- इस बार रांची में पड़ी भीषण गर्मी ने पिछले 54 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। लगातार गिर रहा जल स्तर दो सौ फीट से गिरकर एक हजार फीट तक चला गया है। 23 साल में पहली बार ऐसा हुआ जब अप्रैल माह में एक भी दिन बारिश नहीं हुई।
- एक समय में राज्य में दस हजार तालाब हुआ करते थे, जो अब करीब 8000 ही बचे हैं। जबकि रांची में तालाबों की संख्या छह सौ से सिमट कर 50 पर पहुंच गई है. गर्मी की शुरुआत में ही झारखंड की 58 बड़ी नदियों में से 30 पूरी तरह सूख गई जबकि 10 सूखने के कगार पर है।
- जानकारों का मानना है कि भौगोलिक स्थिति के अलावा बेतरतीब निर्माण, बेहिसाब बोरिंग, कुंओं-तालाबों का सूखना और सप्लाई वाटर की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है।
रांची में रहने वाली चालीस साल की सुगन बिन्हा ने पानी का भीषण संकट कई बार देखा है लेकिन इस बार जैसी परेशानी उन्होंने पहले कभी नहीं झेली। इस गर्मी में उनका परिवार पीने का पानी खरीद कर पी रहा है। उन्होंने अप्रैल में कई दिन बिना नहाए भी गुजारे। सुगन ने मोंगाबे-हिंदी से अपनी पीड़ा साझा की, “इधर तो नगर निगम का टैंकर आ रहा पानी लेकर, नहीं तो एक किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता था। जिस दिन टैंकर नहीं आता, उस दिन सब काम ठप रहता है। उनकी सिंदवार टोली के करीब 500 घरों में बमुश्किल से 25-30 में ही बोरिंग का पानी आ रहा होगा। बदकिस्मती से इस गर्मी में सुगन का बोरिंग भी फेल हो गया है।”
दरअसल, देश के दूसरे शहरों की तरह झारखंड की राजधानी में भी पानी की समस्या लगातार गहराती जा रही है। एक वक्त शहर में 150-200 फीट पर मिलने वाला पानी अब कई इलाकों में 800-1000 फीट पर आ रहा है। अगर पिछले साल से तुलना करें तो रांची में भूमिगत जल औसतन 70 फीट नीचे गया है। ऐसा तब है जब एक वक्त गर्मी में रांची को पसंदीदा सैरगाह माना जाता था।
दरअसल, इस बार पारा चढ़ने के साथ पानी की किल्लत और बढ़ गई। बीते सात सालों की गर्मी ने रांची के पिछले 45 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। मौसम विभाग के मुताबिक 1969-2014 तक शहर का अधिकतम तापमान का औसत 35.8 डिग्री सेल्सियस रहा। 2015-21 के दौरान ये बढ़कर 36.7 डिग्री पर पहुंच गया। जबकि इस साल अप्रैल में पारा 42 डिग्री को पार कर गया। इस महीने औसत तापमान 39.4 डिग्री रहा। यही नहीं, झारखंड के कई जिलों में तापमान 46 डिग्री तक पहुंचा। इस बारे में पर्यावरणविद् त्रिभुवन नाथ मिश्र का कहना है कि 23 साल में पहली बार ऐसा हुआ है जब अप्रैल माह पूरी तरह सूखा गुजरा।
तालाबों के शहर में सूखता पानी
दरअसल, रांची में पानी की विकराल समस्या अचानक पैदा नहीं हुई है। बेतरतीब निर्माण, बेहिसाब बोरिंग, कुंओं-तालाबों का सूखना और सप्लाई वाटर की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से गर्मी में पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में पानी का संकट करीब 35 साल पहले डीप बोरिंग के साथ शुरू हुआ। इससे पहले अधिकांश आबादी सप्लाई वाटर पर निर्भर थी। लेकिन धीरे-धीरे सप्लाई वाटर अनियमित होता गया और लोग मकानों में डीप बोरिंग करवाते गए। झारखंड बनने के बाद यह गति और तेज हुई जिसके दुष्परिणामों को प्रशासन नजरअंदाज करता गया।
