Site icon Mongabay हिन्दी

बांध दुनिया के लिए ज़ोखिम भरी ज़रूरत हैं पर क्या इनका बेहतर प्रबंधन संभव है?

ब्राजील के अमेज़ॅन में बेलो मोंटे मेगा बांध। तस्वीर- ज़ो सुलिवन/ मोंगाबे

ब्राजील के अमेज़ॅन में बेलो मोंटे मेगा बांध। तस्वीर- ज़ो सुलिवन/ मोंगाबे

  • साफ पानी का प्रबंधन करने के लिए बांध बनाना सबसे पुरानी संरचनाओं और उपायों में से एक है। 1960 और 70 के दशक में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक बांधों का निर्माण हुआ। लेकिन हाल के वर्षों में बांधों के निर्माण की वैश्विक स्तर पर आलोचना हो रही है। क्योंकि बांध से होने वाले फायदों के लिए भारी पर्यावरणीय कीमत चुकानी पड़ रही है।
  • विश्व स्तर पर अधिकांश प्रमुख जलमार्गों का प्रवाह बांध बनाकर प्रभावित हुआ है। 1000 किमी (620 मील) से अधिक लंबी केवल 37% नदियां ऐसी हैं जो निर्बाध रूप से प्रवाहित हो रही हैं, और केवल 23% ही समुद्र तक निर्बाधित पहुंच पाती हैं। यदि सभी चल रहे जलविद्युत निर्माण आगे बढ़ते हैं, तो 2030 तक दुनिया भर में 93% नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बदल दिया जाएगा।
  • नदियों के इस वैश्विक स्तर पर बाधित किए जाने से गंभीर प्रभाव पड़ा है। बांधों के कारण 1970 के बाद से वन्यजीवीयों के लिए साफ पानी की उपलब्धता में 84% की औसत गिरावट हुई है। समुद्र किनारे की एक चौथाई जमीन बांधों में चली गई है। बांध कार्बन चक्र के संशोधन के माध्यम से जटिल तरीकों से पृथ्वी की जलवायु को भी प्रभावित करते हैं।
  • बांध ऊर्जा, कृषि और पीने के पानी के लिए आवश्यक भी हैं, और हमारे भविष्य का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। उनके द्वारा किए जाने वाले पर्यावरणीय नुकसान के मुकाबले उनके लाभों को संतुलित करने के तरीके हमारे लिए पहले से ही उपलब्ध हैं, उदाहरण के लिए, कुछ मौजूदा बांधों को हटाना, और दूसरों का निर्माण नहीं करना।

दक्षिण अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क के जैव विविधता संरक्षण के प्रबंधक स्टीफन मिड्ज़ी को लगता है कि नदियों को वैसा ही होना चाहिए जैसी नदियां होती हैं। मिड्ज़ी निर्बाध बहने वाली धाराओं, जो जलीय और स्थलीय जैव विविधता के लिए संपर्क का माध्यम का काम करती हैं, उनको प्राकृतिक स्थिति में रखने की वकालत करते हैं। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि वह ‘बांध  विरोधी व्यक्ति’ नहीं हैं।

1911 की शुरुआत से गई अफ्रीका के सबसे बड़े संरक्षित क्षेत्रों में से एक, क्रूगर का प्रबंध इस तरह नहीं किया गया है। पार्क के पर्यवेक्षकों ने दशकों से जल-धाराओं के साथ छेड़छाड़ की। अब वे उन चीजो को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं जो प्राकृतिक तौर पर खुद बने थे। वे पार्क के जीवों के लिए प्रचुर मात्रा में जल आपूर्ति सुनिश्चित कर रहे हैं।

वहां समय-समय पर 97 कंक्रीट, तार और मिट्टी के बांध बनाए गए। बोरहोल से जलसंग्रह को उन क्षेत्रों से जोड़ा गया। लेकिन समान जल आपूर्ति की व्यस्था के लिए अभी तक उत्तम स्थिति नहीं बन सकी। इसके बजाय यह बड़े चरागाहों, और मिट्टी के क्षरण और कटाव  का कारण बन गया।

