले के गुनिया गांव में रहती हैं।  कुछ महीने पहले तक वो अपने घर के काम के अलावा खेतों में अपने पति को सहयोग किया करती थीं लेकिन सौर ऊर्जा से उन्हें खुद का रोजगार मिल गया। आज गांव के 9 अन्य महिलाओं के साथ सौर ऊर्जा से चलने वाले तेल पेरने की मशीन पर काम करती हैं। इस मशीन की मदद से सरसो का तेल निकाला जाता है।

उनका मानना है कि इस उपक्रम से उनके परिवार की आय बढ़ेगी जिसका उपयोग वह अपने बच्चों के पढ़ाई और बेहतर भविष्य पर करने वाली हैं। “मैंने और मेरे साथ गांव की नौ और महिलाओं ने पहले एक स्वयं सहायता समूह बनाया और साथ में काम शुरु किया। हमनें सौर ऊर्जा से चलने वाला एक सरसों तेल निकालने की मशीन अपने गांव में लगाया। हम लोग अब हर सुबह 10 बजे से दोपहर के 3 बजे तक काम करते हैं,” बिरसुनी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। इन महिलाओं ने गांव में एक छोटे से कमरे में अपना उद्यम शुरू किया है।  सौर ऊर्जा से चलने वाला यह केंद्र इस गांव में बने 30 किलोवाट के विकेंद्रित सौर मिनी-ग्रिड से जुड़ा है।

विकेंद्रित सौर ग्रिड किसी दूर-दराज के ग्रिड ने जुड़ा न होकर गांव में ही सौर पैनल से पैदा होने वाली बिजली को गांव के उपयोग के लिए भेजता है।

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बिरसुनी और उनके अन्य साथियों ने अपनी तरक्की का श्रेय गांव में उपलब्ध सौर ऊर्जा को दिया। गुनिया गांव इस जिले के 44 ऐसे गावों में से एक है जहां बिजली के अलावा विकेंद्रित सौर ऊर्जा से निरंतर बिजली उपलब्ध हो रही है। ऐसे कई गांव में बिजली पर आधारित मशीन से चलने वाले उद्योग केवल सौर ऊर्जा से चल रहे हैं। यह बिजली दूर ग्रिड से मिलने वाली बिजली से अधिक भरोसेमंद साबित हो रही है।

मशीन से जो तेल निकलता है उसका उपयोग रसोई में होता है। गांव के लोग बोतल और पैकैट में मिलने वाले तेल के बजाए अपने गांव की मशीन पर सरसो से तेल निकलवाना पसंद करते हैं। इस तरह महिलाओं का उद्यम फल-फूल रहा है।

गुनिया और आस-पास के गावों की तस्वीर साल 2015 में बदलनी शुरू हुई, जब यहां सौर ऊर्जा के संयंत्र लगने शुरू हुए।  धीरे-धीरे बहुत से ग्रामीण इलाकों में इसका विस्तार होता गया। पश्चिम बंगाल स्थित म्लिंदा नामक संस्था और केंद्र सरकार के उपक्रम भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (आईआरईडीए) ने इस काम को करने का जिम्मा उठाया। गुमला के कई गावों में ऐसे कई विकेन्द्रित सौर ऊर्जा के मिनी ग्रिड लगाए गए जिसकी क्षमता 20 किलोवॉट से लेकर 40 किलोवाट तक की थी। इन सभी गावों की कुल सौर ऊर्जा क्षमता लगभग 1 मेगावाट के करीब है। प्रत्येक मिनी ग्रिड लगभग 5 किलोमीटर के दायरे तक बिजली पहुंचाने की क्षमता रखता है। गुनिया गांव का मिनी सोलर ग्रिड 30 किलोवॉट का है जो लगभग चार साल पहले शुरू किया गया।

