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हरियाणा में कुंडली इलाके के लोग दूषित पानी से बेहाल

दूषित भूजल के संपर्क में आने के कारण अपनी त्वचा पर चकत्ते दिखाती महिला। तस्वीर-  सत सिंह/मोंगाबे।

दूषित भूजल के संपर्क में आने के कारण अपनी त्वचा पर चकत्ते दिखाती महिला। तस्वीर-  सत सिंह/मोंगाबे।

  • दिल्ली के बाहरी इलाके में हरियाणा का कुंडली एक प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां पर अनियंत्रित रूप से दूषित पानी को जमीन में डालना उनके स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है।
  • स्थानीय लोग यह शिकायत करते हैं कि दूषित भूजल के कारण उन्हें त्वचा रोगों और पेट संबंधी बीमारियां हो रही हैं। कई लोग अब स्वच्छ पेयजल खरीदने के लिए मजबूर हैं। जबकि वे प्रदूषित भूजल का उपयोग कपड़े धोने जैसे कामों के लिए करते हैं।
  • औद्योगिक कारखानों द्वारा छोड़े गए प्रदूषित जल को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 10 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रति दिन) क्षमता के एक सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्र की आवश्यकता होती है। लेकिन प्लांट की मौजूदा क्षमता केवल चार एमएलडी है। विभिन्न स्थानीय अधिकारियों से बार-बार शिकायत करने के बावजूद क्षेत्र की स्थिति लगातार खराब हो रही है।

हरियाणा के सोनीपत जिले के कुंडली क्षेत्र में औद्योगिक क्षेत्र ने पिछले 40 वर्षों में कई लोगों को रोजी-रोटी दी है। एक गुमनाम गांव से कुंडली एक प्रमुख-औद्योगिक क्षेत्र में बदल गया। लेकिन इसके लिए इस क्षेत्र के लोगों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। अनियंत्रित रूप से उद्योगों के बढ़ने से वायु और जल प्रदूषण बढ़ा है जिससे स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों को सामना करना पड़ रहा है। 

स्थानीय लोगों का आरोप है कि उद्योगों द्वारा भूजल को दूषित किया गया क्योंकि उन पर कोई जांच नहीं हुई। नतीजतन उन्हें स्वच्छ पानी के निजी स्रोतों पर निर्भर होना पड़ रहा है। विडंबना यह है कि स्वच्छ पानी की आवश्यकता से निपटने के लिए भी क्षेत्र में स्वच्छ पानी का उत्पादन करने के लिए और अधिक उद्योग स्थापित किए गए। स्थानीय लोगों ने यह ध्यान दिया कि ये यहां की इंडस्ट्रीज 10 लीटर पानी की दैनिक आपूर्ति के लिए प्रति माह 300 रुपये लेती है। पानी को रिवर्स ऑस्मोसिस के माध्यम से साफ किया जाता है। सात बड़े और मध्यम स्तर के पानी साफ करने के संयंत्र हैं जो क्षेत्र में सक्रिय हैं और स्थानीय लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति करते हैं, क्योंकि भूजल दूषित है और पीने के लिए ठीक नहीं है।

क्षेत्र के दौरे के दौरान, मोंगाबे-इंडिया ने पाया कि गांव की सड़कें सीवेज से भरी हुई थीं और कई जगहों पर, नालों से असहनीय दुर्गंध आ रही थी । केमिकल वाला पानी अनियंत्रित रूप से बह रहा था।

कुंडली रिहायशी इलाके में ऐसे ही एक नाले के सामने दुकान चलाने वाले 64 वर्षीय सुभाष चंद ने कहा कि जब से उनके गांव में फैक्ट्रियां लगी हैं, तब से भू-जल की गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “1980 में कुंडली गांव में साफ और पीने योग्य पानी हुआ करता था, लेकिन उद्योग लगने के बाद हालात खराब हो गए।”

सुभाष चंद ने आरोप लगाया कि फैक्ट्रियां स्थानीय प्रशासन की ओर से किसी कार्रवाई के डर के बिना रसायनों से दूषित पानी सीधे जमीन में छोड़ती हैं। “यह वर्षों से हो रहा है और अब हालत ये है कि भू-जल किसी के भी पीने के लिए सुरक्षित नहीं है। इस भू-जल से हम केवल कपड़े धोते हैं क्योंकि हम कपड़े धोने के लिए पानी खरीदना हमारे बस का नहीं है।”

