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जौनपुर से गोमती में बहने वाले कचरे का अनुमान भी नहीं लगा पा रहा प्रशासन, कैसे होगी नदी साफ?

जौनपुर शहर में गोमती नदी में कुल 14 नाले गिरते हैं और इन नालों से प्रतिदिन 30 एमएलडी कचरा डिस्चार्ज होता है। तस्वीर- आनंद देव/मोंगाबे

जौनपुर शहर में गोमती नदी में कुल 14 नाले गिरते हैं और इन नालों से प्रतिदिन 30 एमएलडी कचरा डिस्चार्ज होता है। तस्वीर- आनंद देव/मोंगाबे

  • अगर गंगा नदी को साफ करना है तो इसकी प्रमुख नदियों में शुमार गोमती नदी की सफाई भी बहुत जरूरी है। इससे गंगा में हर साल इस नदी से 739 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी बहता है।
  • गोमती नदी के प्रदूषण में जौनपुर शहर की भी बड़ी भूमिका है जहां से 21 नालों के माध्यम से नदी में बड़ी मात्रा में कचरा जाता है। इसके लिए सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाने की तैयारी हो रही है। हालांकि दो रिपोर्ट में कुल प्रदूषित पानी का अनुमान ही अलग अलग लगाया गया है।
  • स्वच्छ गोमती अभियान के द्वारा तैयार किये गए अनुमान के अनुसार शहर के सात नालों से रोज 40.8 एमएलडी कचरा नदी में निकलता है। पर सरकार के द्वारा तैयार रिपोर्ट के आधार पर महज 30 एमएलडी क्षमता की सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाया जा रहा है।

गंगा की सहायक नदी है गोमती। गंगा नदी की सफाई के लिए केंद्र स्तर पर नमामि गंगे नाम से योजना चलाई जा रही है। इसके तहत सहायक नदियों की सफाई भी की जानी है। इसी के तहत गोमती नदी की सफाई भी होनी है। हालांकि जौनपुर शहर के एक उदाहरण से इस नदी के सफाई अभियान पर बड़ा सवाल खड़ा होता है। जौनपुर में स्थानीय प्रशासन को यही नहीं मालूम कि शहर से नदी में कितना कचरा बहता है। 

गोमती नदी को स्वच्छ बनाने की खातिर जौनपुर शहर में निर्माणाधीन सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के निर्माण में बरती गई खामियां चौंकाने वाली हैं। अव्वल तो प्रशासन ने नदी में गंदा पानी ले जाने वाले नाले और कचरे का अनुमान ही गलत लगाया। दूसरे, इसी अनुमान के आधार पर एसटीपी लगाने का काम शुरू भी हो गया है।   

एसटीपी के निर्माण के लिए जल निगम की ओर से 2019 में तैयार किए गए डीपीआर के आधार पर यह बात कही गयी है।   

जौनपुर में जल निगम की ओर से तैयार किए गए प्रोजेक्ट के तहत, वर्ष 2019 में 234 करोड़ रुपये की लागत से 30 एमएलडी क्षमता की एसटीपी के लिए काम शुरू किया गया, जल निगम के अधिशासी अभियंता अंकुर श्रीवास्तव ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

जल निगम का दावा है कि जौनपुर शहर में गोमती नदी में कुल 14 नाले गिरते हैं और इन नालों से प्रतिदिन 30 एमएलडी कचरा डिस्चार्ज होता है। गोमती को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए एसटीपी का निर्माण शहर के बाहरी हिस्से में पचहटिया के पास शुरू किया गया है। 

शहर के सभी नालों को आपस में कनेक्ट कर 396 किमी सीवर लाइन डालने के  लिए अमृत योजना के तहत 264 करोड़ रुपये की लागत से अलग से काम शुरू किया गया है। इस हिसाब से सीवर लाइन डालने और एसटीपी के  लिए इस शहर में  कुल 498 करोड़ रुपये की परियोजना पर काम 2019 में शुरू किया गया। दोनों परियोजनाओं पर तकरीबन 100 करोड़ रुपया खर्च कर लिया गया है, श्रीवास्तव ने बताया। 

