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[वीडियो] वन्यजीवों की ड्रोन से निगरानी से कैसे कम होगा इंसान और जंगली जीवों के बीच संघर्ष

बैनर तस्वीर: गढ़चिरौली के जंगलों में रात में हाथियों की आवाजाही को कैप्चर करते हुए एक ड्रोन शॉट। तस्वीर- आरईएसक्यू सीटी / महाराष्ट्र वन विभाग

बैनर तस्वीर: गढ़चिरौली के जंगलों में रात में हाथियों की आवाजाही को कैप्चर करते हुए एक ड्रोन शॉट। तस्वीर- आरईएसक्यू सीटी / महाराष्ट्र वन विभाग

  • महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में तीन दशक पहले बाघों की वापसी हुई थी। अब यहां छत्तीसगढ़ के जंगलों से हाथियों का एक झुंड आ पहुंचा है। इन जानवरों की वजह से यहां इंसान और वन्यजीवों में टकराव की आशंका बढ़ गई है।
  • वन विभाग जानवरों की निगरानी के लिए ड्रोन और थर्मल कैमरे जैसी नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा है। विभाग की कोशिश है कि इंसानी आबादी तक जानवर पहुंचे और कोई संघर्ष की स्थिति बने, इससे पहले ही तकनीक की मदद से लोगों को सतर्क कर दिया जाए।
  • तकनीक के प्रयोग को शुरुआती दौर में काफी सफलता मिली है और इसे और बढ़ाने की कोशिशें हो रही हैं। हालांकि जानकार मानते हैं कि इन उपकरणों का उपयोग सावधानी के साथ किया जाना चाहिए, नहीं तो फायदे के साथ कुछ नुकसान भी हो सकता है।

पूर्वी महाराष्ट्र में स्थित गढ़चिरौली जिले में जंगल के आसपास बसे गांवों में इन दिनों कौतूहल है। यहां के लोगों की नजर जब भी आसमान की ओर जाती है उन्हें आकाश में मंडराता क्वाडकॉप्टर दिखाई देता है। क्वाडकॉप्टर को आमतौर पर ड्रोन के रूप में भी जाना जाता है। यह ड्रोन वन विभाग का है और आसमान से ये जंगली जीवों की आवाजाही पर नजर रखने के लिए उड़ाए जाते हैं। 

इस इलाके से कुछ ही दूर पर जंगल में बाघ और हाथी रहते हैं और इन जानवरों के गांव का रुख करने की आशंका बनी रहती है। ये जानवर छत्तीसगढ़ जैसे पड़ोसी राज्यों में स्थित जंगलों से पलायन कर गढ़चिरौली के जंगल में आए हैं। इसलिए यहां के लोगों का इनके साथ जीने का कम ही अनुभव है। ऐसे में जानवर और इंसानों के बीच संघर्ष का डर बना रहता है। ऐसे में ड्रोन से वन्यजीवों पर निगरानी का मकसद है जानवरों और इंसानों के बीच टकराव कम करना।

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वन विभाग ने लोगों को समय रहते सतर्क करने के लिए तकनीक का सहारा लिया है। जंगल में हवाई फोटोग्राफी के साथ-साथ सीसीटीवी कैमरों और अन्य तकनीकों का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। इस तकनीक की मदद से जब जानवर गांव के करीब आते हैं तो ग्रामीणों को समय रहते इसकी सूचना देकर सावधान कर दिया जाता है। 

वन विभाग ने दावा किया कि हाथियों की आवाजाही पर नजर रखने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल भारत में पहली बार हो रहा है। वन विभाग का कहना है कि बाघों के संरक्षण में ड्रोन का इस्तेमाल होना आम है, लेकिन हाथियों के लिए यह एक नई बात है।

