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मध्य प्रदेश: 16 सौ करोड़ खर्च कर लगे 20 करोड़ पौधे, कितने बचे पता नहीं

मध्यप्रदेश सरकार 37,420 वर्ग किलोमीटर को इस निजीकरण के दायरे में लाने का विचार कर रही है। फोटो- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे हिन्दी

प्रदेश के वनों को हरा रखने और पौधारोपण के बाद उनके संरक्षण के लिए प्रदेश सरकार ने बीते चार साल में 1600 करोड़ रुपए खर्च किए। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे हिन्दी

  • मध्य प्रदेश में पिछले 12 सालों में 207 वर्ग किलोमीटर जंगल घटा है। ऐसा तब है जब हर साल लाखों पौधे लगाए जाने का दावा किया जा रहा है।
  • बीते चार साल में पौधारोपण पर 1510 करोड़ रुपए और रख-रख़ाव पर करीब 90 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इतनी बड़ी रकम खर्च होने के बाद भी न तो हरियाली बढ़ी और न ही अवैध कटाई रुकी।
  • साल 1980 से साल 2021-22 तक 119401 हेक्टेयर वन भूमि को दूसरे कामों के लिए इस्तेमाल किया गया है। वहीं पिछले चार साल में अवैध खनन से 10974 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ है।

दस साल पहले जंगल खूब घना था। शाम होते ही सड़क पर सन्नाटा पसर जाता था। लोग निकलते नहीं थे घर से। डर रहता था जंगली जानवरों का, लेकिन अब जंगल ऐसा नहीं रहा। लोगों ने अवैध कटाई कर जंगल को खेती की जमीन में बदल दिया। हर साल पौधारोपण के नाम पर गड्ढे तो खोदे जाते हैं, पर पौधे इक्का-दुक्का ही लग पाते हैं,” बीच जंगल में बसे समरधा गांव के वृंदावन यादव आंखों देखा अनुभव बताते हैं। वो कहते हैं, “अब यहां के जंगल में बसाहट बढऩ़े लगी है। लोग अतिक्रमण कर जंगल साफ कर रहे हैं।वृंदावन बताते हैं कि हर साल पौधारोपण के लिए अधिकारी यहां आते हैं, हजारों पौधे लगाए जाएंगे, ऐसी बातें करते हैं, पर पौधे नहीं लग पाते।

यह हाल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से महज 25 किलोमीटर दूर समरधा गांव का है। ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में अकेला समरधा गांव ही ऐसा है। यही हालात प्रदेश के पूरे वनक्षेत्र का है। स्टेट ऑफ फॉरेस्ट की वर्ष 2009-10 और वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट देखने से वृंदावन यादव की बातों में दम नजर आता है।

करोड़ों खर्च पर घट रहा है जंगल

रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2009-10 में राज्य में अति सघन, सघन और खुला वनक्षेत्र 77700 वर्ग किमी था, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 77493 वर्ग किमी रह गया है। यानी 12 साल में 207 वर्ग किमी जंगल घट गया। ऐसा तब है, जब हर साल पौधारोपण होने का दावा किया जाता है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2009 में 7 लाख 47 हजार, वर्ष 2010 में 6 लाख 60 हजार और वर्ष 2011 में 7 लाख 4 हजार पौधे रोपे गए। साल 2020-21 में वन विभाग ने 3 करोड़ 86 लाख से ज्यादा और साल 2021-22 में 3 करोड़ 2 लाख से ज्यादा पौधे लगाए। 

मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में मनरेगा के तहत पौधरोपण करती महिलाएं। तस्वीर- यन फॉरगेट/विकिमीडिया कॉमन्स
मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में मनरेगा के तहत पौधरोपण करती महिलाएं। तस्वीर– यन फॉरगेट/विकिमीडिया कॉमन्स

मप्र सरकार द्वारा पौधारोपण को लेकर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इसके बाद भी जंगल घट रहा है। वर्ष 2019-20 में मध्यम घना जंगल 34341 वर्ग किमी था, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 34209 वर्ग किमी रह गया। यही नहीं, बहुत घने जंगल का रकबा भी दो किमी घटा ही है। वर्ष 2019-20 में ये आंकड़ा 6667 वर्ग किमी था, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 6665 वर्ग किमी पर आ गया। दूसरी तरफ, वर्ष 2019 में ओपन फॉरेस्ट का दायरा 36465 वर्ग किमी था, जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 36618 वर्ग किमी हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ओपन फॉरेस्ट का दायरा 153 वर्ग किमी तक बढ़ गया है। 

