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शहर में अधिक गर्मी क्यों पड़ रही और शहर हीट आईलैंड क्यों बन जाते हैं?

शहरों की कई विशेषताओं के कारण ऐसे क्षेत्र बनते हैं जहां अधिक गर्मी होती है। सबसे पहले तो शहरों में पेड़-पौधों के कम होने के कारण ज्यादा वाष्पीकरणऔर ज्यादा वाष्पोत्सर्जन होता है। इन दोनों प्रक्रियाओं के कारण गर्मी ज्यादा होती है। तस्वीर- मैके सैवेज/विकिमीडिया कॉमन्स

शहरों की कई विशेषताओं के कारण ऐसे क्षेत्र बनते हैं जहां अधिक गर्मी होती है। सबसे पहले तो शहरों में पेड़-पौधों के कम होने के कारण ज्यादा वाष्पीकरणऔर ज्यादा वाष्पोत्सर्जन होता है। इन दोनों प्रक्रियाओं के कारण गर्मी ज्यादा होती है। तस्वीर- मैके सैवेज/विकिमीडिया कॉमन्स

  • हर साल गर्मी के समय भारत के अधिकांश शहरों में गरम हवा चलती है। इसके कारण लू लगती है, गर्मी से थकावट आती है, गर्मी के कारण लोग बेहोश तक हो जाते हैं और कुछ लोगों की तो मौत भी हो जाती है।
  • शहर के कुछ हिस्से अधिक गर्म हो जाते हैं जिन्हें अर्बन हीट आईलैंड कहा जाता है। यह महानगरों का वह हिस्सा है जहां आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के बनिस्बत तापमान उल्लेखनीय रूप से अधिक रहता है।
  • अर्बन हीट आईलैंड में गर्मी को कम करने के लिए ऐसे पेड़-पौधों और मकान निर्माण सामग्री का उपयोग किया जा सकता है जिसमें कम गर्मी अवशोषित हो। इसके साथ ही मानवीय गतिविधियों से जो गर्मी होती है जैसे गाड़ी के प्रदूषण इत्यादि, उसको कम करने की कोशिश की जा सकती है।

आजकल गर्मी अपने चरम पर है और इसके तरह-तरह के रूप देखने को मिल रहे हैं। जैसे शहरों में गावों से अधिक गर्मी होना। इसी को अर्बन हीट आईलैंड कहते हैं। ये आईलैंड, महानगरों का हिस्सा है जहां आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा गर्मी होती है। 

सबसे पहले 1810 में ल्यूक हॉवर्ड नाम के अंग्रेज़ मौसम विज्ञानी ने अर्बन हीट आईलैंड के बारे में बताया। हॉवर्ड, शहरी जलवायु विज्ञान के पथप्रदर्शक थे। उन्होंने सबसे पहले शहर में अधिक गर्मी की घटना का वर्णन उनकी ‘द क्लाइमेट ऑफ लंदन’ किताब में किया। उन्होंने दिखाया कि लंदन शहर, विशेष रूप से मध्य लंदन का तापमान उसी समय आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में दर्ज किए गए तापमान से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक था। हालांकि ‘अर्बन हीट आईलैंड’ का नाम जर्मन मौसम विज्ञानी अल्बर्ट पेप्प्लर ने 1929 में दिया और उन्होंने ‘शहर के ऊपर गर्म स्थिर हवा का द्रव्यमान’ के रूप में इसका वर्णन किया। 

अर्बन हीट आईलैंड क्यों बनते हैं? 

शहरों की कई विशेषताओं के कारण ऐसे क्षेत्र बनते हैं जहां अधिक गर्मी होती है। सबसे पहले तो शहरों में पेड़-पौधों के कम होने के कारण ज्यादा वाष्पीकरणऔर ज्यादा वाष्पोत्सर्जन होता है। इन दोनों प्रक्रियाओं के कारण गर्मी ज्यादा होती है। वाष्पीकरण प्रक्रिया में मिट्टी, जलाशय, सतह का पानी भाप बन जाता है। पेड़ों के जड़ से होते हुए पत्तों के छोटे-छोटे छिद्रों के माध्यम से पानी का हवा में मिल जाना वाष्पोत्सर्जन है। 