बोरिंग के मसले पर रांची नगर निगम के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने मोंगाबे-हिंदी से कहा कि रांची में पौने पांच इंच बोरिंग वैध है। हालांकि निगम के पास वैध बोरिंग या बोरिंग की संख्या का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। डिप्टी मेयर ने कहा, “पौने पांच इंच या चार इंच की बोरिंग कराने से पहले निगम की अनुमति लेने का नियम नहीं है। लेकिन एक साल पहले नियम बनाया गया है कि बोरिंग करवाने से पहले निगम को एक लेटर देना होगा। शहर में तीस साल से घरों में बोरिंग हो रहा है।”
रांची में सवा दो लाख के आसपास घर हैं और निगम का दावा है कि 80000 घरों में सप्लाई वाटर देता है। माना जा रहा है कि बाकी घरों में पानी बोरिंग या दूसरे साधनों से आता है। पार्षद अरुण कुमार झा का कहना है, “शहरी क्षेत्र ही नहीं, बल्कि समूचे जिले की 90 फीसदी आबादी ग्राउंड वाटर पर निर्भर है। बोरिंग पर जल्द से जल्द रोक लगे, नहीं तो भूजल खत्म होने का खत रा है। बोरिंग की जगह शहर के तीन बड़े डैम से जलापूर्ति की जाए।”
यह भी एक विडंबना है कि रांची में तीन बड़े डैम हैं लेकिन वहां से पानी की आपूर्ति की रफ्तार बहुत ढीली है। इस पर डिप्टी मेयर कहते हैं, “इन तीनों डैम में पर्याप्त पानी भी है, जिससे शहर में सप्लाई वाटर पहुंचाया जा सकता है। लेकिन उस डैम से पानी कैसे आएगा, ये तय नहीं है। दूसरा डैम की जो मुख्य पाइप लाइन बिछी है वो 1948 की है। जब तक यह नए सिरे से बिछ नहीं जाए इनसे सप्लाई नहीं हो पाएगा। हालांकि हमलोगों की पूरी कोशिश है कि अमृत योजना के तहत 2024 तक डैम से पूरे शहर में वाटर सप्लाई हो।”
लेकिन झारखंड में जल जीवन मिशन के तहत जिन लगभग 60 लाख ग्रामीणों को 2024 तक शुद्ध पेयजल पहुंचाया जाना है वो कहां से मुमकिन होगा। क्योंकि वर्तमान में इस लक्ष्य का 20-25 प्रतिशत ही काम हो पाया है। इस बारे में पेयजल स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “पिछली सरकार में बहुत धीमी गति से इस योजना को चलाया गया, इसलिए ये समस्या है। दो साल में इसे पूरा कर लेना तो संभव नहीं है, लेकिन हमारी पूरी कोशिश होगी इसे पूरा करने की।
रांची की भौगोलिक स्थिति भी पर्याप्त पानी की व्यवस्था में मुश्किलें पैदा करती हैं। 1942 में हुए रांची के भूजल सर्वे रिपोर्ट में ब्रिटिश भूवैज्ञानिक जेवी ऑडेन ने लिखा कि रांची की कायान्तरित चट्टानें (पानी सोखने में अक्षम चट्टानें) सालों भर भूजल देने में सक्षम नहीं है।
रांची विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और पर्यावरणविद् नीतीश प्रियदर्शी गहराते जल संकट पर सख्त टिप्पणी करते हैं, “रांची रेगिस्तान बनने की राह पर है। एक तो ढलान के चलते बरसात का आधा पानी बह जाता है। दूसरा शहर में बढ़ते कंक्रीट के जंगल के चलते बारिश का पानी जमीन के नीचे नहीं जा पा रहा है। ऐसे में ग्राउंड वाटर रिचार्ज कहां से होगा। रिचार्ज और डिस्चार्ज का पूरा बैलेंस गड़बड़ा गया है।”
वो रांची के जल चक्र को समझाते हुए कहते हैं, “यहां बहुत सारे तलाब और कुएं थे, जो अब नहीं है। हलांकि ये भी अप्रैल-मई में सूखते थे। लेकिन अब जनवरी में ही सूख रहे हैं। जो बारिश मार्च और अप्रैल में होती थी, अब नहीं होती। इसलिए कि रांची का जल चक्र वाष्पीकरण पर आधारित है। और ये वाष्प तालाब, नदी, जलाशय से बनती थी। उसी से अच्छी बारिश होती थी।”
एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 10000 तालाब थे। इनमें से एक-चौथाई खत्म हो गए हैं। रांची में तालाबों की संख्या छह सौ थी जो सिमट कर करीब 50 पर पहुंच गई है। हालात ये है कि झारखंड के 24 में से 23 जिलों को अत्यधिक जलदोहन वाला क्षेत्र घोषित किया गया है।
कैसे शुरू हुई पानी की किल्लत?
