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शहरी गरीब आबादी पर गर्मी का अधिक खतरा

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, यदि किसी रिकॉर्डिंग स्टेशन पर अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों के लिए कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक, तटीय स्टेशनों के लिए 37 डिग्री सेल्सियस या अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस या अधिक तक पहुंच जाता है, तो लू या हीटवेव घोषित किया जाता है।  तस्वीर- विश्वरूप गांगुली / विकिमीडिया कॉमन्स

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, यदि किसी रिकॉर्डिंग स्टेशन पर अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों के लिए कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक, तटीय स्टेशनों के लिए 37 डिग्री सेल्सियस या अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस या अधिक तक पहुंच जाता है, तो लू या हीटवेव घोषित किया जाता है।  तस्वीर- विश्वरूप गांगुली / विकिमीडिया कॉमन्स

  • बीते कुछ सालों में देश में ऐतिहासिक रूप से, सबसे अधिक पड़ी है। वैसे तो इस गर्मी से सभी परेशान हैं पर गरीबों पर इसकी मार अधिक पड़ती है। खासकर शहरी गरीब लोगों पर।
  • इसकी चेतवानी दो साल पहले प्रकाशित एक अध्ययन में दी गयी थी जिसमें कहा गया था कि शहरी गरीब, गर्मी के प्रभावों से अधिक परेशानी में, आ सकते हैं।
  • घनी आबादी और कम आय (लो इनकम ग्रुप) वाले मोहल्लों में खुले हरे-भरे स्थानों की कमी की वजह से लोग रात में भी गर्मी का सामना करते हैं।
  • शहरों के जलवायु परिवर्तन के लिहाज से डिजाइन करने पर तापमान में वृद्धि के बोझ को कम करने में मदद मिल सकती है।

इस साल पड़ रही गर्मी ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। वैसे तो इस भीषण गर्मी और लू से हर तबका प्रभावित हो रहा है, पर गरीबों को इसकी मार अधिक झेलनी पड़ रही है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह संकट गरीब शहरी इलाकों में लोगों को सबसे अधिक प्रभावित करेगा। 

करीब दो साल पहले साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दिल्ली (भारत), ढाका (बांग्लादेश) और फैसलाबाद (पाकिस्तान) की गर्मी पर शोध किया जिसमें कम आय वाले क्षेत्र और उसके पड़ोसी इलाकों का तुलनात्मक अध्ययन किया। 

उच्च और निम्न आय वाले लोगों के इलाके में दिन के दौरान गर्मी बढ़ रही है। पर उच्च वर्ग के पास एयर कंडीशनिंग (एसी) का खर्च उठाने की क्षमता है। घर के बाहर गर्मी से बचने के इंतजाम हैं। पेड़ लगे हैं और उसकी छाया से गर्मी से निपटने में मदद मिलती है। वैगनिंगन यूनिवर्सिटी एंड रिसर्च (WUR) के विशेषज्ञ और इस शोध के सह-लेखक क्रिश्चियन साइडरियस कहते हैं। उनका कहना है कि घनी आबादी वाले और कम आय वाले मोहल्लों में, लोग रात में भी गर्मी से सुरक्षित नहीं रहते हैं। क्योंकि इन इलाकों में खुले और हरे-भरे स्थानों की कमी होती है और रात में भी इन इलाकों में दिन वाली गर्मी बनी रहती है। 

साइडरियस ने कहा, “हीटवेव खत्म होने के बाद भी गरीब लोग कई हफ्तों या महीनों तक रात के समय, अत्यधिक तापमान का सामना करते हैं।” 

इस शोध में केवल शहरी हीट आइलैंड या गर्म हवा पर नज़र रखने के बजाय, शोधकर्ताओं ने थर्मल सूचकांकों के संदर्भ में बाहरी वातावरण से संबंधित अन्य स्थितियों का भी आकलन किया है। उन्होंने इस बात की वकालत की कि हीट एक्शन प्लान (HAP) थर्मल इंडेक्स पर आधारित हो ताकि गर्मी के साथ ह्यूमेडिटी जैसे कारकों को शामिल किया जा सके। 

गर्मी का मतलब सिर्फ अधिक तापमान नहीं होता। इसके अतिरिक्त भी कई वजहें होती हैं जो सामान्य जीवन को प्रभावित करती हैं। जैसे आर्द्रता, हवा, सूर्य से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष विकिरण इत्यादि। थर्मल इंडैक्स या सूचकांक में इन कारकों को ध्यान में रखा जाता है। इसके आधार पर पता किया जाता है कि वास्तव में कितनी गर्मी है। 

