- एक हालिया अध्ययन में कहा गया है कि कश्मीर घाटी झरनों का 87% पानी बिना उपचारित किए यानी सीधे झरने से पीने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
- झरनों के आसपास रहने वाले स्थानीय समुदाय इस पानी को साफ़ और पवित्र मानते हैं। उनकी मान्यताएं भी झरनों को साफ रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।
- घाटी में झरनों की देखभाल के प्रति ज़िम्मेदार किसी एक इकाई पर नहीं है। विभिन्न झरनों का अधिकार क्षेत्र विभिन्न विभागों के बीच बंटा हुआ है।
- वैज्ञानिक, कश्मीर घाटी में इन जल स्रोतों की निरंतर निगरानी और उचित प्रबंधन की सलाह देते हैं, क्योंकि इनमें क्षेत्र में बढ़ती आबादी की बढ़ती मांगों को पूरा करने की काफी क्षमता है।
नूरा, कश्मीर में श्रीनगर के बुर्जमा क्षेत्र में स्थित एक स्थानीय झरने ‘अस्तन नाग’ के पास घूम रही हैं। वह कुछ देर रुकती हैं और झरने की ओर जाने लगती हैं। यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। अंजुली भर पानी पीते हुए वह कहती हैं, “इस झरने के पाक (साफ़) होने के बारे में बताने के लिए इसका नाम ही काफी है। अस्तन का मतलब तीर्थ, और नाग का मतलब है झरना।” नूरा इस इलाके के उन कई लोगों में से हैं जो अभी भी पीने के लिए अपने घरों के नलों में आने वाले पानी के बजाय झरने के पानी को पसंद करते हैं।
अस्तन नाग, कश्मीर घाटी के उन 258 झरनों में से एक है, जिनका नमूना कश्मीर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने एक नए अध्ययन में लिया है। उनके 2022 के अध्ययन के अनुसार, 87% झरनों में पानी की गुणवत्ता बेहतरीन है और बिना उपचारित किए घरेलू उपयोग के अलावा पीने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
यह भी पता चला है कि इस क्षेत्र में बढ़ती आबादी की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए झरनों में काफी बड़ी क्षमता है। हालांकि, अध्ययन यह भी बताता है कि इंसानी गतिविधियां जैसे ‘बड़े पैमाने पर भूमि उपयोग में परिवर्तन, जलग्रहण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई, और जलवायु परिवर्तन के अलावा ढांचागत विकास,’ घाटी में झरनों के लिए ख़तरा हैं। लेखकों का मानना है कि ‘जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में इन प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रबंधन’ के लिए कश्मीर घाटी में झरने के पानी के स्रोतों की लगातार निगरानी और मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
वैज्ञानिकों ने कश्मीर घाटी के 258 झरनों के पानी की गुणवत्ता का परीक्षण किया। परिणाम बताते हैं कि 39.5% झरनों में पानी की गुणवत्ता ‘बेहतरीन’ है, 47.7% में पानी ‘अच्छा’ है, 5% में ‘ख़राब’ पानी है, 1.6% में ‘बहुत ख़राब’ पानी है, और 6.2% झरनों में पानी पीने के लिए ‘पूरी तरह से पीने लायक नहीं’ है।
अधिकांश झरनों (87%) में पानी की गुणवत्ता ‘बेहतरीन’ और ‘बढ़िया’ है और इनके पानी को बिना किसी उपचार के पीने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, अध्ययन में घाटी के चूना पत्थर से समृद्ध लिथोलॉजी के कारण कश्मीर के मध्य और दक्षिणी हिस्सों के झरनों के क्षारीय होने की चिंता भी जताई गई है।
आसपास के जलग्रहण क्षेत्रों से अकार्बनिक उर्वरकों और आवासीय नालों के मिश्रण के कारण कुपवाड़ा और बारामूला जिलों में कुछ झरने अम्लीय पाए गए। विश्लेषण के अनुसार, झरने के पानी में उच्च स्तर के सल्फेट्स और नाइट्रेट्स मिट्टी और कृषि क्षेत्र की जल-निकासी, सतही नाली के रिसाव और घरेलू सीवेज से पानी को प्रदूषित होता है।
इसके अलावा, अध्ययन से यह भी पता चला है कि कुपवाड़ा क्षेत्र में झरनों में सोडियम और पोटेशियम का बढ़ता स्तर मानवीय गतिविधियों के बढ़ने का संकेत है। मध्य और दक्षिणी तटों पर पोटेशियम की अधिकता का संभावित कारण बागवानी और खेती के लिए मिट्टी का संशोधन है।