स्थानीय लोगों का कहना है कि रांची में लंबे वक्त तक पीने के पानी का मुख्य स्रोत कुआं ही रहा। बेहिसाब बोरिंग ने इन कुओं को बर्बाद कर दिया। रांची में कडरू की सरना टोली में 45 साल से रह रहे रोजामत अंसारी मोंगाबे-हिंदी से कहते हैं, कुएं से ही सारा काम होता था। दिक्कत डीप बोरिंग के बाद शुरू हुई। कुआं 10 साल पहले ही सूख गया। घर का बोरिंग भी गर्मी में काम नहीं करता। पांच साल पहले निगम वाले नल का भी कनेक्शन लिए थे लेकिन इसमें एक दिन भी पानी नहीं आया।” सरना टोली में 500 के आसपास घर हैं। पिछले साल राज्य में 90 प्रतिशत कुएं सूख गए। जबकि राज्य में इस साल 50 हजार से अधिक हैंडपंप सूखे हैं।
रांची स्थित भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक अभिषेक आनंद ने इस बारे में मोंगाबे-हिंदी से कहा, “रांची पठारी इलाका है। यह इलाका तय आबादी को ही संभाल सकता है। लेकिन हमने सौ की जगह 1000 का भार दे दिया है। भूजल रिचार्ज नहीं होने से पानी की किल्लत तो होगी ही।”
भूजल रिचार्ज करने के लिए जिस रेन वाटर हार्वेस्टिंग को जरूरी बताया गया उसकी संख्या भी शहर में बहुत कम है। उदाहरण के लिए रांची नगर निगम में पंजीकृत 2.25 लाख भवनों में से 18,000 घरों में ही हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा है।
इन समस्याओं पर रांची की मेयर आशा लकड़ा ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “जिस तरह से शहर का विकास हुआ, उस हिसाब से सुविधाएं नहीं मिली। जैसे-जैसे आबादी बढ़ी पानी की परेशानी भी। गरीब तबका इससे ज्यादा प्रभावित हुआ है। हालांकि अब केंद्र की अमृत योजना के तहत पाइपलाइन बिछाई जा चुकी है और जलमीनार भी बन चुके हैं। इसको डैम से जोड़कर जल्द ही पूरे शहर में पानी सप्लाई शुरू की जाएगी। वाटर हार्वेस्टिंग पर भी जोर दे रहे हैं। सभी इमारतों में वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य कर दिया गया है। इसके बिना नई इमारत का नक्शा पास नहीं होगा। जिन पुराने घरों में हार्वेस्टिंग नहीं है वहां से डेढ़ गुना टैक्स वसूला जा रहा है।”
वहीं निगम ने अब तक 30940 हैंडपंप लगवाए हैं, जिनमें 4106 खराब पड़े हैं। जबकि निगम खुद अबतक 14 सौ डीप बोरिंग करवा चुका है। निगम के स्वच्छ शाखा प्रभारी ओंकार पांडे ने मोंगाबे-हिंदी को बताया कि बीते तीन साल में पानी का संतुलन काफी बिगड़ा है। फिलहाल 200 टैंकरों से शहर में पानी दिया जा रहा है। जबकि 2021 में 100 और 2020 में 75 टैंकर से काम चल गया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक नगर निगम 35 लाख लीटर पानी रांची में देता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल मार्च में ही झारखंड की 58 बड़ी नदियों में से 39 पूरी तरह सूख गई हैं। जबकि 10 नदियां सूखने के कगार पर हैं। पर्यावरणविद् टीएन मिश्र की किताब ‘जल संकट’ के मुताबिक झारखंड की 80 फीसदी भूमि पथरीली है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण मैदानी क्षेत्र की तरह बारिश के पानी को रोका नहीं जा सकता है। ऐसे में ग्रामीण इलाकों की सिंचाई और पेजयल का मुख्य स्त्रोत नदियां हैं। जिसे फिर से जीवित करने की दिशा में सरकार की तरफ से कोई ठोस नीति दिखाई नहीं देती है। जबकि तमाम सिंचाई योजनाओं का दारोमदार भी नादियों पर ही है। वहीं रांची की लाइफ लाइन कही जाने वाली हरमू नदी समेत जुमार, घाघरा जैसी नदियां पहले ही नाले में तब्दील हो चुकी हैं।
हालांकि राज्य के जल संसाधन मंत्री मिथिलेश ठाकुर का दावा है कि ग्रामीण इलाकों में पानी सप्लाई में कोई दिक्त नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि अगर नदी की ऊपरी सतह सूख भी जाती है तो उस नदी में डीप कुएं बनाए जा रहे हैं और वहां से पानी को लिफ्ट कर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में लाया जाएगा।
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झारखंड की आबादी भी बढ़ रही है जिससे पानी की मांग और बढ़ने की संभावना है। 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की 3.29 करोड़ आबादी को फिलहाल 4 करोड़ के करीब अनुमानित किय गया है। राज्य के 24 जिला मुख्यालय में 15,25,412 मकान है. घरों की संख्या 2001 की तुलना में 44 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। इसलिए वर्ष 2021 तक 21,96,593 मकानों को अनुमानित किया गया है। सिर्फ रांची शहर में करीबन 11 लाख की आबादी है और पूरे जिले में लगभग 30 लाख। जबकि वर्तमान में ये क्रमशः 35 व 14 लाख तक अनुमानित की गई है। फिलहाल ये आबादी घोर जल संकट की जद में है।
वहीं यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत भूजल दोहन करने वाले देशों में शीर्ष पर है। कृषि के लिए भारत कुल भूजल का 89 प्रतिशत उपयोग करता है। केंद्रीय भूजल आयोग की जून 2021 की रिपोर्ट में कहा गया है कि डायनेमिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स ऑफ इंडिया 2020 के मुताबिक सालाना देश में कुल भूजल रिचार्ज 436.15 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है, जबकि सलाना निकासी 244.92 बीसीएम है।
बैनर तस्वीरः रांची शहर की तस्वीर रांची हिल्स से ली गई है। यह समुद्र तल से 2064 फुट की ऊंचाई पर बसा है। तस्वीर– बिश्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स