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मध्य प्रदेश में इंडस्ट्रीज के छोड़े गए केमिकल से प्रदूषित होती अजनार नदी

सामजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय निवासियों के दावे के अनुसार, अजनार नदी में डाला जा रहा रासायनिक कचरा पानी को प्रदूषित कर रहा है और स्थानीय लोगों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है। तस्वीर- ओंकार सिंह।

सामजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय निवासियों के दावे के अनुसार, अजनार नदी में डाला जा रहा रासायनिक कचरा पानी को प्रदूषित कर रहा है और स्थानीय लोगों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है। तस्वीर- ओंकार सिंह।

  • सामजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि मध्य प्रदेश में कारखानों के औद्योगिक कचरे को कथित तौर पर खेतों के अंदर खाली बोरिंग में डाला जा रहा है।
  • इंदौर जिले के मानपुर कस्बे में नलकूपों (ट्यूबवेल) और नदी का पानी समेत अन्य जल स्रोत भी प्रदूषित हो गए हैं, जिससे 50 गांव प्रभावित हो रहे हैं।
  • कई मवेशियों, जलीय जानवरों और जंगली जानवरों की कथित तौर पर प्रदूषित नदी का पानी पीने से मौत हो गई है, जिसके बाद स्थानीय आदिवासी समुदाय के लोग मुआवजे की मांग कर रहे हैं।

लगभग 50 औद्योगिक इकाइयों के साथ एक विशेष आर्थिक क्षेत्र, पीथमपुर के पास मध्य प्रदेश का मानपुर शहर, जल प्रदूषण का सामना कर रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पीथमपुर का रासायनिक मलबा खुले मैदानों में फेंका जाता है, जो गांव के पास अजनार नदी में जहर घोलने का काम कर रहा है। इससे भूजल और कुओं का पानी संक्रमित हो रहा है। 

मानपुर में अजनार नदी के पास रहने वाले एक किसान बृजेश सिंह ने जहरीले झाग के बारे में बात करते हुए मोंगाबे-इंडिया को बताया, “पानी की सतह पर काला रसायन तैर रहा था, मेरी गाय पानी पीने के बाद मर गई।”  

सिंह के मुताबिक, रासायनिक कचरा अभी भी खुले मैदानों में फेंका जाता है। “हर बार जब बारिश होती है, तो रासायनिक कचरा मेरे खेत में चला जाता है। मैंने पिछले साल रासायनिक पानी के कारण एक फसल खो दी थी। मेरी जमीन अब बंजर हो गई है और मेरी रोजी-रोटी छिन गई है।” उनकी गेहूं की फसल नष्ट हो गई, जिससे उन्हें 25,000 रूपए का नुकसान हुआ।

उन्होंने कहा, “मेरे घर और इस क्षेत्र के अन्य घरों में पानी का स्रोत प्रदूषित हो गया है। पीने का पानी लाने के लिए मेरे परिवार के सदस्य प्रतिदिन एक या दो किलोमीटर पैदल चलते हैं। अगर हम दूर से शुद्ध पानी नहीं लाते हैं तो हम प्रदूषित भूजल पीते हैं। मुझे डर है कि आने वाले वर्षों में क्या होगा।” 

मानपुर शहर इंदौर के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इंदौर  को मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी कहा जाता है।

इंदौर के एक सामजिक कार्यकर्ता महेंद्र सिंह ने ध्यान दिया कि अजनार, करम नदी की एक सहायक नदी है। उन्होंने कहा, “औद्योगिक कंपनियों द्वारा किए गए केमिकल डंप से खरगोन, महेश्वर और धार सहित जिले के 50 गांव बुरी तरह प्रभावित हैं।” स्थानीय कार्यकर्ताओं के अनुसार, इसका मतलब है कि अनुमानित 45,000 से 50,000 लोग प्रदूषित पानी से प्रभावित हैं।

कन्नोज ने जोर देते हुए कहा “कुछ कंपनियां अजनार नदी के पास गड्ढों में अवैध रूप से रासायनिक कचरे को डंप करती हैं। यहां से गंदा पानी न केवल अजनार नदी बल्कि कुओं, नलकूपों और अन्य जल निकायों के साथ मिल जाता है। प्रदूषित पानी के सेवन से आसपास रहने वाले कई मवेशी और अन्य जंगली जानवर मर गए। इसके अलावा, जल निकायों में मछलियों, केकड़ों और जानवरों की भी मौत हो गई।” 

आदिवासी समुदायों का विरोध 

जुलाई 2021 में, जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता और नेता मेधा पाटकर, महेंद्र सिंह कन्नोज व अन्य के साथ आदिवासी समुदायों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मानपुर में अजनार नदी के पास खुले मैदानों में रासायनिक कचरे के अवैध डंपिंग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए आदिवासी समुदाय के लगभग 500 लोगों और 22 सामजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की गई।

कन्नोज ने कहा कि कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन कंपनियां अभी भी रासायनिक कचरे को नदी के पास फेंक रही हैं। 

उन्होंने कहा, “इन क्षेत्रों के किसान सिंचाई के लिए नदियों और भूजल पर निर्भर थे। पानी प्रदूषित होने के बाद उनकी फसलें और सब्जियां नष्ट हो गई हैं और भूमि बंजर हो गई है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में रहने वाले आदिवासी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। यदि उनकी भूमि रासायनिक कचरे के साथ मिलती रही और बंजर हो जाती है, तो उनकी रोजी-रोटी खत्म हो जाएगी।” 

नदी के पानी में भारी धातु के अंश 

पिछले साल अजनार नदी के पानी के परीक्षण के दौरान पानी में भारी मात्रा में धातुएं पाई गई।

