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[वीडियो] भीषण बाढ़ से असम में जन-जीवन अस्त-व्यस्त, जाल-माल को भारी क्षति

सिलचर का करीब 80 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो गया। तस्वीर- सुभदीप दत्ता

सिलचर का करीब 80 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो गया। तस्वीर- सुभदीप दत्ता

  • इस साल असम पर बाढ़ की दोहरी मार पड़ी है। पहली बार बाढ़ मई में आई और फिर एक महीने बाद जून में भी असम को बाढ़ का सामना करना पड़ा। बाढ़ से शहर और ग्रामीण इलाकों में जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।
  • असम के दूसरे सबसे बड़े शहर सिलचर में बाढ़ का सबसे भीषण रूप देखने को मिला। इस बाढ़ में 80% से अधिक शहर का हिस्सा जलमग्न हो गया।
  • राज्य में इस साल मार्च से मई तक प्री-मानसून सीजन में अधिक बारिश हुई। इस दरम्यान औसत बारिश 414.6 मिमी के करीब होती है पर इस बार 672.1 मिमी बारिश दर्ज की गई। दस वर्षों में सबसे अधिक बारिश इस साल दर्ज की गयी है। इस भारी तबाही के लिए अधिक बारिश को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

असम में नेशनल हाईवे 31 के किनारे जिस ओर नजर जाती है, पानी ही पानी दिखता है। यहां कुछ दिन पहले तक धान की लहलहाती फसल दिखती थी। इसी हाइवे पर 43 वर्षीय रहीसुद्दीन अपनी पत्नी और पांच बच्चों के साथ मदद का इंतजार कर रहे हैं। राज्य में नगांव जिले के राहा अनुमंडल के काकोटी गांव निवासी रहीसुद्दीन अपने गांव वापस जाने के लिए किसी नाव की तलाश में हैं। उनका परिवार काकोटी गांव के अधिकतर लोग, बाढ़ से बचने के प्रयास में, पलायन कर चुके हैं। जान बचाने की जद्दोजहद में लोगों से जितना हो सका हो सका, घर का सामान भी साथ ले आए। गांव के कुछ लोग अपने मवेशियों की जान बचाने में भी कामयाब रहे। अब घर डूबने के बाद उन्हें तिरपाल से बने अस्थाई शिविरों में रहना पड़ा रहा है।

रहीसुद्दीन एक नाविक के साथ मोल-तोल कर रहे हैं। नाविक गांव तक छोड़ने का 20 रुपए प्रति व्यक्ति किराया मांग रहा है, लेकिन वे 10 रुपए प्रति व्यक्ति से अधिक नहीं देना चाहते। यह पूछने पर कि वह अपने गांव क्यों जा रहे हैं, उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि वह टोह लेने जा रहे हैं कि गांव में पानी उतरा कि वहीं। 

वह कहते हैं, “मई में बाढ़ की पहली लहर के बाद हमने गांव छोड़ दिया और पिछले एक महीने से हम यहां-वहां भटक रहे हैं। अपने गांव के अधिकांश लोगों की तरह, मैं भी दिहाड़ी मजदूरी करता हूं और कभी-कभी मछलियां पकड़ता हूं, लेकिन अब बाढ़ के कारण मेरे पास कोई रोजगार नहीं है।”

शुरुआत में हमने चापोरमुख रेलवे स्टेशन पर शरण ली क्योंकि यह बाढ़ नहीं थी। अभी पिछले 15 दिनों से हम यहां हाईवे पर चले आए। अपने बच्चों के साथ इस तरह रहना बहुत मुश्किल है। इसलिए अगर गांव में स्थिति में थोड़ा सुधार होता है, तो मैं अपने घर वापस जाऊंगा,” रहीसुद्दीन कहते हैं। 

