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बिहारः कोसी क्षेत्र के किसान क्यों कर रहे भू-सर्वेक्षण का विरोध?

कोसी अपने साथ भारी मात्रा में गाद लाती है, जिसकी वजह से यह नदी बहुत तेजी से अपना रास्ता बदलती है और किसानों के खेतों से होकर बहने लगती है। तस्वीर- उमेश कुमार राय/मोंगाबे

कोसी अपने साथ भारी मात्रा में गाद लाती है, जिसकी वजह से यह नदी बहुत तेजी से अपना रास्ता बदलती है और किसानों के खेतों से होकर बहने लगती है। तस्वीर- उमेश कुमार राय/मोंगाबे

  • भू-सर्वेक्षण बिहार विशेष सर्वेक्षण बंदोबस्त नियमावली 2012 के नियमों के अनुसार किया जा रहा है। इसके मुताबिक, किसानों की जमीन से होकर नदी बह रही है, तो वह जमीन राज्य सरकार की होगी। 20 जिलों में सर्वेक्षण पूरा हो गया है और 18 जिलों में सर्वेक्षण साल 2023 तक पूरा हो जाएगा।
  • किसानों का कहना है कि कोसी नदी की धाराएं तेजी से अपना रास्ता बदलती हैं और अभी वे धाराएं उनकी जमीन से होकर बह रही हैं। सर्वेक्षण में उनकी जमीन बिहार सरकार के खाते में चली जाएगी।
  • किसानों की मांग है कि नदी की धाराओं वाली जमीन का मालिकाना उन्हें दिया जाना चाहिए। किसानों के विरोध को देखते हुए सरकार ने कोसी तटबंध के भीतर के हिस्से में भू सर्वेक्षण टाल दिया है।

60 वर्षीय सत्यनारायण यादव ने पिछले साल जिस 2.75 एकड़ खेत में खेती की थी, उस जमीन पर कोसी नदी की धारा बह रही है। “खेत में नदी बह रही है, लेकिन मैंने सरकार को एक लाख रुपए बतौर जमीन का टैक्स दिया है,” सत्यनारायण यादव कहते हैं।

बिहार के सुपौल जिले में कोसी नदी के दोनों तटबंधों के बीच स्थित निर्मली गांव के रहने वाले सत्यनारायण यादव के पूर्वजों के पास 27.55 एकड़ जमीन थी, लेकिन अभी उनके पास सिर्फ 11.02 एकड़ जमीन बची हुई है। कोसी की धाराएं इतनी बार बदल गईं कि उन्हें मालूम नहीं कि बाकी जमीन कहां है।

वह कहते हैं, “धारा के बदलने से जमीन तो गई ही, हमारे घर भी न जाने कितनी बार नदी में समा गये। मेरी उम्र 60 साल है और जहां तक मुझे याद है कि कमोबेश हर साल घर टूटा है। आगे भी यह होता रहेगा, इसलिए हमलोग पक्का मकान नहीं बनाते हैं।”

कोसी नदी के तटबंधों के बीच रहने वाले हजारों परिवारों की कहानी सत्यनारायण यादव जैसी ही है। मसलन 45 वर्षीय मो. जाकिर की पांच एकड़ जमीन पर कोसी नदी बह रही है। बहुत थोड़ी जमीन उनके पास है, जिस पर वह खेती करते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता कि वह जमीन किसकी है।

“नदी की धारा जब जमीन को काटकर दूसरी तरफ बहने लगती है, तो उसका पहले का रास्ता जमीन में तब्दील हो जाता है। खेत में मेड़ नहीं होता, तो आसपास के लोग उस पर खेती करने लगते हैं। हो सकता है कि अगले साल नदी अपनी धारा बदल ले, तो मेरे खेत में कोई और खेती करने लगेगा,” मो. जाकिर ने मोंगाबेहिन्दी  से  बातचीत में कहा।

कोसी नदी के तटबंधों के बीच रहने वाले लोग दशकों से इसी तरह जी रहे हैं। किसी साल उनकी जमीन नदी के भीतर चली जाती है और कुछ महीनों बाद नदी की धारा बदल जाती है, तो वह जमीन उन्हें वापस मिल जाती है। लेकिन, बिहार सरकार के नये सिरे से भू-सर्वेक्षण कराने के बाद सबकुछ बदल जाएगा।

बिहार सरकार कैसे करा रही भू सर्वेक्षण

बिहार में कृषि व जोत वाली जमीन का पहला सर्वेक्षण 19वीं शताब्दी के मध्य से लेकर बीसवी शताब्दी के दूसरे दशक के बीच हुआ था, जिसे कैडस्ट्रल सर्वेक्षण कहा जाता है। यह सर्वेक्षण बिहार काश्तकारी अधिनियन 1885 के अंतर्गत हुआ था।