“शहर अपने आसपास के ग्रामीण इलाकों की तुलना में अधिक गर्म होते हैं (हम आठ डिग्री सेल्सियस तक का अंतर देखते हैं), खासकर रात में। घने शहरी इलाकों में जहां गरीब रहते हैं, यह और भी ज्यादा है। तब उनके पास एसी या अच्छी तरह से इन्सुलेटेड या बंद घर नहीं होते हैं, इसलिए वे गर्मी से बच नहीं सकते हैं, “लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और ग्रंथम रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़े साइडरियस ने कहा। 

कम आय वाले लोग हीटवेव के प्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। तस्वीर- अंकुर जैन / विकिमीडिया कॉमन्स
कम आय वाले लोग हीटवेव के प्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। तस्वीर– अंकुर जैन / विकिमीडिया कॉमन्स

“गर्मी के बाद जब मानसून की शुरुआत होती है तो तापमान थोड़ा नीचे चला जाता है, लेकिन आर्द्रता बढ़ जाती है। इसका अर्थ है कि तापमान नीचे जाने के बावजूद भी गर्मी सूचकांक आमतौर पर उच्च रहता है। यह इतनी आपातकालीन स्थिति नहीं है, लेकिन स्वास्थ्य के लिहाज से जोखिम वाला समय होता है, उन्होंने कहा।

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट और वाटर (सीईईडब्ल्यू) के हेम ढोलकिया ने गरीब शहरी क्षेत्रों में गर्मी के बढ़ते प्रभाव के बारे में सहमति व्यक्त की। ढोलकिया इस अध्ययन से नहीं जुड़े हैं। 

“मान लें कि टिन शेड में रहने वाला एक गरीब व्यक्ति बहुत कम या न के बराबर वेंटिलेशन वाले घर में रहता है। वहां का तापमान औसत तापमान की तुलना में दो डिग्री अधिक हो सकता है। हीटवेव के दिन जब बाहर का तापमान 41 डिग्री सेल्सियस होता है तो ऐसे घरों में रहने वाले लोगों को 43 डिग्री सेल्सियस तापमान के संपर्क में रहना होता है, ढोलकिया ने विस्तार से बताया।

“एक बार जब बाहरी तापमान 38 डिग्री तक गिर जाता है (यानी गर्मी की लहर बीत चुकी है) तो भी लोगों को, घर के भीतर 40 डिग्री तापमान, का अनुभव हो सकता है। इस प्रकार घर की बनावट के आधार पर गरीबों के लिए जोखिम अधिक होता है। इससे स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा,” ढोलकिया ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

इसके अतिरिक्त, गर्मी के जोखिम में अंतर, सामान्यतःइस बात पर निर्भर करता है कि शहर में, झुग्गी-झोपड़ी या कम आय वाले लोगों के रहने का स्थान कहां स्थित है। 

उदाहरण के लिए दिल्ली में 2019 में उच्चतम जून तापमान 48 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। जहां शहरी हिस्से 1500 वर्ग किलोमीटर के कुल शहर क्षेत्र का लगभग आधा हिस्से में मौजूद है, गरीब लोगों के इलाके पूरे शहर में पाए जाते हैं। 

“यहां आसपास मौजूद कंक्रीट का प्रभाव सबसे अधिक होता है। कंक्रीट रात में धीरे-धीरे ठंडा होता है। पाकिस्तान के तीसरे सबसे बड़े शहर फैसलाबाद में गरीब लोगों के इलाके अब शहर के बाहरी इलाके में विकसित हो रहे हैं कृषि क्षेत्रों के करीब वाले इलाके रात में जल्दी ठंडे होते हैं। यह बाहरी तापमान को कुछ हद तक प्रभावित करता है,” साइडरियस ने कहा। ढाका में, कुछ झुग्गी बस्तियों में पानी के पास जो स्थान है वह थोड़ा जल्दी ठंडा होता है। 

भारत में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, यदि किसी रिकॉर्डिंग स्टेशन पर अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों के लिए कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक, तटीय स्टेशनों के लिए 37 डिग्री सेल्सियस या अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस या अधिक तक पहुंच जाता है, तो लू या हीटवेव घोषित किया जाता है। 

आईएमडी के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और शहरी हीट आइलैड जैसे कारकों के कारण पिछले 15 वर्षों में गंभीर हीटवेव की आवृत्ति में तेजी से वृद्धि हुई है। यह एक ऐसी घटना है जहां एक शहर अपने आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक तापमान का अनुभव करता है।

