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मैंटिस्पिड्स: जालीदार पंखों वाले कीड़े का एक परिचय

अधिकांश मैंटिस्पिड्स छोटे होते हैं। इनकी लंबाई तकरीबन 15 मिमी से भी कम होती है। तस्वीर- एंडी रीगो और क्रिसी मैकक्लेरेन/विकिमीडिया कॉमन्स

अधिकांश मैंटिस्पिड्स छोटे होते हैं। इनकी लंबाई तकरीबन 15 मिमी से भी कम होती है। तस्वीर- एंडी रीगो और क्रिसी मैकक्लेरेन/विकिमीडिया कॉमन्स

  • मैंटिस्पिड्स, न्यूरोप्टेरा वर्ग से संबंधित कीड़े हैं। अभी तक मैंटिस्पिड्स परिवार की 410 प्रजातियां को खोजा जा चुका है।
  • अपने खास तरह के जीवन इतिहास व विभिन्नता प्रदर्शित करने के बावजूद, इनका अध्ययन व्यापक रूप से नहीं किया गया है।
  • मैंटिस्पिड्स का सबसे दिलचस्प पहलू उनके लार्वा का विकास है। जिसमें इनका लार्वा अन्य कीटों, जैसे दीमक, ततैया, मकड़ियों इत्यादि के शरीर पर परजीवी की तरह रहता है व इनको ही खाकर ये खुद को विकसित करते हैं।
  • कीटों की आबादी को नियंत्रित करने में वयस्क और लार्वा दोनों का योगदान रहता है। इसलिए इस प्रजाति को संरक्षित करना बेहद जरूरी है।

मैंटिस्पिड्स को देखने पर इसके शरीर का आकार ततैया जैसा और पंख ऐसा जैसे फीता बनाने वाला कोई जीव। मांटिसिड्स या मैन्टिडफ्लाइज़ अकशेरुकी वर्ग के कीड़ों पर बहुत कम अध्ययन हुआ है। अध्ययन करने वालों के लिए भी मेंटिसफ्लाई की विविधता और उसका जीवन चक्र एक रहस्य बना हुआ है। 

अधिकांश मैंटिस्पिड्स छोटे होते हैं। इनकी लंबाई तकरीबन 15 मिमी से भी कम होती है।  सबसे बड़े मैंटिस्पिड्स की लंबाई 35 मिमी होती है। इनका शरीर प्रेईंग-मेंटीस से बेहद मिलता-जुलता है। जिसमें लम्बी प्रोथोरैक्स (कीट का वह हिस्सा जहां आगे के पैर जुड़ा होता है) आगे के पैर मुड़े हुए हैं और ये रीढ़ के साथ जुड़े हुए होते हैं। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण उन्हें मैंटिस्पिड्स नाम दिया गया है।

आम तौर पर मैंटिस्पिड्स आर्थ्रोपोड के शिकारी होते हैं, जो कि अन्य कीड़ों को खा कर पौधों पर कीड़ों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद पहुंचाते हैं। प्रेईंग मेंटिस की तरह मैंटिस्पिड्स भी घात लगाने और पीछा करने मे माहिर होते हैं। उनकी यह क्षमता और व्यवहार उनकी देखने की क्षमता और गंध को सूंघने की क्षमता पर निर्भर करता है।  

अलग-अलग विकास और समान विशेषताएं 

प्रेईंग मेंटीस के साथ मैंटिस्पिड्स की संरचनात्मक और व्यवहारिक समानता के कारण, इन दोनों का एक समय में उद्भव हुआ हो, ऐसी संभावना बनती है। सवाल उठता है कि उनमें इतनी समानताएं क्यों हैं? दोनों घात लगाने वाले शिकारी हैं और शिकार के लिए अपनी तीक्ष्ण दृष्टि पर भरोसा करते हैं। लेकिन अभी तक इन दोनों के एक साथ समान विकास होने की पुष्टी करने वाले तथ्य नहीं मिले हैं। प्रेईंग मेंटीस, प्रे-मंटोडिया प्रजाति से संबंधित है और मांटिसिड्स न्यूरोप्टेरा वर्ग से (जिसमें जालीदार पंखो वाले कीट और एंटीलियन्स शामिल हैं)। प्रेइंग मेंटिस और मंटिसिड्स के बीच भौतिक समानता शायद अभिसरण विकास का परिणाम है: स्वतंत्र विकासवादी पथ ही वह कारक है जिसके परिणामस्वरूप असंबंधित प्रजातियों में समान विशेषताएं होती हैं।