इस अध्ययन के सह-लेखक सामी उल्लाह भट के अनुसार, पानी की गुणवत्ता को परिभाषित करने के लिए उन्होंने जिन मापदंडों का इस्तेमाल किया, वे डब्ल्यूएचओ के मानकों पर आधारित हैं। दिशानिर्देशों के आधार पर उन्होंने यह निर्धारित किया कि पानी की गुणवत्ता बेहतरीन, अच्छी, ख़राब या बेहद ख़राब के स्तर में थी। झरने के पानी की विभिन्न भौतिक, रासायनिक और जैविक (कोलीफॉर्म) विशेषताएं डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित पेयजल गुणवत्ता के मानकों से संबंधित थीं।
संभावित संसाधन
कश्मीर कई झरनों और झरना-पोषित धाराओं का घर है। समाज का एक बड़ा हिस्सा, खासतौर से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले लोग, झरने के पानी पर निर्भर हैं। कई झरनों में, पाल बाग नाग, श्रीनगर के बटपोरा इलाके में स्थित एक ऐसा झरना है, जहाँ स्थानीय लोग अभी भी विभिन्न गतिविधियों के लिए झरने के पानी का उपयोग करते हैं।
कश्मीर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाल बाग का भी नमूना लिया था। स्थानीय लोग इसके पानी का इस्तेमाल कपड़े धोने से लेकर पीने तक में करते हैं। हालांकि इस झरने का रुका हुआ पानी चिनार के पत्तों और कीड़ों से भरा हुआ है, फिर भी बहता पानी साफ दिखता है।
झरने के पास ही रहने वाले एक स्थानीय निवासी मोहम्मद अमीन भट इसकी वर्तमान स्थिति से बहुत परेशान हैं। भट कहते हैं, “जब मैं छोटा था, तो पूरा इलाका इस झरने का पानी पीता था। पानी इतना साफ था कि कोई भी उसमें आईने की तरह अपनी तस्वीर देख सकता था। इस झरने की स्थिति बहुत परेशान करने वाली है। आसपास देखा तो लोग उसमें कूड़ा-करकट और पॉलीथीन डाल देते हैं। मैं अब इसका पानी नहीं पीता, लेकिन कभी-कभी मैं यहाँ हाथ और चेहरा धोने आता हूँ।
अध्ययन के सह-लेखक सामी उल्लाह भट का कहना है कि वर्तमान में कई झरने गायब हो गए हैं या मौसमी हो गए हैं।
सामी ने कहा, “पूरे कश्मीर में कई उदाहरण मौजूद हैं। मेरे पास अपने गांव (कोकरगुंड यारीपोरा कुलगाम) से उदाहरण हैं जहाँ मैं 30 साल पहले 5-6 झरने देख सकता था, लेकिन अब वे पूरी तरह से गायब हो गए हैं।”
जलवायु परिवर्तन ने कश्मीर घाटी को प्रभावित किया है। साल 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, कश्मीर घाटी में 1980 से 2016 तक औसत तापमान में 0.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी देखी गई है, जबकि बारिश में काफी कमी आई है। कम वर्षा के कारण घाटी का जलस्तर काफी कम हो गया है।
श्रीनगर के शासकीय महिला महाविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर, सुमैरा शफी कहती हैं, “झरनों में पानी का स्तर सीधे तौर पर वर्षा के स्तर के अनुपात में होता है।”
हालांकि इंसानी गतिविधियां कश्मीर में झरने के पानी की गुणवत्ता को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं, लेकिन 2018 के एक अध्ययन में यह पाया गया कि हजरतबल तहसील के सैंपल वाले 30 झरनों में पानी की गुणवत्ता ‘बेहतरीन’ से लेकर ‘बहुत अच्छी’ तक है। परिणाम जल गुणवत्ता सूचकांक पर आधारित थे।
अस्तन नाग और पाल बाग नाग, दोनों 2018 के अध्ययन में सैंपल का हिस्सा हैं। सामी भी इस अध्ययन के सह-लेखकों में शामिल हैं।
पाल बाग नाग के सामने रहने वाले एक दुकानदार ने कहा, “इस झरने का पानी अभी भी पीने के लिए उपयुक्त है। यदि अधिकारी इस झरने के संरक्षण पर उचित ध्यान देते हैं, तो हमें किसी अन्य जल-स्रोत पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है।”
मान्यताएं जल संरक्षण में सहायक हैं
नूरा ने झरने से पानी पीने के बाद, झरने के पीछे मंदिर की ओर चली गई। घाटी के अधिकांश लोग मानते हैं कि मंदिरों के साथ आध्यात्मिक संबंध होने के कारण झरने का पानी सबसे शुद्ध रूप है।
नूरा का मानना है कि मंदिर और झरना एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। मंदिर के शिखर की ओर देखते हुए वे कहती हैं, “इसे अस्तन नाग कहा जाता है क्योंकि यह मंदिर की तरह ही बहुत पवित्र है।”
पवित्र झरने और लोग सहजीवी संबंध का आनंद लेते हैं। झरने लोगों को अन्य गतिविधियों और पीने के लिए पानी देते हैं, और बदले में, वे झरनों को साफ रखते हैं और उनके संरक्षण में मदद करते हैं।