हीट एक्शन प्लान (HAP) तैयार करने पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के 2016 के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि यदि किसी स्थान का अधिकतम तापमान लगातार दो दिनों तक 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक बना रहता है, तो इसे हीट वेव कंडीशन कहा जाता है।

चिनावाल गांव में चिलचिलाती धूप। पिछले कुछ दशकों से पूरे भारत में गर्मी का तापमान बढ़ रहा है। तस्वीर- अभिषेक / विकिमीडिया कॉमन्स
चिनावाल गांव में चिलचिलाती धूप। पिछले कुछ दशकों से पूरे भारत में गर्मी अधिक पड़ने लगी है। तस्वीर– अभिषेक / विकिमीडिया कॉमन्स

पिछले कुछ वर्षों के रिकॉर्ड पर गौर किया जाए तो वैश्विक तापमान में वृद्धि हाल-फिलहाल कम नहीं होने जा रही है। नासा और नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के स्वतंत्र विश्लेषण के अनुसार, 2018 में पृथ्वी का वैश्विक सतह का तापमान 1880 के बाद चौथा सबसे गर्म था और पिछले पांच साल सामूहिक रूप से आधुनिक रिकॉर्ड में सबसे गर्म वर्ष हैं।

अत्यधिक गर्मी के खतरे 

अत्यधिक गर्मी खतरनाक यहां तक ​​​​कि घातक स्वास्थ्य परिणामों को जन्म दे सकती है, जिसमें हीट स्ट्रेस और हीटस्ट्रोक शामिल हैं। 1992 से 2015 तक हीटवेव के कारण पूरे भारत में 22,562 मौतें हुई हैं।

गुजरात में पश्चिमी भारतीय शहर अहमदाबाद 2013 में हीट वेव एक्शन प्लान (एचएपी) तैयार करने वाला पहला दक्षिण एशियाई शहर बन गया। यहां 2010 में हीटवेव के बाद 1,344 लोगों की जान ले ली।

इस योजना के लागू होने के बाद से अहमदाबाद में हर साल लगभग 1,100 लोगों की जान बची है। इस योजना को देश के कम से कम एक दर्जन शहरों ने अपनाया है। योजना को सक्रिय करने के लिए, शहर के नागरिक निकाय (नगर निगमों) द्वारा निर्धारित तापमान सीमा के आधार पर कलर कोडेड हीट अलर्ट जारी किए जाते हैं।

लेकिन विशेषज्ञों का तर्क है कि गर्मी का असर समझने के लिए सिर्फ तापमान की सीमा पर्याप्त नहीं है। क्योंकि सिर्फ गर्मी या तापमान बढ़ने से ही स्वास्थ्य नहीं प्रभावित होता बल्कि ह्यूमेडिटी या आर्द्रता से भी होता है। 

ढोलकिया ने कहा कि 2010 से इस तरह के अध्ययन में पाया गया कि न्यूनतम, अधिकतम या औसत तापमान जैसे आंकड़ों के बजाए गर्मी का संपूर्ण सूचकांक मृत्यु से संबंधित गर्मी की भविष्यवाणी करने में अधिक विश्वसनीय है। यह अध्ययन न्यूयॉर्क शहर के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम के संदर्भ में किया गया था। 

बावजूद इसके अब तक उन शहरों में गर्मी को लेकर कार्य योजना विकसित करने के प्रयास किए गए हैं जहां तापमान उच्च चालीस (जैसे अहमदाबाद और नागपुर) तक पहुंच गया है।पर तटीय शहरों में भी अपनी योजनाएं होनी चाहिए। 

शहरों की कई विशेषताओं के कारण ऐसे क्षेत्र बनते हैं जहां अधिक गर्मी होती है। सबसे पहले तो शहरों में पेड़-पौधों के कम होने के कारण ज्यादा वाष्पीकरणऔर ज्यादा वाष्पोत्सर्जन होता है। इन दोनों प्रक्रियाओं के कारण गर्मी ज्यादा होती है। तस्वीर- मैके सैवेज/विकिमीडिया कॉमन्स
शहरों के ढांचागत विशेषताओं के कारण ऐसे क्षेत्र बनते हैं जहां अधिक गर्मी होती है। सबसे पहले तो शहरों में पेड़-पौधों के कम होने के कारण ज्यादा वाष्पीकरणऔर ज्यादा वाष्पोत्सर्जन होता है। इन दोनों प्रक्रियाओं के कारण गर्मी ज्यादा होती है। तस्वीर- मैके सैवेज/विकिमीडिया कॉमन्स

