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नेपाल और भारत में निर्माण के नियम ‘वन्यजीवों के हित में’ पर पक्षियों के नहीं

रूफस-थ्रोटेड व्रेन-बब्बलर (Spelaeornis caudatus)। तस्वीर- माइक प्रिंस / फ़्लिकर

रूफस-थ्रोटेड व्रेन-बब्बलर (Spelaeornis caudatus)। तस्वीर- माइक प्रिंस / फ़्लिकर

  • विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि सड़कों, बिजली के तार और रेलवे के विस्तार जैसी निर्माण योजनाओं की वजह से भारतीय उपमहाद्वीप में वन क्षेत्र तेजी से प्रभावित हो रहे हैं।
  • बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए नेपाल ने नए दिशा-निर्देश बनाए हैं जिसका उद्देश्य है कि इन परियोजनाओं को इस तरह विकसित किया जाए कि वन्यजीवों को कम से कम नुकसान हो। हालांकि, संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले लोग मानते हैं कि इसमें पक्षियों पर विचार नहीं किया गया है।
  • सड़कें, रेलवे और बिजली की लाइनें जो घने जगलों के बीच से गुजरती हैं, इनसे पक्षियों पर काफी प्रभाव पड़ रहा है। इन क्षेत्र में पक्षी निवास करते हैं।
  • हाल के एक अध्ययन से पता चलता है कि जहां जंगल आपस में जुड़े हुए हैं वहां पक्षियों की प्रजातियों में विविधता अधिक है।

भारत और नेपाल जैसे विकासशील देशों के लिए बिजली, सड़क, पुल, रेलवे लाइन जैसे मूलभूत ढ़ांचा का निर्माण बहुत जरूरी है। हालांकि, ये निर्माण अक्सर जंगलों के बीच से गुजरते हैं और जंगल को खंडित कर देते हैं। इसका अर्थ हुआ जंगल आपस में जुड़े नहीं रहते जिससे वन्यजीवों की आवाजाही प्रभावित होती है। 

ऐसे निर्माण से वन्यजीवों पर प्रभाव न पड़े इसके लिए कई कोशिशें हो रही हैं, लेकिन इन कोशिशों में पक्षियों की सुरक्षा पर ध्यान कम ही जाता है। 

संरक्षणवादियों और गैर सरकारी संगठनों के दबाव के बाद, नेपाल की सरकार ने हाल ही में सड़कों, बांधों और रेलवे लाइनों जैसे बुनियादी ढांचे को वन्यजीवों के अनुकूल बनाने के लिए नए दिशा-निर्देश बनाए हैं। लेकिन, इसमें सभी तरह के वन्यजीवों की बात नहीं की गई है। विशेष रूप से घने जंगलों में रहने वाले पक्षियों की। इसलिए यह डर बना हुआ है कि तमाम कोशिशों के बावजूद भी पक्षियों को इससे खतरा बना रहेगा। 

अप्रैल में जारी दिशा-निर्देश, वन्यजीवों को वर्गीकृत करते हैं जो बुनियादी ढांचे से पांच श्रेणियों में प्रभावित हो सकते हैं। इसमें छोटे जीवों में कछुआ, सांप और अन्य सरीसृप और उभयचर जैसे जीव शामिल हैं। एक वर्ग छोटे स्तनधारी जीवों का है जिसमें गिलहरी, खरगोश, साही और सिवेट (कस्तूरी बिला) जैसे जीव हैं। मध्यम आकार के जानवरों में जंगली बिल्लियां, ढोल (सोनकुत्ता), लकड़बग्घा और बंदर हैं। बड़े जानवर जैसे गैंडे, बाघ, भालू, हिरण और भैंस और विशाल जानवर जैसे जंगली हाथी को भी इसमें शामिल किया गया है। 

इस मुद्दे पर प्रमुख नेपाली पक्षी विज्ञानी हेम सागर बराल ने कहा, “सड़कों और बिजली लाइनों जैसे रैखिक बुनियादी ढांचे पर पक्षियों, विशेष रूप से घने जंगलों में रहने वाले पक्षियों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। हालांकि, नेपाल में 100 बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से 90 परियोजनाएं पक्षियों पर संभावित प्रभावों को ध्यान में नहीं रखते हैं” 

शिवपुरी राष्ट्रीय उद्यान, नेपाल में एक कांटेदार बब्बलर (एकांथोप्टिला निपलेंसिस)। तस्वीर- संगम एडवेंचरर / विकिमीडिया कॉमन्स
शिवपुरी राष्ट्रीय उद्यान, नेपाल में एक कांटेदार बब्बलर (एकांथोप्टिला निपलेंसिस)। तस्वीर– संगम एडवेंचरर / विकिमीडिया कॉमन्स

बराल ने कहा, “चूंकि वाहनों के साथ टक्कर में बाघ और गैंडे मारे जाते हैं, अधिकारी वन्यजीवों के अनुकूल बुनियादी ढांचे को डिजाइन करते समय इन बड़े जीवों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। आवास के विखंडन होने का प्रभाव पक्षियों पर भी पड़ता है लेकिन इस तरफ कम ध्यान दिया जाता है।”

