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क्या नीति आयोग की बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी से इलेक्ट्रिक वाहनों के बाज़ार में आएगा बदलाव?

  • नीति आयोग ने पिछले महीने बैटरी स्वैपिंग (बैटरी की अदला-बदली) पॉलिसी जारी की। इसका उद्देश्य देश में एक ऐसी व्यवस्था बनाने की है जिसमें इलेक्ट्रिक वाहनों को आसानी से चार्ज बैटरी उपलब्ध हो पाए।
  • इसके तहत बैटरी ऐज अ सर्विस मॉडल (बास) व्यवस्था की बात की गयी है जिसमें डिस्चार्ज बैटरी को जमा करके चार्ज बैटरी हासिल की जा सकेगी। इस पूरी व्यवस्था में बैटरी खरीदने की जरूरत नहीं होगी।
  • इस नीति में ऐसी व्यवस्था की बात की गयी है जहां नए इलेक्ट्रिक वाहन बिना बैटरी के बेचे जा सकेंगे। इससे वाहनों पर आने वाला खर्च कम हो सकेगा और उन्हे चार्ज करने में लगने वाला समय भी बचेगा।

मयूर रॉय ओडिशा के कटक शहर में रहने वाले 31 वर्ष के एक कारोबारी हैं। उन्होनें बीते फरवरी महीने में एक बिजली से चलने वाला स्कूटर खरीदा था। रॉय की सोच यह थी कि इलेक्ट्रिक वाहन चलाने से पेट्रोल-डीजल का पैसा बचेगा और प्रदूषण कम करने में उनका जो योगदान होगा सो अलग। अपने व्यापार के सिलसिले में मयूर राय शहर में कहीं भी आने जाने के लिए अपने इसी स्कूटर का इस्तेमाल करते हैं।

इस इलेक्ट्रिक वाहन का इस्तेमाल करते हुए उन्हें लग रहा था कि वे कुछ खास कर रहे हैं। उन्हें लगता था कि घर-परिवार के अन्य लोग भी उनसे प्रभावित होंगे और इलेक्ट्रिक वाहन पर शिफ्ट होंगे। लेकिन बीते दिनों में कई जगहों से इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने की खबर आई और जो लोग राय की गाड़ी से कुछ प्रभावित दिख रहे थे उन्होंने अपने प्लान बदल लिए।

“मैं इस स्कूटर को अपने घर पर चार्ज करता हूं। अब तक मेरा अनुभव अच्छा रहा है। लेकिन हाल के दिनों में इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने की कई खबरे आई और मैं भी डरने लगा हूं। मेरे कई दोस्त भी अपनी राय बदलने लगे हैं,” रॉय ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। ऐसी ही कहानी अब देश में बहुत से इलेट्रिक वाहन के उपभोक्ताओं की है।

आंकड़ों के मुताबित ऐसे वाहनों में आग लगने की खबरों के बाद कई इलेक्ट्रिक वाहन (इवी) बनाने वाली कंपनियों ने लगभग 7000 ऐसे वाहनों को बाज़ार से हटा लिया है। ऐसा तब हुआ है जब भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाली कंपनियों को स्वेच्छा से ख़राब मॉडलों को बाज़ार से हटाने का अनुरोध किया।

इलेक्ट्रिक से चलने वाली इन वाहनों में आग लगने की खबरों और अन्य चुनौतियों के बीच भारत सरकार इसे प्रोत्साहित करना चाहती है। हाल ही में नीति आयोग ने एक नई ड्राफ्ट बैटरी स्वैपिंग नीति जारी की है। इस नीति में एक ऐसी व्यवस्था का प्रस्ताव रखा गया है जहां बैटरी को एक सेवा की तर्ज पर इस्तेमाल किया जा सके। इस नई व्यवस्था में इलेक्ट्रिक वाहनों के मालिकों को बिना बैटरी खरीदे इसके इस्तेमाल की सहूलियत होगी। ऐसे व्यवस्था में नए इलेक्ट्रिक वाहन बाज़ारों में बिना बैटरी के बेचे जा सकेंगे। इस नीति में बैटरी से जुड़े सुरक्षा मानकों की भी बात की गई है।