ढोलकिया ने कहा, “गर्मी सूचकांक दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए, हम भारत के शहरों में उच्च आर्द्रता (मुंबई, चेन्नई जैसे तटीय शहरों) में रहने वाले लोगों पर इसका प्रभाव देख सकते हैं। यहां का तापमान आमतौर पर तीस तक पहुंचता  है पर इतना तापमान भी स्वास्थ्य पर बुरा असर कर सकता है,ढोलकिया ने कहा।

वास्तव में गर्मी के जोखिम के प्रबंधन पर एनडीएमए के दिशानिर्देशों के अनुसार, उच्च आर्द्रता के साथ कम तापमान और कम आर्द्रता के साथ उच्च तापमान का मिश्रण से गर्मी का उतना ही असर हो सकता है। 43 डिग्री सेल्सियस और 40 प्रतिशत आर्द्रता या 33 डिग्री और 95 प्रतिशत आर्द्रता से गर्मी का असर बराबर हो सकता है। 

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, हैदराबाद के सुरेश राठी ने कहा कि गुजरात में सूरत शहर जहां की बड़ी आबादी बस्तियों में रहती है, अपनी योजना में हीट इंडेक्स को शामिल किया है।

राठी ने कहा, “सूरत पर हमारे शोध से पता चला है कि रात के समय के तापमान में वृद्धि हुई है।” 

“सूरत के लिए जब हम गर्मी से होने वाली मौतों की गणना करते हैं, तो केवल तापमान पर विचार करने के विपरीत, अगर हम हीट इंडेक्स को ध्यान में रखते हैं, तो मौतों की संख्या प्रति दिन छह तक बढ़ जाती है,” राठी मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

इसके अलावा, उच्च सापेक्ष आर्द्रता और तापमान का संयोजन भी मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल स्थिति बनाता है। राठी ने कहा, “यह झुग्गियों के लिए अधिक खतरनाक है जहां पानी लंबे समय तक जमा रहता है।” 

इंटिग्रेटेड रिसर्च   फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट (IRADe) के उप निदेशक रोहित मगोत्रा तीन भारतीय शहरों (दिल्ली, राजकोट और भुवनेश्वर) में क्लाइमेट एडेप्टिव हीट स्ट्रेस एक्शन प्लान (HSAPs) विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं उन्होंने कहा कि ये योजनाएं थर्मल हॉटस्पॉट को चाक-चौबंद करने के लिए शहरों के भीतर तापमान में बदलाव को ध्यान में रखती हैं।

“सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग करके हमने थर्मल हॉटस्पॉट को उजागर करने के लिए ब्राइटनेस मैप्स (सतहों की परावर्तनशीलता का संकेत) तैयार किया। थर्मल हॉटस्पॉट मानचित्रों का उपयोग करते हुए, प्रत्येक शहर में सर्वेक्षण कर हॉटस्पॉट को चित्रित किया गया थाइसमें झुग्गियों और अवैध बस्तियों को चिह्नित किया गया था। सर्वेक्षणों ने रेहड़ी-पटरी वालों या विक्रेताओं, निर्माण श्रमिकों, यातायात, पुलिस और अन्य जैसे विशिष्ट व्यवसायों पर गर्मी के तनाव के जोखिम और प्रभाव का आकलन किया, मगोत्रा ​​ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।


और पढ़ेंः शहर में अधिक गर्मी क्यों पड़ रही और शहर हीट आईलैंड क्यों बन जाते हैं?


मगोत्रा ​​ने कहा कि योजनाएं भी जेंडर सेंसेटिव हैं क्योंकि वे महिलाओं की विशिष्ट चिंताओं को ध्यान में रखती हैं जो बेहतर संचार में मदद करेंगी।

पेपर की सह-लेखक तान्या सिंह ने कहा कि गर्मी के जोखिम के लिए पहले से योजना बनाने की जरूरत है क्योंकि लोग गर्मी की शुरुआत में भी अधिक असुरक्षित होते हैं। “खासकर, जब सर्दी के बाद अचानक गर्मी पड़ने लगती है। ऐसे में हीटवेव के दिन ही नहीं बल्कि कम गर्म दिनों में भी लोगों की मृत्यु होती है। लेकिन सबका ध्यान हीटवेव पर बहुत अधिक है,” डब्ल्यूयूआर से जुड़े और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के छात्र सिंह ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

क्या जलवायु-स्मार्ट शहर है एक अवसर

लेखकों का सुझाव है कि जलवायु-स्मार्ट सिटी डिज़ाइन जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि के बोझ को कम करने में मदद कर सकता है।