बर्डलाइफ इंटरनेशनल ने माई घाटी में हाल ही में एक अध्ययन किया है। यह इलाका महत्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र में गिना जाता है। इस क्षेत्र में वन पक्षियों के सामने रहवास या आवास की चुनौती है। घाटी में रूफस-थ्रोटेड व्रेन-बब्बलर (Spelaeornis caudatus), स्पाइनी बब्बलर (Acanthoptila nipalensis), और होरी-थ्रोटेड बारविंग (Sibia nipalensis) जैसे पक्षियों का घर है।

अध्ययन के प्रमुख लेखक आस्था जोशी और बराल सहित उनकी टीम ने माई घाटी में दो जंगलों सन्निहित (हंगेथम सामुदायिक वन) और दूसरा पृथक (मैपोखरी धार्मिक वन) में पाए जाने वाले पक्षियों की विविधता की तुलना की। 

जोशी ने कहा, “हमने अलग-अलग जंगलों में परिक्षण के लिए माईपोखरी वन आवास को चुना क्योंकि इसके आसपास के बुनियादी ढांचे के विकास के कारण धार्मिक जंगल अंततः खंडित हो गए और वे कृषि भूमि से घिरे हुए थे।”

इसके विपरीत, हंगेथम सामुदायिक वन, नेपाल के पंचथर-इलम गलियारे के भीतर एक सन्निहित वन के रूप में विकसित हुआ। यह वन दो अलग-अलग जिलों के जंगलों को जोड़ता है और इसके संरक्षण में स्थानीय लोगों ने सक्रिय भागीदारी निभाई है। 

जोशी ने कहा कि दोनों जंगलों के बीच की दूरी 20 किलोमीटर है लेकिन इनकी जलवायु परिस्थितियां कमोबेश समान है। 

शोधकर्ताओं ने दिसंबर 2019 से जनवरी 2020 तक दो जंगलों में और मार्च 2020 और मार्च 2021 में पक्षियों को देखा। कोविड-19 की वजह से अध्ययन का काम प्रभावित हुआ। उन्होंने पाया कि अलग-थलग जंगल की तुलना में सन्निहित वन या आपस में जुड़े वन में पक्षियों में काफी विविधता थी।

बराल ने कहा, “जो इलाके जंगलों से घिरा हुआ है वहां पक्षियों को शिकारियों से अधिक परेशानी नहीं होती। ऐसे स्थान प्रतिस्पर्धियों से दूर सूक्ष्म आवासों, खाद्य स्रोतों और घोंसले के शिकार स्थलों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करते हैं।” 

उन्होंने कहा कि जब वन आवास खंडित होता है, तो इन पक्षियों की विशिष्ट आवश्यकताओं (भोजन, आवास आदि) को पूरा नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि ओवरपास और अंडरपास और पुलिया बनाने जैसे उपायों से पक्षियों पर सड़कों के प्रभाव को कम करने में मदद नहीं मिलती है, उन्होंने कहा।

टीम ने पूरे अध्ययन के दौरान 141 प्रजातियों से संबंधित कुल 1,138 पक्षियों को दर्ज किया। समग्र परिणाम ने पृथक वन (खंडित वन) (84) की तुलना में सन्निहित (आपस में जुड़ हुए) वन (116) में प्रजातियों की अधिक संख्या पाई गई।

“यह बात भारतीय महाद्वीप और इसके बाहर भी जगजाहिर है कि जंगलों के बड़े और आपस में जुड़े हुए पैच अलग-थलग पैच की तुलना में अधिक पक्षी विविधता का समर्थन करते हैं,” भारतीय पक्षी विज्ञानी रोहित झा कहते हैं। उन्होंने भारत और नेपाल दोनों में पक्षियों का अध्ययन किया है। वे इस अध्ययन में शामिल नहीं हैं। उन्होंने कहा, “पूर्वी नेपाल में हाल के इस अध्ययन से हमारे मौजूदा ज्ञान में इजाफा होता है। इससे पता चलता है कि बड़े जंगलों में पाए जाने वाले प्रजातियों का केवल एक सबसेट छोटे पैच में पाया जाता है।”

600 वर्ग किलोमीटर में फैले जंगल को लेकर झा ने अनुमान लगाया कि कुछ पक्षी प्रजातियां केवल 200 वर्ग किमी के भीतर ही जीवित रहेंगी। इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं कि पक्षी मानव अशांति और जंगलों के किनारों से दूर मुख्य जंगलों में रहने के लिए बने हैं। उन्होंने मोंगाबे को बताया कि ये वन पक्षी हैं जो उपमहाद्वीप में निवास स्थान के विखंडन के कारण सबसे अधिक खतरे में हैं।

नेपाल में एक जंगली इलाके से गुजरने वाली सड़क पर व्यस्त यातायात का एक दृश्य।तस्वीर- कृष्णा देव हेंगाजू / आईयूसीएन
नेपाल में एक जंगली इलाके से गुजरने वाली सड़क पर व्यस्त यातायात का एक दृश्य। तस्वीर- कृष्णा देव हेंगाजू / आईयूसीएन

विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि भारतीय उपमहाद्वीप में वन क्षेत्र विभिन्न कारणों से तेजी से खंडित हो रहे हैं, जैसे कि सड़कों, बिजली लाइनों और रेलवे का विकास। 2020 के एक अध्ययन में भारत में रैखिक बुनियादी ढांचे के कारण वन पैच की संख्या में वृद्धि और बड़े पैच (10,000 वर्ग किमी से अधिक) की संख्या में कमी पाई गई। उच्च-तनाव या हाइटेंशन बिजली लाइनें और प्रमुख सड़कें जंगलों के भीतर सबसे सामान्य  घुसपैठ है। इस अध्ययन में सामने आया कि मूल्यांकन किए गए संरक्षित क्षेत्रों के 70% में कुछ मात्रा में इस तरह की संरचना बनाई गयी है। 

नेपाल के मामले में, 1930 से 2014 तक देश में वनों की स्थिति पर 2018 में एक अध्ययन किया गया। इसमें सामने आया कि घने जंगलों में 75.5% की कमी और खंडित पैच की संख्या में वृद्धि पाई गई। नेपाल के तराई मैदानों में एशियाई हाथियों की श्रेणी में 1930 और 2020 के बीच जंगल के नुकसान और विखंडन को देखते हुए 2021 के एक अध्ययन में पाया गया कि उस अवधि के दौरान बड़े जंगलों का क्षेत्र 43% कम हो गया था, जबकि छोटे पैच कई बार बढ़ गए थे।

झा ने कहा, “चूंकि नेपाल और भारत दोनों विकासशील देश हैं, इसलिए सड़कों और बिजली लाइनों जैसे आवश्यक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता बढ़ रही है।” 

इसका मतलब है कि विखंडन निकट भविष्य में केवल बढ़ेगा और  पक्षियों के लिए खतरा बढ़ जाएगा।

बराल और झा दोनों इस बात से सहमत हैं कि सड़कों, बांधों, नहरों और रेलवे लाइनों के विकास के दौरान महत्वपूर्ण पक्षी आवासों से बचना चाहिए। लेकिन अगर ऐसा करना संभव नहीं है, तो विभिन्न पक्षी प्रजातियों सहित जैव विविधता पर प्रभाव को कम करने के लिए कुछ उपायों को अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने हाल ही में नेपाल द्वारा जारी किए गए वन्यजीव-अनुकूल बुनियादी ढांचे के दिशा-निर्देशों में पक्षियों को शामिल करने का भी आह्वान किया।


और पढ़ेंः नेपाल में अंधाधुंध निर्माण में लगा है चीन, हिमालय के नाजुक पारिस्थितिकी को खतरा


झा ने कहा कि डेवलपर्स और नीति निर्माताओं को प्रमुख निकट वन पैच की पहचान करने और उन्हें बरकरार रखने की योजना तैयार करने की आवश्यकता है। उन्होंने मोंगाबे को बताया, “ वनों के बीच न न केवल कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि वह जुड़ाव पक्षियों के काम आए। इन उपायों को यह सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन करने की आवश्यकता है कि विकास परियोजनाओं के शुरुआती चरण से पक्षियों के लिए खतरों का भी हिसाब लगाया जाए।”

बराल ने कहा कि इन उपायों के बाद प्रभावी निगरानी की जरूरत है, जिसकी भारतीय उपमहाद्वीप में कमी है।

“जब एक विकास परियोजना पूरी हो जाती है तो हमें जैव विविधता पर इसके प्रभावों की सक्रियनिगरानी रखने की आवश्यकता है,” वह कहते हैं। 

 

CITATION:

Joshi, A., Baniya, S., Shrestha, N., Sapkota, R. P., & Baral, H. S. (2022). Contiguous forest supports higher bird diversity compared to isolated forest: Evidence from forest landscape of Eastern Nepal. Global Ecology and Conservation, 36. doi:10.1016/j.gecco.2022.e02133

Nayak, R., Karanth, K. K., Dutta, T., Defries, R., Karanth, K. U., & Vaidyanathan, S. (2020). Bits and pieces: Forest fragmentation by linear intrusions in India. Land Use Policy, 99, 104619. doi:10.1016/j.landusepol.2020.104619

Ram, A. K., Yadav, N. K., Kandel, P. N., Mondol, S., Pandav, B., Natarajan, L., . . . Lamichhane, B. R. (2021). Tracking forest loss and fragmentation between 1930 and 2020 in Asian elephant (Elephas maximus) range in Nepal. Scientific Reports, 11(1). doi:10.1038/s41598-021-98327-8

Sudhakar Reddy, C., Vazeed Pasha, S., Satish, K. V., Saranya, K. R. L., Jha, C. S., & Krishna Murthy, Y. V. N. (2018). Quantifying nationwide land cover and historical changes in forests of Nepal (1930-2014): Implications on forest fragmentation. Biodiversity and Conservation, 27(1), 91-107. doi:10.1007/s10531-017-1423-8

 

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बैनर तस्वीरः रूफस-थ्रोटेड व्रेन-बब्बलर (Spelaeornis caudatus)तस्वीर–  माइक प्रिंस/फ़्लिकर 

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