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उत्तराखंडः गंगोत्री मार्ग के घने जंगल मुश्किल में, भागीरथी इको सेंसेटिव जोन में पेड़ों पर मंडराता खतरा

भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन के इस क्षेत्र में हज़ारों पेड़ सड़क चौड़ीकरण के लिये कटेंगे। तस्वीर- हृदयेश जोशी

भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन के इस क्षेत्र में हज़ारों पेड़ सड़क चौड़ीकरण के लिये कटेंगे। तस्वीर- हृदयेश जोशी

  • गंगोत्री नेशनल हाइवे पर इको सेंसटिव ज़ोन पर हज़ारों देवदार और अन्य प्रजातियों के पेड़ चारधाम यात्रा मार्ग के लिये काटे जा सकते हैं।
  • साल 2012 में इस क्षेत्र को भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन घोषित किया गया जिसके बाद से यह एक संरक्षित क्षेत्र है।
  • ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सड़क चौड़ीकरण को सीमित रखा जाये तो बड़ी संख्या में पेड़ कटने से बचाये जा सकते हैं। इसी साल राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय ने उत्तराखंड सरकार को चिट्ठी लिखकर कहा कि चारधाम यात्रा मार्ग के लिये और पेड़ नहीं काटे जायेंगे।

उत्तरकाशी ज़िले के भटवाड़ी ब्लॉक में रहने वाले मोहन सिंह राणा ने 17 साल सेना में नौकरी की। अब यह रिटायर फौजी संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में अपने जंगलों को बचाने के लिये सरकार से लड़ रहा है।  

“यह बड़े अफसोस की बात है। यहां हर्सिल इलाके में हज़ारों देवदार के पेड़ हैं। अगर सरकार जो योजना बना रही है उसके मुताबिक काम हुआ तो ये सारे पेड़ कट जायेंगे। इसे रोका जा सकता है। यह नहीं होना चाहिये,” मोहन सिंह ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।  

मोहन सिंह उत्तरकाशी-गंगोत्री चार धाम यात्रा मार्ग की बात कर रहे हैं जिसके लिये भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन में 6000 देवदार के पेड़ों को चिन्हित किया गया है। पर्यावरण की नज़र से दुनिया की सबसे संवेदनशील जगहों में गिना जाने वाला यह हिमालयी  क्षेत्र ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते प्रभाव के कारण अधिक संकटग्रस्त है। 

चारधाम यात्रा मार्ग का हिस्सा है प्रोजेक्ट 

उत्तरकाशी ज़िले में स्थानीय लोग जहां सड़क चौड़ीकरण के लिये पेड़ काटने का विरोध कर रहे हैं वह 825 किलोमीटर लम्बे उस चारधाम यात्रा मार्ग का हिस्सा है जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिसंबर 2016 में की गई। (देखें मानचित्र) 

इस मानचित्र में धरासू से गंगोत्री की ओर करीब 90 किलोमीटर चलने पर झाला से भैंरोघाटी का 25 किलोमीटर का घना जंगल शुरू होता है जो भागीरथी के उद्गम गंगोत्री की ओर ले जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि इस क्षेत्र में नेशनल हाइवे का चौड़ीकरण बिना पेड़ काटे भी हो सकता है लेकिन सरकार वृक्ष काटने पर आमादा है। 

मोहन सिंह कहते हैं, “यहां ग्रामीण सड़क चौड़ीकरण का विरोध नहीं कर रहे लेकिन इसकी एक सीमा होनी चाहिये। इन पहाड़ों पर हमें 90 या 100 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से गाड़ियां नहीं दौड़ानी होतीं इसलिये बिना पेड़ काटे पर्याप्त चौड़ाई की सड़क बन सकती है। हमने यह देखा है कि कई जगह टूटी सड़कों की मरम्मत नहीं की जाती जिस कारण सारा जाम लगता है। पेड़ों के अंधाधुंध कटने से भूस्खलन अधिक होगा और वनस्पतियां और खेती नष्ट हो जायेगी।”

सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों का कहना है कि कटने वाले देवदार के पेड़ों की संख्या सरकार द्वारा बहुत कम बताई जा रही है। हिमालय बचाओ अभियान के सदस्य सुरेश भाई ने मोंगाबे-हिन्दी से कहा, “सरकार कह रही है कि इस क्षेत्र में 6,000 पेड़ कटेंगे लेकिन असल में वन विभाग करीब 2 लाख 80 हज़ार पेड़ काटेगा जिनमें कई छोटे और औषधीय महत्व के पेड़ हैं। वन विभाग ने अपनी गिनती में उन पेड़ों की बात कही है जो 10 फुट या उससे अधिक मोटाई (परिधि) के हैं और काफी पुराने पेड़ हैं। जिन पेड़ों को चिन्हित किया गया है उनमें से हरेक पेड़ के चारों और डेढ़ दर्जन से अधिक छोटे और नवजात पेड़ हैं। सरकार उन्हें नहीं गिन रही है जो कि एक बहुत बड़ा अपराध है।” 