कुंडली, जो दो प्रमुख एक्सप्रेसवे के करीब है। यह एक उत्तर भारतीय राज्य हरियाणा का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र है। यह देश की राजधानी दिल्ली के बाहरी इलाके में स्थित है। इस क्षेत्र की स्थानीय आबादी लगभग 30,000 है, इसके अलावा, यहां लगभग 1,00,000 प्रवासी श्रमिक भी रहते हैं। कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में मध्यम और बड़े पैमाने के कई प्लास्टिक, रबर और पॉलिएस्टर कारखाने हैं। कुंडली इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अनुसार, कुंडली क्षेत्र में वर्तमान में लगभग 1,500 फैक्ट्रियां चल रही हैं।

कुंडली गांव के निवासी सुभाष चंद एक नाला दिखाते हुए, जिसमें स्थानीय उद्योगों के रासायनिक प्रदूषित पानी को छोड़ा जाता है। तस्वीर- सत सिंह/मोंगाबे।
कुंडली गांव के निवासी सुभाष चंद एक नाला दिखाते हुए, जिसमें स्थानीय उद्योगों के रासायनिक प्रदूषित पानी को छोड़ा जाता है। तस्वीर- सत सिंह/मोंगाबे।

सोनीपत में दीनबंधु छोटू राम विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मुरथल द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि औद्योगिक अपशिष्ट जल को खुली जमीन और जल निकायों में फेंकने के कारण क्षेत्र में पानी की गुणवत्ता खराब हो गई है। यह ध्यान देने योग्य है कि पानी की इस तरह की खराब गुणवत्ता के कारण ही दस्त, हैजा जैसी कई गंभीर जलजनित बीमारियां पैदा होती हैं।

पोस्ट-ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (पीजीआईएमएस), रोहतक के एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्रोफेसर रणबीर दहिया ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “औद्योगिक जल प्रदूषण के संपर्क में आने से गैस्ट्रिक ट्रैक्ट की बीमारी हो सकती है। यह प्रजनन प्रणाली को भी प्रभावित कर सकता है। यह बच्चों के विकास को भी प्रभावित कर सकता है। गंभीर प्रदूषण के कारण इन क्षेत्रों में त्वचा रोग काफी आम हैं।”

साफ पानी उपलब्ध कराने में विफल रहे अधिकारी

भारत सरकार के पाइप-वाटर मिशन के तहत, प्रत्येक नागरिक को प्रति दिन 55 लीटर स्वच्छ पानी मिलना चाहिए, लेकिन कुंडली में हर परिवार पानी के निजी व्यवसाइयों से स्वच्छ पानी खरीदने के लिए मजबूर है।

झांसी की एक प्रवासी मजदूर शांति देवी दो साल पहले यहां आई थीं, वह कुंडली में एक स्थानीय कारखाने में काम करती हैं। उन्होंने ने कहा “जमीन का पानी मुझे सूट नहीं करता, इस पानी से मेरे पूरे शरीर में एलर्जी हो गई है।”


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उन्होंने कहा कि उनके जैसे मजदूरों को पीने का साफ पानी के लिए हर महीने 300 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं, चाहे वे इसे वहन कर पाएं या न कर पाएं। शांति देवी ने कहा “यहां जमीन के नीचे का पानी इंसानों के उपयोग के लायक नहीं है, इसलिए हमें पानी खरीदना पड़ता है।” 

एक स्थानीय फैक्ट्री में पिछले छह साल से टेक्नीशियन का काम कर रहे अभिमन्यु यादव दूषित पानी के संपर्क में आने से बालों के झड़ने की शिकायत करते हुए कहते हैं। “मेरे पूरे शरीर पर चकत्ते हैं। खुजली दूर नहीं होती है और मेरे बाल भी झड़ गए हैं।” 

कुंडली गांव के प्रधान मनीष खत्री ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने हरियाणा राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम (एचएसआईआईडीसी), हरियाणा में औद्योगिक क्षेत्रों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार एजेंसी और स्थानीय प्रशासन सभी के दरवाजे खटखटाए हैं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही।