कुलगाम जिले के बुम्ब्रथ गांव में लोग पूरी तरह से एक स्थानीय झरने पर निर्भर हैं। एक स्नातक छात्र पीर फैज़ल ने बताया। “हमारे गाँव में नल कनेक्शन हैं, लेकिन ज़्यादातर समय, हम पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। इसलिए, पानी के लिए झरना हमारा आखिरी विकल्प बन जाता है।”
फैज़ल के अनुसार, बुम्ब्रथ के निवासी झरने के पानी का उपयोग पीने, कपड़े और बर्तन धोने और कभी-कभी नहाने के लिए भी करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि झरने पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिए, स्थानीय समुदायों ने झरने के चारों ओर एक ठोस संरचना का निर्माण किया है, और किसी को भी झरने के उद्गम स्थल के अंदर जाने की अनुमति नहीं है।
इसी जिले में एक और झरना है जिसे खेह नाग के नाम से जाना जाता है। खेह इलाके के स्थानीय समुदायों के अनुसार, इस झरने का औषधीय महत्व हैं। एक स्थानीय निवासी ने बताया, “यह एक बहुत ही पवित्र झरना है। यह वह स्थान है जिसका जुड़ाव सूफी संतों से रहा है।” इस झरने के पानी का उपयोग केवल पीने के लिए किया जाता है।
बुम्ब्रथ में झरने के पास रहने वाले बशीर अहमद ने बताया, “लोग मानते हैं कि झरने का पानी एक दिव्य आशीर्वाद है। इन झरनों का संरक्षण आवश्यक है। इस क्षेत्र के लोगों का एक बड़ा वर्ग निरक्षर है। इसमें वे महिलाएं भी शामिल हैं, जो झरने के पानी का लाभ लेती हैं। वे इसका उपयोग पीने और अन्य घरेलू उद्देश्यों के लिए करती हैं। उन्हें यह समझाना आसान नहीं है कि झरनों के संरक्षण और प्रबंधन का क्या मतलब होता है। लेकिन अपनी मान्यताओं और विश्वास के कारण वे न केवल झरनों को साफ रखते हैं, बल्कि दूसरों को भी साफ़ रखना सिखाते हैं।”
झरने के रखरखाव की बिखरी हुई जवाबदेही
घाटी के झरने ग्रामीण, शहरी और वन क्षेत्रों में स्थित हैं। श्रीनगर जिले में, कुछ झरने पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग (पीएचई) विभाग के अंतर्गत आते हैं, और कुछ की देखभाल वन-विभाग द्वारा की जाती है जबकि अन्य की देखभाल जम्मू और कश्मीर झील संरक्षण और प्रबंधन प्राधिकरण (एम्एलसीएम्ए) द्वारा की जाती है।
एलसीएमए के एक अधिकारी के अनुसार, “प्राधिकरण ने डल झील की परिधि के आसपास लगभग 50 झरने हमारे अधिकार क्षेत्र में हैं। सभी झरनों पर हमारा नियंत्रण नहीं है। हालांकि, जो हमारे अधिकार क्षेत्र में आते हैं, हमने उनमें से कुछ को साफ कर दिया है।”
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उसी विभाग के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि उन्होंने केवल कुछ झरनों का नवीनीकरण किया है। नवीनीकरण में बाड़ लगाना और उनके चारों ओर बंद संरचनाओं का निर्माण शामिल था। “हम झरनों की सफाई तभी करते हैं जब स्थानीय समुदाय हमसे ऐसा करने के लिए कहते हैं। अभी हम झरनों का संरक्षण के लिए बस इतना ही कर रहे हैं।” अधिकारी ने कहा, “पीएचई विभाग कुछ झरनों की ज़िम्मेदारी ली है, और वे भी ऐसा ही करते हैं।”
श्रीनगर के उपायुक्त मोहम्मद एजाज असद के मुताबिक ‘अमृत सरोवर अभियान’ के तहत 75 झरनों/तालाबों का कायाकल्प किया गया है।
बदलते वैश्विक हालातों में, जहाँ पानी की कमी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, झरने पानी का एक वैकल्पिक स्रोत साबित हो सकते हैं। सुमैरा शफी ने कहा, “अगर हम कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगा सकते हैं, और वनीकरण को बढ़ा सकते हैं, तो हम अच्छी मात्रा में बारिश पा सकते हैं, नतीजतन एक बेहतरीन जल स्तर हो सकता है।” उन्होंने कहा, “झरने का पानी, पानी का सबसे शुद्ध रूप है, और उन्हें संरक्षित करके और उनका उचित प्रबंधन करके हम जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की कमी की समस्या से निपट सकते हैं।”
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बैनर तस्वीर: पाल बाग नाग के अंदर का दृश्य। ढके न होने के कारण झरने के पानी में गिरी हुई पत्तियां। तस्वीर- आमिर बिन रफ़ी।