बाघों की गढ़चिरौली में वापसी, छत्तीसगढ़ से हाथी भी आए

तकरीबन 14,412 वर्ग किमी का गढ़चिरौली जिला घने जंगलों से भरा हुआ है। इन जंगलों में समृद्ध जैव विविधता है। लगभग तीन दशक पहले, माओवादी (पहले नक्सली) आंदोलन के साथ-साथ अवैध शिकार के कारण इस आदिवासी बहुल क्षेत्र में बाघों की संख्या में काफी गिरावट आई थी। लगभग एक दशक पहले तक गढ़चिरौली में एक या दो बाघों की मौजूदगी की जानकारी थी। हालांकि, इस जानकारी को लेकर कोई पुख्ता दस्तावेज मौजूद नहीं है। पहली बार वर्ष 2017 में रावी गांव में एक बाघिन ने दो लोगों को मार डाला, तब बाघों की मौजूदगी का प्रमाण सामने आया। तब से, बाघों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस वक्त यहां 25 से 32 बाघ होने का अनुमान है। 

CT 1 बाघ की ड्रोन से खींची गई फोटो। यह दावा किया जाता है कि इस बाघ ने 10 लोगों को मार डाला है। तस्वीर- आरईएसक्यू सीटी / महाराष्ट्र वन विभाग
सीटी 1 बाघ की ड्रोन से खींची गई फोटो। यह दावा किया जाता है कि इस बाघ ने 10 लोगों को मार डाला है। तस्वीर- आरईएसक्यू सीटी / महाराष्ट्र वन विभाग

वन विभाग का मानना ​​है कि गढ़चिरौली में बाघों की संख्या बढ़ने का एक प्रमुख कारण चंद्रपुर जिले के नजदीक ब्रह्मपुरी संभाग से बाघों का प्रवास है। यह स्थान ताडोबा-अंधारी अभयारण्य से सटा हुआ है और यहां के कुछ बाघ ब्रह्मपुरी आ गए हैं।

जिले में बाघों की आवाजाही तो थी ही, अब पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ से यहां हाथियों का आना-जाना भी लगा रहता है। बीते कुछ वर्षों में यहां हाथियों के झुंड को देखा गया है। आमतौर पर छत्तीसगढ़ से आने वाले हाथी एक या दो दिन से अधिक नहीं रुकते। वे वापस छत्तीसगढ़ के जंगलों में लौट जाते हैं। हालांकि, लगभग एक साल पहले अक्टूबर 2021 में 18 से 22 जंगली हाथियों का एक झुंड महाराष्ट्र में आया और चार महीने से अधिक समय तक गढ़चिरौली के जंगलों में घूमता रहा। लंबा वक्त बिताने के बाद वे वापस छत्तीसगढ़ के जंगलों में लौट गए। हालांकि, इस साल 23 ​​हाथियों का झुंड एक बार फिर महाराष्ट्र में आ गया और यहां के जंगल को अपना ठिकाना बनाने की कोशिश में है। छत्तीसगढ़ के जंगल खनन का दबाव झेल रहे हैं और हाथियों को भोजन और आवास खोजने में कई दिक्कतें आ रही है। नए ठिकाने और खाने की तलाश में हाथी गढ़चिरौली आते हैं। यहां हरी बांस के पत्ते, हरी घास, चिरौंजी के साथ-साथ पीने के लिए पानी के स्रोत भी प्रचूर मात्रा में मिलते हैं। 

हाथियों की आवाजाही ने इस बात को लेकर अटकलें तेज कर दी हैं कि क्या वे गढ़चिरौली के जंगल को स्थायी निवास स्थान बना देंगे। इसने मानव-हाथी संघर्ष की आशंका जताई जा रही है। इसकी बड़ी वजह है यहां के स्थानीय लोगों का हाथियों के साथ रहने का कोई अनुभव ना होना। 


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मानव-हाथी संघर्ष की आशंका को देखते हुए ग्रामीणों ने वन विभाग से मांग की है कि हाथी को किसी भी तरह गांव की सीमा के बाहर रोका जाए। दादापुर गांव के एक किसान भीमराव वैद्य ने कहा, “खेतों को नुकसान हुआ तो ठीक है क्योंकि हमें मुआवजा दिया जाएगा। हालांकि, अगर हमारे गांव के अंदर हाथी आ गए तो यह एक बड़ी आपदा होगी। वे हमारे घरों को तबाह कर सकते हैं और हमें मार भी सकते हैं।”