पीले रंग का दूषित पानी जिसे स्थानीय लोग कपड़े धोने और नहाने के लिए उपयोग करने को मजबूर हैं। तस्वीर- सत सिंह/मोंगाबे।
पीले रंग का दूषित पानी जिसे स्थानीय लोग कपड़े धोने और नहाने के लिए उपयोग करने को मजबूर हैं। तस्वीर- सत सिंह/मोंगाबे।

उन्होंने कहा कि स्थानीय विधायकों के यहां शिकायत दर्ज करने का भी कोई फायदा नहीं हुआ है। खत्री ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “प्रवासियों की वजह से अधिक आबादी बढ़ने के कारण जल निकासी व्यवस्था खराब गई है। सीवेज सड़कों पर पड़ा है और बदबू आ रही है। कारखाने खुले में दूषित रासायनिक पानी छोड़ रहे हैं जो जमीन में रिसता है और स्थानीय आबादी पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। दशकों से सरकार की नाक के नीचे यह सब चल रहा है लेकिन किसी ने हमारी मदद नहीं की।” 

उन्होंने कहा, “जिनके पास पैसे थे वे बीमार पड़ने से बचने के लिए सोनीपत या दिल्ली के अन्य जगहों पर चले गए, लेकिन जो खर्च नहीं कर सकते वे चुपचाप यहीं पड़े हुए हैं।”

प्रदूषण पर दोषारोपण का खेल  

कुंडली इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष सुभाष गुप्ता इस बात पर जोर देते हैं कि खराब ड्रेनेज सिस्टम और केमिकल वाले पानी के कारण फैक्ट्री मालिक खुद सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। उन्होंने कहा, ‘हमारे यहां से निकलने वाला प्रदूषित पानी पृथ्वी के अंदर नहीं जाता है क्योंकि सीईटीपी (कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) प्रदूषित जल को खुले में छोड़ने से पहले उसे उपचारित करता है।” 

दूषित भूजल के बारे में पूछे जाने पर गुप्ता ने कहा कि कारखानों से सारा पानी सीईटीपी तक पहुंचता है और इसे प्रदूषण मुक्त करना उनकी जिम्मेदारी है। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि अगर स्थानीय लोग केमिकल वाले भूजल की शिकायत कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि एचएसआईआईडीसी, जिसके पास सीईटीपी चलाने की जिम्मेदारी है, वह मानदंडों का उल्लंघन कर रहा है।

प्रदूषित भूजल के कारणों पर विस्तार से बताते हुए, गुप्ता ने कहा कि सीईपीटी की मौजूदा क्षमता चार एमएलडी (मिलियन लीटर प्रति दिन) है, जबकि इन कारखानों द्वारा छोड़े गए दूषित पानी के लिए 10 एमएलडी क्षमता की सीईपीटी की आवश्यकता है। गुप्ता ने बताया, “भले ही वर्तमान सीईपीटी पूरी क्षमता से चल रहा हो, लेकिन छः एमएलडी पानी बिना प्रदूषण मुक्त किए निकल जाता है और भूजल को प्रदूषित करता है।”

कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में गांवों की सड़कों पर कारखानों से निकलने वाला कचरा बहता हुआ देखा जा सकता है। तस्वीर- सत सिंह/मोंगाबे।
कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में गांवों की सड़कों पर कारखानों से निकलने वाला कचरा बहता हुआ देखा जा सकता है। तस्वीर- सत सिंह/मोंगाबे।

एचएसआईआईडीसी के वरिष्ठ प्रबंधक अरुण गर्ग ने स्वीकार किया कि उनके एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट की वर्तमान क्षमता चार  एमएलडी है लेकिन छः एमएलडी क्षमता जोड़ने का काम किया जा रहा है। हालांकि भू-जल प्रदूषण पर गर्ग ने कहा कि जल निकासी व्यवस्था को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी कुंडली नगर परिषद की है। 

जब कुंडली में उद्योगों द्वारा भूजल के कथित दूषित होने के बारे में मोंगाबे-इंडिया ने हरियाणा राज्य प्रदूषण बोर्ड के सदस्य सचिव एस नारायणन से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि वे कार्रवाई करने से पहले जानकारी का सत्यापन करेंगे।

 

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बैनर तस्वीर: दूषित भूजल के संपर्क में आने के कारण अपनी त्वचा पर चकत्ते दिखाती महिला। तस्वीर-  सत सिंह/मोंगाबे।

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