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श्रीलंका में ब्लास्ट फिशिंग से तबाह हो रहे समुद्री जीव, भारत से अवैध तरीके से लाया जा रहा विस्फोटक

ब्लास्ट के बाद समुद्र तल पर मरी हुई मछलियों को इकट्ठा करता हुआ एक मछुआरा। तस्वीर- दर्शन जयवर्धने

ब्लास्ट के बाद समुद्र तल पर मरी हुई मछलियों को इकट्ठा करता हुआ एक मछुआरा। तस्वीर- दर्शन जयवर्धने

  • श्रीलंका के आसपास के समुद्र में बड़े पैमाने पर ब्लास्ट फिशिंग किया जाता है, यहां तक ​​कि समुद्री पार्क और ऐतिहासिक जलपोत भी इस अवैध गतिविधि से अछूते नहीं हैं।
  • अधिकारियों का कहना है कि ब्लास्ट करने की सामग्री भारत से समुद्र के रास्ते तस्करी की जाती है। तस्करी करने वाले पकड़े न जाएं इससे बचने के लिए एल नेटवर्क बनाकर काम करते हैं।
  • विस्फोटकों का आसानी से उपलब्ध होना संरक्षण और सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है। यह राष्ट्र की सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय है। विशेषज्ञों ने 2019 के ईस्टर के दौरान कई चर्च पर हुए आतंकवादी हमले में इन विस्फोटकों के उपयोग होने की ओर इशारा किया है।
  • ब्लास्ट फिशिंग, शौकिया गोताखोरों के लिए भी एक खतरा बन गया है, जिसमें गंभीर चोट या मौत होना भी शामिल है। श्रीलंका पहले से ही कोविड-19 महामारी और चल रहे आर्थिक संकट से जूझ रहा है। अब यहां गोताखोरी पर्यटन उद्योग का भी अंत हो गया है।

समुद्र के किनारे एक सुहानी सुबह थी, पूर्वी श्रीलंका के पिजन आइलैंड नेशनल पार्क में नौका विहार करने वाले पर्यटकों के एक समूह को एक असामान्य झटका महसूस हुआ। इतने पास में एक जोरदार धमाके की आवाज से वे चौंक गए थे। उनके देखते ही देखते सतह पर मृत मछलियां तैरने लगीं। कुछ मछलियां तड़प रही थीं। वहां साफ पानी में समुद्र तल पर और भी मरी हुई मछलियां दिख रही थीं।

टूर ग्रुप के लीडर हैंस-जॉर्ज केहसे ने महसूस किया कि वे मछली पकड़ने के लिए किए गए एक विस्फोटक से बाल-बाल बचे हैं।

केहसे, पार्क के पास गोताखोरी का एक सेंटर चलाते हैं। उन्होंने बताया, “पिजन आइलैंड नेशनल पार्क और उसके आसपास बम या डायनामाइट से मछली पकड़ना आम बात हो गई है, यहां इस तरह के विस्फोटों की आवाजें अक्सर आती रहती हैं।”

उन्होंने अनुमान लगाया कि हालिया विस्फोट उनके टूर ग्रुप से केवल 400 मीटर या एक चौथाई मील की दूरी पर हुआ था। केहसे ने कहा कि यह एक मानवीय त्रासदी हो सकती थी। पहले से ही संकटग्रस्त श्रीलंका के समुद्री पर्यटन उद्योग के लिए यह एक विनाशकारी बात है।

ब्लास्ट फिशिंग के लिए कोई साइट ऑफ-लिमिट नहीं

डायनामाइट फिशिंग या ब्लास्ट फिशिंग के तहत बड़ी संख्या में मछलियों को मारने या बेहोश करने के लिए विस्फोटक का उपयोग किया जाता है। पानी के भीतर विस्फोट से शॉक-वेव (झटका देने वाली लहरें) मछली को मार सकती हैं या उसके तैरने वाले अंग को तोड़ सकती हैं, जिसकी वजह से मछली कूद और तैर नहीं सकती। फिर वे मछुआरों के लिए आसान शिकार बन जाती हैं, जिन्हें बस पानी से निकालना होता है। लेकिन इस तरीके से अंधाधुंध मछलियों की हत्या की जा रही है और आसपास के सभी समुद्री जीव भी घायल हो रहे हैं। इससे प्रवाल भित्तियों जैसे समुद्री आवासों का भी नुकसान भी हो रहा है।

ब्लास्ट की वजह से मछलियों की हवा की थैली (एयर ब्लैडर) टूट जाती है।, जिसकी वजह से वे तैर नहीं पातीं। इस तरह मछलियों की मौत हो जाती है। तस्वीर- दर्शन जयवर्धने
ब्लास्ट की वजह से मछलियों की हवा की थैली (एयर ब्लैडर) टूट जाती है, जिसकी वजह से वे तैर नहीं पातीं। इस तरह मछलियों की मौत हो जाती है। तस्वीर- दर्शन जयवर्धने

