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खेल खेल में हो रहा बच्चों का पक्षियों से परिचय

पक्षी परिचय खेल में एशियन बुलबुल की तस्वीर शामिस की गई है। तस्वीर- गुरुराज मुरचिंग/अर्ली बर्ड

पक्षी परिचय खेल में एशियन बुलबुल की तस्वीर शामिस की गई है। तस्वीर- गुरुराज मुरचिंग/अर्ली बर्ड

  • हाल के दिनों में पक्षियों को लेकर बच्चों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए हिन्दी में भी कई प्रयास हो रहे हैं। हरियाणा के एक गांव के बच्चों ने अपने आस-पास के पारिस्थितिकी का अध्ययन कर पक्षियों के बारे में कई रोचक जानकारी जमा कर उसे किताब की शक्ल दी।
  • ऐसी ही एक कोशिश है ‘पक्षी परिचय’ खेल की खोज। बच्चों में पक्षियों के प्रति जागरूकता लाने और उनका स्क्रीन टाइम कम करने की कोशिश में यह ऑफलाइन खेल लाया गया है।
  • इन दोनों ही कोशिशों का मकसद बच्चों को प्रकृति से जोड़ना और उन्हें पर्यावरण को सहेजने के लिए जागरूक करना है।
  • इंटरनेट मीडिया पर पक्षियों के बारे में जानकारियों की भरमार है। लेकिन भारत में पाई जाने वाली पक्षियों पर बेहतर जानकारी का बहुत अभाव है। हिंदी में यह जानकारी न के बराबर है।

भारत में करीब साढ़े छः लाख गांव हैं। इन्हीं गावों में एक ऐसा भी है जिसके पास अपने क्षेत्र में मौजूद पक्षियों का एक बेसलाइन डाटा मौजूद है। इससे भी मजेदार यह है कि इसे वहां के बच्चों ने तैयार किया है। 

यह हरियाणा का एक गांव हैं। करनाल जिले के पाढ़ा गांव से जुड़े इस अनोखे प्रयास में बच्चों ने पता लगाया है कि यहां पक्षियों की 70 प्रजातियां रहती हैं। इनमें तालाबों से 53, खेतों से 36 और पेड़ों से 31 प्रजातियों का गुजारा होता है। इन बच्चों ने एक पत्रिका प्रकाशित की है जिसमें इनमें से अधिकतर पक्षियों की तस्वीर और उससे जुड़ी बाकी जानकारी भी दी गयी है। 

उदाहरण के लिए योगेश को ही लीजिए। ये कक्षा पांच के विद्यार्थी हैं। एक पक्षी पर लगातार अध्ययन करने के बाद इन्होंने लिखा है, “मेरे पक्षी का नाम गजपाव है। मैंने उसे निवासी पक्षी का नाम दिया है क्योंकि यह बारह महीने हमारे गांव में रहता है। गजपाव पतला, काले और सफेद रंग का पक्षी है। यह गंदे पानी और तालाब के किनारे शिकार करता है। गजपाव की चोंच का रंग काला होता है। इसकी चोंच आगे से बहुत नुकीली होती है। जो इसे पानी में से कीड़े छाटने और खाने में मदद करती है। गजपाव के पंजों का रंग हल्का गुलाबी होता है। इसके पंजों में तीन उंगलियां होती हैं। तीनों उंगलियां आगे की तरफ होती हैं। उसके उंगलियों के नाखुन नुकीले होते हैं। नाखुन का रंग काला होता है। इसकी पतली और लंबी अंगुलियां इसे कीचड़ में चलने में मदद करती है।”

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मैग्जीन में शामिल पाढ़ा के पक्षियों की कुछ तस्वीरें। तस्वीर- समीर गौतम

योगेश और उनके 14 सहपाठियों ने मिलकर इस पुस्तक को तैयार किया है। इनमें तीन छात्राएं भी हैं। योगेश और उनके साथी गांव में दिशा इंडिया एजुकेशन ट्रस्ट की ओर चलाए जा रहे दिशा इंडिया कम्युनिटी स्कूल में पढ़ते हैं। दिशा इंडिया एजुकेशन फाउंडेशन के ट्रस्टी परमिंदर सिंह ने मोंगाबे-हिंदी से कहा कि जब बच्चों ने ये प्रोजेक्ट शुरू किया तो वो कक्षा चार में थे। अब सभी बच्चे कक्षा पांच में आ गए हैं।