भूकली उरांव, बिरसुनी के साथ काम करती हैं। इन्होंने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “पहले हमलोग ग्रिड द्वारा दिये जाने वाले बिजली पर निर्भर थे, जो हमेशा उपलब्ध नहीं होती थी। ऐसी स्थिति में कोई भी बिजली से चलने वाले मशीन द्वारा संचालित उद्योग लगाना मुश्किल था। लगभग चार साल पहले हमारें गांव में सौर ऊर्जा से बिजली मिलने लगी जिसने हमें हमेशा बिजली मिलना संभव हो पाया। इस ऊर्जा से कृषि से जुड़े उपकरणों जैसे सौर पम्प को भी गांव में बहुत बढ़ावा मिला। इस तरह किसानों ने ऐसे पम्प को डीज़ल और मिट्टी के तेल से चलाना भी बंद कर दिया, जिनसे प्रदूषण होता था।”

महिलाओं का एक समूह गुनिया गांव में सरसों का तेल निकालती हुई। यह मशीन पूरी तरह से सौर ऊर्जा से चलती है।  तस्वीर-मनीष कुमार/मोंगाबे-हिन्दी

गुनिया से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर बसुआ नाम का गांव है जहां सौर ऊर्जा ने महिलाओं को छोटे उद्योग चलाने में सहायता की है। बसुआ गांव में रहने वाली निलावती उरांव सौर ऊर्जा से चलने वाली आटे की चक्की चलाती है। “सौर ऊर्जा से निरंतर बिजली आती है जिससे कि उद्योगों का विकास हो रहा है। अब महिलाएं बिजली के आने-जाने का इंतजार नहीं करतीं, बल्कि वे अपने समय के अनुसार काम कर सकती हैं। इसके लिए हमारें घरों और छोटे उद्योग केन्द्रों पर सौर ऊर्जा का मीटर भी लगा हुआ है, जो कि दरअसल प्रीपेड मीटर हैं। जैसे मोबाइल को अपने जरूरत के हिसाब के रिचार्ज कराते हैं वैसे ही इन मीटरों को भी रिचार्ज कराया जाता है। इसके बदले हम जब चाहे इसका प्रयोग उद्योग या घरों में दूसरी जरूरी कामों के लिए कर सकते है,” निलावती उरांव ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

निरंतर बिजली उपलब्ध होने से बदली तस्वीर

झारखंड का गुमला जिला राज्य का एक पिछड़ा जिला माना जाता है। यहां लगभग 69 प्रतिशत लोग आदिवासी समाज से आते है। इस जिले में ऐसे कई जगह हैं जहां आज भी कच्ची सड़क है और इन गावों में  पहुंचना मुश्किल है। हालांकि, ऐसे स्थानों पर भी सौर ऊर्जा से बिजली आने लगी है।

गुमला और बसुआ गांव के अलावा इस जिले में कई ऐसे गांव है जहां लोग सौर ऊर्जा से आइसक्रीम के प्लांट, कोल्ड स्टोरेज, पेपर प्लेट आदि जैसे उद्योग में लग पाये हैं।

म्लिंदा के प्रबंधक (संचालन) सोमन चक्रवर्ती, ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “हमनें 2015 में एक सर्वेक्षण किया और पाया कि चूंकि गुमला एक पिछड़ा जिला है यहां सौर ऊर्जा से परिवर्तन लाने की संभावना अधिक है। हमनें यहां रोजगार बढ़ाने और हाशिये पर खड़े लोगों के कल्याण के लिए सौर ऊर्जा के माध्यम से कुछ प्रयास किए, जो अब रंग ला रहे  है।”

चक्रवर्ती कहते है, “संयंत्र लगाते समय हमनें यह निर्णय लिया कि इसकी देख-रेख के लिए स्थानीय ग्रामीण को ही रखा जाएगा। उन्हें ऐसे संयंत्रों की देख रेख, साफ सफाई आदि का काम भी सिखाया जाएगा। मिनी-ग्रिड के पास उनके लिए एक कमरा भी बनवा कर दिया गया। केवल स्थानीय लोगो को ही मासिक वेतन पर इस काम के लिए चुना गया। हमने कुछ महिलाओं को अपना उद्यम शुरू करने के लिए बैंकों से लोन दिलाने में भी मदद की। महिला समूहों के माध्यम से उन्होंने लोन लेकर अपना काम शुरू किया।”