राहत शिविर के पास रह रहे लोगों के लिए भोजन की आपूर्ति। तस्वीर- नबरून गुहा

आखिरकार एक नाव वाले से रहीसुद्दीन की बात बनी और वे नाव के सहारे अपने गांव गए। वहां जो देखा उससे उनका दिल और बैठ गया।  उनका मिट्टी और टिन से बना घर आधे से अधिक डूबा हुआ है। घर के भीतर पानी सीने तक पहुंच रहा है। अगले दिन जब मोंगाबे-हिन्दी ने उनसे फोन पर संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि वहां रहना असंभव है। वह कहते हैं, “हम चापोरमुख रेलवे स्टेशन पर रेलवे ट्रैक के पास रह रहे हैं। उनके साथ वहां सैकड़ों अन्य परिवार भी शरण लिए हुए हैं।”

रहीसुद्दीन और उनका परिवार इस साल असम में आई बाढ़ की चपेट में आए लाखों लोगों में से एक है। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) द्वारा जारी नवीनतम बाढ़ बुलेटिन के अनुसार, वर्तमान में 26 जिलों के 2,675 गांवों में 31,54,556 लोग प्रभावित हैं। वर्तमान में राज्य भर में 560 राहत शिविरों में 3,12,085 लोग रह रहे हैं। अब तक मरने वालों की संख्या 151 पहुंच चुकी  है।

असम में बाढ़ हर साल घटने वाली आपदा बन गई है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के मुताबिक राज्य के कुल क्षेत्रफल का 39.58% बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। देश के कुल बाढ़ संभावित क्षेत्र का 9.40% हिस्सा इसी राज्य में पड़ता है। असम को इस साल बाढ़ की दो गंभीर लहरों का सामना करना पड़ापहली बाढ़ मई में आई जब बराक घाटी, एनसी हिल्स और होजई जैसे हिस्से प्रभावित हुए। फिर जून में आई बाढ़ ने बराक घाटी के साथ निचले असम के अधिकांश हिस्से को अलग-थलग कर दिया। प्री-मानसून में हुई बारिश से बाढ़ ने ग्रामीण जिलों जैसे बारपेटा, नागांव, मोरीगांव, नलबाड़ी, कामरूप (ग्रामीण) आदि को प्रभावित किया और साथ ही शहरी क्षेत्रों जैसे असम का दूसरा सबसे बड़ा शहर सिलचर का 80 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो गया। 

असम में इस साल मार्च से मई के बीच प्री-मानसून सीजन में सामान्य से 62 फीसदी अधिक बारिश हुई। औसत बारिश 414.6 मिमी के बजाय यहां 672.1 मिमी बारिश हुई जोकि दस वर्षों में सबसे अधिक है। असम के पड़ोसी राज्य मेघालय में इसी मौसम में सामान्य से 93 फीसदी अधिक बारिश दर्ज की गई है। वैज्ञानिक ऐसी आपदाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन की भूमिका भी देख रहे हैं।

जलवायु वैज्ञानिक पार्थ ज्योति दास ने कहा कि इवेंट एट्रिब्यूशन (जलवायु परिवर्तन और आपदा से संबंध स्थापित) करने के लिए अधिक डेटा की आवश्यकता है, लेकिन मॉडल अनुमानों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन पूर्वोत्तर क्षेत्र में बार-बार अत्यधिक बारिश का कारण हो सकता है। वह कहते हैं, “इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि पहले से ही अत्यधिक वर्षा होने लगी हो।” 

द्वारबंद में बाढ़ के बाद की स्थिति। तस्वीर- धर्मेंद्र तिवारी
द्वारबंद में बाढ़ के बाद की स्थिति। तस्वीर- धर्मेंद्र तिवारी

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के पूर्व निदेशक भूपेन गोस्वामी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन निश्चित रूप से चरम घटना के बढ़ते प्रभावों में योगदान देने वाला कारक है।

“पहले अगर हर 100 साल में चरम मौसम की घटनाएं होती थीं, तो अब शायद वे हर दस साल में होंगी। लेकिन असम में बाढ़ भी बांधों के खराब प्रबंधन का परिणाम है। बाढ़ जो बारपेटा और निचले असम के अन्य स्थानों को प्रभावित कर रही है, वह भूटान में बांधों से छोड़े गए पानी के कारण है। भारी बारिश ने स्थिति और खराब कर दी। मौसम विज्ञान समुदाय ने इस साल सटीक पूर्वानुमान देते हुए कहा था कि तेज बारिश होने वाली है।  इसे ध्यान में रखते हुए बांधों से पानी छोड़ने की बेहतर योजना बनाई जानी चाहिए थी,” गोस्वामी ने मोंगाबे- हिन्दी को बताया।