गोमती के प्रदूष‍ित होने की शुरुआत सीतापुर से होती है जो लखनऊ में आकर सबसे खराब स्‍थ‍िति में पहुंच जाती है। अपने 821 किलोमीटर के बहाव में गोमती सीतापुर से लेकर जौनपुर तक करीब 628 किलोमीटर तक प्रदूषण का दंश झेल रही है। तस्वीर- आनंद देव/मोंगाबे
गोमती के प्रदूष‍ित होने की शुरुआत सीतापुर से होती है जो लखनऊ में आकर सबसे खराब स्‍थ‍िति में पहुंच जाती है। तस्वीर- आनंद देव/मोंगाबे

दूसरी तरफ वर्ष 2017 में स्वच्छ गोमती अभियान की ओर एक डीपीआर तैयार किया गया जिसे राष्ट्रपति को सौंपा गया। इसके तहत स्वच्छ गोमती अभियान ने शहर में गोमती में गिरने वाले  सिर्फ सात बड़े नालों का कचरा शुद्ध करने के लिए एसटीपी का पायलट प्रोजेक्ट तैयार किया था। यह पायलट प्रोजेक्ट स्वच्छ गोमती अभियान के मुख्य संरक्षक प्रो. विजयनाथ मिश्र एवं अभियान की हाईपावर कमेटी के अध्यक्ष और आईआईटी रुड़की के डायरेक्टर रहे प्रो. इंद्रमणि मिश्र एवं टिहरी बांध के जनक प्रो. एके काज़मी की देख रेख में आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया गया है। स्वच्छ गोमती अभियान की ओर से तैयार किए गए डीपीआर पर गौर करें तो जौनपुर शहर में गोमती नदी में गिरने वाले  कुल 21 नालों में से सिर्फ सात बड़े नालों से ही प्रतिदिन 40.8 एमलडी कचरा नदी में गिरता  है। 

स्वच्छ गोमती अभियान एक गैर सरकारी संगठन है। यह संस्था गोमती को  स्वच्छ बनाने के  लिए 2015 से ही जागरुकता अभियान से लेकर समय समय पर  घाटों की सफाई का अभियान चलाती रही है। 

अब यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि अखिर वर्ष 2017 में जिस शहर के सात बड़े नालों से प्रतिदिन 40.8 एमएलडी कचरा नदी में गिरता था तो दो साल बाद  वर्ष 2019 में  जलनिगम की ओर से तैयार किए गए डीपीआर में  उसी शहर के 14 नालों से प्रतिदिन कचरे का डिस्चार्ज घटकर 30 एमएलडी कैसे हो गया? जबकि इन दो सालों में शहर का दायरा और आबादी में भी काफी इजाफा हो चुका था। 

जलनिगम के डीपीआर में शहर के सभी नालों की संख्या 14 बताई गई है जबकि स्वच्छ गोमती अभियान की ओर से तैयार किए गए डीपीआर में कुल 21 नालों का जिक्र है और सभी नालों को शहर में जिन अलग अलग नाम से जाना जाता है, उस पहचान के साथ नालों का बाकायदा मैप भी तैयार  किया गया है। 

इस हिसाब से देखें तो 21 नालों से जितना कचरा रोज नदी में गिरता उससे कहीं आधे से भी कम की क्षमता का सीवर ट्रीटमेंट प्लांट यहां लगाया जा रहा है। इससे साफ है कि  498 करोड़ रुपये का भारी भरकम बजट ख्रर्च होने के बाद भी गंगा को स्वच्छ बनाने का सपना साकार नहीं हो सकेगा। 

अपने 821 किलोमीटर के बहाव में गोमती सीतापुर से लेकर जौनपुर तक करीब 628 किलोमीटर तक प्रदूषण का दंश झेल रही है। तस्वीर- साचिथ/विकिमीडिया कॉमन्स
अपने 821 किलोमीटर के बहाव में गोमती सीतापुर से लेकर जौनपुर तक करीब 628 किलोमीटर तक प्रदूषण का दंश झेल रही है। तस्वीर– साचिथ/विकिमीडिया कॉमन्स