बांधों के पीछे के बेसिन में जमे हुए पानी में गाद और दरियाई घोड़े का गोबर जमा हो गया। सायनोबैक्टीरिया के कारण जानवरों के पीने का पानी जहरीला हो गया। ख़ासकर यह पानी ज़ेब्रा और वाइल्डबीस्टस (हिरन की एक प्रजाति) जैसी उन प्रजातियों के लिए दूषित हो गया जो पानी के करीब रहना पसंद करती हैं। सेबल और रॉन मृग जैसी प्रजातियां जो सूखे क्षेत्रों में पानी से दूर रहना पसंद करती हैं और जहां शिकारी से भी उन्हें कम संघर्ष करना पड़ता है, वे बेचैन हैं।

पिछले दो दशकों से प्राकृतिक नुकसान को कम करने की कोशिश की जा रही है। क्रूगर के अंदर 42 बांध टूट गए और बाढ़ से ध्वस्त हो गए।

पार्क के जलीय जैव विविधता प्रबंधक एडी रिडेल कहते हैं, “आजकल नदी की कनेक्टिविटी बहाल करने पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जा रहा है।” यह नीतिगत बदलाव पानी की आपूर्ति हासिल करने के लिए मानव जाति के सबसे पुराने उपायों में से है लेकिन वैश्विक तौर पर इसकी आलोचना बढ़ रही है।

सदियों से बांध बनाने और बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा समर्थित और वित्त पोषित बांध का निर्माण किया जाता रहा है। इसका उपयोग बाढ़ के प्रबंधन और पीने के पानी, फसल की सिंचाई, उद्योग और बिजली उत्पादन के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए किया जाता रहा है। लेकिन जैसा कि क्रूगर से यह सीख ली जा सकती है कि इस फायदे के लिए भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है।

जैसा कि 20वीं और 21वीं सदी में दुनिया भर में भारी तादात में बांधों का निर्माण हुआ। इसकी निर्मित बांधों की आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिक कीमत काफी ज़्यादा चुकानी पड़ी है और इसका क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव भी पड़ा है।

साफ पानी के लिए दुनिया की नदियों को बड़े पैमाने पर बाधित करने की यह कोशिश को सबसे बड़े मानवीय परिवर्तन के तौर पर देखा गया है। बांधधरती की महत्वपूर्ण जगहों और सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए जैव विविधता, जलवायु, भूमि और साफ पानी पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं। साथ ही बांध, पृथ्वी के महत्वपूर्ण ऑपरेटिंग सिस्टम के संतुलन को भी बिगाड़ रहे हैं और मानवता, सभ्यता और यहां तक ​​कि पृथ्वी पर जीवन को भी खतरे में डाल सकते हैं। 

क्रूगर नेशनल पार्क में पानी की अधिकता के कारण बांधों के पीछे पानी जमा हो गया और उसमें दरियाई घोड़े का गोबर जमा हो गया, जिससे जहरीले साइनोबैक्टीरिया पनप गए। तस्वीर- पेट्रो कोटजे के सौजन्य से।
क्रूगर नेशनल पार्क में पानी की अधिकता के कारण बांधों के पीछे पानी जमा हो गया और उसमें दरियाई घोड़े का गोबर जमा हो गया, जिससे जहरीले साइनोबैक्टीरिया पनप गए। तस्वीर- पेट्रो कोटजे के सौजन्य से।

बड़े बांधों का निर्माण (10 करोड़ क्यूबिक मीटर या 3,50 करोड़ क्यूबिक फीट से अधिक पानी का भंडारण करने वाले) 1960 के दशक में ज़ोरों पर था, इसमें पानी की संचित मात्रा एक दशक बाद सबसे ज्यादा थी। दुनिया के आधे बड़े बांधकृषि के लिए बनाए गए थे। बांधदुनिया भर में 27. 1 लाख वर्ग किलोमीटर सिंचित फसल और चारागाह के लिए 30-40% पानी उपलब्ध कराते हैं।

माना जाता है कि करीब 60,000 बड़े बांध हैं, जिनकी मदद से दुनिया के कुल वार्षिक नदी प्रवाह का लगभग छठा हिस्सा समुद्र में जाने से रोक लिया जाता है और जमा कर लिया जाता है। इसके अलावा, लगभग 306,000 किमी (लगभग 120,000 मील) के कुल 100 वर्ग मीटर (1,076 वर्ग फुट) से बड़े जलाशय क्षेत्रों के साथ कम से कम 16 मिलियन छोटे बांधहैं, जो पृथ्वी की स्थलीय साफ पानी की सतह को 7 प्रतिशत से बढ़ा देते हैं। 