इस प्रोजेक्ट का मकसद पाढ़ा गांव के पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में पता करना था। प्रोजेक्ट में मददगार रहे समीर गौतम ने मोंगाबे-हिंदी को बताया कि आठ महीनों में बच्चों ने ये प्रोजेक्ट पूरा किया। बच्चों ने हर हफ्ते दो दिन फील्ड वर्क किया और जरूरी जानकारी जुटाई। प्रोजेक्ट पूरा करने के बाद इसे एक किताब का रूप दिया गया। 

पाढ़ा के पक्षी मैग्जीन का मुख्य पृष्ठ। इस मैग्जीन में पाढ़ा में रहने वाले 70 प्रजातियों के पक्षियों की जानकारी है। तस्वीर साभार- दिशा इंडिया कम्युनिटी स्कूल
पाढ़ा के पक्षी मैग्जीन का मुख्य पृष्ठ। इस मैग्जीन में पाढ़ा में रहने वाले 70 प्रजातियों के पक्षियों की जानकारी है। तस्वीर साभार- दिशा इंडिया कम्युनिटी स्कूल

यह पूछे जाने पर कि यह बेसलाइन आंकड़ा कितना सही है, समीर गौतम बताते हैं कि बच्चे लगातार पक्षियों का सर्वेक्षण कर रहे हैं। कोई नया पक्षी मिलता है तो उसे पुरानी सूची में शामिल कर लिया जाता है। बच्चे ये काम तीन साल तक करेंगे। इससे बच्चे तो पर्यावरण और उसकी बारीकियों को तो समझ ही रहे हैं, साथ ही साथ एक आंकड़ा भी तैयार हो रहा है जो भविष्य में किसी अध्ययन में कारगर साबित हो सकता है। 

इसकी तैयारी के बारे में बताते हुए गौतम कहते हैं, “सबसे पहले बच्चों को चार दिन के लिए सुल्तानपुर नेशनल पार्क ले जाया गया। यहां पर बच्चों को पक्षियों के प्राकृतिक आवासों के बारे में बताया गया। बच्चों को समझाया गया कि पक्षी की चोंच, पंजे और रंग उसे उसके आवास में रहने में मदद करता है। इसके बाद बच्चों ने गांव में आकर पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का बारीकी से अध्ययन किया। बच्चों ने गांव के सभी आवासों का दौरा किया और पता किया कि वहां कौन-कौन से पक्षी रहते हैं।” 

सत्तावन पन्नों की किताब में गांव के पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियां मौजूद हैं। मसलन गांव में पक्षियों की 70 तरह की प्रजातियां रहती हैं। इनमें तालाबों से 53, खेतों से 36 और पेड़ों से 31 प्रजातियों का गुजारा होता है। 

पत्रिका में 15 पक्षियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। पत्रिका का रोचक पक्ष यह है कि पक्षियों के रंग, चोंच और पंजों के बारे में विस्तार से बताया गया है। रंग के आधार पर नर और मादा पक्षियों की पहचान के बारे में बताया गया है। चोंच और पंजों से पक्षियों की शिकार की आदतों और खाने-पीने के बारे में जानकारी दी गई है। छात्रों ने 15 पक्षियों के चित्र भी बनाए हैं और इन्हें भी पत्रिका में जगह दी गई है। इसके अलावा गांव में पाए जाने वाले पक्षियों के चित्र भी पत्रिका में दिए गए हैं। पत्रिका में अधिकांश जानकारी हिंदी में है और इसे गांव के पारिस्थितिकी को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

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पाढ़ा के पक्षी मैग्जीन में शामिल बच्चों द्वारा बनाए पक्षियों के चित्र

पुस्तक के मुताबिक पाढ़ा गांव करनाल से 30 किलोमीटर दूर है। गांव में एक हजार घर हैं। आबादी 6200 है। गांव खेती के लिए भूजल और बारिश पर निर्भर है। यहां भूमिगत जल का स्तर 25 मीटर के करीब है और लगातार नीचे जा रहा है। गांव में चार तालाब भी हैं। गांव में धान, गेहूं, ज्वार, बरसीम और सब्जियों की खेती होती है।

बच्चों को प्रकृति, पक्षी और वन्यजीवों के बारे में जानकारी देने के लिए कई अनोखे प्रयास हो रहे हैं। इसी सिलसिले में हाल ही में पक्षियों से जुड़ा एक खेल भी आया है। इस खेल की खासियत यह है कि इसमें शामिल सभी 40 पक्षियां देसी हैं। पूरा खेल हिंदी में है और बच्चों को आसान तरीके से पक्षियों और पर्यावरण को सहेजने के बारे में कई अहम जानकारी देता है। 