स्वच्छ गोमती अभियान, जौनपुर के अध्यक्ष गौतम गुप्ता कहते हैं कि एसटीपी जैसी परियोजना आने वाले तीस वर्षों के लिए होनी चाहिए। लेकिन जौनपुर में तो जिस तारीख में जितनी क्षमता की परियोजना शुरू की गई उसी तारीख में ही उसकी क्षमता से दो गुना से भी अधित कचरा नदी में गिर रहा है। आने वाले 30 वर्षों के लिए अगर यह परियोजना लगाई जाती है तो उसकी क्षमता कम से कम 90 एमएलडी की होनी चाहिए। 

विधान परिषद की समिति ने भी की जांच 

मार्च 2021 में  स्वच्छ गोमती अभियान की शिकायत पर निगमों व निकायों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाली विधान परिषद की समिति ने भी इस पूरे मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट डीएम को सौंपी है। हालांकि रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। विभागीय सूत्रों पर भरोसा करें तो विधान परिषद की समिति की जांच में भी एसटीपी के निर्माण में खामी सामने आई है।

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हालांकि, अधिशासी अभियंता अंकुर श्रीवास्तव कहते हैं कि इस तरह के डीपीआर तैयार करने में यह देखा जाता है कि शहर की आबादी जो आज है वह आगे आने वाले तीस साल में कितनी होगी और जिन नालों से नदी में कचरा गिर रहा है उन नालों से आने वाले तीस साल में कितना कचरा नदी में डिस्चार्ज होगा। कई स्तर से इसकी जांच की जाती है। केंद्रीय कमेटी की सहमति के बाद ही डीपीआर को  मंजूरी  मिलती है। अगर जांच में खामी मिलती है तो जांच की चेन में जितने भी लोग होंगे सब के सब जांच की जद में आएंगे। इस नाते मुझे नहीं लगता कि जलनिगम की ओर से तैयार किए गए डीपीआर में किसी प्रकार की खामी बरती गई होगी। मामला कोर्ट में है। फैसला आने पर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। 

हाईकोर्ट पहुंचा जौनपुर में एसटीपी का मामला 

जौनपुर में एसटीपी के निर्माण में बरती गई खामियां और भ्रष्टाचार का मामला हाईकोर्ट में लंबित है। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में पीआईएल नं. 132/2020 गौतम गुप्ता बनाम यूनियन आफ इंडिया और आठ अन्य 2020 में जसि्टस विश्वनाथ समद्दर और जसि्टस वाईके श्रीवास्तव की अदालत में दाखिल किया गया। 22 फरवरी 2021 को उत्तर प्रदेश जल निगम की ओर से  हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस मुनेश्वर भंडारी की कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया गया और उसी डेट में हाईकोर्ट ने आदेश में  लिखा कि यह असंतोषजनक रिपोर्ट है और शिकायतकर्ता की शिकायत और उच्च न्यायालय के प्रश्नों के अनुरूप नहीं है। 

स्वच्छ गंगा रिसर्च लेबोरेटरी संकट मोचन फाउंडेशन वाराणसी की 18 फरवरी  2015 की रिपोर्ट के मुताबिक जौनपुर शहर में कुल 21 नाले सीधे गोमती में गिरते हैं। इसकी बाकायदा नालों की ड्रोन से मैपिंग कराई गई है। सभी नालों को नंबर और उनके नाम  के साथ बाकायदा  मैप में दर्शाया गया है। जिन सात नालों से प्रतिदिन 40.8 एमएलडी कचरा डिस्चार्ज होने का दावा स्वच्छ गोमती अभियान के डीपीआर में किया गया है उन नालों के नाम और उससे रोज डिस्चार्ज हो रहे कचरे की मात्रा पर गौर करें तो कसैया नाला से  7.2 एमएलडी, पठान टोलिया नाला  से 9.1 एमएलडी, दुमुहिया नाला  से 1.2 एमएलडी, बलुआघाट नाला 2.6 एमएलडी, मियांपुर नाला  से 9.0 एमएलडी, जेल नाला  से 8.0 एमएलडी और हनुमानघाट नाला  से प्रतिदिन 3.7 एमएलडी कचरा गोमती में गिरता है। इन सात नालों के अलावा भी 14 और नाले हैं जो सीधे गोमती नदी में गिरते हैं। 