दूसरे, शहरों में इमारतें, विशेष रूप से ऊंची इमारतों में एक से अधिक सतह होते हैं, जो सूरज की रोशनी से गर्मी सोखते हैं और उसे आस-पास की आबोहवा में छोड़ते रहते हैं। कई सारी ऊंची इमारतें आसपास होने के कारण हवा के प्रवाह में रुकावट पैदा होती है और इस तरह ठंडा  होने की प्रक्रिया भी बाधित होती है। ये दो कारक मिलकर अरबन केन्योन या स्ट्रीट केन्योन प्रभाव पैदा करते हैं।

शहरों में ज्यादा पाई जाने वाली सड़कों और इमारतों में डमर और कंक्रीट का उपयोग होता है। इनकी काली सतह और थर्मल जैसे लक्षण के कारण, ये इन्फ्रास्ट्रक्चर,  ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में ज्यादा गर्मी सोखते हैं। आमतौर पर शहरों और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में तापमान का अंतर दिन की तुलना में रात में अधिक होता है। इसके कारण शहरों में बड़े पैमाने में उपयोग किए जाने वाले कंक्रीट में ज्यादा गर्मी सहन करने की क्षमता होती है और वह गर्मी का भंडार के रूप में काम करती है। इसके अतिरिक्त शहर के ऊपर के वायुमंडलीय स्थिति के कारण, अक्सर शहर में चलने वाली हवा जमीनी सतह पर फंस जाती है।  

तापमान बढ्ने से फ्रिज और एसी का उपयोग बढ़ेगा जिससे बिजली की मांग बढ़ेगी , इसके कारण बिजली वितरण ग्रिड पर दबाव बढ़ेगा और ग्रिड फेल कर सकता है। तस्वीर-विल्स लिन / फ़्लिकर।
हर साल गर्मी के मौसम में भारत के अधिकांश शहरों में लू चलती है जिसके कारण शहर के लोगों, विशेष रूप से गरीब लोगों को लू लगने, गर्मी के कारण थकान होने, कई बार बेहोश होने और यहां तक कि मौत होने की खबर भी आती हैं। तस्वीर– जुहा यूट्टो / फ़्लिकर।

मानव जनित गर्मी और वायु प्रदूषण शहरों में गर्मी ज्यादा होने का चौथा कारण है। मानव जनित गर्मी गाड़ियों और इमारतों (पंखा, कंप्यूटर, फ्रिज और एयर कंडीशन) द्वारा पैदा होती है। हालांकि पहले उल्लेख किये गये कारणो की तुलना में चौथे कारण को व्यापारिक और रिहायशी क्षेत्र में कम महत्व दिया जाता है। शहरों में अधिक प्रदूषक गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और ओज़ोन ग्रीनहाउस गैस पाए जाते हैं और माना जाता है कि अर्बन हीट आईलैंड बनाने में इसकी भूमिका होती है।  

इन गर्म हिस्सों से किस तरह से शहरी जिंदगी प्रभावित होती है?  

2012 में दुनिया के 419 शहरों के विश्लेषण से पता चलता है कि ऐसे अर्बन हीट आईलैंड के कारण शहरों में दिन के समय 1.5 डिग्री सेल्सियस और रात में 1.1 डिग्री सेल्सियस तापमान अधिक रहता है। इसका प्रभाव आबादी, वनस्पति और जलवायु पर निर्भर है। 

यूरोप और उत्तरी अमेरिका में हुए अध्ययन से पता चलता है कि अर्बन हीट आईलैंड, बारिश के पैटर्न, बादल तथा कोहरे के निर्माण को प्रभावित करता है। इसके अलावा समशीतोष्ण क्षेत्र में पौधे उगाने के मौसम को भी प्रभावित करता है।    

वर्ष 2020 में भारत के 32 शहरों में ऐसे गरम क्षेत्र का एक विश्लेषण किया गया जिसमें  पाया गया कि दिन के समय में शहरों में तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से 9 डिग्री सेल्सियस तक अधिक हो जाता है।  एक अन्य अध्ययन में भारत के 44 शहरों को शामिल किया गया जिसमें पता चला कि पेड़-पौधे (ज्यादा पेड़-पौधे रहने से गर्मी का प्रकोप कम होना) और मौसम पर तापमान बढ़ना, काफी हद तक निर्भर है। शहरों और आसपास के ग्रामीण क्षेत्र में तापमान का अंतर बारिश के समय और उसके बाद के समय में ज्यादा होता है। हालांकि कई शहरों के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में शहर के बनिस्बत ज्यादा तापमान रहने की बात भी सामने आयी है। 