ऐसा है “पक्षी परिचय”

प्रकृति और पर्यावरण में बच्चों की दिलचस्पी बढ़ाने के मकसद से बनाये गए ‘पक्षी- परिचय’ नाम के इस खेल में 40 रंग-बिरंगे कार्ड हैं। हर कार्ड में एक तरफ एक आम भारतीय पक्षी का चित्र है जैसे कोयल, मैना, गौरैया, चील आदि। दूसरी तरफ हिंदी में इनका नाम, परिवेश, भोजन और पाए जाने वाली जगहों की जानकारी है। यही नहीं पक्षियों को जानने-बूझने की कई मजेदार पहेलियां हैं। इस खेल के लिए पक्षियों की तस्वीरों का योगदान देश के जाने-माने फोटोग्राफर ने किया है। 

इस खेल को पर्यावरण को बचाने के लिए काम करने वाले ट्रस्ट नेचर कंर्जवेशन फाउंडेशन से जुड़ी संस्था अर्ली बर्ड ने तैयार किया है। अर्ली बर्ड की प्रमुख गरिमा भाटिया ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “इसका मकसद बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करना है। उन्हें भारत में पाई जाने वाली पक्षियों के बारे में बहुत कम पता है। इंटरनेट पर या टीवी चैनलों पर विदेशी पक्षियों के बारे में ज्यादा जानकारी है। देसी पक्षियों पर बहुत कम सामग्री है। उसमें भी हिंदी या अन्य भाषाओं में ऐसी रोचक जानकारियों का अकाल है।”

खेल को कई तरह से खेला जा सकता है। एक तरीका यह है कि दो-दो बच्चों की दो टीमें आमने-सामने बैठती हैं। एक खेल मार्गदर्शक होता है। बच्चों के सामने आठ कार्ड रखे जाते हैं। ध्यान रखा जाना चाहिए कि पक्षियों का चित्र ऊपर की तरफ हो। इसके बाद पहली टीम दो कार्ड उठाती है। अगर कार्ड में पीछे की तरफ दी गई जानकारी मिलती है तो टीम को दो अंक मिलते हैं और दोनों कार्ड टीम को मिल जाते हैं। खेल तब तक चलता है जब तक पूरे कार्ड खत्म नहीं हो जाते हैं।

‘पक्षी- परिचय’ नाम के इस खेल में 40 रंग-बिरंगे कार्ड हैं। तस्वीर- अर्ली बर्ड
‘पक्षी- परिचय’ नाम के इस खेल में 40 रंग-बिरंगे कार्ड हैं। तस्वीर- अर्ली बर्ड

हिंदी में इसे लाने पर गरिमा भाटिया कहती हैं, “दरअसल, 2016-17 में पहली बार इसे अंग्रेजी में बनाया गया था। अब तक इस संस्करण की 3200 प्रतियां बांटी जा चुकी हैं। सरकारी स्कूलों को ये खेल निशुल्क दिया जाता है। अब इसे हिंदी में लाया गया है।“ 

उनका कहना है कि इस खेल में भाषा बाधा नहीं है क्योंकि कई तरह के मैचिंग गेम हैं जिन्हें बड़े बच्चे खुद खेल सकते हैं। लेकिन छोटे बच्चों के लिए किसी मददगार की जरूरत पड़ेगी।” गरिमा ने बताया कि उत्तर प्रदेश जैसे हिंदी भाषी राज्य में लगे पक्षी मेले में अंग्रेजी वाले संस्करण के साथ इसे खेला गया। तब बच्चों ने रोचक तरीके से बहुत कुछ जाना-समझा।

इस खेल को लाने का दूसरा मकसद बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करना भी है। मोबाईल की चमत्कारित दुनिया और कोरोना ने बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी बढ़ा दिया है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) ने दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन पर कुछ भी नहीं देखने का सुझाव दिया है। वहीं दो से चार साल के बच्चों के लिए ये अवधि दिन में एक घंटा रखी है। 


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इस खेल से बच्चे पक्षियों के बारे में कितना सीख पाएंगे इस पर इकतारा बाल साहित्य एवं कला केंद्र के निदेशक सुशील शुक्ल कहते हैं, “मेरा अनुभव है कि अगर खेल दिलचस्प है तो बच्चों को फायदा होगा। कल्पना या रचनात्मकता नहीं है तो बच्चे जुड़ाव महसूस नहीं करेंगे। पक्षियों की विशेषताओं पर बात होनी चाहिए। मसलन, बुलबुल की चाल अद्भुत होती है। अगर बच्चों को मजेदार तरीके से इस बारे में बताया जाए तो इनमें पक्षियों के प्रति आत्मीयता और जिज्ञासा दोनों बढ़ेगी।” 