इंदौर के एक त्वचा विशेषज्ञ भावेश स्वर्णकार ने कहा कि आर्सेनिक सहित भारी धातुएं मानव त्वचा के लिए बहुत हानिकारक हैं। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “भारी धातुएं त्वचा पर चकत्ते, छाले और विभिन्न प्रकार की एलर्जी दे सकती हैं। लंबे समय में, वे त्वचा के कैंसर का कारण बन सकती हैं।” 

मगध विश्वविद्यालय, बिहार के रिसर्च स्कॉलर संतान कुमार के शोध से पता चलता है कि मानपुर ब्लॉक में 10,000 से अधिक परित्यक्त खतरनाक अपशिष्ट स्थल हो सकते हैं, जिसकी संख्या बढ़ती जा रही है। रिसाव के मामले में खतरनाक सामग्री के कंटेनरों से खतरनाक कचरा वाले स्थलों पर भूजल प्रदूषित हो सकता है।

मध्य प्रदेश के मानपुर शहर में लगभग 50 औद्योगिक इकाइयों के साथ एक विशेष आर्थिक क्षेत्र, पीथमपुर के पास ट्यूबवेल से निकलने वाला पानी भी दूषित है।
मध्य प्रदेश के मानपुर शहर में लगभग 50 औद्योगिक इकाइयों के साथ एक विशेष आर्थिक क्षेत्र, पीथमपुर के पास ट्यूबवेल से निकलने वाला पानी भी दूषित है। तस्वीर- ओंकार सिंह

पिछले साल पर्यटकों ने शिकायत की थी कि इंदौर जिले के मानपुर से सटे पर्यटन स्थल और ट्रेकिंग स्पॉट जोगी भदक जलप्रपात में अजनार नदी से प्रदूषित पानी बह रहा है। कुछ ग्रामीणों ने इसमें नहाने के बाद संक्रमण की शिकायत भी की।

इंदौर के पड़ोसी जिले धार क्षेत्र से मध्य प्रदेश के विधान सभा के सदस्य हीरालाल अलावा ने जून 2021 में मध्य प्रदेश के पर्यावरण विभाग को पत्र लिखकर अजनार नदी में रासायनिक कचरे के डंपिंग की जांच की मांग की। पर्यावरण विभाग ने उन्हें जवाब दिया और माना कि कई गड्ढों में दूषित पानी मिला है जो आगे अजनार और करम नदियों में मिल जाता है। 

प्रदूषण बोर्ड ने मानपुर पुलिस को रासायनिक कचरे को डंप करने के लिए अपनी जमीन उपलब्ध कराने के लिए दो आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 277, 284 और 234 के तहत मामला दर्ज करने के लिए भी कहा। स्थानीय थाने को आदिवासी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने रासायनिक कचरा डंप करने की सूचना दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। 

धरने के दौरान आदिवासी नेताओं ने थाना प्रभारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। इसके बाद, पुलिस अधिकारियों ने मानपुर थाना प्रभारी हितेंद्र सिंह राठौर को दंड के तौर पर पुलिस लाइन भेज दिया था और उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 267, 264, और 34 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 की धारा 15 के तहत शिकायत दर्ज की गई थी। 

जबलपुर उच्च न्यायालय के एक वकील शशांक तिवारी ने कहा, “नदी में रासायनिक कचरा फेंकने वाले उद्योगों की हालिया घटना मध्य प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) की पूरी तरह से विफलता को दर्शाती है।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि नदी में कचरे का डंपिंग भारत के अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है जो नालियों और जलमार्गों में कचरे को डंप करने पर रोक लगाता है।


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तिवारी ने क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों को मुआवजा देने और प्रदूषण फैलाने वालों पर भारी जुर्माना लगाने के मांग की। 

पटना स्थित एशियाई विकास अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सतह के 70 प्रतिशत जल संसाधन प्रदूषित हैं। प्रतिदिन लगभग 40 मिलियन लीटर प्रदूषित जल नदियों और अन्य जल निकायों में छोड़ा जाता है, और बहुत कम मात्रा में प्रदूषित पानी को ठीक किया जाता है।

जन स्वास्थ्य अभियान के एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ अमूल्य निधि ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “पीथमपुर जैसे कई औद्योगिक क्षेत्रों में इन उद्योगों के खिलाफ जांच करने के लिए सरकारी निगरानी प्रणाली (मोनिटरिंग सिस्टम) नहीं है। इन उद्योगों द्वारा रासायनिक कचरे को लगातार खुले मैदानों में फेंक दिया जाता है, जो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की विफलता को दर्शाता है।”

2001 में स्थापित, जन स्वास्थ्य अभियान (JSA), सामजिक संगठनों और स्वास्थ्य अधिकारों के लिए आंदोलन करने वाले लोगों का एक नेटवर्क है।

अमूल्य निधि ने अपनी मांग रखते हुए कहा, “जहां इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर बन गया है, वहीं यहां से लगभग 25 किलोमीटर दूर आदिवासी लोग रासायनिक रूप से दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। अब समय आ गया है कि सरकार इस क्षेत्र के लोगों को शुद्ध पेय-जल उपलब्ध कराए। साथ ही उन सभी उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जो खुले में रासायनिक कचरा फेंक रहे हैं।”

 

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बैनर तस्वीर: सामजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय निवासियों के दावे के अनुसार, अजनार नदी में डाला जा रहा रासायनिक कचरा पानी को प्रदूषित कर रहा है और स्थानीय लोगों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है। तस्वीर- ओंकार सिंह।

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