इस साल के बजट में केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने बैटरी स्वैपिंग नीति की घोषणा भी की थी। इलेक्ट्रिक वाहनों के उपभोक्ता और विशेषज्ञ पहले से इसकी मांग करते रहे हैं।

वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों के उपभोक्ता अपने वाहनों को चार्ज करने के लिए या तो अपने घरों में मिल रही बिजली का इस्तेमाल करते है या इसके लिए सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन का जो अक्सर पेट्रोल पम्प, मॉल, ऑफिस या अन्य जगहों पर लगाया जा रहा है, उसका इस्तेमाल करते हैं। एक वाहन को पूरी तरह से चार्ज करने के लिए लगभग 4 से 5 घंटे तक का लंबा समय लग जाता है। लेकिन अगर यह नीति मूर्त रूप लेती है तो इसमें वर्तमान स्थिति में बड़ा बदलाव आएगा।

इस नीति में बताया गया है कि भविष्य में ऐसी व्यवस्था के अंतर्गत नए इलेक्ट्रिक वाहनों पर आने वाला खर्च कम हो सकता है क्योंकि ये वाहन बिना बैटरी के भी बाजार में मौजूद होंगे और बेचे जा सकेंगे। एक उपभोक्ता कुछ शुल्क देकर बैटरी स्वैपिंग स्टेशन (बीएसएस) से अपनी गाड़ी के लिए बैटरी ले सकता है। यह ठीक उसी प्रकार होगा जैसे हम एलपीजी सिलिन्डर का इस्तेमाल करते हैं। हमें सिलिन्डर का कुछ किराया भर देना होता है और खत्म हो जाने के बाद वापस कंपनी को लौटा देना होता है। आम आदमी को सिर्फ गैस का शुल्क देना होता है।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए बना एक बैटरी हब। तस्वीर-कार्तिक चन्द्रमौलि

आयोग की इस नीति में सुरक्षा मानकों की भी बात की गई है जिसके अंतर्गत ऐसे वाहनों में केवल उन्नत रसायन सेल (एडवांस केमिस्ट्री सेल) बैटरी का ही प्रयोग किया जाएगा। या ऐसे बैटरियों का जिनके मानक या तो फास्टर अडॉप्शन ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इन इंडिया (एफ़एएमई)-II के मानकों के बराबर हो या उससे भी उच्च गुणवत्ता वाले हो।

इस नीति में इस पर भी विशेष बल दिया गया है कि इन वाहनों में बैटरी को लगाने के लिए प्रयोग में आने वाली दूसरी वस्तुएं जैसे तार, कनैक्टर आदि किसी भी मॉडल के वाहनों में आराम से लग जाये।

इस ड्राफ्ट नीति के तहत बैटरी की निगरानी और सुरक्षा के मद्देनजर बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (बीएमएस) को लगाना अनिवार्य होगा। कहा गया है कि बैटरी निर्माता यह सुनिश्चित करेंगे कि उचित बीएमएस का इस्तेमाल बैटरी में किया जाये ताकि अधिक तापमान और गर्मी से बैटरी में होने वाले प्रतिकूल प्रभाव से बचा जा सके। बीएमएस बैटरी में लगाया जाने वाला एक सुरक्षा उपकरण होता है जो इसके गरम होने पर इसका पता लगाता है। इसमे लगे सेन्सर से ही पता चलता है की बैटरी अपनी सीमा से अधिक गरम हो चुकी है और इसे ठंडा करने या ज्यादा नुकसान से बचाने के लिए गाड़ी में मौजूद ठंडा करने के सिस्टम को सिग्नल चला जाता है।

इसके अलावा इस नीति में बैटरी संचालकों को इससे जुड़े सभी जानकारी को इस क्षेत्र से जुड़े सभी वर्ग के लोगों से साझा करने के लिए कहा गया है। बैटरी से जुड़ी जानकारी जैसे उसकी आयु, काम करने की क्षमता इत्यादि की जानकारी बैटरी संचालकों को उपलब्ध कराना होगा। ये सारी सूचनाएं वाहन मालिक और दूसरे हितधारक को देना होगा। इसके अलावा सभी बैटरी और बैटरी संचालकों को भी एक विशेष पहचान संख्या देने की बात की गयी है।