अति सघन वन वह होते हैं, जिनमें वृक्षों का घनत्व 70 फीसदी से ज्यादा है। सघन वन में पेड़ों का घनत्व 40 से 70 फीसदी तक होता है। ओपन या खुले वनों में पेड़ों का घनत्व 10 से 40 फीसदी तक होता है।

मध्य प्रदेश के जंगलों को हरा-भरा रखने के लिए हर साल पौधे लगाए जाते हैं। इन पौधों की खरीद और रख-रखाव पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। साल 2021-22 में अकेले पौधारोपण पर 350.96 करोड़ रुपए खर्च हुए। वहीं इनके संरक्षण पर भी सरकार ने 17.98 करोड़ रुपए खर्च कर डाले। इसी तरह साल 2020-21 में पौधारोपण पर 348 करोड़ और संरक्षण पर 20.92 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। 

पौधारोपण के छह महीने बाद इनकी निगरानी और गणना भी हुई। पौधों की निगरानी तीन साल तक की जाती है। हर छह महीने में पौधों की गणना होती है। गणना में देखा जाता है कि लगाए गए पौधों में से कितने फीसदी बचे, लेकिन पौधे लगाने के बाद की गणना और निगरानी का रिकॉर्ड आपको कहीं नहीं मिलेगा। 

विधान सभा में प्रस्तुत रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के वनों को हरा रखने और पौधारोपण के बाद उनके संरक्षण के लिए प्रदेश सरकार ने बीते चार साल में 1600 करोड़ रुपए खर्च किए। पौधारोपण पर 1510 करोड़ रुपए खर्च हुए और रख-रख़ाव पर करीब 90 करोड़। इतना खर्च होने के बाद भी हरियाली नहीं बढ़ी।

मध्य प्रदेश: 16 सौ करोड़ खर्च कर लगे 20 करोड़ पौधे, कितने बचे पता नहीं

पिछली सरकार के कार्यकाल में वन मंत्री उमंग सिंगार ने पौधारोपण में होने वाली धांधली रोकने के लिए एक सर्वे कराया था। उस सर्वे में पौधारोपण की हकीकत सामने आई थी। विभाग ने बैतूल उत्तर वनमंडल की शाहपुर रेंज में 15,526 पौधे लगाने का दावा किया था, लेकिन मौके पर नौ हजार गड्ढे ही मिले थे। इनमें भी दो से ढाई हजार पौधे ही मिले। गड़बड़ी को गंभीरता से लेते हुए मंत्री ने पांच कर्मचारियों को निलंबित किया था। 

वन मामलों के जानकार और रिटायर्ड आईएफएस आजाद सिंह डबास कहते हैं, पौधारोपण में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है, लेकिन ऐसे मामलों में छोटे कर्मचारियों पर ही कार्रवाई हो पाती है। इससे जांच आगे नहीं बढ़ पाती। पौधे लगाने के बाद कितने जिंदा बचे ये आंकड़े वन विभाग की उस शाखा के पास भी नहीं है, जिसके ऊपर इसकी निगरानी और रख-रखाव की जिम्मेदारी है।” 

दूसरी तरफ, प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण यानी कैंपा के भू प्रबंध प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुनील अग्रवाल ने मोंगाबे-हिंदी को मौखिक रूप से तो कहते हैं कि 50 फीसदी से ज्यादा पौधे जिंदा हैं, लेकिन आंकड़े उनके पास भी नहीं हैं।

डबास कहते हैं कि पौधारोपण के बारे में ज्यादातर फॉरेस्ट अफसरों को जानकारी नहीं है। इससे पौधारोपण के बाद भी पौधे मर जाते हैं। वे कहते हैं कि पौधारोपण के लिए गर्मी शुरू होने से पहले गड्ढे खुद जाना चाहिए। इधर, पौधारोपण के लिए मार्च तक गड्ढे खुदते रहते हैं। रोपे जाने वाले पौधों की लंबाई भी कम रहती है। डबास बताते हैं कि सही तरीके से पौधारोपण नहीं होना, पौधारोपण में भ्रष्ट्राचार, अवैध कटाई और अतिक्रमण की वजह से जंगल बढऩे की वजह घटता जा रहा है।

अवैध खनन से जंगलों पर असर

इसके अलावा वन भूमि को दूसरे कामों में लगाना औऱ उस पर अतिक्रमण भी एक बड़ा मसला है। आंकड़ों के मुताबिक साल 1980 से साल 2021-22 तक 119401 हेक्टेयर वन भूमि को दूसरे काम के लिए इस्तेमाल किया गया है। इनमें सिंचाई परियोजनाओं के लिए 86,220,बिजली परियोजनाओं के लिए 9,517, खनन के लिए 143, रक्षा संस्थानों को 37,178 और उद्योग सहित अन्य क्षेत्रों के लिए 14,338 हजार हेक्टेयर वन भूमि का आवंटन हुआ है।

भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले चार सालों में राज्य में अवैध खनन से 10974 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ है। रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2018 में अवैध खनन के 888 प्रकरण दर्ज हुए। अवैध उत्खनन से 3109 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ। साल 2019 में अवैध उत्खनन के 973 मामले सामने आए। इससे 5371 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हो गया। वर्ष 2020 में 1062 अवैध उत्खनन के प्रकरण दर्ज हुए। इससे 1772 हेक्टेयर जंगल पर असर पड़ा। इसके चलते साल 2018 से 2021 तक 10974 हेक्टेयर जंगल अवैध उत्खनन से खराब हो गया है।

ऊंचाई से पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल कुछ इस तरह दिखता है। मध्य प्रदेश में कुल 94,689 वर्ग किलोमीटर के संरक्षित वन (प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट) हैं। फोटो- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे हिन्दी
ऊंचाई से पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल कुछ इस तरह दिखता है। वर्ष 2009-10 में राज्य में अति सघन, सघन और खुला वनक्षेत्र 77700 वर्ग किमी था, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 77493 वर्ग किमी रह गया है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

इसके अलावा मप्र वन विभाग के वार्षिक प्रशासकीय प्रतिवेदन वर्ष 2021-22 के आंकड़ों से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों से सटे जंगलों में ज्यादा अतिक्रमण हो रहा है। आदिवासी क्षेत्र बैतूल और भोपाल से सटे जंगल में हुए अतिक्रमण के आंकड़ों से इसकी तस्दीक भी होती है। साल 2018 से नवंबर 2021 बैतूल से सटे महज 55 हेक्टेयर जंगल में अतिक्रमण हुआ। वहीं भोपाल से लगे 476 हेक्टेयर वन क्षेत्र में अतिक्रमण हो गया। इसके उलट आदिवासी बहुल छिंदवाड़ा में साल 2018 से नवंबर 2021 तक महज 4 हेक्टेयर वन क्षेत्र में अतिक्रमण हुआ। ग्वालियर जिले में साल 2018 से नवंबर 2021 तक 929 हेक्टेयर वनभूमि पर अतिक्रमण हुआ।

मप्र वन विभाग के रिटायर्ड प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेशन ऑफ फॉरेस्ट आनंद बिहारी गुप्ता कहते हैं कि आदिवासी समुदाय वन उत्पादों के सहारे जीवन-यापन करता है और उससे संतुष्ट रहता है। इससे आदिवासी क्षेत्रों में अतिक्रमण कम होता है। वहीं शहरी क्षेत्रों में जमीनें कम होती जा रही हैं। ऐसे में लालच के चलते लोग जंगल की जमीन पर अतिक्रमण करने लगते हैं। जंगल की जमीन पर अतिक्रमण कर उस पर कब्जा करने के प्रयास किए जाते हैं। 

वन भूमि पर अतिक्रमण रोकने में वन रक्षकों की कमी बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रही है। वन विभाग के पास वन रक्षक के स्वीकृत पद 20670 हैं। इनमें से 16281 वन रक्षक ही मैदान में हैं। करीब बीस फीसदी यानी चारहजार से ज्यादा वन रक्षकों के पद अब भी खाली हैं। वहीं वन क्षेत्रों में हो रही अवैध कटाई का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले साल वन विभाग ने अवैध कटाई के 40 हजार से ज्यादा मामले सामने आए थे। अतिक्रमण के ढाई हजार से ज्यादा मामले रिपोर्ट हुए।


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इसके अलावा आग लगने की घटनाओं से भी वन विभाग परेशान है। फॉरेस्ट फायर अलर्टसिस्टम के ताजा आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश में अब तक आग लगने की 15624 घटनाएं हो चुकी हैं। इससे 30 हजार हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ है। हालांकि जंगलों में आग की घटनाओं को रोकने के लिए वन विभाग अब हाईटेक हुआ है। सेटेलाइट के जरिए आग लगने की जानकारी वन विभाग को तत्काल मिल जाती है। इससे आग लगने की घटनाएं तो हो रही हैं, लेकिन इस सिस्टम ने जंगल को आग से बचाने में खूब मदद की है। यही वजह है कि 15 हजार से ज्यादा आगजनी होने के बाद भी जंगल सुरक्षित है।

 

बैनर तस्वीरः प्रदेश के वनों को हरा रखने और पौधारोपण के बाद उनके संरक्षण के लिए प्रदेश सरकार ने बीते चार साल में 1600 करोड़ रुपए खर्च किए। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

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