दक्षिण अफ्रीका के बांधों से होने वाले लाभ का उदाहरण दिया जा सकता है। सालाना कम वर्षा (वैश्विक औसत का केवल 55%) और उच्च तापमान व वाष्पीकरण दर के साथ, यहां होने वाली बारिश का केवल 9% जल ही नदियों तक पहुंचता है। जो देश का एकमात्र बड़े पैमाने पर मीठे पानी का स्रोत है। आश्चर्य नहीं कि इस देश ने पानी के भंडारण और दक्षिण अफ्रीका के विकास की क्षमता को बढ़ाने के लिए बांधों पर भरोसा करने का फैसला किया।

आज, अनुमानित 500 बड़े बांधों से कई लाखों लीटर पानी जमा किया जाता है और अर्ध-शुष्क जलवायु में अनेक गतिविधियां होती हैं।  बांधों के बिना ऐसा होना लगभग असंभव था। यहां के प्रमुख बांधपूरे वर्ष जल आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए, औसत वार्षिक प्रवाह का लगभग 50% पानी संग्रहीत करने में सक्षम हैं। डरबन, जोहान्सबर्ग और केप टाउन जैसे प्रमुख शहर पानी के लिए ज़्यादातर बांधों पर निर्भर हैं। जब सूखे की वजह से 2021 में केप टाउन ‘डे ज़ीरो’ के कगार पर आ गया, तो इसे जलवायु परिवर्तन की हालिया चेतावनी कहा गया था। पर इसकी वजह से दुनिया के लिए जल संरक्षण का रोल मॉडल बनने की दिशा में इस क्षेत्र की जल प्रणाली का एक बहुत ही ज़रूरी मूल्यांकन भी हो पाया। 

1960 और 70 के दशक में दुनिया भर में बांधनिर्माण में तेजी देखी गई। दक्षिण अफ्रीका एक ऐसा देश है जो बांधसे होने वाले फायदे का अप्रतिम उदाहरण है। 500 से अधिक बड़े बांधअब पूरे देश में फैले हुए हैं, जिनमें से एक, ग्रैफ-रीनेट में नक्वेबा बांध है। तस्वीर- पेट्रो कोटजे के सौजन्य से।
1960 और 70 के दशक में दुनिया भर में बांध निर्माण में तेजी देखी गई। दक्षिण अफ्रीका एक ऐसा देश है जो बांध से होने वाले फायदे का बेहतर उदाहरण है। 500 से अधिक बड़े बांध अब पूरे देश में फैले हुए हैं, जिनमें से एक, ग्रैफ-रीनेट में नक्वेबा बांध है। तस्वीर- पेट्रो कोटजे के सौजन्य से।

विलुप्त हो रही हमारी जलीय जैव विविधता 

1960 और 70 के दशक से बड़े बांधों और जलाशयों का निर्माण विश्व स्तर पर धीमा हो गया है। लेकिन अब बहुत बड़ी नदियों को बांधा जा रहा है। 1,000 किमी से अधिक लंबी केवल 37% नदियां ही अपनी पूरी लंबाई में निर्बाध रूप से बह रही हैं, और केवल 23% नदियां ही निर्बाध रूप से समुद्र में मिलती हैं। बांध की योजनाओं या बनाए जा रहे सभी जलविद्युत बांधों का आंकलन करे तो, 2030 तक दुनिया भर में 93% नदी के हिस्से का प्राकृतिक प्रवाह बदल दिया जाएगा।

और उन बांधों से बड़े पैमाने पर जलीय जैव विविधता का नुकसान होगा। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (WWF) के साफ पानी संरक्षण के प्रमुख वैज्ञानिक मिशेल थिएम कहते हैं, “बांधों द्वारा नदियों को रोके जाने या हिस्सों में विभाजित करने का एक बड़ा प्रभाव मीठे पानी की प्रजातियों की गिरावट है।”

मीठे पानी में रहने वाली प्रजातियां दुनिया भर में तेजी से घट रही हैं। अपनी लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने दुनिया भर में मीठे पानी के 3,741 जीवों (जलीय स्तनधारियों, पक्षियों, उभयचर, सरीसृप और मछली की 944 प्रजातियों) पर अध्ययन किया, और 1970 के बाद से उनमें 84% की औसत गिरावट पाई गई। मीठे पानी के उभयचर, सरीसृप और मछली सबसे बुरी तरह प्रभावित हैं, मीठे पानी की मछलियों की लगभग एक तिहाई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, जबकि 80 प्रजातियां पहले ही लुप्त हो चुकी हैं।