कोसी तटबंध में बना एक आंगनबाड़ी केंद्र। फोटो: उमेश कुमार राय
कोसी तटबंध में बना एक आंगनबाड़ी केंद्र। तस्वीर- उमेश कुमार राय

बाद में सरकार ने दोबारा सर्वेक्षण करने के लिए बिहार काश्तकारी अधिनियन 1885 में बदलाव कर बिहार सर्वे व सैटलमेंट मैनुअल 1959 बनाया। लेकिन, इसमें सर्वेक्षण की प्रक्रिया जटिल थी, जिस कारण राज्य के ज्यादातर हिस्सों में सर्वेक्षण पूरा नहीं हो पाया। इसलिए बिहार सरकार ने साल 2020 में दोबारा सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया। इसके अंतर्गत पहले चरण में 20 जिलों का सर्वेक्षण का काम पूरा हो चुका है और बाकी 18 जिलों में सर्वेक्षण चल रहा है। सर्वेक्षण का काम साल 2023 तक पूरा होने की उम्मीद है।

जमीन सर्वेक्षण बिहार विशेष सर्वेक्षण बंदोबस्त नियमावली 2012 के तहत किया जा रहा है। इन नियमावली के अनुसार जिन इलाकों से होकर नदियां बह रही हैं, वहां भूमि सर्वेक्षण के लिए कुछ नियम बनाये गये हैं।

4 अप्रैल 2021 को एक आरटीआई के जवाब में सुपौल के सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी ने जमीन की बदोबस्ती के नियम के बारे में क्रमवार बताया है। इसके मुताबिक, अगर वर्तमान में किसानों की जमीन से होकर नदी बह रही है, तो वह जमीन राज्य सरकार की होगी। दूसरे बिन्दू में कहा गया है कि कैडस्ट्रल सर्वे में जो हिस्सा नदी में था, वो अब जमीन में तब्दील हो चुका है और किसान उस पर खेती कर रहे हैं, तो वह जमीन भी बिहार सरकार की होगी।

आरटीआई आवेदन के जवाब में सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी ने कहा कि नदी अभी जिस रूट से बह रही है, उसकी जमीन बिहार सरकार के खाते में जाएगी। तस्वीर- उमेश कुमार राय
आरटीआई आवेदन के जवाब में सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी ने कहा कि नदी अभी जिस रूट से बह रही है, उसकी जमीन बिहार सरकार के खाते में जाएगी। तस्वीर- उमेश कुमार राय/मोंगाबे

सुपौल में कोसी नदी के दोनों तटबंधों के बीच रहने वाले किसानों को इन नियमों से घोर आपत्ति है और उनका कहना है कि इस सर्वेक्षण से उनकी सारी जमीन बिहार सरकार की हो जाएगी। किसानों का कहना है कि कोसी नदी अन्य नदियों की तरह नहीं है, बल्कि इसका चरित्र काफी अलग है, इसलिए इस नदी के तटबंध के भीतर की जमीन का सर्वेक्षण अलग तरह से होना चाहिए।

कोसी नदी का चरित्र

कोसी नदी हिमालय से निकलती है और नेपाल के भीमनगर से भारत यानी बिहार प्रवेश करती है और कुरसेला के पास गंगा नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लम्बाई 929 किलोमीटर है। बिहार में यह लगभग 260 किलोमीटर बहती है।

जानकारों और शोधपत्रों के मुताबिक, यह नदी दुनिया के उन गिनी चुनी नदियों में एक है, जो अपने साथ भारी मात्रा में गाद लाती है और गाद की वजह से ही यह नदी सबसे तेज गति अपना रास्ता बदलती है।

सन् 1736 से 1949 के बीच कोसी नदी के रूट में बदलाव का चित्र। साभार: जल संसाधान विभाग बिहार
सन् 1736 से 1949 के बीच कोसी नदी के रूट में बदलाव का चित्र। साभार: जल संसाधान विभाग बिहार

कोसी पर अपनी किताब ‘दुई पाटन के बीच में में नदी विशेषज्ञ डॉ दिनेश मिश्र कैप्टन एफसी हर्स्ट (1908) के हवाले से बताते हैं कि कोसी नदी हर साल अनुमानतः पांच करोड़ 50 लाख टन गाद लाती है।” वह आगे लिखते हैं, “कोसी के प्रवाह में आने वाली इस गाद के परिमाण का अंदाजा इस तरह से लगाया जाता है कि यदि मीटर चौड़ी और एक मीटर ऊंची एक मेड़ बनाई जाए तो वह पृत्वी की भूमध्य रेखा के लगभग ढाई फेरे लगाएगी।”