लखनऊ में गोमती नदी। लखनऊ और सीतापुर के बाद सबसे अधिक गंदा पानी जौनपुर से ही गोमती नदी में जाता है। तस्वीर- Aounaqvi /विकिमीडिया कॉमन्स
लखनऊ में गोमती नदी। लखनऊ और सीतापुर के बाद सबसे अधिक गंदा पानी जौनपुर से ही गोमती नदी में जाता है। तस्वीर– Aounaqvi /विकिमीडिया कॉमन्स

गोमती एक जलोढ़ नदी है जो उत्तर प्रदेश के पीलीभीत शहर से लगभग 30 किमी पूर्व में हिमालय के निचले हिस्से से निकलती है। वर्षा और भूजल से पोषित, यह गाजीपुर के पास गंगा में मिल जाती है। गंगा में मिलने से पहले यह नदी शहाजहांपुर, सीतापुर, लखनऊ, सुल्‍तानपुर होते हुए जौनपुर और कई कस्बों और गांवों से होकर बहती है। इन शहरों, कस्बों और गावों की जलापूर्ति में गोमती की भूमिका महत्वपूर्ण है। गंगा में हर साल इस नदी से 7.39 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी बहता है। 

गोमती के प्रदूष‍ित होने की शुरुआत सीतापुर से होती है जो लखनऊ में आकर सबसे खराब स्‍थ‍िति में पहुंच जाती है। अपने 821 किलोमीटर के बहाव में गोमती सीतापुर से लेकर जौनपुर तक करीब 628 किलोमीटर तक प्रदूषण का दंश झेल रही है। सरकारी आंकड़े के अनुसार कुल 68 नाले इस नदी में बहते हैं और 30 इसके किनारे कुल अद्योगिक क्षेत्र हैं। इन 68 नालों, 30 अद्योगिक क्षेत्र और साथ ही 132 गावों से इस नदी में कुल 865 एमएलडी कचरा जाता है। इसमें से 422 एमएलडी कचरा बिना ट्रीट किये हुए ही इस नदी में चला जाता है।


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अगर शहरों की बात करें तो लखनऊ और सीतापुर के बाद सबसे अधिक गंदा पानी जौनपुर से ही गोमती नदी में जाता है। सबसे अधिक अनटैपड नाला जौनपुर में ही बहता है।  

स्वच्छ गंगा रिसर्च लैबोरेटरी की रिपोर्ट बताती है कि जौनपुर पहुंचने पर नदी का प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। इस शहर से प्रतिदिन कई टन कचरा लेकर गोमती  यहां से तकरीबन 60 किलोमीटर आगे  गाजीपुर जिले के सैदपुर के पास गंगा में उड़ेल देती है। स्वच्छ गंगा रिसर्च लेबोरेटरी संकट मोचन फाउंडेशन वाराणसी की ओर से की गई जांच रिपोर्ट पर गौर करें तो जौनपुर शहर में गोमती के बजरंग घाट के पास  नदी के  प्रति लीटर पानी में टीडीएस 520 है। जबकि यहीं पर डीओ 03 एमजी प्रति लिटर  और फोकल कोली फार्म (एफसीसी) 480000 दर्ज किया गया है।  

[यह स्टोरी स्वतंत्र पत्रकारों के लिए नेशनल फाउंडेशन फ़ॉर इंडिया की मीडिया फेलोशिप के तहत रिपोर्ट की गई है।]

 

बैनर तस्वीरः जौनपुर शहर में गोमती नदी में कुल 14 नाले गिरते हैं और इन नालों से प्रतिदिन 30 एमएलडी कचरा डिस्चार्ज होता है। तस्वीर- आनंद देव/मोंगाबे

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