आईआईटी, भुवनेश्वर के स्कूल ऑफ अर्थ, ओशन एंड क्लाइमेट साइंस के अध्यापक वी. विनोज कहते हैं,  “इसका मतलब यह नहीं है कि शहरों में तापमान कम हो रहा है। हमें लगता है कि ग्रामीण क्षेत्र की सतह और वातावरण में ऐसा कुछ हो रहा है जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्र में अस्थायी रूप से तापमान बढ़ रहा है और शहर में उसके बनिस्बत गर्मी कम हो रही है।”  विनोज के रिसर्च ग्रुप द्वारा हाल में लिखे गये लेख में भुवनेश्वर में दिन के समय अर्बन हीट आईलैंड का असर पिछले दो दशकों में कम होता हुआ दिख रहा है। वे कहते हैं, “ऐसा कई कारणो से हो रहा है, जैसे कि शहर में बढ़ते कण वायु प्रदूषण स्तर के कारण, सूरज की किरण सतह पर कम पहुंचने से, शहरी क्षेत्र कम गरम हो रहा है।” 

दूसरी संभावना शहर के आसपास के ग्रामीण क्षेत्र में विशेष रूप से गर्म, सूखा, गर्मी के मौसम में पेड़-पौधों के सूख जाने या झड़ जाने के कारण इलाके का तापमान बढ़ जाता है और इस तरह शहर का तापमान एक खास समय में कम दिखता है। लेकिन यह सब महज अटकलें हैं और इसका अध्ययन होना चाहिए। इसके अतिरिक्त अर्बन हीट आईलैंड की बदलती विशेषता भी स्थानीय मौसम को बदल सकता है। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को अगर इसके साथ जोड़ दिया जाता है तो इसका प्रभाव बहुत ज्यादा हो जाता है। इन सब बातों के बेहतर समझने से शहरों को बेहतर ढंग से व्यवस्थित किया जा सकता है। अगर शहरों में ऐसे गर्म क्षेत्र बनते हैं तो इसका सबसे अधिक प्रभाव आम लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ेगा जो उनके पूरे जीवन और परिवार के सुख-शांति में बाधा बनेगा। हर साल गर्मी के मौसम में भारत के अधिकांश शहरों में लू चलती है जिसके कारण शहर के लोगों, विशेष रूप से गरीब लोगों को लू लगने, गर्मी के कारण थकान होने, गर्मी के कारण कई बार बेहोश होने और यहां तक कि मौत होने की खबर भी आती है। 

बढ़ता तापमान मोटे लोगों, डाइबिटीज, हृदय रोग और अनिद्रा रोग के शिकार लोगों की स्वास्थ्य समस्या को और ज्यादा बढ़ा सकता है। अर्बन हीट आईलैंड के प्रभावों की तीव्रता वायु प्रदूषण के संचय  और ओज़ोन निर्माण में योगदान करने वाले फ्लोटिंग कालिख, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड को बढ़ाता है और इसके कारण शहरों में तापमान और बढ़ता है।

तापमान बढ्ने से फ्रिज और एसी का उपयोग बढ़ेगा जिससे बिजली की मांग बढ़ेगी , इसके कारण बिजली वितरण ग्रिड पर दबाव बढ़ेगा और ग्रिड फेल कर सकता है। तस्वीर-विल्स लिन / फ़्लिकर।
तापमान बढ्ने से फ्रिज और एसी का उपयोग बढ़ेगा जिससे बिजली की मांग बढ़ेगी , इसके कारण बिजली वितरण ग्रिड पर दबाव बढ़ेगा और ग्रिड फेल कर सकता है। तस्वीर-विल्स लिन / फ़्लिकर।

अर्बन हीट आईलैंड का एक दूसरा महत्वपूर्ण प्रभाव भी है। गर्मी बढ़ने के साथ ही शहरों में ज्यादा फ्रिज और एसी की जरूरत होती है। 