गांव वाले इसी तरह की मांग बाघों को लेकर भी कर रहे हैं। उनकी मांग है कि खेतों के आसपास बाघ आएं तो उन्हें पकड़ लिया जाए। लोगों का आरोप है कि सीटी 1 नाम के एक बाघ ने अब तक 10 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। स्थानीय विधायक कृष्णा गजबे ने कहा, “बाघों के कारण किसान और ग्रामीण काफी तनाव में हैं। अगर वे अपने घरों से बाहर कदम नहीं रखेंगे तो उनका गुजारा कैसे होगा? हम चाहते हैं कि वन विभाग उन्हें पकड़ ले क्योंकि मानव जीवन अधिक महत्वपूर्ण है। नहीं तो उन्हें इस तरह के हमलों को रोकने की व्यवस्था करनी चाहिए।”

आसमान से हाथियों पर नजर 

वन अधिकारियों के अनुसार दिन में वनकर्मियों की टीम गश्ती कर हाथियों की आवाजाही पर नजर रखती है। इस काम में काफी जोखिम है इसलिए विभाग ने गांवों के पास हाथियों की आवाजाही की निगरानी के लिए थर्मल कैमरों के साथ ड्रोन का उपयोग करने का निर्णय लिया।

महाराष्ट्र के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) सुनील लिमये ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हम नहीं चाहते कि हाथी गांवों में प्रवेश करें और वे परेशान हों या घायल हों। इसलिए हम ड्रोन का उपयोग उन पर नजर रखने के लिए कर रहे हैं। थर्मल कैमरे हमें उनके स्थान, उनकी चाल, उनके व्यवहार और वे क्या खा रहे हैं, यह जानने में मदद करते हैं। जब वे गांव के करीब आते हैं, तो उनकी चाल पर निगरानी रखी जाती है। हम उन्हें गांव के पास से जंगल की ओर भगा देते हैं। थर्मल कैमरों वाले ड्रोन रात के समय काफी मददगार साबित हुए हैं।”

दादापुर के किसान भीमराव वैद्य के खेत में हाथी घुस आए और फसल को तबाह कर दिया। तस्वीर- सौरभ कटकुरवार
दादापुर के किसान भीमराव वैद्य के खेत में हाथी घुस आए और फसल को तबाह कर दिया। तस्वीर- सौरभ कटकुरवार

पुणे स्थित आरईएसक्यू चैरिटेबल ट्रस्ट के वॉलेटियर ड्रोन चलाते हैं। साथ ही, पश्चिम बंगाल स्थित स्ट्राइप्स एंड ग्रीन अर्थ (SAGE) फाउंडेशन की एक टीम विशेष तकनीकों का उपयोग करके हाथियों को दूर भगाती है।

आरईएसक्यू की संस्थापक और अध्यक्ष नेहा पंचमिया ने कहा कि ड्रोन और कैमरा इमेजिंग ग्रामीणों के बीच विश्वास बनाने में मदद करते हैं। “लोग कई बार झाड़ियों या जंगल में किसी जंगली जानवर के होने की जानकारी देते हैं। हालांकि, जानवर वहां से या तो चले गए होते हैं या कभी कभी होते भी नहीं हैं। यदि आप उन्हें लाइव फुटेज या ड्रोन से खींची गई तस्वीरें दिखाते हैं, तो वे निश्चिंत हो जाते हैं और राहत महसूस करते हैं कि कोई जंगली जानवर नहीं है।”

स्थानीय निवासियों ने वन विभाग से बाघों को पकड़ने का अनुरोध किया है। विभाग उन बाघों को पकड़ने पर काम कर रहा है, जिन्होंने इंसानों पर हमला किया है। साथ ही बाघों को ट्रैक करने के लिए तकनीक और डिजिटल उपकरणों का प्रयोग भी हो रहा है। 