इस नई व्यवस्था में बैटरी संचालकों को सब्सिडी देने का प्रावधान भी है जबकि इन्हे इस क्षेत्र से जुड़े इलेक्ट्रिक उपभोक्ताओं की शिकायतों को लेने और उसके निवारण के लिए भी कहा गया है। आयोग ने 5 जून तक इस ड्राफ्ट नीति पर लोगों की प्रतिक्रिया मांगी है।

इस नीति  में कहा गया है कि राज्य, बैटरी स्वैपिंग स्टेशन और बैटरी चार्जिंग स्टेशन को बिजली उपलब्ध कराने में प्राथमिकता दें। इसमें इन स्टेशन के लिए जमीन मुहैया कराने को भी कहा गया है।

अगर आंकड़ों कि माने तो भारत में इलेक्ट्रिक वाहन का विकास तेजी से हो रहा है। इस साल मार्च 2022 में केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में दिये अपने एक बयान में कहा कि अब तक भारत में 10.76 लाख ऐसे वाहन की बिक्री हो चुकी है एवं 1,742 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन भी खोले गए है। आंकड़े कहते है कि देश में 42 ऐसे बैटरी स्वैपिंग स्टेशन पहले ही खोले जा चुके है। ये स्टेशन तेल की मार्केटिंग कंपनियों ने खोला है।

नई नीति में सुरक्षा के प्रावधान

इस क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों का मानना हैं कि इस ड्राफ्ट नीति में इलेक्ट्रिक वाहन से जुड़ी सुरक्षा की चिंताओं का काफी हद तक खयाल रखा गया है। लेकिन इन बातों का विस्तृत वर्णन और स्पष्टता के साथ उल्लेख नहीं किया गया है।

“यह ड्राफ्ट नीति बड़े फलक पर बात करती है। इस नीति में बैटरी से जुड़े मानकों की भी बात की गई है। इलेक्ट्रिक वाहन में प्रयोग होने वाले कनेक्टर से जुड़े मानकों की भी बात की गयी है जिसपर अब तक चर्चा लगभग न के बराबर हुई थी। लेकिन इस क्षेत्र में बहुत से और जरूरी मुद्दे हैं जिस पर ध्यान देने की जरूरत है। उदाहरण के लिए हमारे देश में बीएमएस का सामान्यतः आयात किया जाता है। यहां लाने के बाद बैटरी निर्माता नए सिरे से इसका ब्रांड वैल्यू बनाते हैं और बेचते हैं। स्थानीय स्तर पर कई बार इसके गुणवत्ता की समुचित जांच नहीं हो पाती है। ऐसा करने वालों पर कारवाई करने की जरूरत है और स्थानीय बीएमएस निर्माण को प्रोत्साहन देने की भी जरूरत है,” बंगलुरु में रह रहे राहुल लांबा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। लांबा द एनर्जी कंपनी के संस्थापक है जो बैटरी का निर्माण और ऊर्जा के क्षेत्र में काम करती है।

उन्होने इलेक्ट्रिक वाहन में आग लगने की समस्या पर बात करते हुए कहा कि हमारे देश में बैटरी के बहुत से मानकों के लिए नियम बने हुये है लेकिन कुछ जांच ठीक तरह से नहीं हो पाती है।

उन्होनें यह भी बताया कि बैटरी उत्पादक जांच करने में पूरी तरह दक्ष नहीं हैं। लांबा बताते हैं कि कई बार वाहन की चार्जिंग पूरी हो जाने के बाद भी इसका सिग्नल बीएमएस तक नहीं पहुंच पाता है क्योंकि चार्जर और बीएमएस के बीच कोई संपर्क नहीं होता। इसके फलस्वरूप बैटरी गरम होती रहती है।

दूसरे विशेषज्ञों ने बताया कि बैटरी में इस्तेमाल की गई वस्तु में समान्यतः कोई दोष नहीं होता।