मीठे पानी की नदियां हमारी सभ्यताओं का आधार रही हैं। जहां हम शहर, सड़कें, उद्योग बनाते रहे हैं और अपना भोजन उगाते हैं। थिएम कहते हैं, “साफ पानी के श्रोतों पर कई स्तर के इंटरैक्टिव प्रभाव होते हैं, जिससे किसी एक नुकसान का कारण बता पाना मुश्किल हो जाता है।’ इसमें आवास का बदलाव, आक्रामक प्रजातियां, अत्यधिक मछली पकड़ना, प्रदूषण, खराब वानिकी प्रथाएं, रोग और जलवायु परिवर्तन सभी अपनी भूमिका निभाते हैं। हालांकि, वह आगे कहती हैं, नदियों पर बांधों का प्रभाव, और कनेक्टिविटी का नुकसान भी एक बड़ा कारण है जिसके बारे में हमें पता है।

ब्राजील के अमेज़ॅन में 2019 के दौरान सिनोप बांधपर छोटी नाव से देखी गई मृत मछलियां। मीठे पानी के उभयचर, सरीसृप और मछली पूरी पृथ्वी पर तेजी से घट रही हैं। इसमें बांधों की प्रमुख भूमिका है। तस्वीर- माटो ग्रोसो राज्य के सार्वजनिक मंत्रालय के सौजन्य से।
ब्राजील के अमेज़ॅन में 2019 के दौरान सिनोप बांधपर छोटी नाव से देखी गई मृत मछलियां। मीठे पानी के उभयचर, सरीसृप और मछली पूरी पृथ्वी पर तेजी से घट रही हैं। इसमें बांधों की प्रमुख भूमिका है। तस्वीर- माटो ग्रोसो राज्य के सार्वजनिक मंत्रालय के सौजन्य से।

बांध जलीय संपर्क को नष्ट करते हैं 

बांधसीधे तौर पर मछली और अन्य जलीय प्रजातियों के प्रवास का नुकसान करते हैं, उन्हें प्रजनन के उनके आधार से अलग-थलग कर देते हैं और उनकी जनसंख्या को कम करते हैं। 1970 के बाद से स्टर्जन, सैल्मन, हिल्सा और गिल्ड कैटफ़िश सहित प्रवासी मछलियों की आबादी में 76% की गिरावट आई है। ब्राजील में बांधऔर अन्य कारणों से अमेज़ॅन की विशाल कैटफ़िश खतरे में हैं। एशिया की मेकांग नदी पर, 100 से कम इरावदी डॉल्फ़िन प्रस्तावित बांधक्षेत्र में रह सकती हैं।

बेलुगा स्टर्जन और मेकांग विशाल कैटफ़िश जैसी खास मछलियां भी खतरे में हैं। मीठे पानी में रहने वाली दुनिया की सबसे अधिक शिकार की जाने मछली, चीनी पैडलफिश पहले ही विलुप्त हो चुकी है, जिसे 2020 में आधिकारिक तौर पर विलुप्त घोषित कर दिया गया। चीनी वैज्ञानिकों के एक पेपर ने निष्कर्ष निकाला कि ‘यांग्त्ज़ी का पांडा’ 20 करोड़ वर्षों के बाद गायब हो गया। यह अधिक मछली पकड़ने और छोटे-बड़े दोनों बांधों द्वारा उसके प्रवास के रास्तों को बर्बाद होने के कारण लुप्त हुए।

कनेक्टिविटी समाप्त होने के कारण लोग भी बहुत अधिक कीमत चुका रहे हैं। एक समय गंगा का निचला हिस्सा हिलसा मछलियों के पालन की ख़ास जगह होती थी, जहां बहुत से लोग अपने प्रोटीन के प्राथमिक स्रोत के रूप में मीठे पानी की मछलियों का उपयोग करते हैं। 1970 के दशक में फरक्का बैराज बनने के बाद मछलियों की संख्या में 94% की गिरावट आई। बैराज बनने के बाद हर साल मछली पकड़ने की मात्रा 19 मीट्रिक टन से घटकर 1 मीट्रिक टन रह गई। 

भौतिक अवरोधों से परे बांधों के बनने के परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र और उन पर निर्भर रहने वाले जीवन में काफी बदलाव आते हैं। जैसे ही पानी छोड़ा जाता है, डाउनस्ट्रीम पानी का तापमान बदल जाता है, और हाइड्रोलॉजिकल चक्र का प्राकृतिक प्रवाह बदल जाता है।