कुछ मेंटिसपिड्स (उप-परिवार मेंटिसपिनाई से संबंधित) जो ततैया की नकल करते हैं। यह बेट्सियन मिमिक्री या जैविक समानता का एक उदाहरण है। जहां एक हानिरहित जीव (मिमिक) एक जहरीली या खतरनाक प्रजाति जैसा दिखने लगता है। जिसे “मॉडल” कहा जाता है। यह शिकारियों को बेवकूफ बनाता है – वे केवल मॉडल के रूप की नकल करते हैं जिससे शिकारी भ्रमित हो जाते हैं। कुछ मैन्टिस्पिड, ततैया के परिवार की नकल करते हैं, जबकि कुछ को स्पिसीड और यूमेनिड वर्ग की नकल करने के लिए भी जाना जाता है।

ट्यूबरोनोथा स्ट्रेनुआ। तस्वीर- गीता अय्यर
ट्यूबरोनोथा स्ट्रेनुआ। तस्वीर- गीता अय्यर

कई लोग मानते हैं कि मेंटिसपिड्स बहुत कम जगहों पर पाये जाते हैं। लेकिन शायद यह सच नहीं है। अपने छोटे आकार के कारण, उन्हें शायद अनदेखा किया जाता है या वे नजरों से ओझल रहते हैं। लेकिन यह सच बात है कि उनके लार्वा को उनके जीवन चक्र के अध्ययन करने के लिए ढूंढना काफी मुश्किल है।

मैंटिस्पिड्स का वर्गीकरण

मेंटिडीफ्लाई क्न्यूरोप्टेरा वर्ग, प्लैनिपेनिया उपवर्ग, तीन परिवारों के साथ सुपर फैमिली मेंटिसपोडिया, अर्थात् मेंटिसपिडे (जालीदार पंखों वाले मेंटिसपिड), राचीबेरोथिडे (कांटेदार व जालीदार पंखों वाले कीट) और बेरोथिडे (दानेदार व जालीदार पंखों वाले कीट) से संबंधित हैं। कुछ पेचीदा और खास किस्म के जीवन इतिहास प्रदर्शित करने के बावजूद, वे बहुत ही कम अध्ययन वाले कीट समूहों में से हैं। इन तीन परिवारों में से, भारत से केवल मैंटिस्पिड्स के सदस्यों की खोज हुई है और उन्हीं का अध्ययन किया गया है। हालांकि मैंटिस्पिड्स का प्रतिनिधित्व तीन उप-परिवारों द्वारा किया जाता है लेकिन भारत से केवल एक उप-परिवार- मेंटिसपिनाई के बारे में ही जानकारी मिलती है।

अभी तक मैंटिस्पिड्स परिवार से लगभग 410 प्रजातियां खोजी जा चुकी हैं। भारत में मैंटिस्पिड्स के  8 वंश के केवल 22 प्रजातियां के बारे में जानकारी हैं। केरल से पांच प्रजातियों के बारे में जानकारी मिली है। वे मैन्टिस्पिला वंश, ट्यूबरोनाथा वंश, मंटिस्पा वंश और यूक्लिमेशिया वंश से संबंधित हैं। इनमें से पश्चिमी घाटों में पाये जाने वाली मैंटिस्पिल्ला इंडिका की जानकारी एक शोधकर्ता टी.बी. सूर्यनारायण व सी. बिजॉय (इरिंजलिकुडा) द्वारा खोजी गई है।  

केरल और तमिलनाडु के पश्चिमी घाट क्षेत्र में मैंटिस्पिड्स के कई और अज्ञात प्रजातियों के होने की संभावना है। लेकिन शोधकर्ताओं और आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण इन प्रजातियों के अध्ययन में अभी काफी रुकावटें हैं।

मकड़ियों का शिकारी

मैंटिस्पिड्स का सबसे दिलचस्प पहलू उनके लार्वा का विकास है। इनके लार्वा के अध्ययन से पता चलता है कि ये मकड़ियों पर रहने वाले बहुत ही अच्छे परजीवी हैं अर्थात इनका विकास मकड़ियों के शरीर पर अच्छे से होता है। ‘मकड़ी-शिकारी’ का तमगा मेंटिसपिनाई के उप-परिवार के सदस्यों के लार्वा जीवन-चक्र के व्यवहार से मिलता है। ये मैंटिस्पिड्स “हाइपरमेटामोर्फोसिस” (उच्चकायांतरण) को प्रदर्शित करते हैं – जहां जीवन चक्र के दौरान एक या अधिक लार्वा के विकास का एक चरण दूसरे चरणों से भिन्न होता है। मैन्टिस्पिना लार्वा मकड़ी के अंडों को खाते हैं और मकड़ी के अंडों में ही विकसित होते हैं!

