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क्यों हो रहा है विद्युत संशोधन विधेयक का विरोध, आम उपभोक्ताओं पर कैसे पड़ेगा असर?

महाराष्ट्र के तटीय शहर दहानू में दहानू थर्मल पावर स्टेशन। 31 मार्च, 2021 तक, भारत में 267 कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र थे। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

महाराष्ट्र के तटीय शहर दहानू में दहानू थर्मल पावर स्टेशन। 31 मार्च, 2021 तक, भारत में 267 कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र थे। तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

  • केंद्र सरकार ने हाल ही में बिजली संशोधन बिल को लोकसभा में पारित कराने का प्रयास किया लेकिन विपक्ष के भारी विरोध के बाद इस बिल को संसद के स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया गया।
  • यह बिल 2003 के बिजली अधिनियम के बहुत से प्रावधानों में बदलाव करने की वकालत करता है। बिल में एक जगह पर एक से ज्यादा बिजली वितरण कंपनियों को लाइसेंस देने का प्रावधान भी किया गया है।
  • इस बिल में बिजली से जुड़े अपराधों से जुड़े दंड के प्रावधानों में भी बदलाव किए गए हैं। इस बिल का मुख्य उद्देश्य देश में बिजली वितरण कंपनियों की खस्ता वित्तीय स्वास्थ्य को सही करना भी है।
  • विपक्षी पार्टियों, किसान संगठनों, सरकारी बिजली कंपनी के कर्मियों ने भी खुले तौर से इस बिल कर विरोध किया है। इनका कहना है कि यह बिल बिजली के क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा देगी। उनका आरोप है कियह बिल राज्यों के अधिकारों पर भी हमला कर सकती है।

भारत सरकार के केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने हाल ही में संसद के मॉनसून सत्र में बिजली संशोधन विधेयक को लोक सभा में पेश किया। यह बिल 2003 के बिजली अधिनियम में कई बदलावों की सिफारिश करता है। लेकिन विपक्षी पार्टियों के भारी विरोध के कारण इस बिल पर लोक सभा में कोई बहस नहीं हो पाई। 

विपक्ष ने संसद में यह आरोप लगाया कि इस कानून से बिजली क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा और राज्यों के ऊर्जा के क्षेत्र में मिले अधिकारों को भी छीना जा सकता है। हालांकि, यह कोई पहली बार नहीं है कि बिजली संशोधन बिल संसद में लाया गया है। अक्सर इस बिल को विपक्षी दलों का विरोध झेलना पड़ा है। बिल का विरोध सिर्फ पार्टियां ही नहीं कर रहीं हैं बल्कि किसान संगठन, सरकारी बिजली विभाग के कर्मी और कुछ और संगठन भी कर रहे हैं। तो आखिर बिल में ऐसे कौन से प्रावधान हैं कि इसे भारी विरोध झेलना पड़ रहा है?

बिल की प्रस्तावना में लिखा है कि इस संशोधन से बिजली के वितरण में होने वाली अड़चनों से निपटने में मदद मिलेगी। यह बिल एक ऐसे खुले बाजार की परिकल्पना करता है जहां एक से ज्यादा बिजली वितरण कंपनियां साथ में काम कर सके और एक भौगोलिक क्षेत्र में सिर्फ एक डिस्कॉम (वितरण कंपनी) का आधिपत्य समाप्त हो सके। इससे बिजली उपभोक्ताओं को ज्यादा विकल्प मिलने की बात की जा रही है।

इस बिल में बिजली के क्षेत्र से जुड़े अपराधों के लिए तय दंड में भी बदलाव का प्रावधान किया गया है। ऐसे अपराधों में कारावास के प्रावधान को हटा कर सिर्फ वित्तीय दंड का प्रावधान रखा गया है। राज्यों के बिजली आयोगों को भी अधिक अधिकार दिये गए हैं और साथ ही साथ उसके सदस्यों के चयन की प्रक्रिया को भी बदला गया है।