सुशील कहते हैं कि हिंदी में बेहतर और रोचक सामग्री की कमी है इसलिए ऐसी कोशिशें अच्छी हैं। लेकिन वो जोड़ते हैं कि बच्चों को सब कुछ बताने की प्रवृत्ति सही नहीं है क्योंकि ये उन्हें बोझ की तरह लगता है। 

बच्चों को उनकी भाषा से जोड़ने की पहल

दरअसल, ऐसे खेल और किताब पक्षियों से जुड़ी जानकारियां हिंदी में उपलब्ध कराने की कोशिश भी है। भाषा विज्ञानी इस बात पर एकमत हैं कि बच्चों की शुरुआती शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए। इससे बच्चे बेहतर तरीके से समझ पाते हैं। 2016 में आई यूनेस्को की ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट में भी इस पर जोर है, “बच्चों को उनकी समझ में आने वाली भाषा में शिक्षा दी जानी चाहिए। लेकिन दुनिया की 40 फीसदी आबादी को उनकी भाषा में शिक्षा नहीं मिल पाती है। अगर घर में बोली जाने वाली भाषा कक्षा में नहीं बोली जाती है तो इससे बच्चे के सीखने की क्षमता पर असर पड़ता है, खासकर गरीबों पर।” राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी मातृभाषा में शुरुआती शिक्षा देने पर जोर है। 

खेल में शामिल बार्न स्वैलो पक्षी। तस्वीर- शाश्वत मिश्रा/अर्ली बर्ड
खेल में शामिल बार्न स्वैलो पक्षी। तस्वीर- शाश्वत मिश्रा/अर्ली बर्ड

वहीं भारत के बड़े पक्षी जानकारों में एक गोपी सुंदर ने मोंगाबे-हिंदी को बताया, “दरअसल, बच्चों के शुरुआती सालों में अगर उन्हें प्रकृति और उनसे जुड़ी चीजों के बारे में नहीं बताया जाएगा तो आगे भी इन सब चीजों से नहीं जुड़ पाएंगे। आज की शिक्षा प्रणाली में बच्चों को बुनियादी चीजें नहीं सिखाई जाती हैं। इसलिए जरूरी है कि पर्यावरण को घर औऱ स्कूल का एक जरूरी हिस्सा बनाया जाए। चूंकि पक्षियां हमें आसानी से दिख जाती हैं तो इनके बारे में बताने से बच्चे प्रकृति से जुड़ पाएंगे।”

पक्षियों को पसंद है भारत

भारत में पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती हैं। जूलोजिलकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) के एक सर्वे में देश में पक्षियों की 1331 प्रजातियां मिली। इनमें से पश्चिम बंगाल में 837 पाई जाती हैं। ZSI के वैज्ञानिक और संस्थान में पक्षी विभाग के प्रमुख गोपीनाथ महेश्वरन कहते हैं कि सर्वे का मकसद पक्षियों और उनकी प्रजातियों को बचाने के लिए जागरूकता लाना है। 

इसके अलावा, विदेशी पक्षियों को भी भारत की गुलाबी ठंड बहुत भाती है। हर साल लाखों प्रवासी पक्षी सर्दियों में यहां आती हैं। 29 देशों से आने वाले ये पक्षी अक्टूबर-मार्च के बीच यहां की नदियों, पोखर, तालाब और दलदली क्षेत्रों में डेरा डालते हैं। इनमें से कुछ तो 8000 किमी की यात्रा कर भारत पहुंचती हैं। गांव-देहातों और शहरों के साथ-साथ महानगरों में भी इन्हें बड़ी तादाद में अठखेलियां करते देखा जा सकता है। 

हालांकि पक्षियों को लेकर चिंताजनक बात भी सामने आ रही है। जर्नल एनवायरन्मेंट एंड रिसोर्सेज में छपी स्टेट ऑफ वर्ल्ड बर्ड रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में पाई जाने वाली पक्षियों की प्रजातियों मे से करीब आधी की आबादी घट रही है। इस साल पांच मई को छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भी हालात बहुत बेहतर नहीं हैं। 

 

बैनर तस्वीरः पक्षी परिचय खेल में एशियन बुलबुल की तस्वीर शामिल की गई है। तस्वीर- गुरुराज मुरचिंग/अर्ली बर्ड

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