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ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस के नए नियमों से आसान हुआ बिजली उपभोक्ताओं के लिए स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल

तेलंगाना के हैदराबाद शहर के एमजी रोड के बस स्टैंड के छत पर लगा सोलर पैनल। तस्वीर-मनीष कुमार

  • भारत के ऊर्जा मंत्रालय ने हाल ही में ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस से संबंधित कुछ नए नियम लोगों से साझा किया। इसका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा का विस्तार करना और इस क्षेत्र से जुड़ी बाधाओं को कम करना है।
  • इन नियमों के अनुसार कोई भी बिजली उपभोक्ता जो 100 किलोवाट या उससे अधिक बिजली का प्रयोग एक महीने में करता है वो ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस का फायदा उठा सकता है। इससे पहले ओपन एक्सेस से सेवा लेने के लिए न्यूनतम सीमा एक मेगावाट थी।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि इन नियमों से छोटे, मध्यम और लघु उद्योग के उपभोक्ताओं को सहायता मिलेगी। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया को सफल बनाने में बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) और राज्यों की विशेष भागीदारी होगी।

भारत के ऊर्जा मंत्रालय ने हाल ही में नवीन ऊर्जा के ओपन एक्सेस से संबंधित नियम को अधिसूचित किया है। इस ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस नियम, 2022 का उद्देश्य नवीन ऊर्जा के उत्पादन, खरीद और खपत को प्रोत्साहन देने का है।

इन नियमों के अनुसार कोई भीउपभोक्ता, (जिनकी मांग या मीटर लोड 100 किलोवाट या उससे अधिक है) अब अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए नवीन ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकता है। वह उपभोक्ता अपने पसंद के वेंडर से नवीन ऊर्जा खरीद सकता है। अब ऐसे सभी उपभोक्ता ओपन एक्सेस के माध्यम से खुले बाज़ार में मौजूद कंपनियों में से किसी भी कंपनी को अपने जरूरतों के हिसाब से चुन सकते हैं। वो ऐसे किसी भी वेंडर को चुन सकते हैं जो सबसे सस्ती बिजली दे रहा हो या जिनकी सेवा अच्छी हो। यह उस प्रक्रिया से बिल्कुल अलग है जो छोटे घरेलू उपभोक्ता अपने बिजली की जरूरतों के लिए प्रयोग करते हैं जहां उस इलाकें में बिजली वितरण कंपनी से ही बिजली खरीदना होता है जिनका वहां एकाधिकार होता है। चाहे वह सरकारी बिजली कंपनी हो या निजी।

इसके पहले ऊर्जा मंत्रालय ने पिछले साल,अगस्त के महीने में, एक ड्राफ्ट नियम बनाया था और लोगों से इस पर अपनी प्रतिक्रिया या सुझाव देने को कहा था। सार्वजनिक प्रतिक्रिया और सुझाव के बाद ऊर्जा मंत्रालय ने इस साल जून 6 को ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस नियम, 2022 को अधिसूचित किया। ओपन एक्सेस की परिभाषा और प्रावधान लगभग दो दशक पहले बिजली कानून 2003 में दी गई थी। 2003 के कानून के तहत कोई भी उपभोक्ता जिसकी बिजली की मांग 1 मेगावाट या उससे अधिक है वो ओपन एक्सेस के माध्यम से अपने पसंद के कंपनी से बिजली खरीद सकता है। हालांकि 2003 में ओपन एक्सेस के नियम आम बिजली को लेकर थी पर 2022 में आया नियम खास तौर से नवीन ऊर्जा के लिए बनाए गए हैं।

2022 के ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस के नियमों के अनुसार ग्रीन एनर्जी से तात्पर्य आमतौर पर नवीकरणीय ऊर्जा से है जिसमे हाइड्रोपावर और संचय (अगर संचय में नवीन ऊर्जा का प्रयोग किया गया है) भी शामिल हैं। इन नियमों ने कचरे से बने ऊर्जा, ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया को भी ग्रीन एनर्जी की परिभाषा में शामिल किया है।