उत्तराखंड के वन अधिकारियों ने आधिकारिक तौर पर मोंगाबे-हिन्दी से बात नहीं की। उत्तरकाशी ज़िले के डिविज़नल फॉरेस्ट ऑफिसर पुनीत तोमर ने ग्रामीणों की इस आशंका पर पूछे गये सवाल का अभी तक जवाब नहीं दिया है। उनका कहना है कि जंगलों में आग, जानवरों के इंसानी बसावटों पर हमले और गंगोत्री के कपाट खुलने के कार्यक्रमों के कारण वह व्यस्त हैं और उन्हें जवाब के लिये समय चाहिये। इस विषय पर वन अधिकारी तोमर का कोई जवाब मिलते ही इस रिपोर्ट को अपडेट किया जायेगा।  

चुनाव से पहले पेड़ न काटने की चिट्ठी 

हालांकि इसी साल फरवरी में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले सड़क मंत्रालय की ओर से राज्य को चिट्ठी लिखी गई जिसमें स्पष्ट कहा गया है हाइवे निर्माण के लिये पेड़ काटना “आखिरी उपाय” होगा। इसकी जगह पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया जायेगा। चिट्ठी कहती है कि इससे “राज्य के जंगलों, बुग्यालों और ग्लेशियरों को संरक्षित” करने में मदद मिलेगी। 

इस चिट्ठी को लिखने वाले चार धाम यात्रा प्रोजेक्ट के इंचार्ज और अभियन्ता प्रमुख वी एस खैरा ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में कहा, “गंगोत्री हाइवे पर अभी उत्तरकाशी तक सड़क बन गई है लेकिन उसके आगे भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन में अभी कार्य शुरु नहीं हुआ है क्योंकि वहां कई (वन संबंधी) अनुमति ली जानी हैं। हम इस बारे में अभी कीमत संबंधी आकलन कर रहे हैं।”

यह पूछे जाने पर कि मंत्रालय पेड़ों की बचाने के वादे को कैसे क्रियान्वित करेगा खैरा ने कहा, “जो भी तकनीकी रूप से संभव उपाय हैं सभी अपनाये जायेंगे। हम पेड़ों की क्षति कम से कम करने की कोशिश करेंगे।”

मोहन सिंह जैसे ग्रामीण कहते हैं कि बिना पेड़ काटे भी पर्याप्त चौड़ाई वाली सड़क बच सकती है जिससे पर्यावरण और स्थानीय लोगों की जीविका पर चोट नहीं पड़ेगी। तस्वीर- ह्रदयेश जोशी
मोहन सिंह जैसे ग्रामीण कहते हैं कि बिना पेड़ काटे भी पर्याप्त चौड़ाई वाली सड़क बच सकती है जिससे पर्यावरण और स्थानीय लोगों की जीविका पर चोट नहीं पड़ेगी। तस्वीर- ह्रदयेश जोशी

हालांकि पेड़ों को ट्रांसप्लांट करना कितना मुमकिन होगा इस पर भी सवाल है।  पर्यावरणविद् और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सीआर बाबू ने मोंगाबे-हिन्दी से कहा, “ट्री ट्रांसप्लांटेशन का विचार ही बताता है कि नीति नियंताओं को पर्यावरण की समझ नहीं है। पहाड़ों का भूगोल और वहां की पारिस्थितिकी क्या ऐसी है कि वहां पेड़ ट्रांसप्लांट हो सकें! वहां (देवदार, बांज, बुरांश) सारे पेड़ नेटिव हैं और वह एक खास ऊंचाई पर ही उगते हैं और वहां एक ऊंचाई पर सीमित जगह है। जहां आप पेड़ हटा या काट रहे हैं वहां दूसरे पेड़ कैसे ट्रांसप्लांट होंगे। यह सिर्फ आंखों में धूल झोंकने वाली बात है।”

सड़क चौड़ाई को लेकर विवाद 

चार धाम यात्रा मार्ग की चौड़ाई कितनी हो इसे लेकर शुरू से विवाद रहा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्च स्तरीय कमेटी (एचपीसी) में दो राय थी। पहली राय सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर रखने की थी लेकिन दूसरी राय 10 मीटर चौड़ी सड़क (डीएलपीएस) बनाने की थी। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2020 के अंतरिम आदेश में सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर रखने की बात कही लेकिन पिछले साल 14 दिसंबर को यात्रा मार्ग की चौड़ाई 10 मीटर रखने का आदेश पास कर दिया। 