मादा मैंटिस्पिड्स हजारों रेशेदार अंडे देती है। अंडे के रेशे, फ़ीमेल मैंटिस्पिड्स द्वारा स्रावित लार से बने होते हैं। इन अंडों से निकलने वाले लार्वा, मकड़ी के अंडे की तलाश में, रेशे अलग होने से पहले एक साथ रहते हैं। माना जाता है कि मकड़ी के अंडे का पता लगाने में दृष्टि और सूंघने कि क्षमता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह देखा गया है कि लार्वा दूर से मकड़ी या उसके अंडे की उपस्थिति का पता लगा लेते हैं और उनकी दिशा में आगे बढ़ते हैं।


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मकड़ी के अंडे का पता लगाने के लिए वे दो तरह की रणनीतियां अपनाते हैं। लार्वा अंडे की तलाश में जाते हैं, जिन्हें मकड़ियों ने जमीन पर जमा किया होता है। वे अंडे में रेशमी आवरण के माध्यम से प्रवेश करते हैं। ऐसी प्रजातियां मकड़ी के स्राव से बने रेशम से आकर्षित होती हैं और अंडे में प्रवेश करने के लिए अच्छा माध्यम बनती हैं। अन्य मामलों में, लार्वा उस पर चढ़ने के लिए मकड़ी के नजदीक आने और गुजरने की प्रतीक्षा करते हैं ताकि वे मकड़ी के शरीर से चिपक सकें। इन प्रजातियों में चूसक होता है जिसके साथ वे खुद को रेशमी रेशे से जोड़ते हैं, और जब मकड़ी इनके पास से गुजरती है तो वो लहराते हुए चूसक द्वारा मकड़ी की शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

एक बार मकड़ी पर चिपकने के बाद मैंटिस्पिड्स खुद को मकड़ी के पैरों से जोड़ लेते हैं और धीरे-धीरे मकड़ी के पेडिसल (पेट से मकड़ी के सिर को जोड़ने वाला हिस्सा) के करीब या उसके पास पहुंच जाते हैं। पेडिकेल ही क्यों? क्योंकि मकड़ी किसी अन्य स्थान पर लार्वा के होने से लार्वा को हटा सकती है। पेडिकेल वाले हिस्से में मकड़ी के लिए लार्वा को हटा पाना आसान नहीं होता है।

एक और तथ्य जिसके बारे में लार्वा को सावधान रहना है, वह है मकड़ी का आकार। एक सफल भविष्य के लिए उन्हें एक बड़ी मकड़ी का चयन करना चाहिए, ताकि वे खुद मकड़ी या मकड़ी के बच्चों का भोजन न बनें।

कभी-कभी मकड़ी पर चढ़ने के बाद, मैंटिस्पिड्स उसके फेफडों (श्वास अंग) में प्रवेश कर सकते हैं और हीमोलिम्फ से अपना पोषण प्राप्त कर सकते हैं। अक्सर वे मकड़ी के साथ ही यात्रा करते हैं और अंडे देने की प्रतीक्षा करते हैं। यदि वे एक नर मकड़ी पर सवार होते हैं, तो वे संभोग के दौरान खुद को मादा में स्थानांतरित कर देते हैं और अंडे देने की प्रतीक्षा करते हैं। कुछ विचित्र मामलों में, वे मादा का नरभक्षण करते समय मादा पर भी सवार हो जाते हैं। एक अंडे में एक से अधिक लार्वा प्रवेश कर सकते हैं। ऐसे मामलों में, ‘योग्यतम के जीवित रहने’ का सिद्धांत काम करता है। इससे पहले इंस्टार के मेडीबल्स और मैक्सिला एक साथ फिट होने के लिए एक चूसक संरचना बनती है जिससे वो आसानी से अपना भोजन ग्रहण कर सकें। 

लार्वा दो बार कायांतरित होता है। दूसरा और तीसरा इंस्टार कुछ संरचनाओं को खो देता है। उनके पैर कम हो जाते हैं क्योंकि उन्हें पहले की तरह ज्यादा चलने की जरूरत नहीं होती है। सरल, एकल-लेंस आंखें, जिन्हें पहले चरण में मौजूद स्टेममाटा कहा जाता है, वो भी खो जाती हैं क्योंकि शेष विकास में दृष्टि की कोई भूमिका नहीं होती है। अंतिम इंस्टार वास्तव में बीटल ग्रब की तरह दिखता है। जैसे ही प्यूपा शुरू होता है, यह कोकून के चारों तरफ रेशम का उत्पादन करता है।