श्रीलंका के एक प्रमुख प्रवाल (Coral) विशेषज्ञ और राष्ट्रीय जलीय संसाधन अनुसंधान और विकास एजेंसी (NARA) में पूर्व शोधकर्ता अर्जन राजसूर्या ने बताया कि पीजन द्वीप जैसे समुद्री पार्क में, पानी के नीचे प्रवाल जीवन रक्षक कवच का निर्माण करते हैं, बार-बार होने वाले विस्फोट प्रवाल के विकास को समाप्त कर सकते हैं और इसकी भरपाई नहीं की जा सकती है। 

दक्षिणी श्रीलंका में अधिकांश प्रवाल पहले से ही समाप्त हो चुके हैं, और अन्य क्षेत्रों में उन पर खतरा मड़रा रहा है। राजसूर्या ने मोंगाबे को बताया कि पूर्वी तट, पर स्थित पीजन द्वीप के पास अधिकतम जीवित प्रवालों का आवरण है। लेकिन ब्लास्ट फिशिंग उनके लिए एक गंभीर खतरा है।

डाइव श्रीलंका के डाइविंग टूर ऑपरेटर दर्शन जयवर्धने के अनुसार, बड़ी संख्या में मछलियों को आकर्षित करने वाले शिपब्रेक साइट भी ब्लास्ट फिशिंग का शिकार बन गए हैं। जयवर्धने ने कहा कि यह गौर करने वाली बात है कि श्रीलंका में पर्यटन उद्योग को कोविड ​​​​-19 महामारी और चल रहे आर्थिक संकट से उबरने में मदद करने के लिए गोता पर्यटन को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

जयवर्धने ने मोंगाबे को बताया कि तमाम जगहों पर जिस दर से ब्लास्ट फिशिंग हो रही है, जिसमें गोता लगाने वाले स्थान भी शामिल हैं, यह श्रीलंका के गोता पर्यटन उद्योग के अंत का कारण बनेगा। अभी कुछ ही समय पहले की बात है जब ब्लास्ट के चलते एक पर्यटक घायल हुआ था। 

देश के पूर्व में त्रिंकोमाली, दक्षिण में गाले और उत्तरी पिजन द्वीप में मन्नार और जाफना इन जगहों पर जिस तरीके से ब्लास्ट फिशिंग हो रही है वह ख़ास तौर से चिंता का विषय है। क्योंकि यहां श्रीलंका में सिर्फ तीन समुद्री राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है। कथित रूप से संरक्षित क्षेत्र वन्यजीव संरक्षण विभाग (DWC) द्वारा प्रशासित है। पास में ही एक नौसैनिक शिविर है, जहां से विस्फोटों की आवाज साफ सुनी जा सकती है।

विस्फोटकों को प्रचलन से बाहर रखना 

डीडब्ल्यूसी की महानिदेशक चंदना सोरियाबंदर ने कहा कि जमीनी स्तर पर विभाग के अधिकारी ब्लास्ट फिशिंग से निपटने के लिए जितना संभव हो सकता है कड़ी मेहनत करते हैं। पिजन आइसलैंड के पास तैनात अधिकारियों ने कहा कि जब भी वे विस्फोट सुनते हैं तो वे अपराधियों का पीछा करने की कोशिश करते हैं, लेकिन इन गतिविधियों को इतनी चालाकी से किया जाता है कि समुद्र में नावों से मछली पकड़ने वालों को तुरंत आने वाली गश्ती नौकाओं के बारे में जानकारी मिल जाती है, जिससे उन्हें भागने का समय मिल जाता है।

श्रीलंकाई नौसेना ने हाल के वर्षों में ब्लास्ट फिशिंग में शामिल कई मछुआरों को पकड़ा, और उनके पास से टीएनटी, सी-4 और जेलिग्नाइट विस्फोटकों को जब्त किया है। यह एक पानी आधारित ब्लास्टिंग जिलेटिन है जिसे विस्फोट के लिए ज़्यादा उपयोग किया जा रहा है। 

ब्लास्ट से पहले मछलियां समुद्र में इस तरह तैरती नजर आती हैं। तस्वीर- निशान परेरा
ब्लास्ट से पहले मछलियां समुद्र में इस तरह तैरती नजर आती हैं। तस्वीर- निशान परेरा

2017 में, नौसेना ने 52 किलोग्राम (115 पाउंड) वाटर जेल जब्त किया था। अप्रैल 2019 में ईस्टर को चर्च में बम विस्फोटों के बाद, विस्फोटकों का प्रयोग करने के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई हुई, जिसके परिणामस्वरूप उस अवधि के दौरान ब्लास्ट फिशिंग में भी गिरावट आई।

श्रीलंका में विस्फोटकों का वितरण नौसेना द्वारा नियंत्रित किया जाता है। ब्लास्ट फिशिंग में इस्तेमाल होने वाले विस्फोटक या तो यहां से लीक हो जाते हैं या पड़ोसी देश भारत से समुद्र के रास्ते देश में तस्करी करके लाए जाते हैं। नौसेना का कहना है कि उसने विस्फोटकों और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी पर नकेल कसने के लिए इस समुद्री मार्ग पर अपनी गश्त तेज कर दी है।