बिहार के जल संसाधन विभाग के बाढ़ प्रबंधन सुधार सहयोग केंद्र, पटना के डिप्टी डायरेक्टर ‘फ्लड एंड सेडिमेंट मैनेजमेंट इन कोसी रिवर’ में लिखते हैं, “यह नदी जिस रूट से गुजरती है, वहां 1456 मिलीमीटर बारिश होती है और इसके उद्गमस्थल में मिट्टी का क्षरण अधिक होता है, जिस वजह से यह नदी अपने साथ भारी मात्रा में गाद लाती है।”

वह आगे लिखते हैं, “मैदानी इलाकों में गाद के चलते नदी के मार्ग में अवरोध आता है जिससे नदी को वैकल्पिक रास्ता लेना पड़ता है। इससे नदी की धाराएं इधर उधर शिफ्ट हो जाती हैं। इसके अलावा भूकंप, भूस्खलन और नियो-टेक्टोनिक गतिविधियों के चलते भी इसके मार्ग में तब्दीली आती है।”

जीएसआई इन फ्लड हैजार्ड मैपिंग: ए केस स्टडी ऑफ कोसी रिवर बेसिन, इंडिया शोधपत्र में बताया गया है कि पिछले 200 वर्षों में यह नदी अपने मूल मार्ग से 150 किलोमीटर दूर चली गई है। हालांकि पहले तटबंध नहीं थे, तो नदी उन्मुक्त बहती थी।

डॉ दिनेश मिश्र कहते हैं, “60-70 के दशक में नदी के दोनों तरफ तटबंध बनाकर नदी को 10 किलोमीटर के दायरे में कैद कर दिया गया। पहले नदी के साथ जो गाद आता था, वो विस्तृत इलाके में फैलता था, लेकिन अब 10 किलोमीटर के दायरे में ही सिमट जाती है, तो नदी और भी तेजी से मार्ग बदलने लगी है। कोसी तटबंधों के भीतर ही कोसी की बहुत-सी धाराएं बह रही हैं।”

यहां यह भी बता दें कि कोसी के दोनों तटबंधों के बीच लगभग 358302.803 एकड़ लाख जमीन है और दोनो तटबंधों के भीतर करीब दो लाख लोग रहते हैं। 

किसानों का विरोध

कोसी तटबंध के भीतर रह रहीं रेशम देवी मोंगाबेहिन्दी को बताती हैं, “मेरे 2.75 एकड़ जमीन पर नदी बह रही है। सर्वेक्षण नियम के मुताबिक तो मेरी पूरी जमीन ही राज्य सरकार की हो जाएगी, फिर हम जिंदा कैसे रहेंगे। जमीन के नदी में डूब जाने के बावजूद मैं सरकार को जमीन का टैक्स चुका रही हूं क्योंकि आज नहीं तो कल जमीन बाहर आ जाएगी।”  

“सरकार सर्वेक्षण नियम बदले और नदी की धारा वाली जमीन का मालिकाना हक किसानों को दे,” रेशम देवी कहती हैं।

रेशम देवी की 10 बीघा जमीन पर नदी बह रही है। उनका कहना है कि सर्वेक्षण में उनकी पूरी जमीन ही राज्य सरकार की हो जाएगी, फिर वह जिंदा कैसे रहेंगी। वे कहती है कि जमीन के नदी में डूब जाने के बावजूद वह सरकार को जमीन का टैक्स चुका रही हैं, क्योंकि आज नहीं तो कल जमीन बाहर आ जाएगी। तस्वीर- उमेश कुमार राय
रेशम देवी की 2.75 एकड़ जमीन पर नदी बह रही है। उनका कहना है कि सर्वेक्षण में उनकी पूरी जमीन ही राज्य सरकार की हो जाएगी, फिर वह जिंदा कैसे रहेंगी। वे कहती है कि जमीन के नदी में डूब जाने के बावजूद वह सरकार को जमीन का टैक्स चुका रही हैं, क्योंकि आज नहीं तो कल जमीन बाहर आ जाएगी। तस्वीर- उमेश कुमार राय

सुपौल के कोसी क्षेत्र में अमीन के तौर पर तीन दशक तक काम करने वाले स्थानीय निवासी संतराम यादव ने मोंगाबेहिन्दी को बताया, “कोसी तटबंधों के भीतर रहने वाले किसानों की जमीन का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा नदी में है। सर्वे में 70 प्रतिशत जमीन सरकार की हो जाएगी। यह किसानों के साथ सरासर अन्याय है। नदी के भीतर जो जमीन है, उसका मालिकाना हक किसानों को मिलना चाहिए।”