बांधों में फंसे फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और सिलिकॉन के कम प्रवाह से झीलों और मुहानों सहित डाउनस्ट्रीम साइट भी प्रभावित होती हैं। स्थिर जलाशयों में फंसे नाइट्रोजन और फॉस्फोरस के कारण शैवाल का बढ़ना बड़े पैमाने पर मछलियों की मौत की वजह बन सकता हैं।

एशिया की मेकांग नदी में प्रस्तावित बांध लूम में 100 से कम इरावदी डॉल्फ़िन रह सकती हैं। तस्वीर- पेट्रो कोटजे के सौजन्य से।

बांध और गाद से प्रवाह का रुकना 

थिएम कहते हैं, “एक और महत्वपूर्ण नुकसान जिस पर दुनिया को ध्यान देने की जरूरत है, वह है बांधों के तलछट या गाद से प्रवाह में बाधा। इसके व्यापक प्रभावों पर कभी विचार नहीं किया जाता है, लेकिन इसके ज़रूरी वास्तविक और वैश्विक निहितार्थ हैं।”

कुछ अनुमानों के मुताबिक पृथ्वी का 25 से 30 प्रतिशत महासागर गाद और तलछट प्रवाह में फंसा हुआ है। हालांकि संख्याओं के पीछे का विज्ञान जटिल है, लेकिन आज पृथ्वी के डेल्टा में रहने वाले लोगों की आजीविका पर तलछट प्रवाह के कम होने का प्रभाव को देखा जा सकता है। डेल्टा ऐसी भू-आकृतियां हैं, जो नदियों के समुद्र के मुहाने पर पहुंचने पर तलछट के जमाव द्वारा नीचे की ओर ले जाने के दौरान बनाती हैं।

हालांकि मिस्र और सुमेरिया जैसी प्राचीन सभ्यताएं हजारों वर्षों तक इन संसाधन-समृद्ध वातावरण में फली-फूली हैं। लेकिन एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि आज, कम से कम 2.5 करोड़ लोग तलछट विहीन डेल्टाओं में रहते हैं। बांधपोषक तत्वों से भरपूर तलछट को डेल्टा में ऊपर की ओर जाने से रोकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उपजाऊ भूमि के बड़े हिस्से में कमी, कटाव, बाढ़ और समुद्र के स्तर में वृद्धि होती है।


और पढ़ेंः देश में मेगा पनबिजली परियोजनाओं की हो रही वापसी, क्या यह व्यवहारिक है


एक उदाहरण वियतनाम में जैव विविधता से भरपूर मेकांग डेल्टा का है। जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा डेल्टा है, जहाँ लगभग 20 मिलियन लोग रहते हैं। यह दक्षिण पूर्व एशिया की खाद्य सुरक्षा का स्त्रोत है। मेकांग पर पहले ही बड़े बांधबनाए जा चुके हैं, और बहुत से बांधों को बनाए जाने की योजना है।

ऐसा अनुमान है कि 2040 तक मेकांग डेल्टा में तलछट का प्रवाह 97% तक कम हो जाएगा। जिससे नदी की उत्पादकता और डेल्टा का भौगोलिक रूप से काफी नुकसान होगा। मेकांग तलछट के नुकसान का बड़ा कारण बांधही हैं।

स्वतंत्र रूप से बहने वाली नदियां प्रति वर्ष लगभग 20 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन को आर्गेनिक पदार्थ और गाद के रूप में समुद्र में ले जाती हैं। लेकिन बांधों के व्यवधान के कारण एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक समुद्र में आर्गेनिक कार्बन ले जाने में 19% की कमी आ सकती है, इसका मीठे पानी और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव पड़ सकता है।

नर्मदा पर सरदार सरोवर बांध । नर्मदा नदी पर कई वर्षों तक बांधनिर्माण में तेजी देखी गई है। कई फायदों और कई हानिकारक पर्यावरणीय प्रभावों के साथ इंसानी सभ्यता  मीठे पानी की नदियों पर आधारित रही है। हामिश जॉन ऐप्पलबी (आईडब्ल्यूएमआई) / फ़्लिकर ।
नर्मदा पर सरदार सरोवर बांध। नर्मदा नदी पर कई वर्षों तक बांध निर्माण में तेजी देखी गई है। कई फायदों और कई हानिकारक पर्यावरणीय प्रभावों के साथ इंसानी सभ्यता  मीठे पानी की नदियों पर आधारित रही है। तस्वीर– हामिश जॉन ऐप्पलबी (आईडब्ल्यूएमआई) / फ़्लिकर ।