सागर मित्रा, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), बॉम्बे में ऊर्जा विज्ञान और इंजीनयरिंग विभाग में प्रोफेसर हैं। मित्रा बताते हैं कि बैटरी मे प्रयोग की जा रही चीजों में सुरक्षा के दृष्टि से कोई समस्या नहीं होती। वो कहते है कि बहुत से दूसरे कारक बैटरी में अधिक गर्मी पैदा करने और उससे होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार होते हैं।

उन्होनें मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि चार पहिया गाड़ियों की तुलना में दो पहिया वाहनों में आग लगने के आसार ज्यादा होते हैं क्योंकि दो पहिया वाहनों में इस्तेमाल की जाने वाली बीएमएस और थर्मल मैनेजमेंट सिस्टम (टीएमएस) अधिक विकसित नहीं होता जो समय से बैटरी के गरम होने पर उसे ठंडा करने के लिए उच्च कोटि की तकनीक से उसे उसके प्रभाव को निष्क्रिय कर सके।

मित्रा ने यह भी बताया कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहन में आग लगने पर शोध के लिए कोई शोध संस्था या लैब नहीं है जो इस विषय पर विस्तार से अध्ययन कर सके या समाधान सुझा सके। हालांकि उन्होने यह भी कहा कि अगर वाहन की कुल बिक्री और उसमें आग लगने की संख्या पर ध्यान दे तो वो बहुत ही कम है।

हैदराबाद में एक मेट्रो स्टेशन के पार्किंग में लगाया गया एक सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग की जरूरतों को पूरा किया जाता है। तस्वीर-मनीष कुमार

प्रोमित मुखर्जी नई दिल्ली में अब्सर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ओआरएफ़) में एक शोधकर्ता हैं जो स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों पर अध्ययन करते हैं। उन्होने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि यह नीति बैटरी को एक सेवा के तौर पर विकसित करने के लिहाज से एक सकारात्मक कदम है। उनका कहना है कि ऐसी नयी व्यवस्था से इलेक्ट्रिक वाहनों कि कीमतों में गिरावट आएगी। लेकिन इस नए उभरते बाज़ार को एक अच्छे मॉडल की तरह विकसित करना भी जरूरी है।

उन्होने बताया कि सुरक्षा मानकों पर विस्तार से बात करने की जरूरत है। “अब  इलेक्ट्रिक वाहन के क्षेत्र में सुरक्षा एक अहम विषय है। इसपर ध्यान देने के जरूरत है। अतः हमें मानक तय करने और उसे सख्ती से पालन करने की जरूरत है। बैटरी के रिसाइक्लिंग की बात भी इस नीति में की गई है जिसे हमें गंभीरता से अमल में लाने कि जरूरत है,” मुखर्जी ने बताया।

इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं ने किया स्वागत

इलेक्ट्रिक वाहन के निर्माताओं ने नीति आयोग की इस नई नीति का स्वागत किया है और उनका कहना है कि इस कदम से बाजार का विस्तार होगा। लेकिन यह बात भी कही जाती है कि इस नीति का फायदा पहले महानगरों में होगा। छोटे शहरों में इस नई व्यवस्था को आने में समय लग सकता है।


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नीति आयोग की इस नीति में यह कहा गया है कि शुरू के दो सालों में ध्यान चुनिन्दा महानगरों पर दिया जाएगा जहां की आबादी 40 लाख से अधिक है जैसे की-दिल्ली, हैदराबाद, कलकत्ता, मुंबई, अहमदाबाद, पुणे, सूरत और चेन्नई और उसके बाद राज्यों की राजधानी में इस व्यवस्था को बनाने पर ज़ोर दिया जाएगा।

हालांकि बैटरी स्वैपिंग स्टेशन से जुड़े लोग बताते है कि सब्सिडी जैसे मामलों को लेकर इस नीति में बहुत स्पष्ट तरीके से बात नहीं की गयी है। “यह नीति सब्सिडी की बात तो करती है जो या तो किसी नई योजना के तहत दी जाएगी या इसका प्रावधान किसी पुरानी योजना में संशोधन करके किया जाएगा, कई बैटरी स्वैपिंग स्टेशन के संचालक ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

बैनर तस्वीर: ऑडिशा के पूरी शहर की सड़कों पर एक इलेक्ट्रिक-रिक्शा। तस्वीर- मनीष कुमार

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