इतना ही नहीं, इस बिल के अनुसार हर राज्य और बिजली कंपनियो को अपने कुल बिजली की खरीद में से एक हिस्सा नवीन ऊर्जा से लेना अनिवार्य होगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो बिल में दंड का प्रावधान भी है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस बिल के पारित होने के बाद किसानों और दूसरे वर्ग के बिजली उपभोक्ताओं की सब्सिडी भी छीनी जा सकती है।

एक महिला गुनिया गांव में लगे सौर मिनी ग्रिड के पास से गुजरते हुये। तस्वीर-मनीष कुमार/मोंगाबे-हिन्दी

हालांकि, केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने संसद में दिए अपने वक्तव्य में इन सभी बातों का खंडन किया। उन्होंने विपक्षी पार्टियों के आरोपों को गलत बताया। संसद में अपने बयान में उन्होने कहा, “इस बिल में किसानों से उनकी सब्सिडी छीनने के कोई प्रावधान नहीं है। जहां तक बात एक क्षेत्र में एक से अधिक बिजली वितरण कंपनियों की है तो वो कोई नई बात नहीं है। इसका प्रावधान 2003 के बिल में भी किया गया था।”

हालांकि, सिर्फ विपक्षी पार्टियां ही नहीं बल्कि हाल ही में किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाला संयुक्त किसान मोर्चा भी इस बिल के प्रावधानों के खिलाफ है। अखिल भारतीय ऊर्जा अभियंता संगठन (एआईपीईएफ) भी इस बिल के खिलाफ है। पंजाब, आंध्र प्रदेश सहित अन्य कई राज्यों में भी इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन देखे गए हैं।

बिजली वितरण की चुनौतियां

बिजली संशोधन बिल में कुल 35 संशोधन शामिल किए गए हैं। बिल का अनुच्छेद 5 एक ऐसी व्यवस्था की परिकल्पना करता है जहां एक से ज्यादा डिस्कॉम साथ में काम कर सके। यह प्रावधान इस बिल का सबसे विवादित हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि, यह प्रावधान 2003 के बिल में भी था पर उस बिल के अनुसार ऐसी स्थिति में सारे डिस्कॉम को अपने खुद के तार और दूसरे सयंत्रों की जरूरत थी। लेकिन 2022 के बिल में यह प्रावधान रखा गया है कि दूसरी बिजली वितरण कंपनियां वहां पहले से मौजूद कंपनियों के संसाधनों का प्रयोग कर सकती हैं। इसके लिए उन्हे कुछ अतिरिक्त शुल्क देना होगा। राजनीतिक पार्टियों और राज्यों के अन्य संगठनों को ऐसा लगता है कि यह प्रावधान देश में बिजली वितरण के बाजार में निजीकरण को बढ़ावा दे सकता है। सरकारी डिस्कॉम को भविष्य में इससे भारी नुकसान हो सकता है।

सोमित दासगुप्ता ऊर्जा मामलों के जानकार हैं और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (आईसीआरआईईआर) में वरिष्ठ विजिटिंग फेलो हैं। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “इस बिल में सबसे खास बात है इस क्षेत्र में एक से ज्यादा डिस्कॉम को लाइसेन्स देना। इस बिल के अनुसार एक जगह पर एक से ज्यादा डिस्कॉम हो सकते हैं। लेकिन सिर्फ एक डिस्कॉम के बिजली के वितरण में प्रयोग किये गए तारों का प्रयोग किया जाएगा। ऐसा करना बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है। भारत जैसे देश में जहां बड़े पैमाने पर क्रॉस सब्सिडी, बड़े कमर्शियल घाटे आदि हैं, वहां ऐसा करना काफी मुश्किल है। केंद्र सरकार इस विषय पर कानून तो बना सकती है लेकिन एक नीति के हिसाब से राज्यों में ऐसा करना बहुत ही मुश्किल हैं,” दासगुप्ता कहते हैं।