सुपौल के निर्मली गांव में 261.745 एकड़ जमीन है और 1500 परिवार रहते हैं। “इस गांव के किसान  कहते हैं कि सरकारी नियम के अनुसार अगर सर्वेक्षण हुआ, तो मुश्किल से 14 एकड़ जमीन ही किसानों के पास बचेगी। अगर ऐसा हुआ तो भुखमरी की नौबत आ जाएगी क्योंकि ज्यादातर किसान भूमिहीन हो जाएंगे,” सत्यनारायण यादव ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

सर्वेक्षण नियमों के खिलाफ 25 अप्रैल को कोसी नवनिर्माण मंच की ओर से तटबंध के भीतर रह रहे किसानों को लेकर एक जनसुनवाई की गई, जिसमें दर्जनों किसान शामिल हुए। सभी ने एक स्वर में सर्वेक्षण नियमों का विरोध किया।

कोसी नवनिर्माण मंच, कोसी नदी के तटबंध के भीतर रह रहे किसानों के लिए काम करती है। मंच के संस्थापक महेंद्र यादव कहते हैं, “कोसी तटबंध के भीतर के किसानों के साथ अब तक अन्याय ही होता आया है। आजादी के बाद कोसी के दोनों ओर तटबंध बना दिया गया, लेकिन किसानों को कोई मुआवजा नहीं मिला। वे किसी तरह तटबंधों के भीतर जी रहे हैं। तटबंध के भीतर न स्कूल है, न अस्पताल और न सड़क लेकिन किसान किसी तरह हर साल सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क व कृषि टैक्स चुकाते हैं। नये सर्वेक्षण से उनकी जमीन भी चली जाएगी।”  

सत्यनारायण यादव के पूर्वजों के पास 100 बीघा जमीन थी, लेकिन अभी उनके पास सिर्फ 40 बीघा जमीन बची हुई है। कोसी की धाराएं इतनी बार बदल गईं कि उन्हें मालूम नहीं कि बाकी जमीन कहां है। फोटो: उमेश कुमार राय Md. Zakir: मो. जाकिर की पांच एकड़ जमीन नदी में समा चुकी है। अगर नये सिरे से सर्वेक्षण होता है, तो उनकी इस जमीन का मालिकाना हक बिहार सरकार को मिल जाएगा। तस्वीर- उमेश कुमार राय/मोंगाबे
सत्यनारायण यादव के पूर्वजों के पास 27.55 एकड़ जमीन थी, लेकिन अभी उनके पास सिर्फ 11.02 एकड़ जमीन बची हुई है। तस्वीर- उमेश कुमार राय/मोंगाबे

“नदी की धारा वाले हिस्से को आज सरकार अपने खाते में डाल देगी, लेकिन कल को नदी धारा बदल लेगी, तो पुरानी धारा वाली जमीन का क्या होगा? क्या सरकार नये सिरे से सर्वेक्षण कराकर जमीन किसानों के हवाले करेगी? सरकार अगर नदी की वर्तमान धारा वाले हिस्से को अपने खाते में लेगी, तो उसे एक तकनीक विकसित करनी चाहिए ताकि बाद में वह जमीन निकल आए तो उसका मालिकाना हक किसानों को मिल जाए। अगर सरकार ऐसी कोई व्यवस्था नहीं करती है, तो सर्वेक्षण किसानों के लिए एक नई मुसीबत बन जाएगा,” महेंद्र यादव ने मोंगाबेहिन्दी से कहा।

वे कहते हैं, “जन सुनवाई में किसानों ने तय किया है कि वे सर्वेक्षण प्रक्रिया में असहयोग करेंगे।”   

किसानों की आपत्तियों को देखते हुए सुपौल के अन्य हिस्सों में सर्वेक्षण तो हुआ है, लेकिन कोसी तटबंध के भीतर के हिस्से में सर्वेक्षण को फिलहाल टाल दिया गया है।


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सुपौल के बंदोबस्त पदाधिकारी भारत भूषण प्रसाद ने मोंगाबेहिन्दी से कहा, “किसानों की मांग है कि नदी में जा चुकी सारी जमीन किसानों के नाम हो, लेकिन सर्वेक्षण नियमावली में यह नहीं है, तो हमलोग ऐसा कैसे कर सकते हैं।”

“किसानों की आपत्तियों को लेकर हमने विभाग को लिखित आवेदन देकर आवश्यक दिशानिर्देश देने को कहा है। जल्द ही विभाग से दिशानिर्देश आ जाएगा, तो हमलोग इससे किसानों को अवगत करा देंगे,” भारत भूषण प्रसाद ने कहा।

 

बैनर तस्वीरः कोसी अपने साथ भारी मात्रा में गाद लाती है, जिसकी वजह से यह नदी बहुत तेजी से अपना रास्ता बदलती है और किसानों के खेतों से होकर बहने लगती है। तस्वीर- उमेश कुमार राय/मोंगाबे

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