बांध, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन 

हाल के वर्षों में शोधकर्ताओं ने बांधों के बारे में पिछली धारणाओं को खत्म करना शुरू कर दिया है। यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वे कार्बन चक्र के संशोधन और ग्रीनहाउस गैस एक्सचेंजों के साथ जटिल तरीकों से पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करते हैं।

जर्मनी के हेल्महोल्ट्ज़ सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल रिसर्च में लेक रिसर्च विभाग के एक जीवविज्ञानी मैथियास कोस्चोरेक बताते हैं, “आम राय यह थी कि बांधजितना कार्बन छोड़ते हैं, उससे कहीं अधिक कार्बन जमा करते हैं।” कोस्चोरेक एक शोध दल का हिस्सा थे जिसने हाल ही में ‘टर्निंग द ग्रीन स्टेटस ऑफ़ डैम्स ऑन इट्स हेड’ नाम से एक शोध-पत्र प्रकाशित किया है। उनके इस काम में ड्रॉडाउन क्षेत्रों के बारे में बताया गया है। जलाशयों के किनारों का हवा के संपर्क में आने पर पानी का स्तर गिर जाता है और यह बाथटब के घेरे जैसा दिखता है, जिससे पानी चारों ओर फैल जाता है।

कोस्चोरेक कहते हैं, “हमारे अध्ययन से पता चलता है कि बांधों से कार्बन का उत्सर्जन पहले की तुलना में बहुत अधिक है। वैश्विक स्तर पर, जलाशय तलछट में दबाने की बजाय वातावरण में अधिक कार्बन उत्सर्जित करते हैं। वैश्विक स्तर पर बांधजितना कार्बन इकठ्ठा करते हैं उसका दोगुना कार्बन उत्सर्जित करते हैं।”

लेकिन यहां विज्ञान जटिल और अस्पष्ट हो जाता है। दूसरी तरफ, कोस्चोरेक कहते हैं, ड्रॉडाउन क्षेत्र भी कम मीथेन उत्सर्जित करते हैं। “यदि शुष्क क्षेत्र के जलाशयों में जल स्तर नीचे चला जाता है, तो पूरे सिस्टम से CO2 का उत्सर्जन बढ़ता है, लेकिन साथ ही पानी की सतह से मीथेन का उत्सर्जन कम हो जाता है।”

यह निर्धारित करने के लिए कि ये उत्सर्जन या इसकी कमी अपने आप कैसे होती है, इसके लिए और अधिक शोध की आवश्यकता होगी। कई चीजें मायने रखती हैं, जैसे कि उष्णकटिबंधीय बनाम समशीतोष्ण स्थान, वनस्पति के प्रकार व और भी बहुत कुछ।

कर्नाटक में एक नदी में सारस। मुक्त बहने वाली नदियाँ असाधारण जलीय और स्थलीय जैव विविधता में सहायक होती हैं। तस्वीर- सुभर्णब मजूमदार/ फ़्लिकर।
कर्नाटक के एक नदी में सारस। मुक्त बहने वाली नदियां असाधारण जलीय और स्थलीय जैव विविधता में सहायक होती हैं। तस्वीर– सुभर्णब मजूमदार/ फ़्लिकर।

क्या हम बांधों के साथ रह सकते हैं

बांधों के साथ इंसानों का भविष्य संभवतः असहज और द्वंदात्मक बना रहेगा।

“हम बांधविरोधी संगठन नहीं हैं, हम बांधों का समाज के लिए महत्व और उनसे होने वाले फायदों को जानते हैं।” डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के थिएम आगे कहते हैं, “मुझे लगता है कि समग्रता में एक दीर्घकालिक नज़रिया वह है जो साफ पानी के बड़ी क्षमता के स्रोत के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रति भी लचीला हो। व्यवहारिक तौर पर हमारे पास नदियों के कुछ हिस्से ऐसे होंगे जिनका हम अधिक दोहन करेंगे और कुछ हिस्से ऐसे होंगे जो निर्बाध बहते रहेंगे। यह आदर्श स्थिति है, क्योंकि जीवित रहने और फलने-फूलने के लिए हमें पानी का उपयोग उन तरीकों से करना होगा जो टिकाऊ हों।”