चक्रवर्ती बताते है कि जब 2016 में गांव में सौर मिनी ग्रिड लगाने का काम शुरू हुआ तो उस समय कई ऐसे गावों में या तो बिजली थी ही नहीं या कभी कभार आती थी। कम वोल्टेज और बिजली कटने की समस्या आमबात थी। यहां 24 घंटे बिजली देने का प्रयास हुआ। चक्रवर्ती कहते है कि अगर गांव मे निरंतर बिजली मौजूद न हो तो किसे भी उद्योग को विकसित होने मे समस्या होती है।


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पिछले कुछ वर्षों में किए गए शोधों में भी ऊर्जा की उपलब्धता और आजीविका के संबंध पर प्रकाश डाला गया है। 2018 में किये गए एक अध्ययन में सामने आया कि विकेंद्रित नवीकरणीय ऊर्जा औद्योगिक विकास को बढ़ाने और उससे जुड़े कठिन परिश्रम को कम करने में कारगर सिद्ध होती है।

हालांकि सरकारी सौर ऊर्जा संयंत्रों की तरह यहां सौर ऊर्जा मुफ्त नहीं है और  उपभोक्ताओं को हर महीने अपनी जरूरतों के अनुसार इन्हे रिचार्ज कराना पड़ता है। आमतौर पर 200 रुपये के रिचार्ज से 25 दिन तक बिजली का प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि शुल्क होने के बावजूद अधिकतर घरों में इसका प्रयोग किया जा रहा है। उद्योगों में इसका विशेष महत्व है और अधिकांश जगहों पर सौर ऊर्जा का ही प्रयोग किया जा रहा है।

उचित रख रखाव ने दिखाये नतीजे

गुमला के सौर ऊर्जा की कहानी अन्य जगहों से इसलिए अलग है क्योंकि यहां पर सौर ऊर्जा के लिए बने ढांचा की अच्छी देख-रेख की गई है। देश और खुद झारखंड राज्य में कई ऐसी सामुदायिक सौर परियोजनाएं हैं जो देख-रेख की कमी के कारण जल्द खराब होकर बेकार पड़ी रहती है। उदाहरण के लिए पश्चिमी सिंघभूम जिले के रोरों गांव मे कुछ वर्ष पहले सौर लाइट लगाए गए थे लेकिन अब अधिकतर ऐसे लाइट खराब पड़े हैं और उनकी कोई सुध लेने नहीं आता। ये सारी सौर लाइट झारखंड नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी) द्वारा लगाई गई थी।

देश में कई विकेंद्रित परियोजनाएं देख-रेख के कमी के कारण खराब और पूरे तरह फ़ेल हो गईं। ऐसे और उदाहरण बिहार का धरनाई गांव (बिहार का प्रथम सौर आदर्श गांव), ओडिशा का बारापीठा गांव हैं। जबकि गुमला का मॉडल देख-रेख पर ज़ोर देने के कारण सफल हो पाया। इसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ज्रेडा के एक अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया की गुमला की तरह झारखंड सरकार ने पिछले कुछ सालों में भी कई दूर गामी इलाकों मे बिजली आपूर्ति के लिए विकेन्द्रित सौर मिनी ग्रिड लगाया है। इससे ऐसे जगहों पर बिजली ले जाना संभव हो पाया जहां ग्रिड से बिजली ले जाना मुश्किल था। उन्होनें यह भी बताया ज्रेडा अब एक ऐसे प्रणाली पर काम कर रहा है जहां सेंसर के माध्यम से यह पता किया जा सके कि कौन से सौर संयंत्र कहां खराब पड़े हैं और ताकी मरम्मत समय पर हो सके। हालांकि बिजली और टेलीफ़ोन सिग्नल की समस्या से कई गांव और दूर के इलाकों के ऐसे सेंसर से देख-रेख करना अब तक एक बड़ी समस्या है।

एक महिला गुनिया गांव में लगे सौर मिनी ग्रिड से पास से गुजरते हुये। यह सौर मिनी ग्रिड इस गांव में लोगो को उद्योग स्थापित करने में मदद करता है। तस्वीर-मनीष कुमार/मोंगाबे-हिन्दी