पहले नवीन ऊर्जा को ओपन एक्सेस के माध्यम से खरीदने के लिए न्यूनतम सीमा 1 मेगावाट थी। अब इन नियमों के माध्यम से इस सीमा को बढ़ाकर 100 किलोवाट तक कर दी गई है। यह उनके लिए है जो अपने ऊर्जा की जरूरतों को नवीन ऊर्जा से पूरा करना चाहते हैं। माना जा रहा है कि अब छोटे और माध्यम वर्ग की औद्योगिक इकाइयां और संस्थाएं भी इन नए मापदंड के कारण ओपन एक्सेस से नवीन ऊर्जा खरीद सकेंगी।

“इन नियमों का उद्देश्य जीवाश्म ईंधन से बने ऊर्जा को समय के साथ कम करना और नवीन ऊर्जा को प्रोत्साहन देने का है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग नवीन ऊर्जा  की ओर रुख करे,” भुवनेश्वर मे रह रहे आनंद महापात्रा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। महापात्रा एक ऊर्जा विश्लेषक हैं जो पहले राज्य के विद्युत नियामक आयोग में काम कर चुके हैं।

पावागढ़ सोलर पार्क से बनी बिजली को आगे पहुंचाने के लिए सड़क किनारे बिजली लाइन। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे
पावागढ़ सोलर पार्क से बनी बिजली को आगे पहुंचाने के लिए सड़क किनारे बिजली लाइन। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे

महापात्रा यह भी कहते हैं, “इन नियमों द्वारा सरकार नवीन ऊर्जा के उत्पादन, व्यापार, वितरण और खपत को देश के सभी हिस्से में पहुंचाने की कोशिश करती दिख रही है। अब स्वच्छ ऊर्जा को देश के एक भाग से दूसरे भाग में ले जाना संभव हो पाएगा।” हालांकि महापात्रा मानते हैं कि यह करना आसान भी नहीं होगा।

स्वच्छ ऊर्जा अपनाने पर आने वाला खर्च तय 

ग्रीन एनर्जी के ओपन एक्सेस के नियमों के अंतर्गत किसी भी उपभोक्ता को ओपन एक्सेस को अपनाने पर लगने वाला शुल्क निर्धारित किया गया है ताकि इन शुल्कों के अलावा कोई और भुगतान उपभोक्ताओं को ना करना पड़े। तय किए गए शुल्कों में-बिजली वितरण शुल्क, क्रॉस सब्सिडी, व्हीलिंग शुल्क, स्टैंडबाइ शुल्क शामिल है। इसके अलावा और कोई शुल्क नहीं लगाया जाएगा। इन नियमों में लिखा है कि अगर ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया को बनाने में इस्तेमाल ऊर्जा अगर नवीन ऊर्जा हो तो क्रॉस सब्सिडी भी माफ कर दी जाएगी।

इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ कहते हैं कि सहायता राशि और क्रॉस सब्सिडी की लिमिट तय करना एक अच्छा कदम है जो नवीन ऊर्जा को अपनाने के रास्ते में आने वाली अड़चनों को दूर कर सकता है।