“इस बिल में एक और बात है जो राज्यों को खटक सकती है। इस बिल में कहा गया है कि अगर कोई डिस्कॉम एक से अधिक राज्यों में लाइसेन्स के लिए आवेदन करे तो उसका आवंटन खुद केन्द्रीय बिजली विनयम आयोग (सीईआरसी) करेगा, न कि राज्यों के एसईआरसी। अब तक राज्यों में लाइसेन्स देने का काम सिर्फ एसईआरसी का होता था। इस बिल में पहली बार लाइसेन्स देने का काम सीईआरसी को देने की बात कही गई है,” दासगुप्ता कहते हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि डिस्कॉम का 80 प्रतिशत व्यय ऊर्जा खरीदने में जाता है, इसलिए ऐसा होना मुश्किल है कि उपभोक्ताओं को एक से अधिक डिस्कॉम होने से कुछ अच्छा लाभ मिले।

क्या कम हो सकती हैं ऊर्जा क्षेत्र का नुकसान

देश में एक से ज्यादा डिस्कॉम का होना बहुत कम है पर नया नहीं है। एक ऐसा ही मॉडल मुंबई में कुछ वर्षों पहले देखा गया था जहां एक सरकारी और एक निजी बिजली वितरण की कंपनियां साथ में काम करती दिखी थीं। हालांकि इस में भी कई मुश्किलें आईं और बात अदालत तक चली गई। 

अश्विनी घायल चिटनिस लीगल इनिशियटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरनमेंट (एलआईएफ़ई) में वरिष्ठ सलाहकार हैं जिन्होंने मुंबई के मॉडल पर अध्ययन किया है। वह कहती हैं, “राज्यों के हिसाब से अगर देखें तो इस बिल में सबसे बड़ी दिक्कत है- नियमों को लेकर अस्पष्टता। हमलोग एक जगह पर एक से अधिक डिस्कॉम की बात कर रहें हैं लेकिन हमें नहीं पता कि उनके काम करने के क्षेत्र कैसे अलग होंगे। हमलोग प्रतिस्पर्धा की बात कर रहें है लेकिन टैरिफ और लिमिट कैसे निर्धारित होगी, यह अब तक स्पष्ट नहीं है। यह तब हो रहा है जब इस बिल को लाने की तैयारी 2014 से चल रही है।”


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चिटनीस और सौम्य वैष्णव की एक रिपोर्ट जो मुंबई के मॉडल की बात करती है, कहती है कि एक से अधिक डिस्कॉम के मुंबई में होने से बिजली उपभोक्ताओं को बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ।ऐसा देखा गया कि अधिकतर लोगों ने अपनी बिजली की वितरण की कंपनी को नहीं छोड़ा। 

2021 में प्रकाशित नीति आयोग की एक रिपोर्ट भी कहती है कि देश के अनेक हिस्सों में निजी कंपनियों ने बिजली वितरण का काम संभाला हैं जैसे दिल्ली, सूरत, अहमदाबाद, कलकत्ता और मुंबई आदि। ऐसे कई जगहों पर वितरण में होने वालों हानि को भी कम होते हुए देखा गया है लेकिन हर जगह अनुभव अच्छा नहीं रहा है। जैसे नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि ओडिशा में 1999 को चार निजी डिस्कॉम ने काम करना शुरू किया लेकिन वितरण के सुधार में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं देखे गए, ना ही वितरण के हानि में कुछ कमी आई।

बिल की आलोचना के अन्य कारण

दासगुप्ता कहते हैं कि यह बिल यह भी प्रावधान है कि केंद्र सरकार अब सीधे राज्यों में स्थित एसईआरसी को आदेश दे सकती है। यह राज्यों में विरोध का एक अन्य कारण बन सकता है। “अभी तक ऐसा होता आया है कि केंद्र सीईआरसी को आदेश देती है और राज्य एसईआरसी को। अब केंद्र सरकार सीधे एसईआरसी को आदेश दे सकती है जिसका विरोध राज्य कर सकते हैं,” दासगुप्ता न बताया।

अखिल भारतीय ऊर्जा अभियंता संगठन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि इस बिल के कारण निजी कंपनियों को यह अधिकार मिल जाएगा कि वो अपने पसंद के हिसाब से ऐसे क्षेत्र चुने जहां अधिक लाभ हो।