इस साल कोर्ट के फैसले के बाद कमेटी के अध्यक्ष पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने इस साल जनवरी में इस्तीफा दे दिया। और कहा कि सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के लिये सड़क मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय को ढाल की तरह इस्तेमाल किया है। उच्च स्तरीय कमेटी के अध्यक्ष अब जस्टिस (रिटायर्ड) ए के सीकरी  हैं। इस कमेटी के जिम्मे अभी जो काम हैं उनमें मलबे का उचित निस्तारण, पहाड़ों का सीमित और वैज्ञानिक रूप से सही कोण पर कटान, तीर्थयात्रियों और स्थानीय लोगों के लिये फुटपाथ निर्माण और वन्य जीवों के लिये कॉरिडोर आदि को सुनिश्चित करना है। 

चार धाम यात्रा मार्ग केस में सक्रिय रहे हेमन्त ध्यानी – जो एचपीसी के सदस्य भी हैं – कहते हैं कि एचपीसी की रिपोर्ट में भी यह बात दर्ज है कि झाला और भैंरोघाटी के बीच अगर 5.5 मीटर चौड़ी सड़क बनती है तो भी 3000 से अधिक देवदार के पेड़ कटेंगे।  

काटने के लिये चिन्हित किये गये इन पेड़ों को ट्रांसप्लांट करना मुमकिन नहीं होगा। तस्वीर- ह्रदयेश जोशी
काटने के लिये चिन्हित किये गये इन पेड़ों को ट्रांसप्लांट करना मुमकिन नहीं होगा। तस्वीर- हेमंत ध्यानी

ध्यानी के मुताबिक, “भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन के संवेदनशील क्षेत्र होने के नाते भी सड़क मंत्रालय और सीमा सड़क संगठन दोनों ने पहले गंगोत्री से उत्तरकाशी के बीच सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर से 7 मीटर तक ही रखने का निर्णय लिया था। यदि अब भी सड़क मंत्रालय (डीएलपीसी) की ज़िद को छोड़ इस हिस्से में अपने पूर्व निर्णय को क्रियान्वित करता है तो काफी हद तक पर्यावरण के नुकसान को कम किया जा सकता है।” 

हर साल होता है विनाश 

हर साल भूस्खलन और पहाड़ धंसने की नई घटनाओं से हाइवे निर्माण सवालों में रहता है। इस साल भी मॉनसून से पहले ही ऋषिकेश-बदरीनाथ हाइवे से ऐसी तस्वीरें आनी लगीं हैं।  इससे पहले उत्तरकाशी ज़िले में ऐसी दुर्घटनायें हुईं है जिसमें लोगों की जान गई है। हिमालयी भूर्गभशास्त्र के जानकार और टिहरी स्थित कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री, रानीचौरी में प्रोफेसर एस पी सती कहते हैं, “सड़क बनाने में रिपोज़ एंगल काफी अहम है। यह कोण सड़क और पहाड़ को स्थायित्व देता है लेकिन हमने देखा है कि चारधाम यात्रा मार्ग में पहाड़ों को खड़ा काटा गया है जिससे कई क्षेत्रों में नये लैंड स्लाइड ज़ोन पिछले कुछ सालों में पैदा हो गये हैं।”


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सती ऋषिकेश-चम्बा रोड का उदाहरण देकर कहते हैं कि पिछले 2-3 सालों में हमने वहां करीब 8 जगह भूस्खलन होता देखा है जहां पहले यह समस्या नहीं थी। सती के मुताबिक, “गंगोत्री हाइवे के जिस रास्ते में देवदार के पेड़ काटे जा रहे हैं वह काफी संवेदनशील है। इसलिये सड़क की चौड़ाई और पेड़ों के संरक्षण के बीच तालमेल होना चाहिये।” 

ग्लेशियरों के लिये ढाल 

उत्तराखंड का पहाड़ी क्षेत्र हर साल फॉरेस्ट फायर की चपेट में होता है और यहां के जंगल इस साल भी धू-धू कर जल रहे हैं। इस साल 10 दिन के भीतर आग की घटनायें दो गुनी हो गईं।  उत्तरकाशी ज़िले में भी बड़े क्षेत्र में जंगल स्वाहा हो गये हैं। ऐसे में ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़तरों को देखते हुये गोमुख जैसे महत्वपूर्ण ग्लेशियर के लिये यह जंगल ढाल की तरह हैं और इनके न रहने से ये अधिक तेज़ी से पिघलेंगे।  

गोमुख से उत्तरकाशी तक के 100 किलोमीटर क्षेत्र को साल 2012 में यूपीए सरकार ने एक इको सेंसटिव ज़ोन घोषित किया गया जो दर्जा अभी भी कायम है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ  इंडिया (जीएसआई) ने 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद जो लैंड स्लाइड ज़ोन चिन्हित किये थे उनमें करीब 30 भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन पड़ते में हैं जहां पेड़ काटे जायेंगे।

 

बैनर तस्वीरः भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन के इस क्षेत्र में हज़ारों पेड़ सड़क चौड़ीकरण के लिये कटेंगे। तस्वीर- हृदयेश जोशी

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