“इन नियमों में यह अच्छी बात है कि क्रॉस सब्सिडी की सीमा तय की गई है। अतिरिक्त सरचार्ज को भी खत्म कर दिया गया है। यह कदम लोगों को वित्तीय सहायता देने और नवीन ऊर्जा के क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं को कम करने में मदद करने वाला है। इन नियमों के कारण आवेदनों को समय से निपटाया जा सकेगा जो इस क्षेत्र में निवेश को भी बढ़ावा दे सकता है। अब हम यह अपेक्षा कर सकते हैं कि आवेदन प्रक्रिया पूरे देश में एक तरह की हो और उससे जुड़ी समय समय सीमा भी समान हो,” डेबनजाना चौधुरी, पावरफॉर ऑल की निदेशक (भारत) ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल एनर्जी पॉलिसी (आईएसईपी) में प्रोग्राम मैनेजर वगिशा नन्दन ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि लघु, मध्यम और छोटे उद्योगों को इन नियमों से लाभ मिल सकता है। नन्दन कहती हैं कि यह नियम सिर्फ अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने वाले (कैप्टिव) उपभोक्ताओं और बड़े उपभोक्ताओं के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं। “इन नियमों के आने से लघु, मध्यम और छोटे उद्योगों को ओपन एक्सेस के माध्यम से नवीन ऊर्जा लेना आसान हो जाएगा। पहले 1 मेगावाट की न्यूनतम क्षमता की शर्त के कारण बहुत से ऐसे उद्योग इससे वंचित रह जाते थे। अब वो कोयले से चलने वाले बिजली को छोड़ के स्वच्छ ऊर्जा की ओर रुख कर सकते हैं। इन नियमों में ग्रीन हाइड्रोजन ओर ग्रीन अमोनिया से बने बिजली की खरीद पर भी ज़ोर दिया गया है जिससे बिजली वितरण कंपनियों की नवीकरणीय ऊर्जा खरीद बाध्यता (आरपीओ) भी पूरा करना आसान हो जाएगा। इससे अन्य क्षेत्र जैसे इस्पात निर्माण इत्यादि में भी नवीन ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा सकेगा। अभी तक इन क्षेत्रों में नवीन ऊर्जा को प्रोत्साहित करना एक चुनौतीपूर्ण काम रहा है,” नन्दन ने बताया।

डिस्कॉम के लिए चुनौतियां

आने वाले समय से जैसे जैसे योग्य बिजली उपभोक्ता ओपन एक्सेस के माध्यम से ग्रीन एनर्जी की ओर मुड़ेंगे, स्थानीय बिजली वितरण कंपनियों के लिए यह चुनौती बन सकती है क्योंकि उनके बहुत से उपभोक्ता उनका साथ छोड़ सकते हैं। । दीपक कृष्णन, डबल्यूआरआई इंडिया में एसोशिएट निदेशक (ऊर्जा) है। उन्होने मोंगाबे-हिन्दी को बताया की डिस्कॉम इन नियमों का विरोध कर सकते हैं। कृष्णन बताते हैं कि छोटे घरेलू बिजली उपभोक्ताओं के लिए यह नियम ज्यादा काम के नहीं है क्योंकि ओपन एक्सेस से नवीन ऊर्जा लेने के लिए कम से काम 100 मेगावाट तक का मासिक मीटर लोड होना आवशक है जबकि घरों मे अक्सर सिर्फ 3 किलोवाट से 5 किलोवाट तक का ही मीटर लोड स्वीकृत रहता है।

“डिस्कॉम इन नियमों का विरोध करें, यह स्वाभाविक है। यह वैसा ही विषय है जब 2003 में 1 मेगावाट से अधिक क्षमता वाले बिजली उपभोक्ताओं के ओपन एक्सेस की सुविधा पहले मुहैया कराई गए थी। हालांकि डिस्कॉम और राज्यों के लिए यह एक सुनहरा मौका भी है जिसके माध्यम से इस क्षेत्र में किया जा सके और अपने उपभोक्ताओं को भी बनाए रखना संभव हो पाये जो इनके द्वारा ग्रीन एनर्जी टैरिफ देकर किया जा सकता है। ऐसे टैरिफ फिलहाल कुछ अधिक शुल्क में मिलते है और इनके प्रति प्रतिक्रिया मिली जुली हैं। डिस्कॉम की किस्मत खुद उनके हाथों में है,” कृष्णन ने बताया।