बाढ़ से बेहाल गुवाहाटी शहर 

गुवाहाटी के रुक्मिणी नगर की गलियों में पान की दुकान चलाने वाले चौंतीस वर्षीय धनेश्वर दास लगातार सात दिनों तक अपनी दुकान नहीं खोल पाए। उनकी गली के अधिकांश हिस्से में बाढ़ का पानी भर गया था। दास ने अपना सामान बेचने और अत्यधिक बारिश की घटना के दौरान दो जून की रोटी का बंदोबस्त करने के लिए एक नया तरीका अपनाया। उन्होंने बांस और केले के तने की मदद से एक बेड़ा बनाया और पैकेज्ड मिनरल वाटर की बोतलें, मोमबत्तियां, माचिस और सुपारी जैसी वस्तुओं को बेचना शुरू किया। वह कहते हैं, “सिर्फ मैं ही नहीं, कई अन्य लोग हमारी गली में ऐसे अस्थायी राफ्ट लेकर आए थे। कुछ लोग इन राफ्टों पर सब्जियां बेच रहे थे, जबकि कुछ लोग इनका इस्तेमाल बाढ़ वाली गलियों में आने-जाने के लिए कर रहे थे

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13 जून को शहर में भारी बारिश हुई थी और एक हफ्ते की लगातार बारिश के बाद गुवाहाटी का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया था। जैसे ही रुक्मिणी नगर और हाथी गांव जैसे क्षेत्रों में नावें देखी गईं, नेटिज़न्स ने शहर को “वेनिस” कह कर मजाक उड़ाना शुरू किया। 19 जून को जब मोंगाबे-इंडिया ने रुक्मिणी नगर का दौरा किया, तो अधिकांश क्षेत्र में कमर तक या घुटने तक पानी था। रुक्मिणी नगर निवासी अनूप डेका ने कहा कि पहले इस क्षेत्र में अचानक बाढ़ आती थी लेकिन इतने लंबे समय तक इलाके में बाढ़ का पानी कभी नहीं रहा। डेका, जो पेशे से एक ऑटो ड्राइवर हैं, ने कहा, “मैं सात दिनों तक अपनी गाड़ी नहीं निकाल सका। पानी मेरे बिस्तर पर पहुंच गया था। इस वजह से मुझे अपने परिवार को सुरक्षित स्थान पर भेजना पड़ा।”

पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े शहर गुवाहाटी के लिए अचानक बाढ़ कोई नई बात नहीं है। हालांकि, इस साल की बाढ़ ने भारी तबाही मचाई। बारिश की वजह से शहर के आसपास की कई पहाड़ियों में भीषण भूस्खलन हुआ। ऐसे ही एक भूस्खलन में बोरागांव में एक हादसे में चार मजदूर अपने अस्थायी आवास के मलबे में दब गए। घटना 13 जून की रात की है। शिवम सरकार ने उस घटना को बताते हुए मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “हमने रात में एक तेज आवाज सुनी और बाहर आए और देखा कि हमारे कमरे पर मिट्टी के बड़े-बड़े टुकड़े गिर रहे हैं। अगले दिन, डिप्टी कमिश्नर ने हमें दूसरी जगह शिफ्ट होने के लिए कहा। अब हमने कहीं और किराए का घर ले लिया है।”

गुवाहाटी के आसपास कुछ पहाड़ियों में भूस्खलन से कई लोगों के घर टूट गया।

गुवाहाटी में एक राफ्ट पर स्थित दुकान। असम में देश के कुल बाढ़ संभावित क्षेत्र का 9.40 प्रतिशत हिस्सा है। तस्वीर- नबरुन गुहा
गुवाहाटी में एक राफ्ट पर स्थित दुकान। असम में देश के कुल बाढ़ संभावित क्षेत्र का 9.40 प्रतिशत हिस्सा है। तस्वीर- नबरुन गुहा