देश के अन्य हिस्सों में जहां सौर संयंत्रो की देख-रेखे के लिए प्रयास किए गए है, वहां के लोगो का कहना है कि रख-रखाव का सौर ऊर्जा संयंत्रों की आयु पर खासा असर पड़ता है। “कई ग्रामीण इलाकों में कई सौर परियोजनाएं असफल इसलिए हो जाती हैं क्योंकि वहां के स्थानीय लोगों को साथ में लेकर नहीं चला जाता है। उनके भागीदारी को महत्व नहीं दिया जाता। गांव वालों को अक्सर सौर संयंत्रों के कल-पूर्जों की जानकारी नहीं होती। जैसे गाड़ियों की निरंतर देख-रेख से उनकी आयु को बढ़ाती है उसी तरह सौर ऊर्जा के यंत्रो की देख रेख और समय से मरम्मत पर इनके आयु बढ़ती है और उनकी गुणवत्ताबरकरार रहती है,” ओडिशा सरकार के सौर यंत्रो के देख रेखे के विभाग से जुड़े जे पी जगदेव ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

2019 में एक अध्ययन में बताया गया था कि जहां सौर मिनी ग्रिड में स्थानीय समूहों को जोड़ा जाता है वहां पर वित्तीय और तकनीकी समस्यायों पर जल्द समाधान निकाल लिया जाता है। ऐसे जगहों पर ऐसे ग्रिड से सामाजिक सुधार भी देखने को मिलता है। अध्ययन के मुताबिक परियोजना में शुरू से ही स्थानीय लोगों को भागीदार बनाया जाता है वहां सफलता की संभावना अधिक होती है।

महिला उद्योगों और ऊर्जा से जुड़ी चुनौतियां

अभिषेक जैन दिल्ली में एक शोधकर्ता है जो ऊर्जा, वातावरण और जल परिषद् (सीईईडबल्यू) से जुड़े है। उनके 2021 के एक अध्ययन  में सामने आया कि ऊर्जा कि कमी देश के उद्योग की उन्नति के लिए एक बाधा है। इस अध्ययन मे जैन ने बताया कि ऐसे मिनी ग्रिड से गांव में बिजली सस्ते दरों मे मिल सकती है जबकि यह रोजगार पैदा करने में भी सहायक हो सकती है। उनका अनुमान है कि नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से ऐसे कई उद्योग शुरू किये जा सकते हैं जिसका भारत में लगभग 53 बिलियन डॉलर (5300 करोड़ डॉलर) का बाज़ार होने की क्षमता है।

“24 घंटे बिजली मिलने से किसी भी उद्योग की नींव मजबूत हो सकती है। लेकिन जब बात महिला उद्योगों की आती है तो ऊर्जा के अलावा उनके कौशल पर  काम, वित्तीय संस्थाओं से उन्हे जोड़ना भी अन्य महत्वपूर्ण आयाम हैं, जिससे  इन महिलाओं को बाजार में पैर जमाने में मदद मिलेगी,” जैन ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

वह कहते हैं कि जब बात किसी  बैंक लोन को चुकाने की आती है तो महिला द्वारा चलाये जा रहे उद्योग पुरुषों द्वारा चलाये उद्योगों से बेहतर होती है, लेकिन अक्सर जमीन, मशीन और उद्योग के कागजात उन महिलाओं के नाम नहीं होते।

सस्मिता पटनायक, शैली झा और तन्वी जैन द्वारा  प्रकाशित 2021 में के एक अध्ययन में पाया गया कि शोध में शामिल 43 प्रतिशत महिला आधारित  सूक्ष्म उद्यम ग्रामीण या अर्ध-ग्रामीण आधारित थे। इनमें से 64 प्रतिशत उद्यम महिला समूहों के द्वारा संचालित थे। शोध में सामने आया कि उनमें से 39 प्रतिशत के पास भौतिक संपत्ति नहीं है। शोध ने महिलाओं की वित्त तक पहुंच की कमी और स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की कमी के बारे में भी बात की।

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

बैनर तस्वीर- बसुआ गांव की निलावती उरांव सौर ऊर्जा से चलने वाली आटा चक्की का संचालन करती हुईं। तस्वीरः मनीष कुमार/मोंगाबे 

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