सीधे शब्दों में कहें तो हमें कुछ बांधों के साथ रहना सीखना होगा, जबकि वैज्ञानिक रूप से उनके नुकसान के मुकाबले उनके फायदों को संतुलित करना होगा।

इस संतुलन के प्रयास का एक उदाहरण पेनब्स्कॉट रिवर रिस्टोरेशन प्रोजेक्ट में देखा जा सकता है। न्यू इंग्लैंड की दूसरी सबसे बड़ी नदी प्रणाली को पुनर्जीवित करने के इस प्रयास में दो बांधों को हटाने और एक तिहाई के आसपास एक धारा जैसे बाईपास चैनल का निर्माण शामिल था। हटाए गए बांधों की भरपाई के लिए आस-पास के छह बांधों में जल विद्युत उत्पादन बढ़ाया गया। इस परियोजना ने स्थानीय रूप से लुप्तप्राय अटलांटिक और शॉर्टनोज़ स्टर्जन और धारीदार बास (मछली) को निर्बाध प्रवाहित नदी के माध्यम से उनके ऐतिहासिक आवासों तक पहुंचा दिया। 3,200 किमी (2,000 मील) नदी और सहायक नदी के प्रवाह से समुद्री मछलियों को अपना आवास मिल गया।

बारिश में काबिनी नदी में तैरते हाथी। तस्वीर- प्रशांत राम/ फ़्लिकर।
बारिश में काबिनी नदी में तैरते हाथी। तस्वीर– प्रशांत राम/ फ़्लिकर।

क्रुगर में वापस चलते हैं, मिडज़ी का मानना ​​​​है कि जानवरों के जीवित रहने और पारिस्थितिक को बनाए रखने के लिए प्रकृति में पर्याप्त जल मौजूद है। मिड्ज़ी कहते हैं, ‘एक बांधहटाए जाने पर लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि वन्यजीवों के लिए पानी कम है। शुष्क मौसम में भी, प्राकृतिक सतह का पानी झरनों और तालों में या रेत के नीचे उपलब्ध होता है। हाथियों जैसे जानवर जो खुदाई कर लेते हैं वे वहां पानी तक पहुंच सकते हैं। गंभीर सूखे के दौरान, अधिकांश जंगली जानवर पानी के बजाय भोजन की कमी से अधिक प्रभावित होते हैं। लेकिन कृत्रिम बुनियादी ढांचे को हटाकर पार्क प्रबंधक पिछली गलतियों को दुहरा रहे रहे हैं।

वास्तविकता यह है कि क्रूगर दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भविष्य में कम से कम कुछ हद तक बांधों पर निर्भर रहेगा, भले ही अधिकारी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर बांधों को हटाना जारी रखें। रिडेल ने गौर किया कि पार्क के बाहर, ऊपर की ओर स्थित दक्षिण अफ़्रीकी बांधों से पानी छोड़ने से पानी का प्रवाह बना रहता है जो विभिन्न उद्योगों के लिए सहायक है और साथ ही किसानों को भी मदद पहुंचाते हुए पर्यावरण को भी संरक्षित करता है।

अंततः यह कहा जा सकता है कि बांधएक तरह से ज़ोखिम भरी ज़रूरत हैं, रिडेल कहते हैं, “पारिस्थितिक नजरिए से आप बांधका विरोध करना चाहते हैं, लेकिन आप यह भी महसूस करते हैं कि आपको इसकी आवश्यकता भी उतनी ही है।”

पहले की प्रबंधन नीतियों ने क्रूगर नेशनल पार्क के भीतर एक प्रचुर और सुनिश्चित जल आपूर्ति की अपील की है, जिससे 97 से अधिक कंक्रीट बांध, मिट्टी के बांधऔर बोरहोल की स्थापना हुई है। तस्वीर- पेट्रो कोटज के सौजन्य से।
पहले की प्रबंधन नीतियों ने क्रूगर नेशनल पार्क के भीतर एक प्रचुर और सुनिश्चित जल आपूर्ति की अपील की है, जिससे 97 से अधिक कंक्रीट बांध, मिट्टी के बांध और बोरहोल की स्थापना हुई है। तस्वीर- पेट्रो कोटज के सौजन्य से।

________________________________________

CITATION:

Grill, G., Lehner, B., Thieme, M. L., Geenen, B., Tickner, D., Antonelli, F., … Zarfl, C. (2019). Mapping the world’s free-flowing rivers. Nature569(7755), 215–221. doi:10.1038/s41586-019-1111-9

Thieme, M. L., Khrystenko, D., Qin, S., Golden Kroner, R. E., Lehner, B., Pack, S., … Mascia, M. B. (2020). Dams and protected areas: Quantifying the spatial and temporal extent of global dam construction within protected areas. Conservation Letters13(4), e12719. doi:10.1111/conl.12719

Almond, R. E. A., Grooten, M., & Petersen, T. (Eds). (2020). Living Planet Report 2020 — Bending the curve of biodiversity loss. Retrieved from WWF website: https://f.hubspotusercontent20.net/hubfs/4783129/LPR/PDFs/ENGLISH-FULL.pdf

Damme, P. A., Córdova-Clavijo, L., Baigún, C., Hauser, M., Doria, C. R., & Duponchelle, F. (2019). Upstream dam impacts on gilded catfish Brachyplatystoma rousseauxii (Siluriformes: Pimelodidae) in the Bolivian Amazon. Neotropical Ichthyology17(4). doi:10.1590/1982-0224-20190118

Mulligan, M., Van Soesbergen, A., & Sáenz, L. (2020). GOODD, a global dataset of more than 38,000 georeferenced dams. Scientific Data7(1). doi:10.1038/s41597-020-0362-5

Lehner, B., Liermann, C. R., Revenga, C., Vörösmarty, C., Fekete, B., Crouzet, P., … Wisser, D. (2011). High‐resolution mapping of the world’s reservoirs and dams for sustainable river‐flow management. Frontiers in Ecology and the Environment9(9), 494-502. doi:10.1890/100125

Zhang, H., Jarić, I., Roberts, D. L., He, Y., Du, H., Wu, J., … Wei, Q. (2020). Extinction of one of the world’s largest freshwater fishes: Lessons for conserving the endangered Yangtze fauna. Science of The Total Environment710, 136242. doi:10.1016/j.scitotenv.2019.136242

Anthony, E. J., Brunier, G., Besset, M., Goichot, M., Dussouillez, P., & Nguyen, V. L. (2015). Linking rapid erosion of the Mekong River Delta to human activities. Scientific Reports5(1). doi:10.1038/srep14745

Walling, D. E. (2012). The role of dams in the global sediment budget. IAHS-AISH publication, 3-11. Retrieved from https://iahs.info/uploads/dms/15786.05-3-11-356-07-ICCE2012_Des_Walling–34–1–corr.pdf

Maavara, T., Lauerwald, R., Regnier, P., & Van Cappellen, P. (2017). Global perturbation of organic carbon cycling by river damming. Nature Communications8(1). doi:10.1038/ncomms15347

Freitag-Ronaldson, S., McGeoch, M., Joubert, M., Viljoen, J., & Du Toit, J. (2010). Biodiversity: Conservation in times of change. Retrieved from SANParks Scientific Services website: http://www.sanparks.org/assets/docs/conservation/scientific/biodiversity-brochure.pdf

Van Vuren, L. (2012). In the footsteps of giants — Exploring the history of South Africa’s large dams (SP 31/12). Retrieved from Water Research Commission of South Africa website: http://www.wrc.org.za/wp-content/uploads/mdocs/Footsteps%20of%20giants_web.pdf

Erosion and Sediment Yields in the Changing Environment (Proceedings of a symposium held at the Institute of Mountain Hazards and Environment, CAS-Chengdu, China, 11–15 October 2012) (IAHS Publ. 356, 2012). Copyright  2012 IAHS Press 3 The role of dams in the global sediment budget DES E. WALLING Geography, College of Life and Environmental Sciences, University of Exeter, Exeter EX4 4RJ, UK

Maavara T., R. Lauerwald, P. Regnier, and P. Van Cappellen (2017). Global perturbation of organic carbon cycling by river damming. Nature Communications 8, 15347.

Freitag-Ronaldson, S, McGeoch, M., Joubert, M., (2010) Biodiversity Conservation in Times of Change, published by SANParks Scientific Services

Van Vuuren, L. (2012). In the Footsteps of Giants – Exploring the history of South Africa’s large dams, Water Research Commission of South Africa 

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

बैनर तस्वीर: ब्राजील के अमेज़ॅन में बेलो मोंटे मेगा बांध।

Exit mobile version