गुवाहाटी मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीएमडीए) के तकनीकी सलाहकार इंजीनियर जेएन खटनेयर ने कहा कि अनियंत्रित निर्माण गतिविधियों के साथ लोगों की जनसंख्या में भारी वृद्धि से गुवाहाटी का अनियोजित विकास हुआ है। इसकी वजह से ऐसी आपदा देखने को मिल रही है। 

“गुवाहाटी में हाल में आई  बाढ़,  मानव जनित हैं। पहाड़ी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अनाधिकृत मानव बसावट हो रहे हैं और बेतरतीब ढंग से वनों की कटाई हो रही है, जिसने भी शहर में बाढ़ की स्थिति को बढ़ाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है,” उन्होंने कहा।

सिलचर भी जलमग्न

गुवाहाटी के बाद असम का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर सिलचर में हर तरफ बाढ़ का पानी दिखता है। मानो यह शहर एक आपदा वाली फिल्म के सेट जैसा हो। इसका 80% से अधिक क्षेत्र पिछले सप्ताह से जलमग्न है। गुवाहाटी की तरह,  सिलचर के निवासी भी भारी वर्षा के कारण अचानक आई बाढ़ से दोचार हो रहे हैं।

21 जून को जब जलस्तर बढ़ना शुरू हुआ तो सिलचर में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि आगे ऐसी स्थिति हो जाएगी। 22 जून को लगभग पूरा शहर जलमग्न हो गया था। मणिपुर और मिजोरम जैसे पड़ोसी पहाड़ी राज्यों के बारिश के पानी ने बाढ़ में इजाफा कियाबराक नदी पर बेथुकंडी बांध के टूटने से शहर की स्थिति और खराब हो गई। 

“मेरे पिता को ब्लड प्रेशर की शिकायत है। उन्हें रोज इसकी दवाई खानी होती है। उनकी एक दवा का स्टॉक समाप्त हो गया, और इसे खरीदने में हमें काफी मशक्कत करनी पड़ी। हमारे घर से मुश्किल से 200-300 मीटर की दूरी पर कोई फार्मेसी है, लेकिन उस दिन आस-पास कोई फार्मेसी नहीं खुली थी। मेरे भाई को दवा लाने के लिए पांच से छह किलोमीटर छाती तक पानी से होकर जाना पड़ा,नीलोत्पल भट्टाचार्जी ने बताया। उनका परिवार सिलचर में एक गंभीर रूप से बाढ़ प्रभावित इलाका कनकपुर में रहता है। 

चौंतीस वर्षीय भट्टाचार्जी अपने घर से दूर तेजपुर में पत्रकारिता करते हैं। उन्हें अपने घर की चिंता हमेशा सताती रहती है। सिलचर के निवासियों ने समय रहते कार्रवाई न करने की वजह से सरकार से सवाल किया है।

गुवाहाटी के बोरागांव में भूस्खलन से चार लोगों की मौत हो गई। तस्वीर- नबरुन गुहा
गुवाहाटी के बोरागांव में भूस्खलन से चार लोगों की मौत हो गई। तस्वीर- नबरुन गुहा

“जानकारी होने के बावजूद, सरकार ने उस तटबंध की मरम्मत नहीं की,” कृष्ण भट्टाचार्जी ने कहा, जो सिलचर चैप्टर ऑफ इंडिया मार्च फॉर साइंस के संयोजक भी हैं। उन्होंने आगे कहा कि सिलचर के पास महिषा बील और मालिनी बील जैसे वेटलैंड को अतिक्रमण से मुक्त करना चाहिए। 1996 में स्थापित बराक घाटी में प्रमुख कैंसर अस्पताल कछार कैंसर केंद्र को भी एक बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा। इस परिसर और अस्पताल की इमारत के कुछ हिस्सों में जलभराव हो गया था।

मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए अस्पताल के संस्थापक और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी कल्याण चक्रवर्ती ने बताया, “अस्पताल के प्रवेश द्वार पर पानी भर गया है, इसलिए हम मरीजों को अस्थायी राफ्ट पर ले जा रहे हैं। फिलहाल 200 स्टाफ के साथ 140 मरीज अस्पताल में भर्ती हैं। आपूर्ति में हमारी मदद करने के लिए, हमलोग प्रशासन और नागरिक समाज के आभारी हैं।”

गुवाहाटी के अनिल नगर में बाढ़ में एक सड़क का दृश्य। तस्वीर- नबरुन गुहा
गुवाहाटी के अनिल नगर में बाढ़ में एक सड़क का दृश्य। तस्वीर- नबरुन गुहा

एनडीआरएफ की पहली बटालियन के कमांडेंट एचपी एस कंडारी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि शहर की बड़ी आबादी के साथ बाढ़ की भयावहता सिलचर में आपदा के बाद कार्रवाई के प्रयासों को विफल कर दिया। “असम में हमारी 22 इकाइयां हैं, जिनमें से नौ सिलचर में हैं। कुछ इलाकों में पानी का बहाव बहुत तेज है। अपने उपकरणों का रखरखाव करना कभी-कभी मुश्किल होता है क्योंकि जब हम अपनी नाव को इन पानी में चलाते हैं तो हमें पता नहीं होता कि नीचे क्या है। इसलिए, कभी-कभी हमारी नावें पंक्चर हो जाती हैं। इस तरह के नुकसान की मरम्मत के लिए हमारे पास मोबाइल वर्कशॉप हैं, हालांकि इतने कम समय में हर जगह मोबाइल वर्कशॉप भेजना हमेशा संभव नहीं होता है। हम इस स्थिति में बिना आराम किए काम कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हम मदद की ज़रूरत वाले सभी लोगों तक पहुंच सकें।”

ग्रामीण असम की कोई सुध नहीं ले रहा

सड़क के एक हिस्से पर छोटे-छोटे टेंट लगे हुए हैं। यह सड़क नागांव जिले के राहा को जखलाबंधा से जोड़ता हैइन टेंटों में पोडुमोनी और काकाती गांव के निवासियों ने अस्थाई ठिकाना बनाया है। पोदुमोनी से आए हाफिजुद्दीन पिछले दस दिनों से अपने दस लोगों के परिवार के साथ एक छोटे से तंबू में रह रहे हैं। उन्होंने इतना विनाशकारी बाढ़ पहले कभी नहीं देखा था। वह कहते हैं कि यह बाढ़ साल 2004 में आए बाढ़ से भी भीषण है। 


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गांव के निवासियों का कहना है कि तीन बांधों- उमरंगशु, कार्बी लोंगपी और खेंडोंग से पानी छोड़े जाने के कारण उनके घर जलमग्न हो गए थे। बाढ़ के बाद न सिर्फ गांव के निवासी बल्कि कई सरकारी अधिकारी भी घर नहीं लौट पा रहे हैं।

राहा अंचल कार्यालय में बाढ़ अधिकारी परिष्मिता सैकिया पिछले 15 दिनों से अपने कार्यालय में रह रही हैं। “मेरा घर राहा से 7-8 किमी दूर है। मैंने सुना है कि मेरे घर में भी पानी घुस गया है, लेकिन मैं अपने माता-पिता को देखने नहीं जा सकी। मुझे रात के तीन बजे तक रुकना पड़ता है क्योंकि राहत कार्य से जुड़ी बहुत सारी कागजी कार्रवाई है। पास में एक सहकर्मी का घर है जहां मैं जाती हूं,सैकिया ने कहा।

एनडीआरएफ को सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से कुछ में राहत भेजने का काम सौंपा गया है। मोंगाबे-इंडिया की मुलाकात राहा में एक ऐसी ही एक टीम से हुई। टीम का नेतृत्व कर रहे इंस्पेक्टर मिलन ज्योति हजारिका ने कहा कि वह बाढ़ के लिए कुख्यात लखीमपुर के रहने वाले हैं, लेकिन इस साल उन्होंने जो घटना देखी,  ऐसी तीव्रता पहले कभी नहीं देखी। हजारिका ने कहा, “चपोर्मुख में हमने उन लोगों को बचाया जिनके घर पूरी तरह से जलमग्न हो गए थे और किसी तरह उन्होंने छत पर शरण ली थी।”