बुद्गम जंगल से गुजरता हुआ पावर लाइन। इन बिजली के तारों की वजह से पेड़ों को काटा गया। फोटो- अथर परवेज
बुद्गम जंगल से गुजरता हुआ पावर लाइन। इन बिजली के तारों की वजह से पेड़ों को काटा गया। फोटो- अथर परवेज

“किसी सरकारी डिस्कॉम को बिजली के वितरण में बहुत से निवेश करना होता है। एक एक उपभोक्ता तक बिजली पहुंचाने के लिए बिजली के तार, ट्रांसफॉर्मर और बहुत से संसाधन लगाने होते हैं। इस बिल में सरकारी डिस्कॉम और निजी कंपनियों को बराबरी का अधिकार नहीं दिया गया है। सरकारी डिस्कॉम को बिना भेदभाव से सबको बिजली देना होता है, निजी कंपनियां इस बिल के प्रावधानों में मिली छूट के कारण कही भी निवेश करने के लिए आजाद हैं और उन्हे इसके लिए कोई नया निवेश नहीं करना है। संसाधनों का उपयोग करने के लिए उन्हें बस कुछ शुल्क देना है। ऐसी स्थिति में वो अक्सर ऐसे क्षेत्रों को ही चुनेंगे जहां लाभ ज्यादा हो जैसे की औद्योगिक क्षेत्र,” दुबे कहते हैं।

दुबे का कहना है कि अगर अभी विरोध नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में सरकारी डिस्कॉम का भी वही हाल हो सकता है जैसे निजी टेलीकॉम कंपनियों के आने से बीएसएनएल का हुआ। उनका यह भी कहना है कि क्रॉस सब्सिडी खत्म करने की बात भी इस बिल में कही गई है इससे बहुत से उपभोक्ताओं को सीधे तौर से प्रभाव पड़ सकता है।

नवीकरणीय ऊर्जा खरीद बाध्यता (आरपीओ) और डिस्कॉम 

भारत में डिस्कॉम की कमजोर वित्तीय हालत हमेशा चिंता का कारण रही है। भारत सरकार का विश्वास है कि इस बिल मे माध्यम से इस समस्या से निपटने में मदद मिलेगी। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि देश में डिस्कॉम का कुल बकाया लगभग 1.1 लाख करोड़ है जो इन्हे ऊर्जा बनाने वाली कंपनियों को देना है। 

बिजली संशोधन का यह बिल डिस्कॉम को नवीकरणीय ऊर्जा खरीद बाध्यता (आरपीओ) के लिए भी बाध्य करता है जिसके फलस्वरूप इन्हें अब अपने कुल ऊर्जा की खरीद में से सरकार द्वारा तय किया गया कुछ भाग नवीन ऊर्जा से लेना होगा। नवीन ऊर्जा के क्षेत्र का अध्ययन करने वाले लोगों का कहना है कि इससे नवीन ऊर्जा को बल मिल सकता है लेकिन इसमें चुनौतियां भी हैं।

“यह बिल नवीकरणीय ऊर्जा खरीद बाध्यता के माध्यम से नवीन ऊर्जा को बढ़ावा दे सकता है। हालांकि नवीन ऊर्जा परंपरागत ऊर्जा से थोड़ी महंगी है इसलिए डिस्कॉम को इससे खरीदने में अधिक पैसों की जरूरत होगी। ऐसी स्थिति में यह अधिक खरीद का बोझ  उपभोक्ताओं पर डाला जा सकता है। आने वाले समय में यह दिखेगा कि इसका प्रभाव उपभोक्ताओं पर कैसा होगा,” तीर्थांकर मंडल, वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डबल्यूआरआई), इंडिया में ऊर्जा नीति के विशेषज्ञ ने कहा। उन्होंने कहा कि इस बिल पर व्यापक बहस की जरूरत है ताकि ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े मूलभूत सवालों के जवाब मिल सके।

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

बैनर तस्वीर-महाराष्ट्र के तटीय शहर दहानू में दहानू थर्मल पावर स्टेशन।  तस्वीर- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

 

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