वन उप संरक्षक (वडसा डिवीजन) धनंजय वेभासे ने कहा, “हमने बाघों की आवाजाही का विश्लेषण करने के लिए जंगल के अंदर पहले से ही सौर ऊर्जा से चलने वाले सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं। हालांकि, वे रात में काम नहीं करते हैं। इसलिए हम एक थर्मल कैमरा सिस्टम बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो पोर्टेबल बैटरी पर चलेगा और वायरलेस डोंगल के माध्यम से इंटरनेट से जुड़ा होगा। किसी भी तरह की हलचल होने पर वे अलर्ट भेजेंगे।”

ऐसे कैमरे गांव की सड़कों और खेतों के किनारे लगाए जाएंगे। “यह ग्रामीणों को सचेत करेगा, जो तब उन क्षेत्रों से दूर रह सकते हैं जहाँ एक बाघ मौजूद है। यहां तक ​​कि मवेशियों पर हमले को भी रोका जा सकता है। यह, समस्या होने पर बाघ को पकड़ने में भी हमारी मदद करेगा,” वेभासे ने कहा।

लिमये ने बताया कि जहां गढ़चिरौली के जंगल में फिलहाल आरईएसक्यू टीम ड्रोन का संचालन कर रही है, वहीं वन विभाग के ग्राउंड स्टाफ को भी इसके लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। 

एक गांव के पास हाथी को ट्रैक करने के लिए ड्रोन उड़ाया जा रहा है। तस्वीर- RESQ
एक गांव के पास हाथी को ट्रैक करने के लिए ड्रोन उड़ाया जा रहा है। तस्वीर- RESQ

“सीटी 1 बाघ छुपने में माहिर है। लेकिन हमने ड्रोन से उसे ट्रैक किया और उसकी अच्छी तस्वीर ली। अब तक के अनुभवों ने हमें बाघों और हाथियों की नियमित निगरानी के लिए ड्रोन और कैमरों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया है,” लिमये ने कहा। “हम पहले ही कुछ ड्रोन खरीद चुके हैं और हमारे वन कर्मचारियों ने उनका उपयोग करना शुरू कर दिया है। जिन वन क्षेत्रों में संघर्ष की सूचना आती है, वहां ऐसे ड्रोन तैनात किए जाएंगे। जंगली जानवरों पर नज़र रखने के अलावा इन ड्रोन्स से ग्रामीणों और वन कर्मचारियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकेगी,” लिमये ने बताया।  

गढ़चिरौली के मानद वन्यजीव वार्डन (HWW) मिलिंद उमरे ने कहा कि तकनीक को अपनाने के बारे में संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में उत्साह है, लेकिन सावधानी के साथ इसका इस्तेमाल न करने पर इसके नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। 


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“गढ़चिरौली में अभी भी माओवादियों की मौजूदगी है। यह जोखिम भरा हो सकता है। उन्हें ऐसा लग सकता है कि वन्यजीव निगरानी के नाम पर ड्रोन से उन्हें ट्रैक किया जा रहा है। ऐसे में वन विभाग के जमीनी कर्मचारी जैसे कि गार्ड या यहां तक ​​कि ग्रामीणों के ऊपर जान का खतरा आ सकता है,” उमरे ने चेतावनी दी। 

उमरे ने बहुत कम ऊंचाई पर ड्रोन उड़ाने पर भी चिंता जताई। “यह बाघों और हाथियों को परेशान कर सकता है, जो उल्टा नुकसानदायक हो सकता है। साथ ही, वन विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ड्रोन के माध्यम से एकत्रित दुर्लभ वन्यजीवों या पौधों की प्रजातियों के बारे में संवेदनशील जानकारी बाहर न जाए।”

 

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बैनर तस्वीर: गढ़चिरौली के जंगलों में रात में हाथियों की आवाजाही को कैप्चर करते हुए एक ड्रोन शॉट। तस्वीर- आरईएसक्यू सीटी / महाराष्ट्र वन विभाग

 

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