इसका प्रभाव जब ग्लोबल वार्मिंग और लू चलने की बढ़ती घटनाओं के साथ जुड़ जायेगा तो उसका भुवनेश्वर जैसे शहर, जो लू प्रभावित क्षेत्र हैं, के लोगों की जिंदगी पर उल्लेखनीय असर होगा। विनोज कहते हैं, “ऐसी घटनाओं के बार-बार होने की संभावना है। तापमान बढ्ने से फ्रिज और एसी का उपयोग बढ़ेगा जिससे बिजली की मांग बढ़ेगी , इसके कारण बिजली वितरण ग्रिड पर दबाव बढ़ेगा और ग्रिड फेल कर सकता है। इससे बिजली कटौती होगी जिससे लोगों की मुश्किलें बढ़ेगी और असंतोष फैलेगा।”

ऐसे गर्म क्षेत्र, शहर और उसके आसपास के क्षेत्र के पानी की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं। अर्बन हीट आईलैंड के प्रभाव के कारण शहर के स्टोर्म ड्रेन (बहुत ज्यादा बारिश होने पर अतिरिक्त पानी को ले जाने के लिए बनाये गए नाले) का पानी आसपास के पानी के स्रोतों की तुलना में कई डिग्री ज्यादा गरम हो सकता है। शहरों की नालियों से बहने वाला, तुलनात्मक रूप से ज्यादा गरम पानी, आसपास के झील, पोखर, झरने के तापमान को बढ़ा सकता है और इसके कारण जलीय जैव विविधता को नुकसान हो सकता है।

अर्बन हीट आईलैंड, शहरी क्षेत्र में रहने वाले जानवरों को प्रभावित भी करता है। चींटी, छिपकली और मकड़ी पर अध्ययन से कई प्रजातियों के गर्मी सहन करने की क्षमता और प्रजनन पर असर पड़ने का पता चला है। 

शहरी तापमान को कैसे कम किया जा सकता है? 

अर्बन हीट आईलैंड बनने से कैसे रोका जाए, इसको लेकर कई तरह के विचार हैं।  जैसे, एक तो यह कि अधिक पेड़-पौधे लगाए जाएं और भवन निर्माण में ऐसी चीजों का इस्तेमाल हो कि कम गर्मी सोखे। साथ ही यह भी कि मानवजनित गर्मी कम से कम पैदा हो, इसकी कोशिश की जाए। 

घरों के छत को लेकर भी ऐसा एक विचार है। यह छत पर ऐसे कोटिंग का उपयोग करने को बढ़ावा देता है जिसमें सूरज की रोशनी को परावर्तित करने और अवशोषित गर्मी को जल्दी से निकालने की क्षमता हो। अर्बन हीट आईलैंड को कम करने का एक दूसरा तरीका हरे छत का उपयोग करना है। इसमें मिट्टी और बढ़ते पौधे की एक परत से लेपा हुआ, जलरोधक झिल्ली से ढकी हुई छत का उपयोग किया जाता है। हालांकि भारत में ऐसी रणनीति का व्यापक चलन नहीं है। अभी इनके कारगर होने को लेकर कई प्रयोग हो रहे हैं। 


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छत से इतर रणनीति में खुली जगहों में पेड़ लगाने, विशेष रूप से पार्किंग जैसी जगहों पर जो आम तौर पर डामरीकृत होते हैं। हरी दीवार (एक के नीचे एक पौधा लगाना) को बढ़ावा देने की बात होती है। जलाशय बढ़ाने की भी बात होती है। एक ऐसी ही बात वास्तुकला में कुछ परिवर्तन को लेकर भी है। इसमें सलाह दी जाती है कि ऐसी विशेष सामग्री और वेंटीलेशन तकनीक का उपयोग किया जाए जिससे पैसिव कूलिंग हो सके, जैसे अहमदाबाद का ट्यूब हाउस।    

 

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बैनर तस्वीरः शहरों की कई विशेषताओं के कारण ऐसे क्षेत्र बनते हैं जहां अधिक गर्मी होती है। कंक्रीट के स्ट्रक्चर, सुचारु रूप से हवा का न बह पाना, अधिक गाड़ी और उपकरण के इस्तेमाल से शहरों के कुछ हिस्से अधिक गर्म हो जाते हैं। तस्वीर– मैके सैवेज/विकिमीडिया कॉमन्स

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