साइडरियस और उनके सहयोगियों का तर्क है कि विकास की चुनौतियां इस क्षेत्र में एक अवसर की तरह है। क्योंकि भविष्य में दक्षिण एशिया के अधिकांश बुनियादी ढांचे को अभी भी बनाने की आवश्यकता है। इसे बनाने के लिए एक विकल्प है, जलवायु-स्मार्ट सिटी।

“एक और पहलू जिसे हमने छुआ नहीं है वह है वायु प्रदूषण और गर्मी का संयोजन। गर्म और प्रदूषित हवा में सांस लेना एक स्वास्थ्य जोखिम है, खासकर कमजोर समूहों के लिए, ”उन्होंने कहा।

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट, इंडिया रॉस सेंटर फॉर सस्टेनेबल सिटीज में शहरी विकास के प्रमुख रेजीत मैथ्यूज ने बताया कि शहरीकरण सही तरीके से नहीं हो रहा है। इस विकास को सस्टैनबल नहीं कहा जा सकता। 

“भारत के शहरों में इमारतों, सड़कों और फुटपाथों के निर्माण के मामले में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। विकास की यह गति पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों जैसे बाढ़ के मैदानों, उथली झीलों, पेड़ों के समूहों को नहीं छोड़ती है और इसके परिणामस्वरूप हरित आवरण का समग्र नुकसान होता है। कंक्रीटीकरण की वजह से शहरी हीट आइलैंड प्रभाव बढ़ रहे हैं,” मैथ्यूज ने मोंगाबे- हिन्दी को बताया।

उदाहरण के लिए बैंगलुरु शहर का निर्माण 85 प्रतिशत बाढ़ के मैदान पर हुआ है। मैथ्यूज ने बताया कि शहरीकरण का यह पैटर्न निश्चित रूप से एक गर्म माइक्रो क्लाइमेट पैदा कर रहा है।

मैथ्यूज ने आधुनिक निर्माणों में पारंपरिक ज्ञान पर विचार करने के महत्व पर भी जोर दिया क्योंकि शहरों में हरित आवरण खत्म हो रहे हैं।

केरल में निर्माण श्रमिक। कई भारतीयों को अपने काम की प्रकृति के कारण गर्मियों में लंबे समय तक कड़ी धूप में रहना पड़ता है। तस्वीर- अरकर्जुन/विकिमीडिया कॉमन्स
केरल में निर्माण श्रमिक। कई भारतीयों को अपने काम की प्रकृति के कारण गर्मियों में लंबे समय तक कड़ी धूप में रहना पड़ता है। तस्वीर– अरकर्जुन/विकिमीडिया कॉमन्स

“यह देखते हुए कि भारत में इस तरह की हीटवेव और इससे संबंधित स्वास्थ्य और मृत्यु होती रहेगी। इससे बचना है तो पारंपरिक तकनीकों, जलवायु डिजाइन के सिद्धांतों और अन्य उपायों का उपयोग करके माइक्रॉक्लाइमेट को अधिक रहने योग्य और आरामदायक बनाने की आवश्यकता है। यह इमारतों के साथ-साथ बाहरी रहने की जगहों पर भी लागू होता है। यह कमजोर और निम्न आय समूहों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनके पास बाहर जाने और एयर कंडीशनर और कूलर खरीदने की क्षमता नहीं है,” उन्होंने जोर दिया।

मैथ्यूज ने सुझाव दिया कि सड़क और सार्वजनिक पार्क में लगे पेड़, वर्षा जल संचयन, जल धारण करने वाले तालाब और सार्वजनिक स्थानों पर पेयजल उपलब्ध कराने जैसे कुछ उपाय काम पर बाहर जाने वाले लोगों को गर्मी से राहत देने में कारगर हो सकते हैं। 

“इमारतों को इस तरह से बनाया जाना चाहिए कि रहने वाले स्थान पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में न हों। वहां सीढ़ियां, स्टोररूम इत्यादि जैसे गैर-रहने योग्य कमरे रखे जा सकते हैं,” उन्होंने कहा।

 

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बैनर तस्वीर: मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, यदि किसी रिकॉर्डिंग स्टेशन पर अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों के लिए कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक, तटीय स्टेशनों के लिए 37 डिग्री सेल्सियस या अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस या अधिक तक पहुंच जाता है, तो लू या हीटवेव घोषित किया जाता है।  तस्वीर- विश्वरूप गांगुली / विकिमीडिया कॉमन्स

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