लेकिन श्रीलंका अपने इतिहास में सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है। जिसके कारण यह   प्रयास भी कमजोर पड़ गया है। भारी कमी के कारण डीडब्ल्यूसी द्वारा गश्त के लिए ईंधन की कटौती की जा रही है। इस बीच, नौसेना एक और समस्या से घिरी हुई है, हताश श्रीलंकाई जो भारत में प्रवास करने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें रोकने का दबाव झेल रही है।

प्रवाल विशेषज्ञ राजसूर्या ने बताया कि विस्फोटकों तक पहुंच रखने वाले लोगों की संख्या बता पाना असंभव है। उन्होंने कहा कि ब्लास्ट फिशिंग की समस्या संरक्षण का मुद्दा नहीं रह गया है, अब यह राष्ट्रीय चिंता का विषय है। उन्होंने 2019 के आतंकवादी बम विस्फोट के दौरान की गई कार्रवाई की तरह ही सख्त सतर्कता और खुफिया जानकारी जुटाने की अपील की, ताकि यह पता लगाया जा सके कि इन विस्फोटकों को कैसे खपाया जा रहा है।

राजनीतिक हस्तक्षेप और गरीबी 

मछली पकड़ने की विनाशकारी गतिविधियों पर शोध करने वाले श्रीलंका के कृषि विभाग के एसएसएम पेरामुनागामा के अनुसार, श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र में ख़ास तौर से मन्नार में ब्लास्ट फिशिंग बड़े पैमाने पर होती है। पेरामुनागामा ने कहा कि व्यापक रूप से यह माना जाता है कि मन्नार में ब्लास्ट फिशिंग अन्य इलाकों से आने वाले मछुआरे करते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि स्थानीय मछुआरे ऐसा कर रहे हैं।

जब मछलियां बाज़ार में पहुंचती हैं, तो यह पता करना मुश्किल होता है कि क्या वे एक विस्फोट से मारी गई हैं। यहां तक कि मतस्य निरीक्षकों के लिए भी यह मुश्किल होता है। पेरामुनागामा ने मोंगाबे को बताया, “कानून लागू करने में एक और कठिनाई राजनीतिक हस्तक्षेप की है जिसके कारण अक्सर गिरफ्तार मछुआरों को रिहा कर दिया जाता है।” उन्होंने व्यक्तिगत खतरों के बारे में भी बताया कि विस्फोट करने वाले मछुआरे विस्फोट के दौरान खुद भागते हैं, जब भी वे विस्फोटकों को संभालते हैं तो उनके अंगों के नुकसान का खतरा होना भी एक हकीकत है।

विस्फोट में मारे गए मछलियों को गोताखोर बोरे में पैक करते हैं और नाव पर लेकर आते हैं। तस्वीर- दर्शन जयवर्धने
विस्फोट में मारी गई मछलियों को गोताखोर बोरे में पैक करते हैं और नाव पर लेकर आते हैं। तस्वीर- दर्शन जयवर्धने

ब्लास्ट फिशिंग पर मौजूदा वैज्ञानिक साहित्य 2021 की समीक्षा से पता चलता है कि यह एक विश्वव्यापी समस्या है, जिसे अधिकतर सिर्फ गरीबी के कारण किया जाता है। ऑस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू इंग्लैंड के प्रमुख लेखक मेलिसा हैम्पटन-स्मिथ का कहना है, “अफ्रीका, एशिया, दक्षिण अमेरिका और यूरोप में ब्लास्ट फिशिंग तब से हो रही है जब से 19वीं शताब्दी के अंत में विस्फोटक स्वतंत्र रूप से उपलब्ध होने लगे।” अध्ययन में दक्षिण पूर्व एशिया, तंजानिया, लाल सागर और एशिया के कई अन्य क्षेत्रों में खास तौर से विनाशकारी गतिविधियों की पहचान की गई।

हैम्पटन-स्मिथ ने कहा, हालांकि अक्सर ब्लास्ट फिशिंग का सहारा लेने के लिए मछुआरों की गरीबी को असली कारण बताया जाता है, लेकिन सबसे बड़ा योगदान विस्फोटकों तक आसान पहुंच का होना है। उन्होंने कहा कि आसानी से ऋण मिलने की संभावना को भी गरीबी के कारण के तौर जाना जाता है। समीक्षा में यह भी संकेत दिया गया है कि ब्लास्ट फ़िशर, ब्लास्ट फ़िशिंग नहीं करने वाले मछुआरों की तुलना में अधिक धनी होते हैं।

 

स्रोत

Peramunagama, S. S. M., & Thusyanthini, R. (2021). The importance of involving community organizations for preventing destructive fishing activities in Mannar, Sri Lanka. Advances in Technology1(1), 177-190. doi:10.31357/ait.v1i1.4850

Hampton-Smith, M., Bower, D. S., & Mika, S. (2021). A review of the current global status of blast fishing: Causes, implications, and solutions. Biological Conservation, 262, 109307. doi:10.1016/j.biocon.2021.109307

 

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बैनर तस्वीरः ब्लास्ट के बाद समुद्र तल पर मरी हुई मछलियों को इकट्ठा करता हुआ एक मछुआरा। तस्वीर- दर्शन जयवर्धने 

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