द्वारबंद में बाढ़ के बाद एक घर जीर्ण-शीर्ण हो गया। तस्वीर- धर्मेंद्र तिवारी
द्वारबंद में बाढ़ के बाद एक घर जीर्ण-शीर्ण हो गया। तस्वीर- धर्मेंद्र तिवारी

बारपेटा जिले के चरस नदी के द्वीपों पर नाव क्लीनिक चलाने वाले सोफीकुल इस्लाम ने कहा कि निचले असम में, तबाही मुख्य रूप से ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों जैसे जियाभरली और पगलाडिया की वजह से आई है। उन्होंने बाढ़ का पानी कम होने पर बाढ़ पीड़ितों को प्रभावित करने वाली जलजनित बीमारियों पर भी चिंता व्यक्त की।

तटबंधों का निर्माण करके क्षेत्र में बाढ़ प्रबंधन के प्रति सरकार के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए, स्वतंत्र शोधकर्ता मिर्जा जुल्फिकुर रहमान ने कहा, “इस क्षेत्र में बाढ़ प्रबंधन का मतलब तटबंधों का निर्माण करना है जो ठेकेदारों के फायदे के अलावा और कुछ नहीं है। 1950 के भूकंप के बाद से, हम बाढ़ के मैदानों को ठीक से मैप किए बिना तटबंध और बांध का निर्माण कर रहे हैं। यहां तक ​​कि कोपिली, रोंगानोडी और उमरंगशु जैसे छोटे बांध भी भारी तबाही मचा सकते हैं।

“यदि आप नदी के तल से एक भी शिलाखंड हटाते हैं, तो इसका प्रभाव पड़ेगा। ये शिलाखंड एक तरह से रक्षक का काम करते हैं और इनकी अनुपस्थिति में बाढ़ का पानी बहुत अधिक तीव्रता से आ जाएगा। हम जमीनी स्तर पर जो हस्तक्षेप कर रहे हैं, उससे भयावह घटनाएं हो सकती हैं। पूरा पूर्वोत्तर भारत ताश के पत्तों से बने महल की तरह है जो ढहने को तैयार है। यह सरकार जिस तरह से जलवायु परिवर्तन को लेकर कार्रवाई करती है, उससे पता चलता है कि वे इस मुद्दे को स्वीकार करने के लिए उत्सुक भी नहीं हैं,” रहमान ने कहा।

राहा में बाढ़ राहत शिविर। तस्वीर- नबरुन गुहा
राहा में बाढ़ राहत शिविर। तस्वीर- नबरुन गुहा

असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) की बाढ़ से निपटने के लिए जलवायु-लचीला या जलवायु परिवर्तन का खतरा झेल सकते वाले गांवों को विकसित करने की योजना है। इस पर विस्तार से बताते हुए एएसडीएमए के परियोजना अधिकारी मंदिरा बुरागोहेन ने कहा, “हम असम में जलवायु-लचीला गांवों के साथ आने की योजना बना रहे हैं, जिसमें एक ऊंचा स्थान, एक ऊंचे स्थान पर बने हैंडपंप, सामुदायिक गौशालाएं होंगी। हम महिलाओं और युवाओं को बाढ़ से बचने के लिए सक्षम भी बनाएंगे। हम बिहपुरिया, माजुली और बारपेटा में बाढ़ आश्रय स्थल स्थापित करेंगे जहां लगभग 500 लोग शरण ले सकते हैं।

यह पूछे जाने पर कि क्या इस बार चुनौतियां अधिक हैं, उन्होंने कहा, “2020 भी बहुत चुनौतीपूर्ण था क्योंकि बाढ़ के साथ-साथ एक भयंकर महामारी भी थी। हालांकि, इस साल बाढ़ अधिक तीव्र है।”

 

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बैनर तस्वीरः सिलचर का करीब 80 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो गया। तस्वीर- सुभदीप दत्ता 

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