ऑस्ट्रोक्लिमासीला एसपी। तस्वीर- गीता अय्यर
ऑस्ट्रोक्लिमासीला एसपी। तस्वीर- गीता अय्यर

मकड़ी के अंडे के भीतर प्यूपेशन होता है। मेंटिसपॉहलरी के साथ प्रयोगशाला में किए गए प्रयोगों की एक श्रृंखला में, वैज्ञानिकों ने वयस्क मंटिसिड के आकार और खपत की गई मकड़ी के अंडों की संख्या के बीच एक संबंध पाया। अध्ययन में ऐसा पाया गया कि पूरी प्रक्रिया के सफल होने के लिए कम से कम तीस मकड़ी के अंडे की आवश्यकता होती है।

मंटिसिड्स के लार्वा उपयुक्त मेजबान का चयन करते समय उच्च स्तर की विशिष्टता प्रदर्शित करते हैं। मैंटिस्पिड्स परिवारों के सदस्य, जिन्हें अभी तक भारत से नहीं खोजा गया है, या अन्यत्र विस्तार से अध्ययन नहीं किया गया है, समान रूप से उल्लेखनीय जीवन इतिहास प्रदर्शित करते हैं। दानेदार जालीदार मैंटिस्पिड्स के लार्वा, जो अभी तक भारत में खोजे गए हैं, दीमक के प्रचंड भक्षक हैं। अफ्रीका के सहारा क्षेत्र में पाए जाने वाले कांटेदार जालीदार मैंटिस्पिड्स के लार्वा के बारे में बहुत कम जानकारी है। स्व्यंफरासीने लार्वा कुछ ततैया के ज्ञात परजीवी हैं; वे ततैया के अंडे, लार्वा और प्यूपा पर पोषण करते हैं। कुछ तो शिकार से बचने के लिए अपने मेजबानों की नकल भी करते हैं। जबकि सिम्फैसिने के लार्वा ज्यादातर हाइमनोप्टेरा (मधुमक्खियों और चींटियों सहित) के लार्वा से जुड़े पाए जाते हैं। कुछ ऐसे हैं जो कुछ हद तक, लेपिडोप्टेरा (तितलियों और पतंगे), कोलोप्टेरा (बीटल) और कुछ डिप्टेरा के लार्वा से पाए गए हैं।

संभावित पारिस्थितिकी तंत्र

प्रजातियों की सफलता को अधिकतम करने के लिए लार्वा का अनुकूलन महत्वपूर्ण है। एक लार्वा के, भोजन का पता लगाने, शिकार से बचने, दुश्मनों से बचाव करने और दी गई पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता कीट प्रजातियों की जीवित रहने की दर को बढ़ाती है। लार्वा और वयस्क के खाद्य स्रोतों को अलग करने से उनमें भोजन की प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है। मांटिस्पिने द्वारा प्रदर्शित ये सभी विशेषताएं उन्हें पारिस्थितिकी तंत्र में उनके बने रहने के लिए एक उपयोगी उम्मीदवार बनाती हैं।

इस लेख ने मैंटिस्पिड्स जीवन शैली के कुछ ही बिंदुओं को ही बताया गया है। उनके जीवन के और भी कई पहलू हैं, जो जानने लायक हैं। यह बहुत ही रोचक तथ्य है कि वयस्क मैंटिस्पिड्स और मैंटिस्पिड्स का लार्वा दोनों ही कीटों की आबादी पर नियंत्रण रखने का काम करते हैं और उन्हें संरक्षित करने लायक प्रजाति बनाते हैं। वे प्रत्यक्ष रूप से विद्यमान भी हैं और छुपे हुए भी हैं। इस पृथ्वी पर दिन-प्रतिदिन होती विषम परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए उत्तर खोज रहे मनुष्यों के लिए इन रोचक मैंटिस्पिड्स का जीवन एक निमंत्रण भी है और चुनौती भी है।

 

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बैनर तस्वीरः अधिकांश मैंटिस्पिड्स छोटे होते हैं। इनकी लंबाई तकरीबन 15 मिमी से भी कम होती है। तस्वीर– एंडी रीगो और क्रिसी मैकक्लेरेन/विकिमीडिया कॉमन्स

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