सोमित दासगुप्ता इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईईआर) में वरिष्ठ विजिटिंग फैलो हैं। उन्होने बताया कि ओपन एक्सेस सफल तभी हो सकता है जब बिजली वितरण का ढांचा मजबूत हो। उनका कहना है कि अगर राज्यों में बिजली वितरण की समुचित क्षमता नहीं होगी तो ओपन एक्सेस सफल नहीं हो पाएगा। अतः राज्यों को भी इस क्षेत्र में सहयोग करना जरूरी होगा। इन राज्यों के पास इसे रोकने के भी अधिकार है जैसे पहले भी देखा जा चुका है। “इन नए नियमों से स्वच्छ ऊर्जा की मांग बढ़ेगी। लेकिन अगर बड़े और मध्यम  बिजली उपभोक्ता ओपन एक्सेस को अपनाते हैं है तो डिस्कॉम पर वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा। ऐसे स्थिति में वो फिर निजी घरेलू और कृषि के बिजली कनैक्शन पर निर्भर होंगे जो ऐसे ही बिजली उत्पाद की सेवाओं से कम भुगतान करते है। अतः उनका वित्तीय स्वास्थ्य बिगड़ेगा। निजी कंपनाइयां भी वैसे जगहों पर निवेश करना नहीं चाहती हैं जहां डिस्कॉम का वित्तीय स्वस्थ्य अच्छा न हो। अधिकतर राज्यों में डिस्कॉम नुकसान में चल रहे हैं,” दासगुप्ता ने बताया।

पवन चक्की से कुछ दूर जलावन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करता एक किसान। नेट जीरो को लेकर भारत की महत्वाकांक्षी योजना को लेकर जानकारों की राय है कि वर्तमान स्थिति में भारत की नीति निर्माण में भारी विरोधाभास है। तस्वीर- वेस्तास/याहू/फ्लिकर
पवन चक्की से कुछ दूर जलावन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करता एक किसान। नेट जीरो को लेकर भारत की महत्वाकांक्षी योजना को लेकर जानकारों की राय है कि वर्तमान स्थिति में भारत की नीति निर्माण में भारी विरोधाभास है। तस्वीर- वेस्तास/याहू/फ्लिकर

अमरीकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने हाल ही में बताया कि सरकारी डिस्कॉम की खस्ता हाल के कारण भारत के नवीन ऊर्जा के विकास में बाधाएं आ रही हैं और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में लगने वाला खर्च भी बढ़ रहा है।

नवीकरणीय ऊर्जा खरीद बाध्यता (आरपीओ) का हाल  

ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस 2022 के नियम देश में एक तरफ नवीकरणीय ऊर्जा खरीद बाध्यता (आरपीओ) की वकालत भी करते हैं।। नवीकरणीय ऊर्जा खरीद बाध्यता (आरपीओ) से हमारा तात्पर्य सरकार के एक ऐसी बाध्यता से है जहां  बिजली वितरण कंपनियों को अपनी बिजली की जरूरतों का कुछ अंश नवीन ऊर्जा की खरीद से करना होता है। हालांकि पिछले कुछ दशकों में हमने देखा है कि कई राज्यों में इसका पालन ठीक से नहीं होता है।

दासगुप्ता कहते है कि आरपीओ के नियमों का ठीक से पालन इस लिए भी नहीं किया गया क्योंकि राज्यों के विद्युत नियामक आयोगों ने इसे कड़ाई से लागू नहीं कराया। हालांकि अब जब भारत सरकार बिजली संशोधन बिल 2021 लेकर  आने वाली है जहां ऐसे स्थिति में मोटी फ़ाइन देने पड़ेगी तब शायद स्थिति सुधरे। इस ड्राफ्ट बिल के अनुसार आरपीओ का उलंघन करने पर मोटी फ़ाइन लगाई जाएगी।

आरपीओ के उलंघन की रिपोर्ट बहुत से राज्यों से आती है जैसे कि झारखंड। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ओपन एक्सेस के नए नियमों से भी आरपीओ का पालन करने में मदद मिल सकती है।

बैनर तस्वीर- तेलंगाना के हैदराबाद शहर के एमजी रोड के बस स्टैंड के छत पर लगा सोलर पैनल। तस्वीर-मनीष कुमार

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